जवाबदेही और नैतिक शासन

नैतिकता और जवाबदेही का आपस में घनिष्ठ संबंध है। अगर व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व और जवाबदेही को समझता है तो वह अपने क्रियाकलापों में निश्चित रूप से उच्च नैतिक स्तर को भी बनाए रखता है। अगर व्यक्ति प्रशासन से जुड़ा है तो वह अपनी जवाबदेही को समझते हुए अपने कार्य निष्पादन में उच्च नैतिक मानदंडों को अपनाएगा। अत: जवाबदेही नैतिक शासन के संदर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक है। उदाहरणस्वरूप, हम यह अक्सर पाते हैं कि संसद पर प्रश्नों, विचार-विमर्श तथा कमेटी के माध्यम से ही नियंत्रण स्थापित किया जाता है। अर्थात् उसके कार्यों को एक सही दिशा देने का प्रयास किया जाता है जो कि लोकतंत्र में एक स्वस्थ परंपरा मानी जाती है। लोक प्रतिनिधियों को ऐसे में सहज रूप से मूल्य एवं नैतिकता से संबंधित मुद्दों को संसद में प्रस्तुत करने का अवसर मिल जाता है जिससे शासन व्यवस्था में सुधार हो सके।

रोजेनब्लम और क्रावचुक के अनुसार, नैतिकता को स्वयं अपनी जवाबदेही समझने की प्रवृत्ति के रूप में समझा जा सकता है। प्रशासकों के लिए ‘नैतिकता’ की संकल्पना एक प्रकार से अंदरूनी रोक व नियंत्रक का कार्य करता है। स्वयं से जवाबदेही होने और बाह्य कारणों से जवाबदेही बनाना ये दोनों बातें आपस में जुड़े हुए तथ्य है। बाह्य कारकों से जो जवाबदेही उत्पन्न होती है। वही व्यक्ति को स्वयं से उत्तरदायित्वपूर्ण होने के लिए बाध्य करती है। अर्थात् व्यक्ति को स्वयं से यह उम्मीद बनी रहती है कि उसे जिम्मेदार बनना चाहिए। हालांकि कुछ ऐसी मान्यताएं हैं जो समयानुसार जांचे-परखे होते हैं और वे नैतिक आचरण को इस रूप में प्रभावित करते हैं कि व्यक्ति में स्वयं से जवाबदेह बनने की प्राकृतिक शक्ति उत्पन्न होती है।

नैतिक दर्शन के अंतर्गत शामिल ये नियम व आदेश ही व्यक्ति के लिए आंतरिक नियंत्रक का कार्य करते हैं। जिसे हम स्वयं से नियंत्रित होना कह सकते हैं। निश्चित रूप से कहा जाए तो बाह्य एवं आंतरिक नियंत्रण के सम्मिलन से ही यह निर्धारित होता है कि प्रशासनिक नैतिकता के लिए आवश्यक मानदंड क्या हैं? नैतिकता का स्तर जितना ऊंचा होगा, बाह्य रूप से नियंत्रण और जवाबदेही स्थापित करने वाले किसी मजबूत तंत्र की आवश्यकता उतनी ही कम होगी। इसके विपरीत यदि नैतिक मानदंडों का स्तर जितना निम्न होगा बाहर से रोक व नियंत्रण स्थापित करने की आवश्यकता उतनी तीव्र होगी।

जवाबदेयता (Accountability) 

किसी जनसेवक या प्रशासक के लिए जवाबदेयता का अर्थ है अपने निर्णयों व कार्यकलापों के लिए जवाबदेही स्वीकार करने की उसकी तात्पर्यता अर्थात अगर वह अपने क्रियाकलापों के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानता है और किसी भी आकस्मिक परिस्थिति में अपने निर्णयों के लिए दंड या पुरस्कार पाने हेतु बिना किसी दवाब के तैयार है तो इसका अर्थ है कि वह जवाबदेह है। जवाबदेयता निजी, सरकारी या फिर स्वयंसेवी संगठन में काम कर रहे किसी अधिकारी/कर्मचारी के उत्तरदायित्व का निर्धारण करता है तथा यह भी निश्चित करता है कि वह अधिकारी/कर्मचारी अपने कार्यों अथवा निर्णयों का औचित्य प्रस्तुत करे। अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का पालन न करने पर उसे आधिकारिक रूप से कार्रवाई के लिए भी तैयार रहना पडता है।

