AFSPA: अशांत क्षेत्रों में सेना के लिए एक कार्यात्मक आवश्यकता

प्रश्न: AFSPA के अंतर्गत मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों के बावजूद, यह अशांत क्षेत्रों में सेना के लिए एक कार्यात्मक आवश्यकता है। समालोचनात्मक चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • संक्षेप में, AFSPA की चर्चा करते हुए मानवाधिकारों के उल्लंघन संबंधी आरोपों के मुद्दे पर प्रकाश डालिए। 
  • AFSPA के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
  • आगे की राह का सुझाव देते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (AFSPA), 1958 को “अशांत क्षेत्रों” में लोक व्यवस्था बनाए रखने के लिए अधिनियमित किया गया था। वर्तमान में यह पूर्वोत्तर के चार राज्यों सहित जम्मू और कश्मीर में भी लागू है।

यह अशांत क्षेत्रों में कार्य कर रहे सशस्त्र बलों को विशिष्ट शक्तियां प्रदान करता है, जैसे कि चेतावनी देने के उपरांत फायरिंग, परिसर की तलाशी लेना और बिना वारंट के गिरफ्तारी, उग्रवादियों के गुप्त ठिकानों को नष्ट करना आदि। सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह अधिनियम सशस्त्र बलों को उनके कार्यों के संबंध में सिविल या आपराधिक कार्यवाही के विरुद्ध विधिक प्रतिरक्षा प्रदान करता है।

हालांकि, सेना पर इन शक्तियों के दुरुपयोग के लिए अनेक आरोप लगाए गए हैं। उन पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के कई मामले दर्ज हुए हैं जिनमें मनमाने तरीके से की गई हत्याएं, यौन उत्पीड़न और यातनाएं शामिल हैं। वर्षों से लापता व्यक्तियों से संबंधित अनेक मामले दर्ज किए गए हैं। उन पर यह आरोप भी लगाए गए हैं कि सुरक्षा बलों ने घरों और सम्पूर्ण गाँवों को केवल इस संदेह पर नष्ट कर दिया कि वहां विद्रोहियों ने शरण ली हुई थी।

इसके अतिरिक्त, यह तर्क भी दिया गया है कि यह अधिनियम लगभग 50 वर्षों से अस्तित्व में रहने के बावजूद, अशांत क्षेत्रों में सामान्य स्थिति को सफलतापूर्वक बहाल करने में विफल रहा है। साथ ही अधिनियम स्थापित होने के बाद सशस्त्र समूहों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। इससे स्थानीय लोगों में असंतोष बढ़ा है और इस प्रकार के आतंकवाद विरोधी उपायों के कारण नागरिकों में अलगाव की भावना को उत्पन्न हुई है। इस प्रकार सरकार का उत्तरदायित्व राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकताओं एवं वैयक्तिक अधिकारों के मध्य सामंजस्य स्थापित करना है।

ऐसे तर्क भी दिए गए हैं कि अशांत क्षेत्रों में सेना के लिए AFSPA को लागू रखना निम्नलिखित कारणों से एक कार्यात्मक आवश्यकता है:

  • असाधारण परिस्थिति में प्रभावी संचालन के लिए: ऐसी विशिष्ट शक्तियों की अनुपस्थिति परिचालनात्मक लोचशीलता और सुरक्षा क्षमता के उपयोग को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी।
  • अशांत क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था एवं नागरिक प्रशासन को बनाए रखने तथा राष्ट्र की संप्रभुता व सुरक्षा को बनाए रखने हेतु यह आवश्यक है।
  • पंजाब व मिजोरम से आतंकवाद को पूर्णतः समाप्त करने और साथ ही आतंकवादियों को मणिपुर पर कब्जा करने से रोकने में AFSPA ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • झूठी शिकायतों के विरुद्ध सुरक्षा के लिए: विशेष शक्तियों को वापस लेने से सुरक्षा बलों के मनोबल में कमी आ सकती है क्योंकि यह विद्रोहियों को स्थानीय लोगों के माध्यम से सुरक्षा बलों के विरुद्ध मुकदमा दायर करके स्थिति का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।

इसके अतिरिक्त, AFSPA के तहत प्रदत्त शक्तियां असीमित नहीं हैं। उदाहरण के लिए, सेना आतंकवादियों की ओर से होने वाली फायरिंग के जवाब में केवल तभी फायरिंग कर सकती है जब यह स्पष्ट रूप से पता चल जाए कि आतंकवादी किस स्थान से फायरिंग कर रहे हैं तथा हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति को विस्तृत रिपोर्ट के साथ निकटतम पुलिस स्टेशन को सौंपना आवश्यक है। सेना स्वयं भी मानवाधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करती है। उदाहरण के लिए, सितंबर 2015 में एक सैन्य अदालत ने माचिल में हुई फर्जी मुठभेड़ के मामले में अपने छह सैन्य कर्मियों का कोर्ट मार्शल कर दिया था और सभी दोषियों को आजीवन कारावास की सजा दी थी।

AFSPA के संबंध में, जैसा कि वर्ष 2004 में गठित बी.पी. जीवन रेड्डी समिति ने यह अनुशंसा की थी कि सभी संभावित विकल्पों पर विचार करने के पश्चात् ही निर्णय लिया जा सकता है। AFSPA को हटाना निश्चित रूप से लोगों के मध्य भेदभाव और अलगाव की भावना को कम करेगा। हालांकि, यह राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र की अखंडता की कीमत पर नहीं होना चाहिए। सभी हितधारकों- नागरिक समाज, विद्रोहियों, राज्य और सरकारों (केंद्र एवं राज्य) द्वारा अधिनियम को रद्द करने से पहले एक स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान खोजने की दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए।

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