सरकारी और निजी संस्थानों में नैतिक सरोकार और दुविधाएँ

दुविधा एक प्रकार की समस्या होती है जिसके दो समाधान अथवा दो विकल्प होते हैं और दोनों कोई भी व्यावहारिक तौर पर स्वीकार करने योग्य नहीं होता। ऐसी स्थिति के उत्पन्न होने पर व्यक्ति स्वयं को दुविधा में पाता है।।

नैतिक दुविधा

नैतिक दुविधा से संबंधित दुविधा तब उत्पन्न होती है जब दो प्रस्तुत सिद्धांतों में से किसी एक का चूनाव करना होता है। अत: नैतिक दुविधा को एक ऐसी अवांछनीय एवं उलझन वाली परिस्थिति के रूप में समझा जा सकता है। जब दो प्रतियोगी सिद्धांतों या विकल्पों में किसी एक का चयन करना अनिवार्य हो। कुछ खास शर्ते हैं जिनके होने पर ही किसी परिस्थिति को नैतिक दुविधा की स्थिति कहा जा सकता है। ये शर्ते हैं।

  • पहली शर्त यह है कि किसी व्यक्ति के समक्ष ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जिसमें उसे यह निर्णय लेना होगा कि अमूक विकल्प ही सबसे बेहतर है।
  • दूसरी शर्त यह है कि नैतिक दुविधा की स्थिति तभी उत्पन्न होती है जब विपरीत विकल्प एक साथ उपस्थित हो जाए।
  • तीसरी शर्त यह है कि किसी समस्या का कोई आदर्श समाधान न दिखे अर्थात् उपलब्ध दो विकल्पों में किसी भी विकल्प के चुनाव से नैतिक स्तर पर समझौता कर लेने की विवशता हो।

नैतिक दुविधा के प्रकार

(Types of Ethical Dilemmas)

सरकारी महकमे में कार्यरत पदाधिकारियों कर्मचारियों के लिए हितों के संघर्ष की स्थिति में निर्णय लेने की विवशता ही उनके समक्ष सबसे बड़ी नैतिक दुविधा उत्पन्न करती है। इसके अलावा लोक सेवकों के समक्ष कुछ अन्य प्रकार की नैतिक दुविधाएं भी आती हैं जिनमें प्रमुख है- लोक प्रशासन में मूल्यों के बीच संघर्ष, संस्थाओं का औचित्य सिद्ध करना, आचरण संहिता के विभिन्न पक्षों के बीच विरोधाभास, सरकारी आदेश तथा व्यक्तिगत मूल्यों एवं विश्वासों व्यावसायिक नैतिकता तथा सरकारी आदेशों के मध्य संघर्ष, अस्पष्ट जवाबदेही के कारण उत्पन्न विरोधाभास तथा नैतिक आचरण के विभिन्न आयामों के बीच तालमेल का अभाव।

इन दुविधाओं को मौटे तौर पर तीन कोटियों में विभाजित किया जा सकता है:

