अनुच्छेद 356 और इसकी घोषणा के लिए आवश्यक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन

प्रश्न: अनुच्छेद 356 के उचित उपयोग से संबंधित परिपाटी विकसित करने और उसे बनाए रखने में राजनीतिक वर्ग की अक्षमता को देखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बोम्मई वाद में दिए गए निर्णय ने अत्यावश्यक स्पष्टता प्रदान की है। टिप्पणी कीजिए।

दृष्टिकोण

  • अनुच्छेद 356 और इसकी घोषणा के लिए आवश्यक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • अनुच्छेद 356 के संदर्भ में राजनीतिक वर्ग की अक्षमता और इससे संबंधित विवादों पर चर्चा कीजिए।
  • विवाद के समाधान के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एस आर बोम्मई वाद में दिए गए दिशानिर्देशों को लिखिए।

उत्तर

अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को राज्य सरकार को बर्खास्त करने की शक्ति प्रदान करता है। इसे, राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या राज्य सरकार के संघ सरकार के किसी निर्देश का अनुपालन करने में विफल होने की स्थिति में लागू किया जाता है। इसके लिए आवश्यक अन्य कारकों के अंतर्गत विधानसभा में बहुमत न होना, कानून और व्यवस्था का पालन न होना, चुनावों के अनिश्चित परिणाम, दल-बदल एवं गठबंधन की समाप्ति आदि शामिल हैं।

वर्ष 1950 से अब तक, 100 से अधिक बार राष्ट्रपति शासन का प्रयोग किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त, अनेक अवसरों पर केंद्र सरकारों द्वारा राष्ट्रपति शासन का प्रयोग मनमाने ढंग से एवं राजनैतिक कारणों से किया गया है। परिणामस्वरूप, राजनीतिक दल द्वारा सत्ता में होने के बावजूद अनुच्छेद 356 के उपयोग के लिए उचित परिपाटी को विकसित करने में राजनीतिक वर्ग की अक्षमता को प्रदर्शित किया है। विपक्षी दलों द्वारा सरकारों को हटाने के लिए अस्पष्ट कारणों जैसेअव्यवस्था, जनता द्वारा विश्वास की कमी आदि का प्रयोग किया गया था। 1989 में, कर्नाटक में एस आर बोम्मई के नेतृत्व में गठित जनता दल सरकार को विधायिका में बहुमत सिद्ध करने का अवसर दिए बिना ही बर्खास्त कर दिया गया। तत्पश्चात बर्खास्त सरकार द्वारा इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय से सहायता ली गई।

इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बोम्मई मामले के तहत दिया गया निर्णय ऐतिहासिक था क्योंकि इसने अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकारों की मनमाने ढंग से बर्खास्तगी पर प्रतिबंध लगाने हेतु महत्वपूर्ण मानदंड निर्धारित किए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने इस वाद में निम्नलिखित सिद्धांतों को निर्धारित किया:

  • अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति की घोषणा अनन्य नहीं है। जब तक संसद के दोनों सदनों द्वारा इसे अनुमोदन प्रदान न किया हो, तब तक राष्ट्रपति केवल विधानसभा को निलंबित कर सकता है।
  • राष्ट्रपति शासन लागू करने की राष्ट्रपति की घोषणा न्यायिक समीक्षा के अधीन है और न्यायालय द्वारा इसे अवैध घोषित किया जा सकता है यदि यह अतार्किक अथवा असंगत आधार पर आधारित है।
  • न्यायालय को बर्खास्त की गई सरकार को पुनःबहाल करने की शक्ति प्राप्त है यदि राष्ट्रपति की घोषणा अवैध हो।
  • राज्य सरकार का विधानसभा में विश्वास मत खोने के विषय का निर्धारण सदन में बहुमत सिद्ध करने के आधार पर (floor of the House) किया जाना चाहिए
  • केंद्र और राज्यों में भिन्न दलों की सरकार गठित होने की स्थिति में केंद्र सरकार को राज्य सरकार को बर्खास्त करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।

भारत के प्रतिष्ठित न्यायविद और पूर्व सॉलिसिटर जनरल सोली सोराबजी के शब्दों में, “एस आर बोम्मई मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद, अब यह बेहतर तरीके से स्थापित किया गया है कि अनुच्छेद 356 एक चरम शक्ति है और इसे ऐसे मामलों, जहां यह पुर्णतः स्पष्ट हो गया हो कि राज्य में गतिरोध की स्थिति विद्यमान है और संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है, में अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग किया जाना है।”

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