अशोक द्वारा समर्थित धम्म की अवधारणा की व्याख्या
प्रश्न: अपने अभिलेखों के माध्यम से अशोक द्वारा समर्थित धम्म की नीति आज भी सार्वजनिक जीवन के मुद्दों के संदर्भ में प्रासंगिक है। उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिए।
दृष्टिकोण
- अशोक द्वारा समर्थित धम्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए कि आज भी उसकी धम्म की अवधारणा क्यों प्रासंगिक है।
उत्तर
कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने सहिष्णुता, उदारता और करुणा पर आधारित सामाजिक नैतिकता की एक संहिता का समर्थन किया, जिसे ‘अशोक का धम्म’ कहा जाता है। यह न तो एक नया धर्म था और न ही एक नया राजनीतिक दर्शन था। यह जीवन जीने का एक तरीका था, एक आचार संहिता थी और व्यावहारिक रूप से पाप से मुक्ति, अच्छे कर्म, परोपकार, दान, सच्चाई और शुचिता पर आधारित थी। यह मूल रूप से एक नैतिक संहिता थी जिसका उद्देश्य सार्वभौमिक नैतिक कानूनों के अनुसार समाज में व्यक्तिगत व्यवहार को मार्गदर्शन प्रदान करना था।
असमानता, असहिष्णुता और विभिन्न नैतिक-राजनीतिक दुविधाओं जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे समाज में यह सिद्धांत लोक सेवकों के लिए विशेष रूप से अनिवार्य हो जाता है।
सार्वजनिक जीवन के संदर्भ में वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता
- धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता: अशोक के धम्म में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि ‘किसी को अपने संप्रदाय का गुणगान अथवा दूसरों के संप्रदाय की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से दूसरों को क्षति पहुँचेगी।
- लोक सेवक के कर्तव्य- सभी संप्रदायों को दान-दक्षिणा के वितरण के लिए विशेष अधिकारियों को नियुक्त किया गया था ताकि सभी उन्नति करें और सभी का सह-अस्तित्व सुनिश्चित हो सके। वे लोगों को नैतिकता के संबंध में शिक्षा भी देते थे तथा उन लोगों के लिए ये संदेश पढ़ते भी थे जो पढ़ने में सक्षम नहीं थे।
- विदेश नीति और नम्य कूटनीति: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी नीति वर्तमान की नम्य कूटनीति (Soft Diplomacy) के दृष्टिकोण में भी प्रासंगिक है। उन्होंने धम्म के बारे में विचार को प्रसारित करने के लिए अन्य देशों में अपने संदेश भेजे।
- सतत विकास लक्ष्य: वर्तमान शासन-प्रणाली और प्रशासन में इन विचारों के उपयोग से न केवल सामाजिक पूंजी और सद्भाव उत्पन्न होगा, बल्कि यह भारत को सतत विकास लक्ष्यों के उद्देश्य को प्राप्त करने में भी सक्षम बनाएगा।
- प्रशासन में मानवीय गुणों का समावेश: यह लोक सेवक को ईर्ष्या, क्रोध, क्रूरता, आतुरता, आलस्य और थकान से मुक्त रहने की सलाह देता है।
- पर्यावरणीय लोकतंत्र और न्याय (पर्यावरणीय नीतिशास्त्र): छाया प्रदान करने के लिए सड़कों के किनारे वृक्षारोपण का विचार; यात्रियों के लिए अतिथि गृहों का निर्माण और कई स्थलों पर प्याऊ का निर्माण एक सतत जीवन के लिए प्रकृति के महत्व को रेखांकित करते हुए आधुनिक पर्यावरणीय नैतिकता की नींव रखता है।
इसलिए, अशोक की धम्म की नीति वर्तमान समय में अनिवार्य हो जाती है क्योंकि इसमें सदैव लोगों को लाभ से ऊपर रखा जाता है तथा यह सभी के नैतिक कर्तव्यों और उनके मध्य धर्मनिरपेक्ष सद्भाव पर केंद्रित है।
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