1. भारत में उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन किस तिथि में हुआ था?
(a) 27 जनवरी, 1950
(b) 28 जनवरी, 1950
(c) 29 जनवरी, 1950
(d) 30 जनवरी, 1950
[M.P.P.C.S. (Pre) 2013]
उत्तर-(b) 28 जनवरी, 1950
- भारत में उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी, 1950 को हुआ था, जबकि इसकी स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत 26 जनवरी, 1950 को हुई थी।
|
2. भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई थी-
(a) 1950 में संसद के एक अधिनियम द्वारा
(b) भारतीय स्वाधीनता अधिनियम, 1947 के अधीन
(c) भारत सरकार के अधिनियम, 1953 के अधीन
(d) भारतीय संविधान के द्वारा
[42nd B.P.S.C. (Pre) 1997]
उत्तर-(d) भारतीय संविधान के द्वारा
- उच्चतम न्यायालय की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत 26 जनवरी, 1950 को हुई थी।
|
3. भारत के उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि करने की शक्ति किसमें निहित है?
(a) भारत का राष्ट्रपति
(b) संसद
(c) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति
(d) विधि आयोग
[I.A.S. (Pre) 2014, 44th B.P.S.C. (Pre) 2000]
उत्तर-(b) संसद
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में उच्चतम न्यायालय के गठन के संबंध में प्रावधान किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 7 अन्य न्यायाधीश होंगे तथा संसद समय-समय पर विधि द्वारा न्यायाधीशों की संख्या का निर्धारण कर सकती है।
- संसद ने न्यायाधीशों की संख्या को निर्धारित करने के लिए वर्ष 1956 में उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) अधिनियम, 1956 पारित किया और न्यायाधीशों की संख्या 10 (मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त) कर दी।
- इस अधिनियम में संशोधन करके न्यायाधीशों की संख्या समय-समय पर बढ़ाई गई है।
- वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की अधिकतम संख्या मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त 33 है।
|
4. भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की वर्तमान स्वीकृत संख्या है-
(a) 20
(b) 25
(c) 30
(d) 33
[38th B.P.S.C. (Pre) 1992, U.P.P.C.S. (Mains) 2015]
उत्तर- (d) 33
- भारत में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना भारतीय संविधान के अनु. 124 के तहत की गई है। अनुच्छेद 124 में न्यायाधीशों की संख्या का भी उल्लेख है।
- जब संविधान प्रारंभ हुआ तब उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या मुख्य न्यायमूर्ति सहित कुल आठ थी।
- अनुच्छेद 124(1) के प्रावधान के तहत संसद ने उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) अधिनियम, 1956 के द्वारा इस संख्या को ग्यारह कर दिया तथा फिर इसे 1960 में बढ़ाकर चौदह, 1978 में अठारह और 1986 में 26 (मुख्य न्यायाधीश सहित) कर दिया गया।
- 2008 के अधिनियम के तहत मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या 30 रखने का प्रावधान किया गया।
- ध्यातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) संशोधन अधिनियम, 2019 के तहत मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त न्यायाधीशों की संख्या को 30 से बढ़ाकर 33 कर दिया गया है।
- इस प्रकार वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश सहित सर्वोच्च न्यायालय में कुल न्यायाधीशों की संख्या 34 (33 + 1) है।
|
5. सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए व्यक्ति को कम-से-कम कितने वर्ष उच्च न्यायालय का एडवोकेट होना चाहिए?
(a) 20
(b) 10
(c) 8
(d) 25
[M.P.P.C.S. (Pre) 2002]
उत्तर-(b) 10
- संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है।
- उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों में किसी भी न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश की राय के अनुरूप करेगा।
- अनुच्छेद 124 (3) के अनुसार, उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए-
- 1. वह भारत का नागरिक हो।
- 2. एक या अधिक उच्च न्यायालय का कम-से-कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश रहा हो, या
- 3. एक या अधिक उच्च न्यायालय में कम-से-कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो, या
- 4. वह राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता हो।
|
6. भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति कौन करता है?
