वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Redressal: ADR)
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में संसद में मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक, 2018 को लागू करने की स्वीकृति प्रदान की है जो संस्थागत मध्यस्थता को सुगम बनाएगी और भारत को सुदृढ़ वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र का केंद्र बनाने में सहायक होगा।
ADR क्या है?
- जैसा कि नाम से पता चलता है, ADR असहमत पक्षों को मुकदमेबाजी की प्रक्रिया में पड़े बिना किसी विवाद के समाधान हेतु स्थापित तंत्र है।
- ADR प्रक्रिया केवल दीवानी विवादों के मामले में स्वीकार्य है, जिसे कानून द्वारा स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाता है। ADR के तरीकों को न्यायालय और औपचारिक कानून प्रणाली का विकल्प घोषित किया गया है तथा इसे विवाद को शीघ्रता से और सौहाद्रपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए अपनाए जाने वाले सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना गया है।
वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) के विविध प्रकार
- पंचाट (Arbitration): यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक तटस्थ तृतीय पक्षकार या पक्षकारों का समूह मामले के गुण-दोषों के आधार पर निर्णय प्रस्तुत करता है। विवाचन की प्रक्रिया केवल तब ही आरंभ की जा सकती है जब विवाद के उद्भव के पहले ही दोनों पक्षों के बीच एक विधिमान्य पंचाट समझौता किया गया हो।
- मध्यस्थता (Mediation): मध्यस्थता की प्रक्रिया का लक्ष्य विवादित पक्षों को आपसी सहमति के माध्यम से समाधान तक पहुँचने में सहायता करना है। मध्यस्थता की प्रक्रिया का निरीक्षण एक निष्पक्ष तृतीय पक्ष अर्थात् एक मध्यस्थ द्वारा किया जाता है। मध्यस्थ का प्राधिकार दोनों पक्षों की आपसी सहमति में निहित होता है।
- सुलह (Conciliation): यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा विवादों का समाधान समझौते या स्वैच्छिक करार द्वारा प्राप्त किया जाता है। पंचाट के विपरीत, सुलह की प्रक्रिया में बाध्यकारी निर्णय नहीं दिए जाते हैं। दोनों पक्ष इस प्रक्रिया से प्राप्त | निर्णय को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।
- लोक अदालत: इनका गठन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत किया जाता है। यह सार्वजनिक सुलह का एक रूप है। इसकी अध्यक्षता 2 या 3 लोगों के द्वारा की जाती है जो न्यायाधीश या अनुभवी अधिवक्ता होते हैं। उन्हें सीमित रूप में सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गई है।
- न्याय पंचायत: ये ग्रामीण न्यायालय ग्रामीण समुदाय की स्थानीय परंपराओं, संस्कृति और व्यवहार प्रतिरूप द्वारा निर्देशित होते हैं और इस प्रकार ये न्याय के प्रशासन में लोगों के विश्वास को स्थापित करते हैं। इनमें 200 रुपये तक के मौद्रिक दावे विचारण हेतु लिए जा सकते हैं। इसका आपराधिक क्षेत्राधिकार लापरवाही, अनधिकृत प्रवेश, उपद्रव आदि के साधारण मामलों तक विस्तृत है। इन पंचायतों में सुलह पर बल दिया जाता है।
ADR के विभिन्न प्रावधान
- ऐतिहासिक दृष्टिकोण: भारत में पंचायत सर्वाधिक प्राचीन ज्ञात ADR तंत्र हैं। निर्णय तक पहुँचने हेतु निष्पक्ष तृतीय पक्ष की | सहायता लेना दीर्घ काल से ही भारतीय संस्कृति का अंग रहा है।
- संवैधानिक प्रावधान: तंत्र को अपना आधार अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचार का अधिकार) के अंतर्गत प्राप्त होता है जो लोगों को न्याय पाने का अधिकार प्रदान करते हैं। इसे अनुच्छेद 39A के तहत समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता के लिए DPSP से भी संबंधित किया जा सकता है।
