बागानी कृषि : इसके समक्ष आने वाली समस्याऐं

प्रश्न: बागानी कृषि की विशेषताओं और इसके समक्ष आने वाली समस्याओं को सूचीबद्ध कीजिए। इस तथ्य को देखते हुए कि पाम ऑयल की खेती के अंतर्गत क्षेत्र में वृद्धि हो रही है, इससे संबद्ध लाभों और चुनौतियों की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  •  बागानी कृषि को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
  • बागानी कृषि की विशेषताओं को सूचीबद्ध कीजिए।
  • बागानी कृषि द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याओं की चर्चा कीजिए।
  • पाम ऑयल की खेती के लाभों और चुनौतियों की चर्चा कीजिए।
  • आगे की राह बताते हुए उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

बागोनी कृषि मुख्यतः वाणिज्यिक कृषि का ही एक रूप है। इसके तहत गन्ना, चाय, कोको, तंबाकू जैसी कुछ नकदी फसलों को लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से बड़े फार्मों में उगाया जाता है। यह सामान्यतया उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है।

बागानी कृषि की विशेषताएं: 

  • यह कृषि हजारों हेक्टेयर में विस्तृत बागानों पर की जाती है।
  •  यह श्रम और पूंजी गहन कृषि है।
  • यह वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करते हुए एकल फसल विशेषज्ञता (मोनोकल्चर) पर बल देती है।
  • रोपित की जाने वाली अधिकांश फसलों का जीवन चक्र लंबा होता है। इनके परिपक्व होने में कई वर्षों का समय लग जाता है, परन्तु परिपक्व होने के पश्चात इनसे कई वर्षों तक उपज प्राप्त होती है।
  • यह मुख्यतः निर्यात उन्मुख कृषि है और इसके लिए बेहतर परिवहन अवसंरचना की आवश्यकता होती है।

बागानी कृषि द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याएं

  1. जलवायु संबंधी समस्याएं: सामान्यतया, इस प्रकार की फसलों के लिए जलवायु संबंधी आवश्यकताओं में निरंतर उच्च तापमान, उच्च सापेक्षिक आर्द्रता और अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है, जो श्रम उत्पादकता को प्रभावित और कम करती है।
  2. रोगों एवं कीटों का प्रसार: उच्च तापमान और आर्द्र दशाओं के कारण विभिन्न प्रकार के कीट और बैक्टीरिया में वृद्धि होती है, जो फसल संबंधी रोगों का प्रसार करते हैं।
  3. उष्णकटिबंधीय मृदा का तीव्र गति से क्षरण: अत्यधिक दोहन और फसल चक्रण की अनुपस्थिति के कारण मृदा की उर्वरता में कमी और मृदा अपरदन में वृद्धि होती है।
  4. जैव-विविधता में ह्रास: बगानी कृषि में अधिकांश बागानों का विकास वनों को साफ करके किया जाता है। ‘एकल फसली कृषि’ (मोनोकल्चर) को अपनाने के कारण क्षेत्रीय जैव विविधता में कमी आती है।

आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, असम, केरल आदि में अनुकूल जलवायु और भूमि के कारण, एक बड़े क्षेत्र पर पाम ऑयल की कृषि की जा रही है।

पाम ऑयल की खेती के लाभ:

  1.  प्रति हेक्टेयर अधिक उपज: पाम ऑयल प्रति हेक्टेयर वनस्पति तेल की उपज के संदर्भ में विश्व की सबसे सर्वाधिक उपज वाली फसलों में से एक है और वर्तमान में यह विश्व में वनस्पति तेल का सबसे बड़ा स्रोत है।
  2. यह श्रम गहन फसल होने के कारण अर्द्ध कुशल और गैर-कुशल लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है।
  3. इसके द्वारा बंजर भूमि का उपयोग किया जाना संभव है।

पाम ऑयल की खेती के समक्ष उपस्थित चुनौतियां:

  1. पूर्वोत्तर राज्यों में पाम ऑयल के लिए बेहतर क्षमता विद्यमान है लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों के कारण यहां भूमि को कृषि हेतु तैयार करने के लिए अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता होती है।
  2. विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसान बिना किसी भी आय के प्रारंभिक 3-4 वर्षों के लिए बागानों में रोपण और इसके रखरखाव में किये जाने वाले बड़े निवेश के कारण, पाम ऑयल बागान लगाने के अनिच्छुक होते हैं।
  3. वृहद पैमाने पर वृक्षारोपण हेतु निजी उद्यमियों / सहकारी निकायों / संयुक्त उद्यमों की पर्याप्त सहभागिता का अभाव।
  4. बगानी श्रमिकों के लिए मानवीय चिंता
  •  कम वेतन के कारण निम्न जीवन स्तर एवं कार्य की निम्न दशाएं।
  • स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा, पीने योग्य जल आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी।
  • संक्रामक रोगों के लिए संवेदनशीलता।
  •  ट्रेड यूनियनों की अनुपस्थिति के कारण समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई मंच उपलब्ध नहीं है।

पर्यावरणीय चिंताएं

  • उष्णकटिबंधीय वनों का विनाश और इसके परिणामस्वरूप जैव-विविधता का ह्रास। 
  • पाम ऑयल की खेती के लिए स्लैश एंड बर्न कृषि (झूम कृषि) ग्रीन-हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि का कारण बनती है।

नेशनल मिशन ऑन ऑयल सीड एंड ऑयल पाम (NMOOP) जैसी पहलों के माध्यम से पाम ऑयल की खेती को बढ़ावा देने, पाम ऑयल की खेती के लिए बंजर भूमि के उपयोग में सहायता करने, पाम ऑयल कॉर्पोरेट निकायों को आकर्षित करने और खाद्य तेलों के लिए भारत के आयात बिल को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है। इसके साथ ही, बागानी श्रमिकों के सामाजिक-आर्थिक विकास एवं कल्याण हेतु प्लांटेशन लेबर एक्ट (PLA), 1951 को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करना महत्वपूर्ण है।

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