भारत में ऊर्जा के विभिन्न स्रोत : भारत में ऊर्जा बास्केट के विविधीकरण की आवश्यकता
प्रश्न: भारत में ऊर्जा बास्केट का विविधीकरण करने की आवश्यकता को समझाते हुए, इस संबंध में संबद्ध चुनौतियों की पहचान कीजिए।
दृष्टिकोण:
- भारत में ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
- भारत में ऊर्जा बास्केट के विविधीकरण की आवश्यकता का वर्णन कीजिए।
- ऊर्जा बास्केट के विविधीकरण से संबद्ध चुनौतियों को सूचीबद्ध कीजिए।
- उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर:
भारत में ऊर्जा के विविधतापूर्ण स्रोतों यथा पारंपरिक ऊर्जा के स्रोतों (जैसे कोयला, लिग्नाइट, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि) और गैर पारंपरिक स्रोतों (जैसे पवन, सौर, कृषि और घरेलू अपशिष्ट आदि) का प्रयोग किया जाता है। जून 2019, में ऊर्जा बास्केट में सम्मिलित स्रोतों का भारांश कुछ इस प्रकार था:
ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण का अर्थ सीमित संसाधनों, प्रदाताओं आदि पर निर्भरता को कम करने हेतु विभिन्न ऊर्जा स्रोतों, आपूर्तिकर्ताओं और परिवहन मार्गों का उपयोग करना है। निम्नलिखित कारकों के कारण यह भारत के लिए महत्वपूर्ण है:
- बढ़ती मांग: बढ़ती जनसंख्या, विनिर्माण क्षेत्रक के विस्तार के साथ ही भारत की हालिया विकासात्मक महत्वाकांक्षाएं जैसे कि वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट की नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता के विकास का लक्ष्य, वर्ष 2022 तक सभी के लिए 24X7 विद्युत आपूर्ति, स्मार्ट सिटीज मिशन आदि के कारण ऊर्जा की मांग में वृद्धि हुई है।
- ऊर्जा सुरक्षा: भारत की प्राथमिक ऊर्जा मांग के लगभग तीन-चौथाई भाग की पूर्ति जीवाश्म ईंधन द्वारा की जाती है और इसका लगभग 80% आयात किया जाता है। विविधीकरण विविध स्रोतों से उत्पन्न घरेलू विद्युत की आपूर्ति के माध्यम से विदेशी ऊर्जा आयात को प्रतिस्थापित कर सकता है। ध्यातव्य है कि विदेशी ऊर्जा आयात पर निर्भरता चालू खाता घाटे में वृद्धि और विद्युत के मूल्यों में अस्थिरता का मुख्य कारक है।
- संधारणीयता: ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण संबंधी बढ़ती चिंताओं के कारण वैश्विक रुझान स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर केन्द्रित हुआ है।
हालाँकि, इस संदर्भ में निम्नलिखित चुनौतियां विद्यमान हैं:
- पर्याप्त सहयोग का अभाव: सरकार द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को सब्सिडी के रूप में पर्याप्त सहयोग और नीतिगत समर्थन दिए जाने का अभाव। इसके अतिरिक्त, लोकलुभावन नीतियों के रूप में ऊर्जा की सस्ती आपूर्ति के कारण बिजली टैरिफ सुधार चुनौतीपूर्ण रहा है।
- घरेलू उत्पादन से संबंधित चुनौतियां: कोयला खदानों की नीलामी में विलंब के कारण घरेलू उत्पादन में कमी से आयातित कोयले पर निर्भरता में वृद्धि होती है। इसी प्रकार, भूमि अधिग्रहण में विलंब भी घरेलू हाइड्रोकार्बन संसाधनों की अन्वेषण प्रक्रिया को बाधित करता है।
- परमाणु ऊर्जा संबंधी बाधाएं: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना को लेकर प्रायः स्थानीय लोग प्रतिरोध करते रहे हैं। इसके अतिरिक्त, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) का सदस्य देश नहीं होने के कारण भारत में परमाणु ईंधन की आपूर्ति भी बाधित होती है।
- अंतरराष्ट्रीय विवाद: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के समर्थन के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय विवाद भी एक मुख्य चुनौती है, जैसे कि WTO में अमेरिका द्वारा भारत के राष्ट्रीय सौर मिशन हेतु घरेलू सामग्री आवश्यकता (DCR) के संदर्भ में आपत्तियां इस क्षेत्रक के विकास संबंधी गतिविधियों को बाधित कर सकती हैं।
- ग्रिड एकीकरण: चूंकि अधिकांश नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत असतत (intermitent) प्रकृति के हैं, इसलिए पावर ग्रिड अवसंरचना के तहत उन्हें एकीकृत करना स्वयं में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
हालांकि, सरकार ने विभिन्न पहलों जैसे SHAKTI (कोयला नीलामी पारदर्शिता), HELP (हाइड्रोकार्बन अन्वेषण), UDAY (डिस्कॉम), राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति आदि के माध्यम से इन चुनौतियों के निवारण हेतु अनेक प्रयास किए हैं। इसके अतिरिक्त, ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण के साथ-साथ, ऊर्जा दक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में भी बल दिया जाना चाहिए।