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जवाबदेयता का अर्थ है कि एक जनसेवक अपने कार्यों तथा स्वविवेक से लिए निर्णयों के औचित्य को सिद्ध करने के लिए बाध्य होता है और अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसे किसी प्रकार का दंड भी दिया जा सकता है।

किसी संस्था, संगठन अथवा प्रोगाम के अंदर जवाबदेयता तथा पारदर्शिता को किस हद तक तरजीह दी जाये यह उस संस्था/संगठन अथवा प्रोग्राम की क्षमता एवं प्रभावशीलता पर निर्भर करता है। साथ ही उस संस्था की जवाबदेयता की माप इस बात से भी तय की जा सकती है कि वह अपने उद्देश्य में किस हद तक सफल रहा है।

जवाबदेयता के विभिन्न आयाम/पक्ष

(Dimensions of Accountability)

जवाबदेयता (जवाबदेही) से जुडे तीन आधारभूत मूल्य है- लोकतंत्र क्षमता और नैतिकता। एडम वुल्फ ने जवाबदेयता के पांच आयामों की पहचान की है:

  • कानूनी आयाम/पक्ष (विधि का नियम)
  • वित्तीय आयाम/पक्ष (सार्वजनिक धन का इस्तेमाल)
  • नीति और निष्पादन से जुड़े आयाम/पक्ष (लक्ष्य की प्राप्ति तथा प्रत्याशा और उम्मीदें)
  • जनतंत्रीय आयाम/पत्र (विधायकों एवं नागरिकों को सूचना देना तथा उनसे विमर्श करना।)
  • नैतिक आयाम/पत्र (नैतिक संहिता अथवा सामान्य नैतिक मानदंडों के अनुकूल व्यवहार करना)

ये सभी पक्ष लोक प्रशासन से जुड़े रोजमर्रा के कार्यों में अप्रत्यक्ष रूप से सन्निहित रहते हैं तथा जनसेवकों के आचरण का मार्गदर्शन भी करते हैं भले ही स्पष्ट अथवा प्रत्यक्ष रूप से इन पक्षों का उल्लेख नहीं किया गया हो।

उत्तरदायित्व और जवाबदेयता

(Responsibility and Accountability) :

उत्तरदायित्व और जवाबदेयता इन दो शब्दों के अर्थ को समझने में किसी प्रकार की भ्रांति नहीं होनी चाहिए। उत्तरदायित्व का अभिप्राय है जनसेवकों का नागरिकों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप कार्य करने की तत्परता एवं क्रियाशीलता। इसके अंतर्गत इस बात पर बल दिया जाता है कि जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध प्रक्रिया और कार्य प्रणाली के अनुसार कार्य निष्पादन किया जा रहा है या नहीं? जवाबदेयता के अंतर्गत जनसेवकों से इस बात की आशा की जाती है कि वह एक निश्चित विधि एवं प्रक्रिया के अनुरूप अपने उत्तरदायित्व का पालन करे।

जवाबदेयता पर विश्व बैंक के विचार

(World Bank’s View on Accountability)

विश्व बैंक के द्वारा मोटे तौर पर दो प्रकार की जवाबदेयता की पहचान की गई है.

सूक्ष्म जवाबदेयता (Micro Accountability)

जनसाधारण के प्रति सरकार की जवाबदेय निर्धारित करने में सूक्ष्म जवाबदेयता (जवाबदेही) की बेहद निर्णायक भमिका होती है। सूक्ष्म जवाबदेयता के माध्यम से ही आम नागरिकों की आकांक्षाओं एवं आवश्यकताओं के प्रति सरकार की जवाबदेयता एवं जागरूकता सुनिश्चित होती है। सूक्ष्म प्रकृति की जवाबदेयता की महत्ता को समझने के लिये दो संकल्पनाओं को प्रयोग किया जाता है। -ये हैं संगठन से बाहर हो जाना तथा सौखिक रूप से विरोध प्रकट करना। सरकार या किसी एजेंसी में कार्यरत कोई कार्यकर्ता अधिकारी अगर एजेंसी के कार्य निष्पादन अर्थात् सेवा प्रदान करने की प्रक्रिया या गुणवत्ता से असन्तुष्ट रहता है तो वह इस परिस्थिति में दो विकल्पों में से किसी एक का चनाव करता है। ये विकल्प होते हैं- सरकार, सगठन अथवा एजसो को छोड़कर अलग हो जाना (Enit) अथवा मौखिक रूप से सरकार या एजेंसी के कार्यों की आलोचना करना। दोनों ही स्थितियों में सरकार या एजेंसी पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है। परंतु इन दोनों ही के इस्तेमाल से सरकार अथवा एजेंसी की जवाबदेयता में वृद्धि और सुधार करने में मदद मिलती है। ऐसा इसलिए क्योंकि तब सरकार या एजेंसी अपनी सेवा गुणवत्ता में सुधार करने हेतु प्रेरित होती है।

