बैंकों का समेकन और चुनौती
प्रश्न: क्या बैंकों का समेकन बैंकिंग क्षेत्रक में वर्तमान समस्याओं से निपटने में सहायता कर सकता है? चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- नरसिंहम समिति की रिपोर्ट के परिप्रेक्ष्य में हाल ही में हुए विलयों पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित समकालिक मुद्दों पर प्रकाश डालिए।
- बैंकों के समेकन के लाभों पर चर्चा कीजिए।
- बैंकिंग क्षेत्र से संबद्ध उन विशिष्ट चुनौतियों पर चर्चा कीजिए, जो बैंकों के समेकन से सामने आएंगी।
उत्तर
नरसिंहम समिति (1998) ने वैश्विक उपस्थिति वाले 2-3 बड़े बैंक, 8-10 राष्ट्रीय बैंक और विभिन्न क्षेत्रीय बैंकों सहित एक त्रिस्तरीय बैंकिंग नेटवर्क स्थापित करने की अनुशंसा की थी। यह रिपोर्ट हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक, भारतीय महिला बैंक और इससे संबद्ध बैंकों के विलय, साथ ही विजया बैंक, देना बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रस्तावित विलय के साथ पुनः चर्चा में रही। यह समेकन ऐसे समय में घटित हो रहा है, जब बैंकिंग क्षेत्रक विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है:
- बैड लोन और NPA (गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां) में होने वाली लगातार वृद्धि;
- धोखाधड़ी का संकट, जैसे- PNB संकट;
- NBFCs का शिथिल पर्यवेक्षण, जो IL&FS संकट के लिए उत्तरदायी है;
- बेसल III मानदंडों के अनुसार पूंजी पर्याप्तता की आवश्यकता को पूरा करने में चुनौतियां; और
- अक्षमता, विभिन्न मामलों (जैसे- जोखिम मूल्यांकन) में विशेषज्ञता की कमी।
बैंकों के समेकन से अपेक्षित लाभ:
- प्रतिद्वंद्विता के बजाय तालमेल: अतिव्यापी भौगोलिक उपस्थिति और विशेषज्ञता के कारण विभिन्न बैंक प्रायः एक-दूसरे के व्यवसायों में बाधा बनते हैं।
- NPA से सम्बंधित मुद्दे को हल करना: मजबूत स्थिति वाले बैंक कमजोर स्थिति वाले बैंकों की बैलेंस शीट में सुधार करने में सहायता कर सकते हैं।
- व्यवसाय में वृद्धि: समेकन से ग्राहक आधार और बाजार पहुंच में वृद्धि होगी तथा ग्राहकों को अधिक सेवाएं उपलब्ध कराना संभव हो सकेगा।
- ऐसे समेकन से वैश्विक रूप से सुदृढ़ और प्रतिस्पर्धी बैंकों का सृजन वस्तुतः वैश्विक वित्तीय बाजारों से निम्न दरों पर ऋण तक पहुंच सुनिश्चित करेगा।
- परिचालनात्मक दोहराव और बहुतायत बैंकों की उपस्थिति पर तार्किक अंकुश से अंतत: दक्षता में वृद्धि होती है, जिससे परिचालन लागत में कमी आती है।
- विलय की गई इकाइयों के पास उपलब्ध अत्यधिक पूंजी और तरलता, बेसल III मानदंडों को पूरा करने में सहायता करेगी।
- यह जोखिम मूल्यांकन जैसे क्षेत्रों में मानव संसाधन और विशेषज्ञता में वृद्धि करता है।
हालाँकि, बैंकों का समेकन कुछ चुनौतियाँ भी उत्पन्न करता है, जैसे:
- प्रणालीगत जोखिम: “टू बिग टू फेल” कहे जाने वाले बैंक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता के लिए गंभीर जोखिम के स्रोत हैं।
- कार्य संस्कृति में भिन्नता और विरोध: मानव संसाधन सम्बन्धी व्यवहारों में असामंजस्य और यूनियनों एवं शेयरधारकों से जुड़े मुद्दों को संबोधित करना, ज्यादा बड़े अवरोध का कारण हो सकता है।
- मजबूत स्थिति वाले बैंकों के संचालन पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, जो उनके NPAS में वृद्धि का कारण बन सकता है।
- समेकन के बावजूद कॉर्पोरेट गवर्नेस के समक्ष चुनौतियां बनी रहती हैं: समेकन केवल अस्थायी राहत प्रदान कर सकता है, न कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बैड लोन और अकुशल गवर्नेस की समस्याओं को दूर करता है।
- वित्तीय समावेशन को झटका: अधिकांश बैंक क्षेत्रीय ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करते हैं, जबकि बैंकों का विलय विकेंद्रीकरण __ के विचार को समाप्त करता है।
- प्रौद्योगिकी का सामंजस्य: यह एक बड़ी चुनौती है क्योंकि वर्तमान में विभिन्न बैंक विभिन्न प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों पर काम कर रहे हैं।
यद्यपि बैंकों का समेकन बैंकिंग क्षेत्र के समक्ष आने वाली कुछ चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करता है, तथापि यहाँ ध्यान रखा जाना चाहिए कि ऐसे कदम हेतु तार्किकता के साथ-साथ सहक्रियता, दक्षता और इकोनॉमी ऑफ़ स्केल को ध्यान में रखे जाने की आवश्यकता है। यह दीर्घकालिक समाधान के बजाय केवल एक अल्पकालिक समाधान है। इस प्रकार, इस तरह के कदम उठाए जाने के अतिरिक्त PSBs पर RBI के विनियमन को मजबूत करने, बैंक प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप को कम करने और PSBs में कॉर्पोरेट गवर्नेस सम्बन्धी मानदंडों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
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