टॉरफिकेशन टेक्नोलॉजी (Torrefaction technology)

  • दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट में सर्दियों में जलने वाली पराली से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण का महत्वपूर्ण योगदान है।
  • यह प्रक्रिया अनवरत जारी है। इस समस्या का हल खोजने के लिए, भारत द्वारा स्वीडिश टॉरफिकेशन तकनीक का परीक्षण कर रहा जो चावल के ठूंठ को ‘जैव-कोयला’ में बदल सकती है।

टॉरफिकेशन टेक्नोलॉजी क्या है?

  • टॉरफिकेशन टेक्नोलॉजी, 200-300°C एवं कम ऑक्सीजन की उपस्थिति में थर्मोकैमिकल प्री-ट्रीटमेंट प्रक्रिया है, जो बायोमास को ठोस बायो-ईंधन (कोयला जैसी छर्रों) में बदल देता है।
  • टॉरफिकेशन टेक्नोलॉजी विभिन्न प्रकार के बायोमास को संसाधित करने में सक्षम बनाती है:
    • वुडी बायोमास
    • फॉरेस्ट अवशिष्ट
    • सॉ मिल अवशिष्ट (जैसे सॉ, धूल, चिप्स, छाल)
    • पुआल, घास

प्रक्रिया

  • जैव-कोयला उत्पन्न करने के लिए टॉरफिकेशनमें लिग्नोसेल्युलोज घटकों का अवमूल्यन, अपचयन और अपघटन किया जाता है।
  • इस प्रक्रिया के दौरान, द्रव्यमान का 70% एक ठोस उत्पाद के रूप में बनाए रखा जाता है, और 90% प्रारंभिक ऊर्जा सामग्री को बरकरार रखता है।

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