विश्व बैंक भी इस बात पर बल देता है कि सरकार/संगठन अथवा एजेंसी से अलग हो जाना अथवा मौखिक विरोध प्रकट करना, इन दोनों विकल्पों के माध्यम से सरकार अथवा एजेंसी की जवाबदेयता में सुधार अर्थात् वृद्धि की जानी चाहिए और किसी प्रोग्राम अथवा प्रोजेक्ट की शुरुआती अवस्था में ही इन विकल्पों का प्रयोग किया जाना चाहिए ताकि सेवा प्रदान करने संबंधी कार्य निष्पादन एवं सेवा की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके।

वृहद जवाबदेयता (Macro Accountability)

विश्व बैंक द्वारा वृहद जवाबदेयता के दो पक्ष बताए गए हैं।

  1. वित्तीय जवाबदेयता
  2. संपूर्ण आर्थिक निष्पादन से संबंधित जवाबदेयता

विश्व बैंक के अनुसार वित्तीय जवाबदेयता के अंतर्गत निम्नलिखित बातें शामिल की जाती हैं:

  • प्रभावशील अथवा कारगर ढंग से खर्च पर नियंत्रण तथा नकद प्रबंधन के लिए सुचारू रूप से कार्य कर रहे सरकारी लेखा तंत्र।
  • एक बाह्य लेखा परीक्षण की व्यवस्था ताकि भ्रष्टाचार और फिजूलखर्ची पर रोक लगाने में सुविधा हो।

पदत्याग, मौखिक विरोध एवं वफादारी से संबंधित सिद्धांत

यह सिंद्धांत अल्वर्ट ओ. हिर्शमन द्वारा दिया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार किसी संस्था/संगठन का कोई सदस्य, चाहे वह संस्था किसी बिजनेस से जुड़ा हो एवं एक राष्ट्र हो या फिर कोई भी मानव समुदाय, दो तरह से प्रतिक्रिया करते हैं।

  • जब वे पाते हैं कि संगठन का कार्य निष्पादन सही नहीं है इसकी गुणवत्ता में कमी आ रही है संगठन के सदस्यों को भी हानि हो रही है तो ऐसी परिस्थिति में वे संगठन के साथ या तो अपना संबंध ही खत्म कर लेते हैं अर्थात् उससे अलग हो जाते हैं
  • या फिर मौखिक रूप से संगठन के समक्ष अपनी बात रखते हैं तथा संगठन की कार्य प्रणाली में परिवर्तन की वकालत कर अपने संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।

उदाहरण के लिए, किसी देश का नागरिक राजनीतिक दमन के प्रति दो प्रकार से अनुक्रिया करते हैं। देश छोड़कर चला जाना या फिर दमन का विरोध करना। इसी प्रकार किसी संगठन का कर्मचारी/अधिकारी या तो अपनी नौकरी छोड़ देता है या फिर अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए संगठन से अपना विरोध प्रकट करता है।

उपर्युक्त दो विकल्पों के द्वारा किसी संगठन में हो रहे ह्रास की माप की जा सकती है। मौखिक रूप से विरोध प्रकट करने की प्रक्रिया द्वारा संगठन के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त की जा सकती है क्योंकि इससे संगठन की खराब हालत अथवा पतन के कारणों का पता चलता है। संगठन छोडकर चला जाना सिर्फ एक प्रकार की चेतावनी होती है जो पूर्व सूचना देती है कि संगठन की हालत अच्छी नहीं है। परंतु इन दोनों ही विकल्पों के माध्यम से संगठन की कार्य प्रणाली, खामियों एवं अन्य बालों का पता चलता है। कई बार वफादारी जैसी बातों के कारण कर्मचारी के लिए यह तय करना माजिक हो जाता है कि संगठन की नौकरी छोड़ दे अथवा मौखिक रूप से विरोध प्रकट कर अपनी स्थिति सुधारने का प्रयास करें। जहां वफादारी होती है वहां नौकरी छोड़ देने जैसा विकल्प नहीं अपनाया जाता। खासकर संगठन छोड़ने की बात तब और नहीं होती जब दूसरी नौकरी पाने की संभावना कम हो, मार्केट की हालत अच्छी न हो या फिर वित्तीय और राजनीतिक परिस्थितियां भी अनुकूल न हो।