(a) प्रधानमंत्री
(b) राष्ट्रपति
(c) भारत का मुख्य न्यायाधीश
(d) लोकपाल
(e) उपर्युक्त में से कोई नहीं/ उपर्युक्त में से एक से अधिक
[63rd B.P.S.C. (Pre) 2017]
उत्तर-(b) राष्ट्रपति
- उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
|
7. सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपना पद त्याग सकता है, पत्र लिखकर-
(a) मुख्य न्यायाधीश को
(b) राष्ट्रपति को
(c) प्रधानमंत्री को
(d) विधि मंत्री को
[U.P.P.C.S. (Pre) 2014]
उत्तर-(b) राष्ट्रपति को
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) (क) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकता है।
- राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र (Warrant) द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति करता है।
|
8. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश किस प्रकार हटाए जा सकते हैं?
(a) मुख्य न्यायाधीश के इच्छानुसार
(b) राष्ट्रपति द्वारा
(c) राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश पर
(d) राष्ट्रपति के द्वारा संसद की सिफारिश पर
[M.P.P.C.S. (Pre) 1993]
उत्तर-(d) राष्ट्रपति के द्वारा संसद की सिफारिश पर
- उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद की सिफारिश पर हटाया जा सकता है।
- उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर हटाए जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन (Address) को राष्ट्रपति के समक्ष भेजना होता है तथा ऐसे समावेदन के राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति के आदेश से उस न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है (अनुच्छेद 124(4)]। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने (Remove) तथा तत्संबंधी जांच की प्रक्रिया का संसदीय विधि द्वारा विनियमन अनुच्छेद 124 (5) में प्रावधानित है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया भी यही है।
- नोट : महाभियोग (Impeachment) शब्द का प्रयोग संविधान में केवल राष्ट्रपति को हटाने के लिए किया गया है।
- उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए महाभियोग शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।
- इनके लिए संविधान के अनुसार हटाना (Remove) शब्द है।
|
9. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
1. न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, भारत के उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने के प्रस्ताव को लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
2. भारत का संविधान यह परिभाषित करता है और ब्यौरे देता है कि क्या-क्या भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की ‘अक्षमता और सिद्ध कदाचार’ को गठित करते हैं।
3. भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के महाभियोग की प्रक्रिया के ब्यौरे न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में दिए गए हैं।
4. यदि किसी न्यायाधीश के महाभियोग के प्रस्ताव को मतदान हेतु लिया जाता है, तो विधि द्वारा अपेक्षित है कि यह प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन द्वारा समर्थित हो और उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा संसद के उस सदन के कुल उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई द्वारा समर्थित हो।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 3 और 4
(d) 1, 3 और 4
[I.A.S. (Pre) 2019]
उत्तर-(c) केवल 3 और 4
- न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 की धारा 3 के खंड 1(b) के अनुसार, उच्चतम या उच्च न्यायालयों के किसी न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने के प्रस्ताव को लोक सभा अध्यक्ष अथवा राज्य सभा का सभापति स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।
- अतः कथन असत्य है।
- संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को पदमुक्त करने का आधार (अक्षमता और सिद्ध कदाचार) और प्रक्रिया विहित है, किंतु अक्षमता और कदाचार को परिभाषित नहीं किया गया है।
- अतः कथन 2 भी गलत है।
- न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में कुल 7 धाराएं हैं, जिसमें उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के महाभियोग (संसद में ऐसे समावेदन के रखे जाने तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता की जांच और उसे सिद्ध करने) की प्रक्रिया और ब्यौरों का वर्णन है।
- अतः कथन 3 सत्य है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में विहित प्रक्रिया के अनुसार, किसी न्यायाधीश के महाभियोग का प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित होना चाहिए तथा इस प्रकार पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होने के पश्चात वह न्यायाधीश पदमुक्त हो जाएगा।
- अतः कथन 4 सत्य है।
|
10. सर्वोच्च न्यायालय में सेवानिवृत्ति की आयु है –
(a) 62 वर्ष
(b) 63 वर्ष
(c) 64 वर्ष
(d) 65 वर्ष
[U.P.P.C.S. (Pre) 1990]
उत्तर-(d) 65 वर्ष
- सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है, जबकि उच्च न्यायालयों में यह 62 वर्ष है।
|
11. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन निर्धारण किया जाता है?
