जनजातीय शिक्षा की स्थिति पर संक्षिप्त चर्चा : जनजातीय शिक्षा की दिशा में सरकार द्वारा की गई पहल

प्रश्न: जनजातियों के मध्य व्याप्त निम्न साक्षरता दर हेतु उत्तरदायी कारणों को रेखांकित कीजिए। साथ ही, इस संबंध में सरकार द्वारा की गई कुछ पहलों का भी उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण

  • जनजातीय शिक्षा की स्थिति पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए। 
  • जनजातियों के मध्य व्याप्त निम्न साक्षरता दर हेतु उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिए।
  • जनजातीय शिक्षा की दिशा में सरकार द्वारा की गई पहलों का एक-एक करके उल्लेख कीजिए।

उत्तर

2011 की जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय साक्षरता दर के 74% की तुलना में STS के मध्य साक्षरता दर केवल 59% है। STs के मध्य अशिक्षा और शिक्षा के निम्न स्तर के लिए निम्नलिखित कारकों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है: 

  • अनुसूचित जनजातियों की कमजोर आर्थिक स्थिति: अधिकांश जनजातीय समुदायों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और संबंधित शैक्षणिक संसाधनों तक पहुँचने के लिए वित्तीय संसाधनों का अभाव है।
  • माता-पिता का दृष्टिकोण: औपचारिक शिक्षा के दीर्घकालिक मूल्य के संबंध में जागरूकता का अभाव है। चूंकि शिक्षा कोई तत्काल आर्थिक प्रतिफल नहीं देती है इसलिए आदिवासी माता-पिता अपने बच्चों को ऐसे पारिश्रमिक प्रदान करने वाले रोजगार में संलग्न करने को वरीयता देते हैं जिससे नियमित आधार पर परिवार की आय बढ़े।
  • विद्यालयों का स्थान: विशेष रूप से माध्यमिक शिक्षा के लिए घर और विद्यालय के बीच की दूरी और संबंधित लागत, माता-पिता को अपने बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए हतोत्साहित करती है। इस प्रकार बच्चों के विद्यालय छोड़ने की दर उच्च होती है।
  • भाषा का माध्यम: क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं में पाठ वाली द्विभाषी प्रवेशिका पाठ्य-पुस्तकों का मंद विकास, आदिवासी क्षेत्रों में स्थित स्कूलों में अधिगम (पढ़ने और लिखने) संबंधी परिणामों को बाधित करता है।
  • शिक्षकों के बीच जनजातीय संस्कृति की समझ का अभाव: स्थानीय शिक्षकों में जनजातीय संस्कृति की पारिस्थितिकीय, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक विशेषताओं की व्यापक समझ का अभाव है। यह शिक्षा को जनजातियों की आवश्यकताओं सेअसंगत बना देता है। साथ ही, शिक्षकों की अनुपस्थित रहने की प्रवृत्ति समस्या को और भी बढ़ा देती है।
  • पर्याप्त निगरानी का अभाव: विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों की दूरस्थ भौगोलिक परिस्थितियों और विभिन्न विभागों के मध्य समुचित समन्वय के अभाव के कारण उचित निगरानी में बाधा आती है। सरकार ने जनजातीय शिक्षा की स्थिति के उत्थान के लिए कई पहले आरम्भ की हैं। ये पहले संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (4), 16 और 21 के अनुपालन को सुनिश्चित करती हैं:
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS): अनुसूचित जनजातियों के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण माध्यमिक और उच्च-स्तरीय शिक्षा प्रदान करने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में EMRS स्थापित किए गए हैं। हॉस्टल सुविधा सहित विद्यालय भवन और कर्मचारियों के आवास (स्टॉफ क्वार्टर), खेल का मैदान, विद्यार्थियों हेतु कंप्यूटर लैब, शिक्षक संसाधन कक्ष इत्यादि का समावेश करने संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
  • आश्रम विद्यालयों की स्थापना के लिए योजना: इस योजना का उद्देश्य कुछ अतिवाद प्रभावित क्षेत्रों में केवल लड़कियों को शिक्षा प्रदान करने वाले आश्रम स्कूलों और केवल लड़कों को शिक्षा प्रदान करने वाले आश्रम स्कूलों का निर्माण करना है।
  • प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना 9वीं और 10वीं कक्षाओं में पढ़ने वाले आदिवासी छात्रों के लिए है और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना मान्यता प्राप्त संस्थानों में पोस्ट-मैट्रिक पाठ्यक्रमों में अध्ययन करने वाले अनुसूचित जनजातियों के छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति योजना पीएचडी और पोस्ट-डॉक्टोरल अध्ययन के लिए विदेश में उच्च शिक्षण हेतु चुने गए छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • निम्न साक्षरता दर वाले जिलों में अनुसूचित जनजाति (ST) की लड़कियों के मध्य शिक्षा के सुदृढ़ीकरण हेतु योजना: इसका उद्देश्य अभिज्ञात जिलों या प्रखण्डों में आदिवासी लड़कियों के शत-प्रतिशत नामांकन को सुगम बनाकर शिक्षा के लिए उचित परिवेश का निर्माण कर एवं प्राथमिक स्तर पर विद्यालय छोड़ने की दर को कम कर सामान्य महिला जनसंख्या और आदिवासी महिलाओं के बीच साक्षरता में व्याप्त अंतराल को समाप्त करना है।
  • जनशाला कार्यक्रम: यह भारत सरकार (Gol) और संयुक्त राष्ट्र की पाँच एजेंसियों का एक सहयोगात्मक प्रयास है जिसका उद्देश्य समुदाय आधारित प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा को अधिक सुलभ और प्रभावी बनाना है।

हालांकि अखिल भारतीय अनुसूचित जनजाति साक्षरता दर जो 2001 में 47.1% थी, वह 2011 में बढ़कर 59.0% हो गई है, लेकिन जनजातियों, विशेषतया विशेष रूप से सुभेद्य जनजातीय समूहों (PVTGs) के शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए अपेक्षाकृत अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। दूरस्थ और अतिवाद प्रभावित क्षेत्रों में विशेष जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, स्थानीय जनजातियों को शिक्षण कार्य में प्राथमिकता प्रदान करना एवं आदिवासी क्षेत्रों में शैक्षिक कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करते समय स्थानीय रीति-रिवाजों को महत्व दिया जाना महत्वपूर्ण है।

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