विधि आयोग की 268वीं रिपोर्ट : रिपोर्ट में प्रस्तुत विचाराधीन कैदियों से संबंधित अनुशंसाओं का उल्लेख

प्रश्न: चर्चा कीजिए कि क्या अपनी 268वें रिपोर्ट में विधि आयोग द्वारा अनुशंसित परिवर्तन, भारत में कारागारों में सजा काट रहे विचाराधीन कैदियों की समस्याओं को दूर करने में सहायता कर सकते हैं। इस सन्दर्भ में अपनाए जा सकने वाले अन्य उपाय कौन-से हैं? (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • भारत में विचाराधीन कैदियों की समस्याओं पर संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  • विधि आयोग की 268वीं रिपोर्ट में प्रस्तुत विचाराधीन कैदियों से संबंधित अनुशंसाओं का उल्लेख कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि ये अनुशंसाएं विचाराधीन कैदियों की समस्याओं का समाधान करने के लिए पर्याप्त हैं या नहीं। 
  • उपरोक्त समस्याओं के समाधान हेतु अन्य उपाय सुझाइए।

उत्तर

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी ‘प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया रिपोर्ट 2015’ ने जेलों में कैदियों की अत्यधिक संख्या को ‘कैदियों के समक्ष आने वाली सबसे बड़ी समस्याओं में से एक’ बताया है। 2015 में आक्यूपेन्सी दर 114.4% था, जिसमें से 67% कैदी विचाराधीन थे। इस मुद्दे के समाधान हेतु विधि आयोग ने 268वीं रिपोर्ट में निम्नलिखित अनुशंसाएं प्रस्तुत की हैं:

  • कारावास की अवधि को कम करके अधिकतम सजा का एक तिहाई कर देना चाहिए।
  • जमानती और गैर-जमानती अपराधों को जमानत की और अधिक स्पष्ट परिभाषा से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए।
  • अग्रिम जमानत के संबंध में सावधानी बरतनी चाहिए और इसे सीमित अवधि के लिए ही प्रदान किया जाना चाहिए।
  • कर चोरी, सीमा शुल्क अपराध या बैंक धोखाधड़ी आदि सभी प्रकार के आर्थिक अपराधों से सख्ती से निपटना चाहिए और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में प्रतिबंधित जमानत(restricted bail) के प्रावधान को शामिल किया जाना चाहिए।
  • विशेष कानूनों जैसे आतंकवाद कानून, NDPS कानून आदि के मामलों में जमानत देते समय सख्त जाँच की जानी चाहिए।
  • इलेक्ट्रानिक टैगिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग सिस्टम का उपयोग केवल संगीन और जघन्य अपराधों में ही किया जाना चाहिए।
  • वित्तीय बाध्यता (व्यक्तिगत मौद्रिक बांड या जमानती राशि के माध्यम से) की आवश्यकता अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग होनी चाहिए।
  • पीड़ित-उन्मुख दृष्टिकोण में पीड़ित से परामर्श और ‘पीड़ित प्रभाव आकलन’ रिपोर्ट प्रस्तुत करने के पश्चात् जमानत देनी चाहिए।
  • उच्च न्यायालयों को नियम बनाकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियुक्त द्वारा जमानत याचिका दाखिल करने के पश्चात ट्रायल कोर्ट अनिवार्य रूप से एक सप्ताह की अवधि के अन्दर उसकी जमानत याचिका पर सुनवाई करेगा।

यह एक धारणा बन गयी है कि शक्तिशाली, समृद्ध और प्रभावशाली लोगों को शीघ्रता और आसानी से जमानत मिल जाती है, जबकि सामान्यतः साधारण व्यक्ति कारागार में सजा काटते रहते हैं। इस प्रकार, यद्यपि उपरोक्त सुधार विचाराधीन कैदियों को राहत प्रदान कर सकते हैं, फिर भी ये पर्याप्त नहीं हैं। संरचनात्मक समस्याओं का समाधान करने हेतु अतिरिक्त प्रयासों की आवश्यकता है। अतः विचाराधीन कैदियों की समस्या से निपटने के लिए अतिरिक्त प्रयास आवश्यक हैं, जैसे:

  • भ्रष्टाचार में कमी: ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने पाया है कि 62 प्रतिशत लोग पुलिस द्वारा की जाने वाली पूछ-ताछ के दौरान रिश्वत देते हैं।
  • ट्रायल की प्रक्रिया में शीघ्रता: अधिक फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना, लोक अभियोजकों की संख्या में वृद्धि, न्यायाधीश जनसंख्या अनुपात में सुधार आदि।
  • विचाराधीन और आवधिक समीक्षा समितियों के कामकाज को नियमित करना।
  • कार्य के दोहराव से बचने हेतु डेटा संग्रहण में सुधार और डिजिटलीकरण पर ध्यान केंद्रित करना। विचारधीन कैदियों की समस्या से निपटारण हेतु आपराधिक न्याय प्रणाली में सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ एक बहुपक्षीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

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