(a) राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त वेतन आयोग द्वारा
(b) विधि आयोग द्वारा
(c) संसद द्वारा
(d) मंत्रिपरिषद द्वारा
[U.P. P.C.S. (Mains) 2008]
उत्तर-(c) संसद द्वारा
- संविधान के अनु. 125 (1) के तहत उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन का निर्धारण संसद द्वारा बनाई गई विधि के तहत किया जाता है।
|
12. भारत के उच्चतम न्यायालय की स्वायत्तता की रक्षा हेतु क्या प्रावधान हैं?
1. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय भारत के राष्ट्रपति को भारत के मुख्य न्यायाधीश से विचार- विमर्श करना पड़ता है।
2. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को केवल भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा हटाया जा सकता है।
3. न्यायाधीशों का वेतन मारत की संचित निधि पर आरोपित होता है, जिस पर विधानमंडल को अपना मत नहीं देना होता है।
4. भारत के उच्चतम न्यायालय के अफसरों और कर्मचारियों की सभी नियुक्तियां सरकार द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश से विचार-विमर्श के पश्चात ही की जाती हैं।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही हैं?
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 4
(d) 1, 2, 3 और 4
[I.A.S. (Pre) 2012]
उत्तर- (a) केवल 1 और 3
- उच्चतम न्यायालय को देश के संविधान का प्रहरी माना जाता है, अतः उसकी स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए संविधान में कई उपबंध मौजूद हैं।
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना आवश्यक होगा।
- न्यायाधीशों को राजनीति के प्रभाव से दूर रखने के लिए उनका वेतन भारत की संचित निधि पर भारित होता है, जिसके लिए संसद में मतदान नहीं होता है।
- इस प्रकार कथन और 3 सही हैं, जबकि कथन 2 और 4 सही नहीं हैं।
|
13. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
1. संसद भारत के उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता को विस्तारित नहीं कर सकती, क्योंकि उसकी अधिकारिता वही है, जो संविधान ने प्रदान की है।
2. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक संबद्ध मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और न्यायालयों का प्रशासनिक व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) दोनों 1 और 2
(d) न ही । और न ही 2
[I.A.S. (Pre) 2005]
उत्तर-(d) न ही । और न ही 2
- संविधान के अनु. 138 के तहत संसद विधि बनाकर उच्चतम न्यायालय की संघ सूची के संबंध में अतिरिक्त अधिकारिता को विस्तारित कर सकती है।
- अतः कथन 1 गलत है। उच्चतम न्यायालय के अधिकारी और सेवक अनुच्छेद 146 (1) के तहत तथा उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक अनुच्छेद 229 (1) के तहत संबद्ध मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा या उसके द्वारा निर्दिष्ट न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, तथापि अनुच्छेद 146(5) के तहत जहां उच्चतम न्यायालय का प्रशासनिक व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होता है, वहीं अनुच्छेद 229(3) के तहत उच्च न्यायालय का प्रशासनिक व्यय राज्य की संचित निधि पर भारित होता है।
- इस प्रकार कथन 2 भी गलत है।
|
14. सेवानिवृत्त होने के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वकालत कर सकते हैं-
(a) केवल सर्वोच्च न्यायालय में
(b) केवल उच्च न्यायालय में
(c) सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में
(d) किसी भी न्यायालय में नहीं
[U.P.P.C.S. (Pre) 1997]
उत्तर-(d) किसी भी न्यायालय में नहीं
- संविधान के अनुच्छेद 124 (7) के अनुसार, सेवानिवृत्त होने के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश किसी भी न्यायालय में वकालत नहीं कर सकते, जबकि अनु. 220 के अनुसार, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सेवानिवृत्त होने के बाद उच्चतम न्यायालय में एवं अन्य उच्च न्यायालयों (जिस उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश रहे हों, उसमें नहीं) में वकालत कर सकते हैं।
|
15. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करता है-
(a) सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
(b) प्रधानमंत्री
(c) राष्ट्रपति
(d) विधि मंत्री
[U.P.U.D.A./L.D.A. (Pre) 2001]
उत्तर-(c) राष्ट्रपति