उपर्यक्त दो विकल्पों के आपसी संबंधों को समझने तथा वफादारी जैसे तत्वों की भमिका को देखते हुए किसी संगठन के लिए यह आवश्यक है कि वह ऐसी व्यवस्था का निर्माण करे जिससे उसके कर्मचारियों में किसी प्रकार का असंतोष न पनपे। संगठन से जुडे इन बातों को गंभीरता से न लेन पर संगठन असफल हो सकता है या फिर उसका पतन हो सकता है।

सरकार की जवाबदेयता

(Government Accountability)

किसी सरकार के अंतर्गत कार्य कर रहे जनसेवक जनता के समक्ष अपने कार्यों एवं निर्णयों के औचित्य को सिद्ध करने के लिए बाध्य होते हैं। ये सदस्य चाहे वे चयनित हो या फिर मनोनीत, आप नागरिक के प्रति जवाबदेह होते हैं। जनसेवकों की यही बाध्यता सरकार की जवाबदेयता कहलाती है। किसी सरकार को कई प्रकार से जवाबदेह बनाया जाता है। ये साधन राजनीतिक, कानूनी अथवा प्रशासनिक भी हो सकते हैं। इन साधनों के द्वारा भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जाती है तथा इस बात का भी प्रयास किया जाता है कि जनसेवक नागरिकों के प्रति जवाबदेह बने रहे और जनसाधारण को उनकी सेवाएं सहज रूप से मिलती रहे।

सरकार और शासन

(Government and Governance)

‘शासन’ शब्द के अर्थ ‘सरकार’ की अपेक्षा अधिक व्यापक है। सरकार का अभिप्राय एक ऐसे सांगठनिक व्यवस्था से है जो अपनी प्रभुसत्ता का प्रयोग राजनीतिक समुदाय के अंतर व बाह्य हितों की पृर्ति के लिए करता है। शासन का अभिप्राय इससे भिन्न है। यह एक प्रक्रिया अथवा कार्यप्रणाली है जिसके द्वारा समाज कल्याण के लिए प्राधिकार युक्त निर्णय लिए जाते हैं। ‘सरकार’ शब्द का अर्थ है इस्तेमाल करना परन्तु शासन (Governance) का अर्थ है नागरिकों की सेवा करना।

शासन एक प्रकार की व्यवस्था अथवा तंत्र है जो राज्य के वैध अधिकारों का प्रयोग करता है। ये अधिकार चयनित नेताओं अथवा कुछ गिने चुने अधिकारियों के विशेषाधिकार नहीं होते बल्कि इसके माध्यम से शासन में जनभागीदारी को सुनिश्चित किया जाता है, ताकि शासन की प्रक्रिया पारदर्शी और जवाबदेह बन सके।

सुशासन के दार्शनिक आधार

(Philosophical Foundation for Good Governance)

‘सुशासन’ शब्द हाल ही में प्रचलित हुआ है। धनी अर्थात् कर्जदाता देश आजकल सुशासन को विकासशील देशों के संदर्भ में एक पूर्व शर्त के रूप में प्रयुक्त करते हैं जिसके एवज में गरीब और विकासशील देशों को अनुदान प्राप्त होता है। लेकिन अगर अरस्तु के वक्तव्य पर गौर किया जाए तो ‘सुशासन’ की अवधारणा प्राचीन ग्रीक युग में भी प्रचलित थी। जब अरस्तु ने कहा था कि राज्य जीवन की सुरक्षा के लिए अस्तित्व में आया, परंतु इसका अस्तित्व ‘शुभ और कल्याण’ के लिए बाद में भी बना रहा। अब अगर ‘शुभ और उच्चतर जीवन’ की व्याख्या की जाए तो इसी से हमें सुशासन के सही अर्थों की जानकारी हो जाती है।

