आदिवासी : भारत में समाज के सर्वाधिक सुभेद्य वर्ग
प्रश्न: आदिवासी, भारत में समाज के सर्वाधिक सुभेद्य वर्गों में क्यों हैं? समाज के इस वर्ग के मुद्दों से निपटने हेतु महत्वपूर्ण योजनाओं की पहचान कीजिए।
दृष्टिकोण
- एक संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा उन कारकों को स्पष्ट कीजिए जो आदिवासियों को भारतीय समाज के सर्वाधिक सुभेद्य वर्ग के रूप में स्थापित करते हैं।
- इन सुभेद्यताओं के निवारण हेतु प्रारम्भ की गयी प्रमुख योजनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर
भारत में अत्यधिक संसाधन समृद्ध भौगोलिक क्षेत्रों में निवास करने के बावजूद निम्नलिखित सुभेद्यताओं के कारण आदिवासी समुदाय अनेक कष्टों का सामना कर रहे हैं:
- निम्नस्तरीय पहुँच: वे अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों में निवास करते हैं जहां समाज के अंतिम व्यक्ति तक सार्वजनिक सेवा का वितरण एक चुनौती बन जाता है।
- औद्योगिक विकास के कारण भूमि से अपवंचन तथा आजीविका की क्षति ने विस्थापन को प्रेरित किया है।
- मुख्यधारा से आदिवासी क्षेत्रों के अलगाव के कारण उनमें सुशासन का अभाव।
- निम्न मानव विकास सूचकांक: निर्धनता, निरक्षरता, स्वच्छ पेयजल के अभाव, स्वास्थ्य और पोषण संबंधी सेवाओं की अनुपलब्धता के कारण उच्च बाल मृत्यु दर तथा महिलाओं में रक्ताल्पता आदि।
- व्यवस्था-विरोधी संगठनों की मौजूदगी के कारण सुरक्षा को खतरा तथा इसके परिणामस्वरूप विकास का अभाव।
- सामाजिक शोषण: पिछड़े क्षेत्रों में अल्प आयु में विवाह, तस्करी, बलात वेश्यावृति तथा शोषण के अन्य रूप प्रचलित हैं।
- अल्प भुगतान करने वाले अनौपचारिक क्षेत्रक के रोजगार: इसके अंतर्गत कृषि श्रमिक, अनौपचारिक श्रमिक आदि आते हैं।इसका मुख्य कारण शिक्षा एवं कौशल का अभाव है।
- गैर-काष्ठ वनोत्पादों (NTFPs) तथा वनों का उद्योगों की ओर व्यपवर्तन, महुआ पुष्पों जैसे कुछ गौण उत्पादों हेतु एक न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति का अभाव आदि।
- सांस्कृतिक अलगाव: एकीकरण और समामेलन-आधारित नीतियों के कारण उनकी सांस्कृतिक पहचान के समक्ष उत्पन्न संकट।
भारत में आदिवासियों के विकास हेतु निम्नलिखित योजनाएं प्रारंभ की गई हैं:
- आदिवासी उप-योजना क्षेत्रों हेतु राज्य को केंद्र द्वारा सहायता: जनजातीय विकास हेतु राज्य के प्रयासों के पूरक के रूप में राज्यों को केंद्र की ओर से 100% अनुदान।
- अनुच्छेद 275 (i) के तहत सहायता अनुदान: देश की कुल जनजातीय जनसंख्या की तुलना में राज्य की जनजातीय जनसंख्या के अनुपात के आधार पर राज्यों को अनुदान प्रदान किया जाता है।
- अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु कार्यरत स्वैच्छिक संगठनों हेतु सहायता अनुदान की योजना।
- जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण की योजना: विभिन्न रोजगारों और साथ ही साथ स्व-रोजगार हेतु जनजातीय युवाओं का कौशल विकास।
- विशेष रूप से सुभेद्य जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups : PVTGs) का विकास: PVTGS के विशेष विकास हेतु एक 100% केन्द्रीय क्षेत्रक योजना।
- शिक्षा:
- अनुसूचित जनजाति के बालक और बालिकाओं के लिए छात्रावास की योजना: नये छात्रावासों का निर्माण और/या विद्यमान छात्रावासों का विस्तार।
- आदिवासी उप-योजना के क्षेत्रों में आश्रम विद्यालयों की योजना: अनुसूचित जनजातियों हेतु आवासीय विद्यालय उपलब्ध करवाना।
- छात्रवृत्ति योजनाएं: मैट्रिक-पूर्व, मैट्रिक-पश्चात् एवं उच्च अध्ययन तथा विदेशों में शिक्षा के लिए सक्षम बनाने हेतु।
- निम्न साक्षरता वाले जिलों में अनुसूचित जनजातियों की लड़कियों के मध्य शिक्षा को सुदृढ़ बनाने हेतु योजना।
- जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (TRIs) को समर्थन: उनकी अवसंरचनात्मक आवश्यकताओं, उनके प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण इत्यादि को सुदृढ़ बनाने हेतु।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम (NSTFDC): आय सृजक गतिविधियों को आरंभ करने हेतु अनुसूचित जनजातियों को ब्याज की रियायती दरों पर वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- जनजातीय जनसंख्या के समग्र विकास और कल्याण हेतु वन बंधु कल्याण योजना।
- वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अंतर्गत व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों को मान्यता प्रदान करना।
आदिवासियों के समक्ष व्याप्त सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक अपवंचन एवं भेदभाव को समाप्त किया जाना चाहिए। साथ ही उन्हें ऐसे अवसर प्रदान किए जाने चाहिए जिससे वे अपनी प्रतिभा के अनुरूप विकास करने में सक्षम बन सकें।
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