मध्यप्रदेश में जनजाति परिदृश्य

  • जाति अथवा आदिवासी ऐसे मानव समूह हैं, जो विकास के सोपान में सबसे निचले पायदान पर है।
  • शब्दकोश के अनुसार ‘जनजाति’ एक सामाजिक समूह है, जो प्रायः निश्चित भू-भाग पर निवास करती है, जिसकी अपनी भाषा, सभ्यता तथा सामाजिक संगठन होता है।
  • गोंड मध्यप्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति होने के साथ-साथ भारत की सबसे बड़ी जनजाति है । गोंड जनजाति लगभग संपूर्ण मध्यप्रदेश में फैली हुई है । विशेषकर पूर्व-दक्षिणी जिलों में ।
  • गोंडों की उत्पत्ति तेलगू के ‘कोंड’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ पर्वत है अर्थात् यह जनजाति पर्वतों पर निवास करती है।
  • मध्यप्रदेश की गोंड जनजाति में भाई का लड़का और बहन की लड़की अथवा भाई की लड़की और बहन का लड़का में विवाह का प्रचलन है,जिसे ये लोग दूध लौटावा कहते हैं।
  • मध्यप्रदेश की गोंड जनजाति व्यवसाय के आधार पर कई उपजातियों में विभाजित है, जैसे- लोहे का काम करने वाले वर्ग अगरिया, मंदिरों में पूजा-पाठ करने वाले प्रधान तथा पंडितायी व तांत्रिक क्रिया करने वाले ओझा कहे जाते हैं।
  • गोंड जनजाति में वर द्वारा वधू मूल्य नहीं चुकाने की स्थिति में वह भावी ससुर के यहाँ सेवा करता है, जिससे खुश होकर उसे कन्या दे दी जाती है। इसे सेवा विवाह कहा जाता है तथा वह व्यक्ति लामानाई कहलाता है।
  • मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति भील है, जिसका मुख्य सकेन्द्रकरण प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र धार, झाबुआ और पश्चिमी निमाड़ में है। यह मध्यप्रदेश के अतिरिक्त राजस्थान, महाराष्ट्र तथा गुजरात में भी पाई जाती है ।
  • ‘भील’ शब्द संस्कृत भाषा तथा ‘भिल्ल’ शब्द से बना है । यह भी माना जाता है कि भील शब्द द्रविड भाषा के बील या बिल से आया है, जिसका अर्थ तीर होता है।
  • भील जनजाति के लोग अपने घरों को बड़े आकार में तथा खुले-खुले बनाते हैं । भील अपने निवास स्थान को ‘फाल्या’ कहते हैं।
  • जनजातियों में विवाह की अनेक प्रथाएँ पायी जाता हैं। इनमें अपहरण विवाह अर्थात् कन्या का हरण करके विवाह करना बहुत प्रचलित है ।
  • गाल गाघेड़ो’ मध्यप्रदेश की भील जनजाति द्वारा होली के अवसर पर आयोजित किया जाता है, उसे तोडकर लडका पेड पर चढ़ने का प्रयास करता है, जबकि लड़कियाँ रोकती हैं। इसे गोल गाघेड़ो कहा जाता है।
  • मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में आयोजित भगोरिया हाट भीलों का प्रसिद्ध प्रणय पर्व है, जो होली के अवसर पर आयोजित होता है । इसमें भील युवक-युवतियाँ अपने पसंद के लड़का-लड़की से विवाह करते हैं।
  • बैगा मध्यप्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में निवास करने वाली विशेष पिछड़ी जनजाति है। यह मण्डला, बालाघाट, शहडोल तथा सीधी में पायी जाती है, जबकि भील पश्चिमी देशो दक्षणी  क्षेत्र मे निवास करती है
  • मध्यप्रदेश की बैगा जनजाति कृषि स्थलों को बदलती रही है, जिस ‘बेवार या पोंडू’ कहा जाता है, जबकि बारी नायक खेती पद्धति गोंड जनजाति द्वारा अपनाई जाती है।
  • धर्म और जादू में विश्वास करने वाली मध्यप्रदेश की बैगा जनजाति ‘साज वृक्ष’को पवित्र वृक्ष मानती है, क्योंकि इसमें इनके प्रमुख देव ‘बूढ़ादेव’ निवास करते हैं।
  • भारिया जनजाति का प्रमुख निवास स्थान मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा जिले के पाताल’ कोट नामक स्थान है । यह क्षेत्र बाहरी दुनिया से कटा हुआ है। जहाँ समय रुका हुआ-सा प्रतीत होता है।
  • सन् 1981 की जनगणना से पाताल कोट के भारिया को जंगलियों के भी जंगली के नाम से संबोधित किया गया था । ‘भारिया’ शब्द का वास्तविक अर्थ ज्ञात नहीं है।
  • मध्यप्रदेश की भील जनजाति प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है  यह जनजाति मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में निवास करती है। जावरा, अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह की जनजाति है, जबकि ‘हो’ तथा ‘संथाल’ बिहार की जनजातियाँ हैं ।
  • जनजातियों को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है।
  • मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति भील है । दूसरी बड़ी जनजाति गोंड है। इनके अतिरिक्त बैगाचक क्षेत्र बैगा तथा उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र की सहरिया जनजाति भी मध्यप्रदेश की जनजातियों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
  • बैगा मध्यप्रदेश की एक पिछड़ी जनजाति है, जो ‘साज वृक्ष’ को पवित्र मानती है तथा इस पर रहने वाले बुढ़ादेव इनका प्रमुख देव है। इन्हें मुर्गे, नारियल तथा मदिरा चढ़ाई जाती है।
  • भगोरिया हाट होली के समय भील जनजाति द्वारा मनाया जाता है। इस अवसर पर भील युवक एवं युवतियाँ अपने जीवन साथी का चुनाव करते हैं । यह सात दिन तक चलने वाला हाट है । इसे प्रणय पर्व भी कहते हैं।
  • मध्यप्रदेश की कोरकू जनजाति एक आदिम जनजाति है, जो मध्यप्रदेश के दक्षिणी जिलों में निवास करती है । अधिकांश कोरकू होशंगाबाद पश्चिमी सतपड़ा, पूर्वी निमाड़, बैतूल, छिंदवाड़ा तथा दक्षिण बार के मैदान तक बसे हैं।
  • मध्यप्रदेश की विशेष पिछड़ी जनजातियों में एक सहरिया मध्यप्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग गुना, शिवपुरी, भिण्ड, मुरैना में पायी जाती है। दर जनजाति का मूल निवास शाहबाद जंगल (कोटा राजस्थान) है।
  • मुण्डा समह में संबंधित मध्यप्रदेश की कोल जनजाति मुख्यतः पटेपा रीवा, सीधी,शहडोल, सतना व जबलपुर में निवास करती है।
  • मध्यप्रदेश की अगरिया जनजाति का मुख्य देवता लोहासर मानाचा अगरिया लोग अपने देवता को काली मुर्गी की भेंट चढ़ाते हैं । इन भोजन सूअर का माँस है।
  • मध्यप्रदेश की पारधी जनजाति बहेलिया श्रेणी की जनजाति के उपशाखाएँ हैं । जिनका मध्यप्रदेश में मुख्य निवास भोपाल सिहोर सिहोर् जिलों में है 
  • मध्यप्रदेश के बालाघाट जिला हल्वा जनजाति का मुख्य निवास जिला है, – जबकि निमाड़ बंजारों का, जबलपुर माड़िया का तथा विंध्य प्रदेश खैरवार , जनजाति का निवास क्षेत्र है।
  • पनिका मुख्यतः छत्तीसगढ़ के विंध्य प्रदेश की जनजाति है । यह मध्यप्रदेश के सीधी व शहडोल में पायी जाती है । इस जनजाति के लोग  कबीर पंथी हैं, ये ‘कबीरहा’ भी कहलाते हैं, जबकि बंजारा सिक्ख धर्म से – प्रभावित जनजाति हैं।
  • मध्यप्रदेश में 1964 में आदिम जाति कल्याण विभाग को 1964 में स्थापित किया गया, जिसका नाम 1965 में बदल कर आदिवासी एवं हरिजन , कल्याण विभाग कर दिया गया।
  • मध्यप्रदेश की अत्यधिक पिछड़ी जनजाति ‘बैगा’ के रचयिता ‘बैरियर एल्विन’ हैं।
  • कोल जनजातियों की पंचायत को ‘गोहिया’ कहा जाता है।
  • मध्यप्रदेश की अन्य अनुसूचित जातियों में सबसे अधिक जनसंख्या चर्मकार अनुसूचित जाति की है।
  • कोरवा जनजाति की पंचायत को मैयारी’ कहते हैं।
  • मध्यप्रदेश में लगभग 47 जनजातियाँ निवास करती हैं।
  • मध्यप्रदेश में सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या झाबुआ जिले में निवास करती है । जहाँ की कुल जनसंख्या का लगभग 86 प्रतिशत भाग जनजातियों का है।
  • मध्यप्रदेश का जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान भोपाल में स्थित है।
  • देश का पहला आदिवासी संचार केन्द्र झाबुआ में स्थित है।
  • मध्यप्रदेश के अमरकंटक में केन्द्र द्वारा आदिवासियों पर शोध हेत इंदिरा गाँधी आदिवासी विश्वविद्यालय खोला गया है।
  • मध्यप्रदेश की मुड़िया जनजाति में घोटुल प्रथा युवाग्रह प्रथा पायी जाती है।
  • भीलों के मकानों को ‘कू’ नाम से जाना जाता है तथा इस स्थान को फालिया कहा जाता है।
  • मध्यप्रदेश की जनजातियाँ प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड परिवार का प्रतिनिधित्व करती है।
  • जनसंख्या की दृष्टि से मध्यप्रदेश देश का सर्वाधिक जनजातीय संख्या वाला राज्य है।
  • सहरिया, बैगा व भारिया मध्यप्रदेश की विशेष पिछड़ी जनजातियाँ हैं ।

विभिन्न विद्वानों द्वारा दिये गए नाम

  • आदिवासी (Aborinals) – काका कालेलकर, ए.बी. ठक्कर (ठक्कर बापा), सर हरबर्ट रिजले. श्री लेसी .
  • पहाड़ी जनजाति (Hill Tribes) – ग्रियर्सन
  • पिछड़े हिन्दू (Backward Hindus) – डॉ. जी.एस. (गोविंद सदाशिव) घुरिए)
  • विलीन मानवता (Submerged Humanity)– डॉ. दास एण्ड दास
  • दलित वर्ग – अंग्रेजों ने
  • गिरिजन – महात्मा गाँधी
  • अनुसूचित जनजाति– भारतीय संविधान

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