अनुच्छेद 356 : ‘मृत पत्र’ (DEAD LETTER)
प्रश्न: जिससे संविधान के मृत पत्र (DEAD LETTER) होने की आशा कि गई थी, वह सर्वाधिक विवादास्पद प्रावधानों में से एक बन गया है अनुच्छेद 356 के संदर्भ में चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- अनुच्छेद 356 और इसके अधिरोपण के आधार के संदर्भ में संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- स्पष्ट कीजिए की क्यों इसके ‘मृत पत्र’ (DEAD LETTER) होने की आशा की गयी थी।
- चर्चा कीजिए कि कैसे यह संविधान का सर्वाधिक विवादास्पद प्रावधान बन गया है।
उत्तर
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 केंद्र सरकार को कुछ विशिष्ट आधारों पर राज्य के शासन को अपने नियंत्रण में लेने का अधिकार प्रदान करता है। इसे लोकप्रिय रूप से राष्ट्रपति शासन के रूप में जाना जाता है। यह राष्ट्रपति को राज्य की विधायी और कार्यकारी शक्तियों को नियंत्रित करने हेतु अधिकृत करता है।
अधिरोपण का आधार-
- अनुच्छेद 355 : संघ का कर्तव्य होगा कि वह प्रत्येक राज्य की बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से रक्षा करे और यह भी सुनिश्चित करे कि प्रत्येक राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुरूप संचालित हो रहा है।
- अनुच्छेद 365 : जब राज्य केंद्र द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है।
आशा की गयी थी कि यह एक मृत पत्र सिद्ध होगा और अंतिम उपाय के रूप में ही इसका उपयोग किया जाएगा क्योंकि:
- यह केंद्र के हाथों में एक असाधारण उपकरण के समान है।
- यह भारतीय संविधान की संघीय विशेषता को परिवर्तित करता है और साथ ही इसका उल्लंघन भी करता है।
- यह लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित राज्य सरकार को हटा कर जनादेश के विरुद्ध चला जाता है।
इसके विवादास्पद होने के निम्नलिखित कारण हैं :
- बारम्बार उपयोग : 1950 के बाद देश में 100 से अधिक अवसरों पर राष्ट्रपति शासन लगाया गया है।
- राजनीतिक या व्यक्तिगत कारणों के लिए मनमाने ढंग से इसका आरोपण।
- केंद्र और राज्य स्तर पर अलग-अलग राजनीतिक दल होने पर इसका दुर्भावनापूर्ण उपयोग।
- संविधान में ‘संवैधानिक तंत्र की विफलता ‘ को परिभाषित नही किया गया है।
- अनुच्छेद 365 में उल्लिखित शब्दावली ‘केंद्र द्वारा प्रदत्त दिशा-निर्देश’ अनिश्चित और अस्पष्ट है जिसके कारण इसका दुरूपयोग होता है।
- राज्यपाल द्वारा केंद्र को भेजी गयी अनुचित और पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट जिसके आधार पर राष्ट्रपति शासन को लागू किया जाता है।
- राज्य आपातकाल के दौरान संसद द्वारा निर्मित कानून का संचालन आपातकाल समाप्त होने के बाद भी जारी रहता है।
सरकारिया आयोग ने अन्य सभी विकल्पों के विफल होने के बाद ही इस अनुच्छेद के उपयोग की सिफारिश की है। एस आर बोम्मई बनाम संघ (1994) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति शासन को लागू करने संबंधी राष्ट्रपति की घोषणा न्यायिक समीक्षा के अधीन है और यदि यह अप्रासंगिक और दुर्भावनापूर्ण स्त्रोतों/इरादों पर आधारित है तो यह कारण इसे अमान्य घोषित करने के लिए पर्याप्त है। न्यायालय ऐसे मामले में राज्य सरकार को पुनः बहाल कर सकता है। हाल ही में नबाम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष एवं अन्य 2016 में इस निर्णय को कायम रखा गया था। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद भी कई राज्य सरकारों को अनिवार्य शक्ति परीक्षण (फ्लोर टेस्ट) के बिना ही बर्खास्त कर दिया गया। इसलिए, सहकारी संघवाद के आदर्श को बढ़ावा देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन करना आवश्यक है।
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