बेरोजगारी : भारत में बेरोजगारी को प्रभावित करने वाले कारक

प्रश्न: विभिन्न प्रकार की बेरोजगारी की पहचान कीजिए। भारत में बेरोजगारी को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?

दृष्टिकोण:

  • बेरोजगारी को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
  • बेरोजगारी के विभिन्न प्रकारों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • भारत में बेरोजगारी को प्रभावित करने वाले कारकों को रेखांकित कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

बेरोजगारी को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें कार्य करने में सक्षम और इच्छुक सभी लोगों को कार्य प्राप्त नहीं होता है। इसमें उन सभी व्यक्तियों के समूह को शामिल किया जाता है जो रोजगार कार्यालयों, मित्रों, रिश्तेदारों और अन्य संपर्कों के माध्यम से कार्य प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हों और कार्य करने की इच्छा व्यक्त कर रहे हों। हालाँकि, कार्य के अभाव के कारण वे बेरोजगार होते हैं।

बेरोजगारी के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised unemployment): यह एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है जिसमें श्रमबल किसी कार्य को करने में संलग्न तो प्रतीत होता है लेकिन वास्तविक रूप में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में शामिल नहीं होता है। इसे छिपी हुई बेरोजगारी के रूप में भी जाना जाता है।
  • मौसमी बेरोजगारी (Seasonal unemployment): यह तब उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति कार्य के लिए उपलब्ध तो होता है, लेकिन वर्ष की किसी विशेष अवधि में उसे कार्य प्राप्त नहीं हो पाता है।
  • संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural unemployment): यह एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है जिसमें कोई व्यक्ति कार्य के लिए उपलब्ध तो होता है लेकिन उस कार्य से संबंधित कौशल न होने के कारण वह उस कार्य को प्राप्त करने में असमर्थ रहता है। यह अर्थव्यवस्था में आधारभूत परिवर्तनों जैसे तकनीकी प्रगति, मांग की प्रवृत्ति में परिवर्तन आदि के कारण उत्पन्न होती है।
  • चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical unemployment): यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कार्य के लिए उपलब्ध व्यक्ति अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव के कारण रोजगार प्राप्त करने में असमर्थ हो जाते हैं, जैसे- अर्थव्यवस्था में गिरावट अथवा मंदी की स्थिति में।
  • घर्षणात्मक बेरोजगारी (Frictional unemployment): यह तब उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति एक रोजगार से दूसरे रोजगार में संक्रमण करने के दौरान कुछ समय के लिए निष्क्रिय (बिना रोजगार के) बना रहता है। यह बेरोजगारी प्रवासी श्रमिकों में अधिक देखी जा सकती है।
  • ऐच्छिक बेरोजगारी (Voluntary unemployment): इसे एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है जब श्रमिक प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य नहीं करना चाहते हैं क्योंकि इस मजदूरी दर को लोगों द्वारा कार्य करने के लिए आवश्यक मजदूरी से कम समझा जाता है।

भारत में बेरोजगारी को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • अपर्याप्त कौशल: शिक्षा का अल्प स्तर या उसका अभाव तथा कार्यशील जनसंख्या में व्यावसायिक कौशल की कमी आदि कारक रोजगार प्राप्ति में उनके लिए अवरोधों के रूप में कार्य करते हैं। इन्हें किसी भी रोजगार संबंधी आंकड़ों में भी शामिल नहीं किया जाता है।
  • भारतीय कृषि की मौसमी प्रकृति: इसके कारण कृषि क्षेत्र में ग्रामीण जनसंख्या को केवल वर्ष के एक विशेष मौसम में ही रोजगार प्राप्त होता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र में विद्यमान अवरोध: अवसंरचना की अपर्याप्त वृद्धि और निम्न निवेश के परिणामस्वरूप विनिर्माण क्षेत्र की रोजगार क्षमता सीमित बनी हुई है।
  • प्रशासनिक कारक: अल्पकालिक कौशल पाठ्यक्रम, अव्यवहारिक लक्ष्य निर्धारण, प्रशासनिक लालफीताशाही, मंत्रालयों और विभागों के मध्य बेहतर समन्वय का अभाव आदि के कारण कौशल विकास कार्यक्रमों का अप्रभावी क्रियान्वयन होता है।
  • सामाजिक कारक: पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंड महिलाओं को रोजगार प्राप्त करने अथवा उसे जारी रखने से प्रतिबंधित करते हैं। इसके अतिरिक्त, निम्न जाति के समूहों से संबंधित लोगों को रोजगार की खोज में सामान्यतया जाति आधारित बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • जनसंख्या दबाव: जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के अनुरूप रोजगार के अवसरों में वृद्धि न होने के कारण बेरोजगारी की स्थिति और अधिक खराब हो गई है।

वर्तमान में, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey: PLFS) के अनुसार भारत में बेरोजगारी दर लगभग 6.1% है। भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश के कारण वैश्विक रोजगार बाजार में बेहतर कार्यबल उपलब्ध करा सकता है। हालांकि, सरकार को मानव संसाधनों को मानव पूंजी में परिवर्तित करने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास में निवेश करने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश, जनसांख्यिकीय संकट के रूप में परिवर्तित न हो जाए।

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