भारत और इंडोनेशिया : दोनों देशों के बीच सहयोग के क्षेत्र
प्रश्न: वर्षों की उपेक्षा के बाद, तेजी से विकसित हो रही क्षेत्रीय रणनीतिक वास्तविकताएं अब भारत और इंडोनेशिया को और अधिक घनिष्ठता से अपनी नीतियों को समन्वित करने के लिए बाध्य कर रही हैं। चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- उपेक्षा और बदलते यथार्थ के कारणों का संक्षेप में उल्लेख करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
- दोनों देशों के बीच सहयोग के क्षेत्रों को रेखांकित कीजिए।
- संक्षेप में निष्कर्ष निकालिए।
उत्तर
साझी संस्कृति, भौगोलिक निकटता और इतिहास के साथ सामान्य विकास अनिवार्यताओं के बावजूद, भारत और इंडोनेशिया के बीच संबंध अपनी क्षमताओं से काफी पीछे है। थोड़े समय के लिए उपनिवेशवाद-विरोधी एकजुटता को छोड़कर (जिसने दोनों देशों को NAM में एक साथ खड़ा किया) आधुनिक भारत और इंडोनेशिया शायद ही कभी एक-दूसरे की विदेश नीति की प्राथिमिकता में रहे हों। शीत युद्ध के साथ-साथ कई अन्य आंतरिक और क्षेत्रीय घटनाओं ने भारत और इंडोनेशिया के बीच राजनीतिक खाई को गहरा ही किया है।
हालाँकि हाल के कुछ घटनाक्रम दोनों देशों को निकट ला रहे हैं। पश्चिमी प्रशांत और हिन्द महासागर में हठधर्मी चीन का अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति का प्रदर्शन दोनों देशों के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। एक ओर जहाँ भारत वृहत हिन्द-प्रशांत (एशिया-पैसिफ़िक) में संचार के समुद्री मार्गों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है, वहीं इंडोनेशिया नातुना द्वीपसमूह के पास चीनी घुसपैठ को लेकर चिंतित है। उस द्वीप पर इंडोनेशिया अपने अनन्य आर्थिक क्षेत्र के एक भाग के रूप में दावा करता है। इसके अतिरिक्त, क्षेत्रीय सुरक्षा के एकमात्र ठेकेदार बने रहने की, अमेरिकी अनिच्छा क्षेत्रीय भागीदारों को निरंतर अग्रसक्रिय रूप से कार्य करने को विवश कर रही है।
इसके अतिरिक्त, समुद्री कार्यक्षेत्र में सरंक्षणवाद और व्यापारिक युद्ध की आशंका दो देशों को आर्थिक मोर्चे पर (व्यापार और निवेश) सहयोग के लिए एक साथ ला रही है।
इस सन्दर्भ में, 2018 में प्रधानमंत्री का दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का दौरा अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। दोनों देशों द्वारा समन्वय और अधिक निकटतम सहयोग हेतु कई कदम उठाये गए हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- द्विपक्षीय संबंध को एक समग्र रणनीतिक भागीदारी के स्तर तक ले जाया गया है जो द्विपक्षीय सुरक्षा संवाद, त्रिपक्षीय संवाद, मूल रक्षा सहयोग तन्त्र जैसे नए तन्त्र का निर्माण करेगा। ये सहयोग और संवाद निम्न क्षेत्रों में किये जाएँगे:
- हथियारों के उत्पादन, आतंकवाद के विरुद्ध और अधिक सहयोग, लोगों के बीच अधिक व्यापक सम्बन्धों का सृजन। इसके साथ ही, व्यापार वृद्धि और निवेश सहयोग तथा समुद्री संसाधनों के संधारणीय विकास हेतु समुद्री आर्थिक विकास अर्थात ब्ल्यू इकॉनमी पर भी बल दिया जाएगा।
- दोनों देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझे दृष्टिकोण और सिद्धांतों के लिए सहमति व्यक्त की है ताकि क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु अधिक जिम्मेदारी ली जा सके।
- मत्स्य पालन और जहाज निर्माण जैसी समुद्री अवसरंचना पर बल दिया जाएगा। सबांग द्वीप को बन्दरगाह सम्बन्धी अवसंरचना हेतु चिन्हित किया गया है। इसके अतिरिक्त पर्यटन और आपदा प्रबन्धन को भी सहयोग के क्षेत्रों के रूप में रेखांकित किया गया है।
- रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं जिसमें सहयोग के कई पहलुओं को सम्मलित किया गया है, जैसे रणनीतिक सूचना, सैन्य शिक्षा, त्रि-सेवा प्रशिक्षण और अभ्यास तथा इसके साथ ही रणनीतिक रक्षा और सैन्य मुद्दों पर नियमित संवाद एवं परामर्श।
- भारत में ग्रेटर निकोबार द्वीप और इंडोनेशिया के समात्रा द्वीप के बीच दोनों देशों ने विद्यमान समुद्री सीमा समझौतों के आधार पर आगे बढ़ने और समुद्री परिसीमन पर पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की दिशा में काम करने का भी निर्णय लिया है।
भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और इंडोनेशियन ग्लोबल मैरीटाइम फुलक्रम विज़न (इंडोनेशियाई वैश्विक समुद्री आधार दृष्टिकोण) में ऐसे अभिसरण बिंदु हैं जो इन सम्बन्धों को आगे ले जा सकते हैं। दोनों प्रतिष्ठान महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को मूर्त परिणामों में परिवर्तित करने में चुनौतियों का सामना कर रहे है। इन सब के बावजूद भारत और इंडोनेशिया के बीच एक वास्तविक भागीदारी के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है।
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