एक शुभ और बेहतर जीवन का अर्थ है सभी के लिए स्वतंत्रता तथा सम्पत्ति की सुरक्षा। ‘सामाजिक संविदा के सिद्धांत में थॉमस हॉब्स जॉन लॉक तथा रूसो आदि सभी चिंतकों द्वारा इन्हीं अधिकारों की चर्चा की गई जिन्हें वे सुशासन के लिए एक कसौटी के रूप में स्वीकार करते हैं। जॉन लॉक के शब्दों में “सरकार तभी तक शासन कर सकती है जब तक वह नागरिकों के हितों की सुरक्षा कर सके तथा लोगों का विश्वास जीत सके” लोकतंत्र संबंधी यही वह अवधारणा है जो सहमति के शासन के रूप में जाना जाता है तथा अस्तित्व में आया। वर्तमान में किसी लोकतांत्रिक राज्य में नागरिकों का सरोकार मुख्य रूप से इस बात से है कि सरकार स्वतंत्रता की सुरक्षा, पारदर्शिता एवं उत्तम प्रशासन जैसे मानदंडों का अनुपालन कर रही है या नहीं। नागरिकों की इन्हीं सोच को ध्यान में रखकर कानून का शासन, जवाबदेयता तथा पारदर्शिता जैसी बातों को व्यवहार में लाया गया है और यही वे कारक हैं जो किसी लोकतांत्रिक देश में सुशासन के मौलिक घटक माने जाते हैं।

सुशासन

(Good Governance)

सुशासन की कोई एक परिभाषा नहीं दी जा सकती और न ही इसकी परिभाषा को इतना विस्तार दिया जा सकता है जिसे सार्वभौम स्वीकृति प्राप्त हो। संदर्भ तथा उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सुशासन के अंतर्गत निम्नलिखित बातों को शामिल किया जाता है- मानवाधिकारों के प्रति आदर, कानून का शासन, प्रभावी जनभागीदारी, पारदर्शी एवं जवाबदेह युक्त शासन तथा वह मनोवृत्ति जिससे उत्तरदायित्व, एकता और सहनशीलता का विकास हो।

भागीदारी

(Participation)

सुशासन के अंतर्गत लैंगिक भेदभाव तथा प्रजाति, जाति, भाषा, धर्म तथा जन्म स्थान से संबंधित मुद्दों एवं समस्याओं के समाधान का प्रयास किया जाता है और यह शासन में जनभागीदारी के द्वारा ही संभव हो पाता है। जनभागीदारी के प्रतिनिधि के रूप में मध्यवर्ती संस्थाएं अथवा उनके प्रतिनिधिगण प्रशासन में अपनी भूमिका तलाशते हैं जिससे सुशासन की अवधारणा व्यवहार रूप ले पाती है। जनभागीदारी के अंतर्गत मध्यवर्ती संस्थाएं अथवा संगठन संगठित और जागरूक होकर शासन कार्यों में अपना सहयोग देते हैं जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि शासन के अंतर्गत नागरिक अथवा नागरिक संस्थाओं को अपनी समस्याओं के संबंध में बोलने अथवा संगठित होने का अधिकार प्राप्त है।

नैतिक शासन

(Ethical Governance)

नैतिक शासन की अवधारणा सुशासन से जुड़ी हुई है। नैतिक शासन की मांग यह होती के जनसेवक अपने कार्य निष्पादन में उच्च नैतिक मानदंडों का अनुसरण करे तथा अपने कर्तव्य को एक उद्देश्यपूर्नजीवन जैसे लक्ष्य की प्राप्ति का साधन माने जिसका अंतिम उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण हो।

नैतिक शासन के मानदंड

(Parameters of Good Governance)

  • मौखिक विरोध और जवाबदेयता राजनीतिक अस्थिरता तथा हिंसा की अनुपस्थिति
  • प्रभावशाली सरकार
  • सार्थक नियामक आदेश
  • कानून का शासन
  • भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति

उपयुक्त मानदंडों में अंतिम दो नैतिक शासन के संदर्भ में सबसे अधिक प्रासगिक है। कानुन के शासन की उपस्थिति का अर्थ है कि अपराध के लिए उचित तरीके से दंड दिया जा रहा है या नहीं संविदाओं का कार्यान्वयन, कालाबाजारी की व्यापकता, संपत्ति के अधिकार का लागू होना, कर की चोरी की स्थिति, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, व्यवसाय एवं जनता द्वारा न्यायालय में सरकार को चुनौती देने की क्षमता आदि। भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति का अभिप्राय है सरकार एवं नौकरशाही में भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति, लाइसेंस एवं परमिट प्राप्त करने में अनियमितता की अनुपस्थिति, न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति तथा वह भ्रष्टाचार जिसके कारण विदेशी निवेशकों को निवेश करने से डर लगता है, की अनुपस्थिति।

