द्वितीय विश्व युद्ध तथा भारतीय प्रयासों के सन्दर्भ में इसके प्रति ब्रिटिश भारतीय शासन की प्रतिक्रिया : भारत की भागीदारी पर गांधीजी, बोस और नेहरू के विचार

प्रश्न: गाँधी, नेहरु और बोस के विचारों ने द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश प्रयासों के प्रति भारत के समर्थन के प्रश्न पर वाद-विवाद से संबंधित प्रमुख पहलुओं का व्यापक रूप से प्रतिनिधित्व किया। स्पष्ट कीजिए। (250 शब्द)

दृष्टिकोण

  • परिचय में द्वितीय विश्व युद्ध तथा भारतीय प्रयासों के सन्दर्भ में इसके प्रति ब्रिटिश भारतीय शासन की प्रतिक्रिया के विषय में लिखिए।
  • द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश भागीदारी के संबंध में भारतीयों के मध्य प्रचलित लोकप्रिय मतों का उल्लेख कीजिए।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत की भागीदारी पर गांधीजी, बोस और नेहरू के विचारों को उनके द्वारा दिए गए तर्कों के साथ लिखिए।
  • निष्कर्ष के रूप में, विभिन्न विचारों के अंतिम परिणाम को लिखिए।

उत्तर

द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ 1 सितंबर, 1939 को हुआ जब नाज़ी जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया। ब्रिटिश सरकार ने तत्काल कांग्रेस या केंद्रीय विधायिका के निर्वाचित सदस्यों से परामर्श किए बिना युद्ध में भारत की भागीदारी घोषित कर दी। सामान्य रूप से भारतीय और विशेष रूप से कांग्रेस फासीवादी आक्रामकता के पीड़ितों के साथ पूर्ण रूप से सहानुभूति रखते थे। हालांकि, वे दो शर्तों को पूरा करवाना चाहते थे:

  • युद्ध के पश्चात भारत की राजनीतिक संरचना निर्धारित करने के लिए संविधान सभा का गठन।
  • केंद्र में तत्काल प्रभाव से वास्तविक रूप से उत्तरदायी सरकार के किसी रूप की स्थापना।

जब इस प्रस्ताव को वायसराय लिनलिथगो द्वारा अस्वीकृत किया गया, तब द्वितीय विश्व-युद्ध में भारत की भागीदारी के संबंध में कांग्रेस नेतृत्व के मध्य विभिन्न विचारों की उत्पत्ति हुई। गांधीजी, नेहरू और बोस द्वारा दिए गए तर्कों ने इन विचारों से संबंधित प्रमुख पहलुओं का प्रतिनिधित्व किया। उदाहरण के लिए:

  • गांधीजी ने मित्र शक्तियों (Allied powers) को बिना किसी शर्त के समर्थन देने की वकालत की क्योंकि उन्होंने पश्चिमी यूरोप के लोकतांत्रिक राज्यों और सर्वसत्तावादी नाज़ियों के मध्य अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने इस बात की घोषणा की कि “हम ब्रिटेन के विध्वंस से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं करेंगे; यह अहिंसा का मार्ग नहीं है।” हालांकि, वे भारत की स्वतंत्रता को नकारते हुए ब्रिटेन द्वारा अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने के दृष्टिकोण की विसंगति से भी पूर्णतः अवगत थे।
  • सुभाष चंद्र बोस द्वारा यह तर्क दिया गया कि सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरंभ कर तत्काल स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए इस स्थिति का लाभ उठाया जाना चाहिए। उनके अनुसार, यह युद्ध मुख्यतः साम्राज्यवादी शक्तियों के मध्य था, इसलिए, दोनों पक्षों में से किसी का भी समर्थन करने का प्रश्न ही नहीं उठता। कालांतर में उन्होंने ब्रिटेन को पराजित करने हेतु धुरी राष्ट्रों (जर्मनी, इटली और जापान) के साथ सहयोग किया और आज़ाद हिंद फ़ौज का नेतृत्व किया।
  • नेहरु, भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति न होने तक भारतीयों की युद्ध में भागीदारी के पक्ष में नहीं थे। हालांकि,उन्होंने इस बात की भी वकालत की कि तत्काल संघर्ष आरंभ कर ब्रिटेन की कठिनाइयों से कोई लाभ प्राप्त नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने लोकतंत्र और फासीवाद के बीच के स्पष्ट भेद को प्रकट किया। हालांकि उनका मानना था कि न्याय ब्रिटेन के पक्ष में था, परन्तु वे इस बात के प्रति भी आश्वस्त थे कि ब्रिटेन और फ्रांस अंततः साम्राज्यवादी शक्तियां हैं और द्वितीय विश्व-युद्ध मुख्यतः बढ़ते पूंजीवाद के आंतरिक विरोधाभासों का परिणाम है।

हालांकि, उपर्युक्त तीनों व्यक्ति राष्ट्रीय आंदोलन के महान नेता थे और उनके विचार भी समान रूप से सम्मानित थे। नेहरू के विचारों ने अन्य दो विचारों के बीच मध्यम-मार्ग को दर्शाया। वास्तव में, कांग्रेस कार्य समिति का प्रस्ताव नेहरू के विचारों पर आधारित था जिसमें फासीवादी आक्रामकता की निंदा की गई थी। इसमें निम्नलिखित तत्व सम्मिलित थे:

  • भारत उस युद्ध का भागीदार नहीं बन सकता है, जो वास्तव में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के लिए लड़ा जा रहा है, जबकि स्वयं भारत को इस स्वतंत्रता से वंचित किया जा रहा है।
  • यदि ब्रिटेन लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा है तो इसे अपने उपनिवेशों में साम्राज्यवाद समाप्त कर और भारत में पूर्ण लोकतंत्र को स्थापित कर इस बात की पुष्टि करनी चाहिए।
  • सरकार को युद्ध के उद्देश्यों तथा भारत में लोकतंत्र के सिद्धांतों को किस प्रकार लागू किया जाएगा इसकी यथाशीघ्र घोषणा करनी चाहिए।

अतः, ब्रिटिश युद्ध के प्रयासों में भारतीय समर्थन के संबंध में विभिन्न वैचारिक मतभेदों के बावजूद, कांग्रेस नेतृत्व द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय भागीदारी के लिए ब्रिटिश सरकार को हर संभव अवसर प्रदान करना चाहता था।

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