स्वैच्छिक क्षेत्र की अवधारणा : एक राष्ट्रीय प्रमाणन एजेंसी की आवश्यकता पर चर्चा
प्रश्न: भारत में स्वैच्छिक क्षेत्र को अवरुद्ध करने वाले विभिन्न मुद्दों की पहचान कीजिए एवं इन पर काबू पाने हेतु एक राष्ट्रीय प्रमाणन एजेंसी की आवश्यकता की चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
दृष्टिकोण
- स्वैच्छिक क्षेत्र की अवधारणा पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- इस क्षेत्र से संबंधित विभिन्न मुद्दों का वर्णन कीजिए।
- एक राष्ट्रीय प्रमाणन एजेंसी की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।
उत्तर
सामान्यतः स्वैच्छिक क्षेत्र के अंतर्गत ऐसे संगठनों को शामिल किया जाता है, जिनका उद्देश्य प्रायः किसी लाभ की इच्छा के बिना और न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप के साथ समाज को लाभ पहुँचाना तथा समृद्ध बनाना है। गैर सरकारी संगठन (NGOs) इस क्षेत्र में प्रमुख रूप से शामिल हैं।
मुद्दे
- जवाबदेही और पारदर्शिता – CBI के कंजर्वेटिव एस्टीमेशन के अनुसार, भारत में प्रत्येक 600 नागरिकों पर एक NGO मौजूद है। हालांकि, भारत में NGOs के सन्दर्भ में जवाबदेहिता की व्यापक कमी भी विद्यमान है क्योंकि कई NGOs द्वारा उन्हें प्राप्त अनुदान और व्यय संबंधी विवरण को कर अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाता है। 32 लाख NGOs में से केवल 10% के द्वारा ही वार्षिक आय और व्यय का विवरण प्रस्तुत किया जाता है।
- निहित हित- 2014 की इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया है कि “विदेशी वित्त पोषित” NGOs द्वारा पश्चिमी सरकारों की विदेश नीति के हितों की पूर्ति करने के लिए कार्य किया जा रहा है। इन NGOs के द्वारा देश भर में परमाणु एवं कोयला बिजली संयंत्रों तथा जेनेटिकली मॉडिफाइड ऑर्गनिज्म (GMO) के विरुद्ध आन्दोलनों को प्रायोजित किया गया है। इससे सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में 2-3% तक का नुकसान हुआ है।
- अप्रभावी विनियामक तंत्र – उच्चतम न्यायालय की जांच से यह ज्ञात हुआ है कि आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य अपने क्षेत्र में कार्यरत NGOs से संबंधित विवरण प्रस्तुत करने में विफल रहे हैं।
- निधियों का दुरुपयोग – केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की रिपोर्ट के विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि असम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में कार्यरत किसी भी NGO द्वारा रिटर्न फाइल नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त, कई NGOs पर यह आरोप है कि उनके द्वारा आपदा पीड़ितों के लिए आवंटित धन का व्यक्तिगत विलासिता की वस्तुओं की खरीद पर व्यय किया गया है।
NGOs से संबंधित चिंताओं के सन्दर्भ में, वर्तमान समय में सरकार एवं स्वैच्छिक क्षेत्र के समक्ष अपने कार्यों में पारदर्शिता लाने हेतु एक साथ कार्य करने का अवसर विद्यमान है। अत: एक गैर-लाभकारी राष्ट्रीय प्रमाणन एजेंसी पर पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है।
स्वैच्छिक क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय प्रमाणन एजेंसी की आवश्यकता
चूंकि भारत में स्वैच्छिक क्षेत्र उद्देश्य, प्रकृति और दृष्टिकोण से विविधतापूर्ण है, अत: विदेशी रेटिंग पद्धति का इस संदर्भ में कोई औचित्य सिद्ध नहीं होता है।
2012 में एक स्वायत्त प्रमाणन प्राधिकरण के रूप में भारतीय राष्ट्रीय प्रमाणन परिषद (NACI) के गठन पर सहमति बनी थी, किन्तु अब तक इसका गठन नहीं किया गया है। इसका गठन निम्नलिखित तरीकों से सहायता प्रदान करेगा:
- एक कार्यात्मक और विश्वसनीय रेटिंग प्रणाली, स्वैच्छिक क्षेत्र को लोगों की धारणा, निवेशक के विश्वास तथा दानकर्ता को मार्गदर्शन के संदर्भ में लाभान्वित करेगी।
- इसके माध्यम से स्वैच्छिक संगठनों में और अधिक जवाबदेहिता को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- यह एजेंसी, प्रमाणन और उत्तरदायित्व संबंधी दिशा-निर्देशों के माध्यम से देश में चंदे/दान की महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति समझ विकसित करेगी।
- इससे स्वास्थ्य, एडवोकेसी, शिक्षा, क्षमता निर्माण आदि विभिन्न क्षेत्रों में स्वैच्छिक संगठनों के लिए क्षेत्र विशिष्ट राष्ट्रीय/राज्य स्तरीय प्रमाणन बोर्ड की स्थापना में मदद मिलेगी।
अतः यह सही समय है कि सरकारी और स्वैच्छिक संगठन दोनों का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु एक भारतीय राष्ट्रीय प्रमाणन परिषद (NACI) को कार्यान्वित किया जाए। इसके अतिरिक्त, आकार, अवस्थिति, प्रकृति और विषय के संदर्भ में स्वैच्छिक क्षेत्र की विविधता का सम्मान करते हुए हितधारकों के परामर्श से एक पद्धति का विकास किया जाना चाहिए।
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