शासन में नैतिकता एवं नैतिक मूल्यों का सुदृढीकरण ऐसे कई उपाय हैं जिनसे जन सेवा में नैतिक मूल्यों को विकसित किया जा सकता है। यहां हम उनमें से कुछ उपायों की चर्चा कर रहे हैं।

  • नेतृत्व
  • कार्य के लिए अनुकूल माहौल
  • व्यावहारिक आचरण संहिता और नैतिक मूल्य
  • प्रशिक्षण आदि के माध्यम से व्यावसायिक समाजीकरण संबंधी तंत्र
  • जोखिम की समीक्षा

नियंत्रण(Control)

इस संदर्भ में ओईसीडी के सदस्य देशों द्वारा 12 अनुशंसाओं का एक सेट तैयार किया गया है। इन अनुशंसाओं का उद्देश्य उन संस्थाओं, तंत्रों तथा कार्य प्रणालियों का मूल्यांकन करना है जिसकी सहायता से ओईसीडी के सदस्य देश अपने लोक प्रशासन (शासन व्यवस्था) में नैतिक मान्यताओं के अनुपालन को प्रोत्साहन प्रदान करते हैं। इन सिद्धांतों को राष्ट्र तथा निचले स्तर के प्रशासन में प्रयोग में लाया जा सकता है। इन सिंद्धातों का प्रयोग राजनीतिक नेताओं द्वारा उस बात के मूल्यांकन के लिए किया जा सकता है कि प्रशासन में किसी प्रकार के नैतिक प्रबंधन की व्यवस्था है या नहीं और शासन कार्य में नैतिक मानदंडों को किस हद तक लागू किया जा रहा है? इन सिद्धांतों को यहां संक्षेप में दिया जा रहा है:

  • जनसेवा के लिए तय किए गए नैतिक मानक सुस्पष्ट होने चाहिए।
  • गैर-कानूनी ढांचे में नैतिक मानकों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
  • जनसेवकों के लिए नैतिक मार्गदर्शन उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  • भ्रष्टाचार का खुलासा करते समय जनसवका का अपन अधिकार एवं बाध्यताओं की समझ भी होनी चाहिए।
  • नैतिकता के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धता एवं जनसंवकों के द्वारा नैतिक आचरण अपनाए जाने पर बल दिया जाना चाहिए।
  • निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता बरतनी चाहिए तथा निर्णय को जांच और समीक्षा भी होनी चाहिए।
  • निजी उपक्रम एवं सरकारी उपक्रम के बीच अंतक्रिया बनाए रखने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश हान चाहिए।
  • व्यवस्थाओं द्वारा नैतिक आचरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • प्रबंधन संबंधी नीतियों प्रक्रियाओं एवं कार्यकलापों द्वारा नैतिक आचरण अपनाने के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • जनसेवा से संबंधित शर्तों तथा मानव संसाधन प्रबंधन के माध्यम से नैतिक आचरण के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
  • जनसेवा के अंतर्गत जवाबदेयता सुनिश्चित करने हेतु एक तंत्र का होना आवश्यक है।
  • दोषपूर्ण आचरण जैसे मामलों के निपटारे के लिए समुचित प्रक्रिया एवं प्रतिबंधों की व्यवस्था की जानी चाहिए।

जोखिम समीक्षा

नैतिक मूल्यों व मान्यताओं से संबंधित जोखिम प्रबंधन योजना के विकास तथा अन्य जोखिम वाले संभावित क्षेत्रों की समीक्षा द्वारा प्रशासनिक तंत्र में नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहन दिया जा सकता है। लोक संघ से जुड़े कार्यों में कुछ ऐसी बातें होती हैं। जो मूल्य संघर्ष के प्रति अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील होते हैं। इस संदर्भ में ओईसीडो देशों का मानना है कि टैक्स, कस्टम, न्याय, प्रशासन तथा राजनीतिक प्रशासनिक मुद्दे ऐसे ही क्षेत्र हैं जहां मूल्यों के संघर्ष की संभावना ज्यादा हो सकती है। कर्मचारियों के लिए विशिष्ट प्रकार की नैतिक संहिता का निर्माण तथा वैसे क्षेत्रों की पहचान जिनमें मूल्यों के बीच संघर्ष की संभावना ज्यादा हो, कुछ ऐसे कार्य हैं जो नीतिपरक कार्य निष्पादन हेतु उचित माहौल तैयार करने के लिए आवश्यक माने जाते हैं।