- अनुच्छेद 126 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- ऐसा तब किया जाता है, जब मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो अथवा वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो।
|
16. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है, राष्ट्रपति के द्वारा-
(a) राज्य सभा द्वारा अनुमोदित किए जाने पर
(b) लोक सभा की सलाह पर
(c) प्रधानमंत्री की सलाह पर
(d) सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के साथ
[Uttarakhand U.D.A./L.D.A. (Mains) 2006, 2007]
उत्तर-(d) सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के साथ
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारतीय संविधान के अनु. 124(2) के तहत राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श के पश्चात, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे, की जाती है, परंतु मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की स्थिति में मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श आवश्यक है। वर्ष 1993 में दिए गए एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश की सलाह (सर्वोच्च न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ संरचित कॉलेजियम की सलाह) को राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी बना दिया।
- 1998 में मुख्य न्यायाधीश की सलाह को व्याख्यायित करते हुए मुख्य न्यायाधीश के साथ सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम (मंडल) का परामर्श (लिखित) आवश्यक होने का निर्णय दिया गया।
- साथ ही राष्ट्रपति को इस अनुशंसा को पुनर्विचार हेतु सर्वोच्च न्यायालय को वापस भेजने की छूट दी गई, परंतु पुनर्विचार के बाद भी पुनः वही नाम प्रस्तावित किए जाने पर राष्ट्रपति उसे स्वीकृत करने के लिए बाध्य हैं।
|
17. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने किस वर्ष में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम व्यवस्था को अपनाया था?
(a) 1993
(b) 1996
(c) 2000
(d) 2004
[Uttarakhand P.C.S. (Pre) 2016]
उत्तर- (a) 1993
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उच्चतर न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण के लिए वर्ष 1993 में कॉलेजियम व्यवस्था को अपनाया।
- वर्ष 1993 में सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सर्वप्रथम उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की स्थापना का निर्णय दिया गया।
- इस निर्णय के तहत मुख्य न्यायाधीश के साथ सर्वोच्च न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों का कॉलेजियम (मंडल) निर्धारित किया गया था, जिसे 1998 में विस्तारित कर मुख्य न्यायाधीश के साथ सर्वोच्च न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों से संरचित कर दिया गया।
|
18. सर्वोच्च न्यायालय के उस मंडल में जो सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति की अनुशंसा से संबंधित है, में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त कुछ अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश होते हैं। ऐसे अन्य न्यायाधीश, जो इस मंडल के सदस्य होते हैं, की संख्या
(a) 3
(b) 4
(c) 5
(d) 6
[U.P.P.S.C. (GIC) 2010]
उत्तर-(b) 4
- 1998 में विस्तारित कर मुख्य न्यायाधीश के साथ सर्वोच्च न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों से संरचित कर दिया गया।
|
19. निम्नलिखित में से किसमें उच्चतर न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका, विधायिका एवं मुख्य न्यायाधीश की मागीदारी की अनुशंसा की गई है?
(a) संविधान के कार्यान्वयन के पुनरीक्षण का राष्ट्रीय आयोग
(b) राष्ट्रीय न्यायिक आयोग
(c) द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग
(d) विधि आयोग का प्रतिवेदन
[U.P.P.S.C. (R.I.) 2014]
उत्तर-(c) द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के द्वारा उच्चतर (उच्चतम न्यायालय + उच्च न्यायालय) न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका, विधायिका एवं मुख्य न्यायाधीश की भागीदारी की अनुशंसा की गई थी।
- इस आयोग का गठन 31 अगस्त, 2005 को वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में किया गया था।
|
20. भारत के सर्वोच्च न्यायालय में निम्नलिखित में से किस प्रकार के न्यायाधीश न्यायाधीशों की नियुक्ति की जा सकती है?