- अन्य प्रावधान : न्यायालय के बाहर विवादों का निपटारा सिविल प्रक्रिया संहिता (धारा 89), ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2009, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (लोक अदालत प्रणाली की स्थापना का आधार) का एक भाग है।
- जस्टिस मलिमथ समिति (1989-90) की रिपोर्ट ने भी ADR तंत्र को व्यवहार्य विकल्प के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता का भी सुझाव दिया है।
वैकल्पिक विवाद समाधान के लाभ
- समय की कम खपत: न्यायालयों की तुलना में लोग अल्प अवधि में अपने विवादों को निपटा लेते हैं।
- लागत प्रभावी पद्धति: यह मुकदमेबाजी की प्रक्रिया की तुलना में अत्यधिक धन की बचत करता है।
- यह न्यायालयों की तकनीकी जटिलताओं से मुक्त है क्योंकि यहाँ विवाद का समाधान करने में अनौपचारिक पद्धति का प्रयोग किया
जाता है। - लोग न्यायालय के भय के बिना स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। वे किसी भी न्यायालय में इसे प्रकट किए बिना
यहाँ सही तथ्यों को उजागर कर सकते हैं। - कुशल तरीका: यह आगे संघर्ष को रोकता है और अच्छे संबंधों को बनाए रखता है। इसमें संबंधों को पुनस्र्थापित करने की संभावना सदैव बनी रहती है क्योंकि सभी पक्ष एक ही मंच पर अपने मुद्दों पर चर्चा करते हैं।
- ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस : 2017 के लिए विश्व बैंक के ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग से पता चलता है कि प्रवर्तन के लिए 1,420 दिनों के औसत के साथ भारत की अनुबंधों के प्रवर्तन के मामले में निम्न स्थिति बनी हुई है। प्रवर्तन में सुधार विदेशी और घरेलू
निवेश को आकर्षित करेगा। - ADR का संस्थानीकरण: भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की बचत होगी क्योंकि भारतीय कंपनियां मध्यस्थता में पर्याप्त विदेशी मुद्रा
व्यय कर देती हैं जो सामान्यतः सिंगापुर जैसे बाहरी देशों में संपन्न होती है।
सीमाएं
- पारंपरिक न्यायपालिका के विपरीत इसमें समाधान की कोई गारंटी नहीं है।
- न्यायालयों में लंबित मुकदमों को समाप्त करने के लिए मामलों का बलपूर्वक हस्तांतरण।
- मध्यस्थता के निर्णय अंतिम होते हैं और किसी भी न्यायालय में निरस्त नहीं किए जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में पक्षपातपूर्ण मध्यस्थ के मामले में एक पक्ष द्वारा छला हुआ महसूस करने की संभावना अधिक रहती है। हालांकि, संबंधित पक्ष उपयुक्त क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय में निर्णय के खिलाफ अपील कर सकते हैं।
- प्रक्रिया से अपरिचित होना तथा जागरूकता का अभाव।
- अनौपचारिक और शक्ति के दुरूपयोग की अधिक संभावना क्योंकि प्रक्रिया के दौरान कई पक्ष अनुपस्थित होते हैं।
निष्कर्ष
भारत में ADR को सुदृढ़ करने हेतु विधायी अंतराल को भरने के लिए मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक, 2018 को अधिनियमित करने की आवश्यकता है। यह लागत प्रभावी और समयबद्ध मध्यस्थता को सुगम बनाएगा। इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए।
- वर्तमान में अधिकांश मध्यस्थता एवं सुलह केन्द्रों में वाणिज्यिक विवादों का ही निपटारा किया जाता है जबकि इसके विपरीत गैर
वाणिज्यिक विवादों के लिए सुलह और मध्यस्थता केंद्र स्थापित किए जाने आवश्यक हैं। - ऐसे तंत्र की उपलब्धता के बारे में विशेष रूप से कमजोर निर्धन वर्गों को जागरूक करने की आवश्यकता है।
- मध्यस्थता को पेशे के रूप में लोकप्रिय किया जाना चाहिए और नैतिक मानकों, गुणवत्ता नियंत्रण एवं मध्यस्थ की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सुधार किए जाने चाहिए।
- मुकदमे से पूर्व के चरणों में ADRs की भूमिका का विस्तार करना चाहिए, क्योंकि वर्तमान में, अधिकांश ADRs पक्षों द्वारा मुकदमा दायर करने के बाद प्रयुक्त किए जाते हैं।