नियंत्रण: प्रशासन में नैतिकता को बढ़ावा देने का एक साधन

हिन्जमैन के अनुसार प्रभावशाली एवं कारगर नियंत्रण ही वह महत्वपूर्ण कारक है जिसके द्वारा लोक संगठनों में नैतिकता के उच्च मानकों को बनाए रखा जा सकता है ताकि संगठन और उसका कार्य निष्पादन नैतिक मूल्यों व मानकों के अनुरूप हो। नियंत्रण के अंतर्गत निम्नलिखित बातें शामिल की जाती हैं।

  • स्पष्ट नीति एवं कार्य प्रणाली
  • कर्तव्यों एवं त्रुटियों के बीच स्पष्ट विभाजन :
  • प्रभावशाली एवं कारगर मॉनीटरिंग, अंकेक्षण तथा रिपोर्टिंग
  • त्रुटियों की रिपोर्टिंग के लिए व्यवस्थित प्रक्रिया
  • त्रुटियों के पाए जाने पर पारदर्शी एवं कारगर तरीके से कार्रवाई

सिविल सोसाइटी की भूमिका (Civil Society Engagements)

भ्रष्टाचार पर रोक उसकी निंदा एवं खलासा करने में जनता की आवाज को बडे कारगर ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए सिविल सोसाइटी एवं मीडिया द्वारा जनता को भ्रष्टाचार के संबंध में शिक्षित करने की जरूरत है। साथ ही उनमें जागरूकता लाकर लोक प्रशासन में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करने एवं किसी भी प्रकार की अनियमितता के खिलाफ वे अपनी आवाज बुलंद कर सके। सिविल सोसाइटी सामाजिक उन्नयन और आर्थिक विकास में योगदान देने वाली एक नई शक्ति के उभरा है। उसकी विश्वसनीयता समाज में उनकी रचनात्मकता और उत्तरदायी भूमिका पर निर्भर है।

सिविल सोसाइटी द्वारा जनता की आवाज एवं उनके असंतोष की तरफ सरकार को आकर्षित करने से सरकार की जवाबदेयता में एक नया आयाम जुड़ गया है। यहां सिविल सोसायटी का अभिप्राय औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार की इकाइयों अथवा संगठनों से है। ये सरकार से स्वतंत्र होकर काम करते हैं। इनका लक्ष्य लाभ कमाना नहीं होता इनका मूल उद्देश्य सामाजिक न्याय, विकास और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम करना है। सिविल सोसाइटी के अंतर्गत व्यावसायिक समुदायों, मीडिया, एनजीओ (स्वैच्छिक संगठन) तथा निजी क्षेत्र के अनौपचारिक समूहों को शामिल किया जाता है।

भारत में सिविल सोसाइटी के कार्यों एवं उपलब्धियों के बहुत से उदाहरण हैं। ये 1990 के दशक से ही व्यापक स्तर पर भारत में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। भारत में समय-समय पर सिविल सोसाइटी द्वारा किसी विषय विशेष पर गहन अनुसंधान किया गया और फिर सरकार पर प्रभाव डालकर अथवा न्यायालयों में याचिका दायर कर प्रचलित शासन व्यवस्था में समयानुकूल परिवर्तन लाने का प्रयास किया गया है। सिविल सोसाइटी की कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां निम्नलिखित हैं:

  • कामन कॉज, दिल्ली, कंज्यूमर एजुकेशन एण्ड रिसर्च सेंटर अहमदाबाद, द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्न्स, अहमदाबाद द्वारा जनहित कानून
  • पब्लिक अफेयर्स सेंटर, बैंगलोर द्वारा रिपोर्ट कार्ड सर्वे
  • परिवर्तन (दिल्ली) तथा मजदूर किसान शक्ति संगठन द्वारा जन सुनवाई लोक सत्ता (हैदराबाद) द्वारा चुनाव सुधार तथा सिटीजन चार्टर अभियान

इंटीग्रिटी समझौता (Integrity Pacts)