(i) तदर्थ न्यायाधीश
(ii) अतिरिक्त न्यायाधीश
कूट :
(a) (i) सही है और (ii) गलत है।
(b) (i) गलत है और (ii) सही है।
(c) (i) और (ii) दोनों सही हैं।
(d) (i) और (ii) दोनों गलत हैं।
[M.P.P.C.S. (Pre) 2020]
उत्तर-(a) (i) सही है और (ii) गलत है।
- संविधान के अनुच्छेद 127(1) के तहत यदि किसी समय भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति (कोरम) प्राप्त न हो तो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद, उस उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को (जो सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए पात्र हो) सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ (Ad hoc) न्यायाधीश के रूप में नामित किया जा सकता है।
- तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी प्रावधान केवल सर्वोच्च न्यायालय के संदर्भ में है, अन्य न्यायालयों के लिए नहीं है।
- दूसरी ओर, अपर या अतिरिक्त (additional) और कार्यकारी (acting) न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 224 के तहत उच्च न्यायालयों में की जा सकती है, सर्वोच्च न्यायालय में नहीं।
|
21. सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ (Ad hoc) न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है, जब-
(a) कतिपय न्यायाधीश दीर्घकालीन अवकाश पर जाते हैं
(b) स्थायी नियुक्ति के लिए कोई उपलब्ध नहीं होता
(c) न्यायालय के समक्ष लंबित वादों में असाधारण वृद्धि होती है
(d) न्यायालय के किसी सत्र के लिए न्यायाधीशों का कोरम नहीं होता
[I.A.S. (Pre) 2000]
उत्तर-(d) न्यायालय के किसी सत्र के लिए न्यायाधीशों का कोरम नहीं होता
- संविधान के अनुच्छेद 127(1) के तहत यदि किसी समय भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति (कोरम) प्राप्त न हो तो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद, उस उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को (जो सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए पात्र हो) सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ (Ad hoc) न्यायाधीश के रूप में नामित किया जा सकता है।
|
22. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश को उच्चतम
न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है।
2. भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही है/हैं?
(a) केवल ।
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
[I.A.S. (Pre) 2021]
उत्तर-(c) 1 और 2 दोनों
- संविधान के अनुच्छेद 128 के अनुसार, भारत का मुख्य न्यायमूर्ति, किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहे किसी व्यक्ति (या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहे किसी व्यक्ति, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक रूप से अर्हित हो) से, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने के लिए अनुरोध कर सकेगा।
- इस प्रकार कथन 1 सही है।
- संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत प्रत्येक उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होता है तथा उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति के साथ ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त होती हैं।
- पोट्टाकालाथिल रामाकृष्णन बनाम तहसीलदार, तिरूर एवं अन्य वाद में यह निर्णय दिया गया कि अभिलेख न्यायालय होने के कारण उच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने निर्णयों का पुनर्विलोकन कर सकता है।
- उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत अपने द्वारा दिए गए आदेश या सुनाए गए निर्णय का पुनिर्विलोकन करने की शक्ति प्राप्त है।
- इस प्रकार कथन 2 भी सही है।
- नोट- यूपीएससी द्वारा अपनी आधिकारिक उत्तर कुंजी में इस प्रश्न का उत्तर विकल्प (a) सही माना गया है।
|
23. उच्चतम न्यायालय में संविधान के निर्वचन से संबंधित मामले की सुनवाई करने के लिए न्यायाधीशों की संख्या कम-से-कम कितनी होनी चाहिए?
(a) दस
(b) नौ
(c) सात
(d) पांच
[U.P.P.C.S. (Pre) 2012]
उत्तर-(d) पांच
- संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत यह प्रावधानित है कि जिस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है, उसका विनिश्चय करने के लिए या संविधान के अनुच्छेद 143 (राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय से परामर्श) के अधीन निर्देश के लिए सुनवाई करने हेतु बैठने वाले न्यायाधीशों की संख्या न्यूनतम 5 होगी।
- इस प्रकार, उच्चतम न्यायालय में संविधान के निर्वचन से संबंधित मामले की सुनवाई करने के लिए न्यायाधीशों की संख्या कम-से-कम पांच होनी चाहिए।
- इसे संविधान पीठ (Constitution Bench) के रूप में अभिहित किया जाता है।
|
24. केंद्र और राज्यों के बीच होने वाले विवादों का निर्णय करने की भारत के उच्चतम न्यायालय की शक्ति किसके अंतर्गत आती है?