  • व्यक्तिगत जोखिम से जुडी नैतिक दुविधा : इस तरह की दुविधा तब उत्पन्न होती है जब एक सिविल सेवक अपने किसी नैतिक आचरण के कारण स्वयं किसी जोखिम अथवा परेशानी का शिकार हो जाता है। दसरे शब्दों में, इस स्थिति में सिविल सेवक नैतिक निर्णय ले तो लेता है मगर इसकी वजह से उसके पद पर आंच लगने लगती है या फिर उसे वित्तीय हानि उठानी पड़ सकती है। कभी-कभी संबंध सामान्य नहीं रह जाते। अर्थात् व्यक्ति हो या संगठन उसे अपने निर्णयों के लिए गंभीर मूल्य चुकाना पड़ता है।
  • दो समान रूप से उचित विकल्पों की उपलब्धता से उत्पन्न नैतिक दुविधा : यह एक ऐसी परिस्थिति होती है जब किसी सरकारी सेवक के समक्ष दो अलग-अलग किंतु समान रूप से वैध विकल्प उपस्थित होते हैं। ऐसे में दोनों में से किसी भी विकल्प का चयन कानूनी व नैतिक रूप से सही होता है परंतु विकल्पों से जुड़े मूल्यों में तालमेल नहीं रहता। इस कारण मूल्यों के संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है क्योंकि एक विकल्प दूसरे विकल्प को सीमित कर देता है अथवा उसे प्रतिसंतुलित कर देता है। -उदाहरणस्वरूप, कई बार एक सिविल सेवक को स्वयं को पारदर्शी बनाए रखने हेतु आम नागरिक के साथ सूचनाओं का आदान प्रदान करना पड़ता है क्योंकि यह उसकी जवाबदेही होती है। परंतु ऐसा करने से सरकारी कार्यों अथवा निर्णयों से संबंधित गोपनीयता समाप्त हो जाती है। यहां दुविधा यह होती है कि एक सिविल सेवक को प्रशासन से संबंधित कई मामलों में गोपनीयता बरतनी होती है। जो जनसाधारण के प्रति उसकी जवाबदेयता के आड़े आ जाती है और तब सिविल सेवक के समक्ष नैतिक दुविधा की स्थिति बन जाती है। ऐसे में वह समझ नहीं पाता कि आम जनता के प्रति वह अपना कर्त्तव्य निभाए या फिर प्रशासन संबंधी बाध्यता को ध्यान में रखते हुए कुछ बातों में गोपनीयता बरते।
  • सामूहिक नैतिक दुविधा : सामूहिक नैतिक दुविधा की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब सिविल सेवक के समक्ष प्रशासकीय निर्णय लेते समय एक साथ कई विकल्प प्रस्तुत हो जाते हैं और उसे यह निर्णय लेने में कठिनाई होती है कि आखिर कौन-सा विकल्प सही और उचित निर्णय कहलाएगा।

नैतिक दुविधा के उदाहरण

(Examples of Ethical dilemmas)

एक प्रशासक के समक्ष निम्नलिखित प्रकार की नैतिक दुविधाएं उपस्थित हो सकती हैं:

  1. जब उसे पता चलता है कि प्रशासनिक स्वविवेक का गलत इस्तमाल किया जा रहा है अथवा भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का सहारा लिया जा रहा है। ऐसे में वह क्या करे? उसे चुप रहना चाहिए या फिर संबंधित विभाग या उच्च अधिकारी को इस भ्रष्टाचार की सूचना देना चाहिए अथवा आम जनता के समक्ष इस बात का खुलासा करना चाहिए।
  2. जब वह यह नहीं समझ पाता कि वह समूह के प्रति सहानुभूति रखते हुए समूह से जुड़ी गतिविधियों में संलग्न रहे या फिर प्रशासनिक बाध्यता के कारण स्वयं को अलग रखकर उदासीन व्यवहार करे?
  3. जब वह यह निर्णय नहीं ले पाता कि वह राजनीति में रुचि लेकर राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले या फिर लोक कल्याण के कार्य के प्रति समर्पित रहकर अपने पद से जुड़ी गरिमा व प्रतिष्ठा को बनाए रखे अर्थात् सार्वजनिक पद के उच्च मानकों को बनाए रखे।

नैतिक दुविधाओं का समाधान

(Resolving Ethical Dilemma)

नैतिक दुविधा वाली परिस्थिति में सिविल सेवकों को स्वयं से निम्नलिखित प्रश्न पूछने चाहिए:

  • किया गया कार्य अथवा लिया गया निर्णय सरकार की नीतियों के अनुकूल और वैध है या नहीं? 
  • किया गया कार्य अथवा लिया गया निर्णय संस्था/एजेंसी के द्वारा तय किया गया आचरण संहिता के अनुरूप है या नहीं?
  • सार्वजनिक पद पर होने के नाते अपने पद से जडे प्राधिकार और कार्य निष्पादन के क्रम में जो मैं कर रहा हूं वह उचित है या अनुचित?
  • सार्वजनिक पद से जुड़े किसी कार्य के निष्पादन से एजेंसी/संगठन/संस्था तथा सहकर्मियों एवं अन्य लोगों के साथ-साथ स्वयं मुझ पर इस निर्णय से क्या प्रभाव पड़ेगा?
  • सार्वजनिक पद पर रहकर जिस प्रकार से मैं अपना कार्य निष्पादन कर रहा हूं क्या मैं उसका औचित्य सिद्ध कर सकता हूं?
  • क्या होगा अगर सार्वजनिक रूप से मेरे कार्यों की समीक्षा की जाए?

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