सत्यनिष्ठा के लिए समझौता एक ऐसी व्यवस्था है जो पारदर्शिता बढ़ाने और जनता के साथ अनुबंध में विश्वास पैदा करने में सहायता प्रदान कर सकती है। इन शब्दों का प्रयोग सामान और सेवाओं की वसूली में लिप्त सार्वजनिक एजेंसियों और सार्वजनिक संविदा के लिए बोली लगाने वालों के बीच इस बात का समझौता करने में किया जाता है कि बोली लगाने वालों में विचाराधीन संविदा को प्राप्त करने में किसी गैर कानूनी पारितोषक का भुगतान नहीं किया है और न ही वह यह भुगतान करेगा। बोली का प्रबंधन करने वाली सार्वजनिक एजेंसी अपनी ओर से वसूली की प्रक्रिया में एक समान व्यवहार करने और निष्पक्षता का पालन सुनिश्चित करने के लिए वचन देती है। ऐसे समझौतों का एक महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि उनमें स्वतंत्र बाहरी पर्यवेक्षकों द्वारा निगरानी और छानबीन प्राय: आलिप्त रही है।

ऐसे समझौतों से सुधरी हुई पारदर्शिता और लोक विश्वास पर्याप्त रूप में उसी प्रकार से अपना योगदान देते हैं जिस प्रकार से सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों में मुख्य सौदे संपन्न किए जाते हैं। अनेक राष्टीय विधि प्रणलियां अब ऐसे समझौतों को काफी प्रश्रय दे रही है। ओएनजीसी ऐसा पहला सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम है जिसमें ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल इंडिया और सीवीसी के साथ 17, अप्रैल 2006 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। परिशोधित रक्षा वसूली कार्यविधि नियम पुस्तिका 2006 मे 300 करोड़ रुपए से अधिक की रक्षा संविदाओं और वसूलियों में सत्यनिष्ठा करार को अपनाने के लिए एक उपबंध रखा गया है। हालांकि अभी भी देश में सरकारी संगठनों ने अभी तक इस स्वस्थ वृत्ति को अपनाने में कोई ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है। ऐसा न करने का कारण भी हमारे कानूनी ढांचे में ऐसे करारों के स्थान के बारे में यह अनिश्चितता बताया गया है।

द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने शासन में पारदर्शिता सनिश्चित करने के लिए इंटीग्रिटी समझौतों की व्यवस्था को प्रोत्साहन देने की सिफारिश की थी। साथ ही आयोग ने यह भी कहा था कि वित्त मंत्रालय को विधि और कार्मिक मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के साथ एक कार्यदल का गठन करना चाहिए जो ऐसे समझौतों के लिए अपेक्षित व्यवहारों के प्रचार का पता लगा कर ऐसे समझौते करने के लिए एक नवाचार का प्रावधान करे।

निवारक सतर्कता (Prevertive Vigilance)

निवारक सतर्कता भविष्य में होने वाले भ्रष्टाचार और अनियमितता की संभावना को कम करने का प्रयास करता है। निवारक सतर्कता अथवा प्रतिरोधी सतर्कता मुख्य रूप से उन क्षेत्रों की पहचान करता है जहां भ्रष्टाचार की संभावना ज्यादा है और फिर उस कार्य प्रणाली को विकसित करने की कोशिश करता है जिससे भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म किया जा सके या फिर भ्रष्टाचार की व्यापकता इस हद तक न बढ़ जाए जो पूरे संगठन अथवा तंत्र को नष्ट कर दे। निवारक सतर्कता को सुनिश्चित करने के कुछ साधन होते हैं जो इस प्रकार हैं।

  • उन अधिकारियों की एक सूची तैयार करना जिनकी ईमानदारी पर किसी प्रकार का शक हो, जिनके विरुद्ध किसी प्रकार की अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी हो, जिनको भ्रष्टाचार संबंधी मामले में दंड दिया गया हो।
  • उन अधिकारियों की एक सूची तैयार करना जिन पर भ्रष्टाचार में शामिल होने के संबंध में अत्यधिक संदेह हो ऐसे अधिकारियों पर विशेष निगरानी रखी जानी है।
  • महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील संगठनों से जुड़े रहने वाले बिचौलियों की एक सूची तैयार करना।
  • आय और संपत्ति से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट की व्यवस्था जिससे भ्रष्ट अधिकारियों अथवा अनियमितताओं की पहचान की जा सके।
  • बोर्ड स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति से पहले सतर्कता आयोग से अनापत्ति प्रमाणपत्र।

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