(a) परामर्शी अधिकारिता के अंतर्गत
(b) अपीलीय अधिकारिता के अंतर्गत
(c) मूल अधिकारिता के अंतर्गत
(d) रिट अधिकारिता के अंतर्गत
[I.A.S. (Pre) 2014, I.A.S. (Pre) 1996]
उत्तर-(c) मूल अधिकारिता के अंतर्गत
- केंद्र और राज्यों के बीच होने वाले विवादों का निर्णय करने की भारत के उच्चतम न्यायालय की शक्ति मूल या आरंभिक अधिकारिता (Original Jurisdiction) के अंतर्गत आती है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 के अंतर्गत-
- (क) भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच, या
- (ख) एक ओर भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों और दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच, या
- (ग) दो या अधिक राज्यों के बीच, किसी विवाद में, यदि उस विवाद में (विधि या तथ्य का) कोई ऐसा प्रश्न अंतर्निहित है, जिस पर किसी विधिक अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर है, तो वहां तक अन्य न्यायालयों का अपवर्जन करके उच्चतम न्यायालय को मूल अधिकारिता प्राप्त होगी।
|
25. भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों के विषय में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
(a) इसके पास जनता के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए आदेश जारी करने की अनन्य शक्ति है।
(b) वह अंतर्शासकीय विवादों में मूल एवं अनन्य क्षेत्राधिकार रखता है।
(c) यह, भारत के राष्ट्रपति द्वारा कानून के प्रश्न या किसी तथ्य को निर्दिष्ट किए जाने पर, सलाहकार अधिकारिता रखता है।
(d) इसके पास अपने ही निर्णय या आदेश पर पुनर्विचार करने की शक्ति है।
[U.P.P.C.S. (Mains) 2017]
उत्तर-(a) इसके पास जनता के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए आदेश जारी करने की अनन्य शक्ति है।
- सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के हनन पर अनुच्छेद 32 के अधीन रिट जारी कर सकता है।
- हालांकि यह सर्वोच्च न्यायालय की अनन्य शक्ति नहीं है, उच्च न्यायालयों को भी अनु. 226 के तहत मूल अधिकारों की रक्षा के लिए आदेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है।
- अन्य विकल्प सही हैं।
|
26. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही नहीं है?
(a) सर्वोच्च न्यायालय का गठन 1950 में हुआ था।
(b) सर्वोच्च न्यायालय देश की उच्चतम अदालत है, जिसमें अपील की जाती है।
(c) सर्वोच्च न्यायालय कोर्ट-मार्शल को छोड़ अन्य किसी भी उच्च न्यायालय/अदालतों की सुनवाई कर सकता है।
(d) सर्वोच्च न्यायालय कोर्ट मार्शल के साथ अन्य किसी भी उच्च न्यायालय/अदालतों की सुनवाई कर सकता है।
[53rd-55th B.P.S.C. (Pre) 2011]
उत्तर-(c) सर्वोच्च न्यायालय कोर्ट-मार्शल को छोड़ अन्य किसी भी उच्च न्यायालय/अदालतों की सुनवाई कर सकता है।
- सशस्त्र सेना न्यायाधिकरण अधिनियम, 2007 के प्रावधान के अनुसार, कोर्ट-मार्शल की अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है।
|
27. भारत का सर्वोच्च न्यायालय एक “अभिलेख न्यायालय” है। इसका आशय है कि-
(a) इसे अपने सभी निर्णयों का अभिलेख रखना होता है।
(b) इसके सभी निर्णयों का साक्ष्यात्मक मूल्य होता है और इस पर किसी भी न्यायालय में प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है।
(c) इसे अपनी अवमानना करने वालों को दंडित करने की शक्ति है।
(d) इसके निर्णयों के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती।
[U.P.P.C.S. (Pre) 2008]
c
उत्तर-(b) इसके सभी निर्णयों का साक्ष्यात्मक मूल्य होता है और इस पर किसी भी न्यायालय में प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है।
- अनु. 129 उच्चतम न्यायालय को अभिलेख न्यायालय घोषित करता है।
- अभिलेख न्यायालय का तात्पर्य- (i) ऐसे न्यायालय के निर्णय और कार्यवाही लिखित होती है, उन्हें पूर्व निर्णय के रूप में प्रस्तुत करने के लिए सुरक्षित रखा जाता है।
- (ii) ऐसे न्यायालय को अपनी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति होती है।
- अतः सर्वोच्च न्यायालय के अभिलेख न्यायालय होने का तात्पर्य है कि इसके सभी निर्णयों का साक्ष्यात्मक मूल्य होता है और इस पर किसी भी न्यायालय में प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है।
- यद्यपि कि उपर्युक्त (b) एवं (c) दोनों सही उत्तर हैं, परंतु उ.प्र. लोक सेवा आयोग ने विकल्प (b) को सही उत्तर घोषित किया था।
|
28. भारत के नीचे दिए गए न्यायालयों में से किसे किन्हें अभिलेख न्यायालय माना जाता है?
