अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के महत्वपूर्ण पहलु और इसके अधिदेश भारत एक प्रमुख वैश्विक नेतृत्वकर्ता
प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के अधिदेश पर प्रकाश डालते हुए ,भारत को एक प्रमुख वैश्विक नेतृत्वकर्ता की भूमिका में स्थान दिलाने के इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- सर्वप्रथम, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के महत्वपूर्ण पहलुओं और इसके अधिदेश का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- तत्पश्चात्, चर्चा कीजिए कि किस प्रकार ISA भारत को एक प्रमुख वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित कर सकता है।
- भारत की ISA तक पहुँच और इसके प्रभाव को बढ़ावा देने में सहायक अन्य उपायों का सुझाव देते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, 25 नवंबर 2015 को पेरिस में भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त रूप से आरम्भ की गई एक पहल है। इसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासचिव की उपस्थिति में COP 21 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान, इस सम्मेलन से पृथक रूप से की गयी। इसका उद्देश्य सौर संसाधन समृद्ध देशों के गठबंधन के रूप में कार्य करना है ताकि वे अपनी विशिष्ट ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकें और साझा व सहमत दृष्टिकोण के माध्यम से चिह्नित किये गए अंतरालों को भरने में सहयोग के लिए एक मंच प्रदान कर सकें। इस उद्देश्य से, ISA ने 2030 तक 1TW सौर ऊर्जा उत्पादन और इसके लिए आवश्यक 1000 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश जुटाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके अतिरिक्त, ISA के अधिदेश में सम्मिलित हैं:
- समृद्धि बढ़ाने के लिए सौर प्रौद्योगिकियों, नए व्यापार मॉडलों और सौर क्षेत्रक में निवेश को बढ़ावा देना।
- सौर अनुप्रयोगों को बढ़ावा देने के लिए परियोजनाएं और कार्यक्रम तैयार करना।
- पूंजी की लागत को कम करने के लिए अभिनव वित्तीय तंत्र विकसित करना।
- एक साझा नॉलेज ई-पोर्टल का गठन करना।
- सदस्य देशों के मध्य सौर प्रौद्योगिकियों के प्रचार और अवशोषण तथा अनुसंधान एवं विकास के लिए क्षमता निर्माण की सुविधा प्रदान करना।
ISA 121 संभावित देशों के लिए खुला है। हाल ही में (अप्रैल 2018 में), ब्रिटेन ISA में सम्मिलित होने वाला 62वां देश बन गया है। फ्रेमवर्क समझौते के 6 दिसम्बर, 2017 को लागू होने के पश्चात ISA भारत में अपना मुख्यालय स्थापित करने वाला प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संगठन बन गया।
नई दिल्ली में 11 मार्च 2018 को ISA के उद्घाटन ने इस पहल में भारत के नेतृत्व की पुष्टि की है। यह वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने की भारत की क्षमता को दर्शाता है। ISA के महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक निहितार्थ हैं।
इसके अतिरिक्त, ISA का स्थायी सचिवालय भारत के गुरुग्राम में स्थित होगा। ISA में भारत की भागीदारी के निम्नलिखित आयाम भविष्य में नेतृत्वकर्ता के रूप में भारत की भूमिका के लिए शुभ संकेत हैं –
- जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा और संधारणीय विकास के क्षेत्र में एक प्रमुख वैश्विक नेतृत्वकर्ता की भूमिका में स्वयं को स्थापित करने का अवसर। इसके उद्घाटन सम्मेलन के दौरान भारत ने 15 देशों में 27 परियोजनाओं को प्रारंभ किया। इन परियोजनाओं ने वैश्विक
- गतिविधियों में अपनी संलग्नता के स्तर और पहुँच को बढ़ाने में भारत को सक्षम बनाया।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) को निम्न कार्बन विकास पथ की ओर ले जाने में सक्षम बनाने हेतु भारत का संस्थागत योगदान है। यह विकासशील देशों को निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने में सक्षम बनाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
भारत और ISA द्वारा यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि सौर लाभ स्पष्ट, मूर्त एवं उपयोगकर्ताओं द्वारा वर्णनीय हों तथा ऐसे व्यापार मॉडल प्रदर्शित किये जाएं जो उपयोगकर्ताओं, आपूर्तिकर्ताओं और वित्तपोषकों के लिए व्यवहार्य हों। इसके साथ ही भारत एवं ISA को इन व्यावसायिक मॉडलों को अपनाने के लिए सदस्य देशों को नीतियां लागू करने में सहायता करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त साझेदारों, वित्त पोषण, पहुंच और क्षमता को मजबूत बनाने में ISA को और अधिक लचीला होने की आवश्यकता भी होगी।
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