वैश्वीकरण की प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण : उपभोक्तावादी संस्कृति ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया में, विशेषकर भारतीय शहरों के विकास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्रश्न: चर्चा कीजिए कि कैसे उपभोक्तावादी संस्कृति ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया में, विशेषकर भारत में शहरों के विकास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। (150 शब्द)
दृष्टिकोण
- वैश्वीकरण की प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- वर्णन कीजिए कि कैसे उपभोक्तावादी संस्कृति ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया में, विशेषकर भारतीय शहरों के विकास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उत्तर
वैश्वीकरण, प्रक्रियाओं का एक जटिल जाल है जो विश्वव्यापी आर्थिक,सांस्कृतिक,राजनीतिक एवं तकनीकी आदान-प्रदान तथा संपर्कों को तीव्र एवं विस्तारित करता है। भारत में 1991 में आर्थिक सुधारों के अंगीकरण के पश्चात वैश्वीकरण में वृद्धि हुई। भारत सहित समस्त विश्व में वैश्वीकरण ने उपभोक्तावाद की शर्ते निर्धारित की हैं और बदले में संसाधनों, बाजारों और ऋणों तक वैश्विक पहुंच जैसे कारकों के माध्यम से प्रभावित हुआ है। भारत भी इस उपभोक्तावादी संस्कृति के लिए कोई अपवाद नहीं है।
उपभोग की इस संस्कृति में सामाजिक स्तर, मूल्य और गतिविधियाँ वस्तु और सेवाओं की खपत पर केंद्रित हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति सामाजिक परिवर्तन का एक प्रमुख कारक बन गयी है और इसने भारतीय शहरों के विकास को काफी हद तक आकार प्रदान किया है। यह शॉपिंग मॉल, मल्टीप्लेक्स सिनेमा हॉल, मनोरंजन पार्क इत्यादि के विस्तार से स्पष्ट होता है। उपभोग में वृद्धि उत्पादों और सेवाओं की मांग उत्पन्न करती है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में जो वैश्वीकरण के चक्र को पोषण प्रदान करते हैं।
विज्ञापन तथा डिजिटल और सोशल मीडिया उपभोक्ता व्यवहार को परिवर्तित कर व्यय एवं विशिष्ट उपभोग को आगे बढ़ाते हैं। शहरी जनता की प्रयोज्य आय बढ़ने से भी इसमें वृद्धि होती है। शहरों में एकल परिवारों में वृद्धि से संपत्ति निर्माण की अपेक्षा तत्कालिक संतुष्टि को बढ़ावा मिला है, जो वैश्विक वस्तुओं और सेवाओं की मांग सृजित करता है।
उदाहरण के तौर पर, शहरी भारत में फास्ट फूड कल्चर तीव्रता से बढ़ रहा है, जिसमें शीतल पेय, पिज्जा, बर्गर इत्यादि का खाद्य विकल्पों पर प्रभुत्व है। मैकडॉनल्ड्स, पिज्जा हट जैसी वैश्विक कंपनियों द्वारा वैश्विक और स्थानीय रुचियों के संकर मिश्रण का निर्माण कर, संस्कृति के ग्लोकलाइजेशन को अपना कर इसके प्रभाव को और भी गहन बना दिया गया है। उदाहरण के लिए मैकडॉनल्ड्स ने मैकस्पाइसी पनीर बर्गर की शुरुआत की ताकि भारतीय उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जा सके। इसके अतिरिक्त, प्रसंस्कृत और रेडी टू खाद्य सामग्रियों का उपभोग भी बढ़ा है।
वैश्वीकरण प्रक्रिया को बढ़ावा देने वाली उपभोक्तावादी संस्कृति को फैशन, सौंदर्य प्रसाधन आदि उद्योगों के विकास में भी देखा जा सकता है। लॉरियल, ज़ारा इत्यादि वैश्विक ब्रांडों ने शहरी क्षेत्रों में अपने स्टोर खोले हैं और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में भी अपना विस्तार कर रहे हैं। इंटरनेट पहुंच बढ़ने से उत्पादों और सेवाओं के बारे में अधिक जागरुकता उत्पन्न हुई है और ई-कॉमर्स एवं ईशॉपिंग के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ है।
इसी प्रकार, पूँजीवादी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विशेष रूप से IT कंपनियों ने, बंगलुरु और हैदराबाद जैसे भारतीय शहरों में गतिशील पेशेवरों के एक उच्च वर्ग का निर्माण किया है। इन पेशेवरों को उच्च वेतन मिलता है और वे क्रेडिट कार्ड प्रदाता एजेंसियों जैसे कई उद्योगों के लक्षित ग्राहक हैं। उनकी स्थान सम्बन्धी गतिशीलता और समय के अभाव के कारण FMCG (Fast Moving Consumer goods) और पुरानी (सेकेंड हैंड) वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है।
यद्यपि उपभोग में वृद्धि शहरी केंद्रों के विकास में सहायता करती है, किन्तु अत्यधिक उपभोग का समाज पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। उदाहरण के लिए, यह असमानता और असतत उपभोग पैटर्न को बढ़ावा देता है इसलिए मोटापे जैसी जीवनशैली संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देने के साथ ही पर्यावरण को भी क्षति पहुंचाता है। नीतियों और शिक्षा के माध्यम से विचारहीन उपभोग को रोका जाना चाहिए जिससे इसके दुष्प्रभाव असंधारणीय शहरों के निर्माण का कारण न बनें।
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