(a) केवल उच्च न्यायालयों को
(b) केवल उच्चतम न्यायालय को
(c) उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय को
(d) जनपद न्यायालयों को
[U.P.P.C.S. (Mains) 2008]
उत्तर-(c) उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय को
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 के तहत उच्चतम न्यायालय को तथा अनुच्छेद 215 के तहत उच्च न्यायालयों को अभिलेख न्यायालय (Court of Records) का दर्जा प्रदान किया गया है।
|
29. उच्चतम न्यायालय मामलों की सुनवाई नई दिल्ली में करता है, परंतु किसी अन्य स्थान पर भी सुनवाई कर सकता है-
(a) राष्ट्रपति के अनुमोदन से
(b) यदि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश मेजोरिटी (majority) से यह तय करें
(c) संसद के अनुमोदन से
(d) राज्य विधानसभा के अनुरोध पर
[U.P.P.C.S. (Spl.) (Mains) 2008]
उत्तर- (a) राष्ट्रपति के अनुमोदन से
- संविधान के अनु. 130 के अनुसार, उच्चतम न्यायालय दिल्ली में अथवा ऐसे अन्य स्थान या स्थानों में अधिविष्ट होगा, जिन्हें भारत का मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति के अनुमोदन से समय-समय पर नियत करे।
- इस प्रकार सही उत्तर विकल्प (a) होगा।
|
30. निम्नलिखित में से किस वाद में उच्चतम न्यायालय ने ‘संविधान के मूल ढांचे’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया था?
(a) गोलकनाथ
(b) ए.के. गोपालन
(c) केशवानंद भारती
(d) मेनका गांधी
[U.P. P.C.S. (Mains) 2012]
उत्तर-(c) केशवानंद भारती
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले (1973) में उच्चतम न्यायालय की 13-सदस्यीय संविधान पीठ ने संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत प्रतिपादित किया था।
- इस निर्णय में यद्यपि संविधान संशोधन की संसद की शक्ति को स्वीकार किया गया था, परंतु यह भी कहा गया कि अनुच्छेद 368 संसद को संविधान की मूल संरचना या सांचे-ढांचे में परिवर्तन की शक्ति प्रदान नहीं करता है।
|
31. भारतीय संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेदों में से कौन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान का ‘अनुलंघनीय मौलिक ढांचा’ घोषित किए गए हैं?
1. अनुच्छेद 32
2. अनुच्छेद 226
3. अनुच्छेद 227
4. अनुच्छेद 245
कूट :
(a) 1, 2 तथा 3
(b) 1, 3 तथा 4
(c) 1, 2 तथा 4
(d) 1, 2, 3 तथा 4
[U.P. P.C.S. (Pre) 1999]
उत्तर-(a) 1, 2 तथा 3
- अनुच्छेद 32 और 226 क्रमशः सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता को प्रदर्शित करते हैं।
- अनु. 227 उच्च न्यायालय की अधीनस्थ न्यायालय पर अधीक्षण की शक्ति प्रदर्शित करता है।
- इन तीनों ही अनुच्छेदों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने विभिन्न निर्णयों में अनुलंघनीय मौलिक ढांचा घोषित किया गया है।
|
32. भारत में ‘संविधान की मूल संरचना (बुनियादी ढांचा) के सिद्धांत’ का स्रोत है-
(a) संविधान
(b) न्यायिक व्याख्या
(c) न्यायविदों के मत
(d) संसदीय कानून
[U.P.U.D.A./L.D.A. (Mains) 2010]
उत्तर-(b) न्यायिक व्याख्या
- केशवानंद भारती बनाम भारत संघ के वाद में न्यायमूर्ति सीकरी ने संविधान की मूल संरचना (बुनियादी ढांचा) के सिद्धांत की व्याख्या की, जिसका अनुमोदन मिनर्वा मिल्स के वाद में भी किया गया है।
- अतः स्पष्ट है कि उपर्युक्त सिद्धांत का स्रोत न्यायिक व्याख्या है।
|
33. उच्चतम न्यायालय द्वारा आज तक की दूसरी सबसे बड़ी खंडपीठ किस केस में बनी ?
(a) गोलकनाथ केस में
(b) मिनर्वा मिल्स केस में
(c) बैंक नेशनलाइजेशन केस में
(d) टी.एम. पाई. फाउंडेशन केस में
[U.P. P.C.S. (Spl.) (Mains) 2004]
उत्तर-(a) गोलकनाथ केस में
- केशवानंद भारती केस (1973) में उच्चतम न्यायालय द्वारा अब तक की सबसे बड़ी खंडपीठ (13 न्यायाधीश) का गठन किया गया था।
- उच्चतम न्यायालय द्वारा दूसरी सबसे बड़ी खंडपीठ (11 न्यायाधीश) का गठन गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य वाद (1967) में किया गया था।
|
34. निम्नलिखित में से किस वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह धारणा व्यक्त की कि “मूल अधिकार व्यक्ति को जैसा उसे सबसे अच्छा लगे उस तरह अपनी जिंदगी की रूपरेखा तैयार करने के लिए सक्षम बनाते हैं।”
(a) इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण
(b) गोलकनाथ बनाम स्टेट ऑफ पंजाब
(c) बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मामला
(d) अजहर बनाम म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन
[U.P.P.C.S. (Pre) 2012]
उत्तर-(b) गोलकनाथ बनाम स्टेट ऑफ पंजाब
- गोलकनाथ बनाम स्टेट ऑफ पंजाब के वाद (1967) में उच्चतम न्यायालय ने उपर्युक्त धारणा व्यक्त की थी।
- इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में कहा गया- “Fundamental rights are the primordial rights necessary for the development of human personality.
- They are the rights that enable a man to chalk out his own life in the manner he likes best.
|
35. वाद एवं उस वाद में उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था के त्रुटिपूर्ण युग्म को पहचानिए :
(a) इंदिरा साहनी वाद – अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए चिकनी परत (क्रीमी लेयर)
(b) विशाखा वाद – अपने कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन से कामकाजी महिलाओं का संरक्षण
(c) मेनका गांधी वाद – अनुच्छेद 14, 19 एवं 21 परस्पर अपवर्जी नहीं हैं
(d) बेला बनर्जी वाद – विदेश यात्रा का अधिकार दैहिक स्वतंत्रता का भाग है
[R.A.S./R.T.S. (Pre) 2013]
उत्तर- (d) बेला बनर्जी वाद – विदेश यात्रा का अधिकार दैहिक स्वतंत्रता का भाग है
- विकल्प (d) का युग्म त्रुटिपूर्ण है।
- बेला बनर्जी वाद प. बंगाल भूमि विकास एवं नियोजन अधिनियम, 1948 से संबंधित है।
- विदेश यात्रा का अधिकार दैहिक स्वतंत्रता के भाग के रूप में उच्चतम न्यायालय द्वारा मेनका गांधी वाद में ही माना गया था।
|
36. निम्नलिखित कथनों पर विचार कर बताइए कि इनमें से कौन एक सही है?
(a) सर्वोच्च न्यायालय केवल मूल क्षेत्राधिकार रखता है।
(b) यह केवल मूल एवं अपीलीय क्षेत्राधिकार रखता है।
(c) यह केवल परामर्श संबंधी तथा अपीलीय क्षेत्राधिकार रखता है।
(d) यह मूल, अपीलीय और परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार रखता है।
[U.P.P.C.S. (Mains) 2010, U.P.P.C.S. (Mains) 2013]
उत्तर-(d) यह मूल, अपीलीय और परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार रखता है।
- भारतीय संविधान में अनु. 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction), अनु. 132-136 के तहत अपीलीय क्षेत्राधिकार तथा अनु. 143 के तहत परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार का विवरण है।
|
37. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद सवैधानिक विवाद में सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार से संबंधित है?
(a) अनुच्छेद 131
(b) अनुच्छेद 132
(c) अनुच्छेद 134 A को मिलाकर अनु. 132 को पढ़ना
(d) अनुच्छेद 134 A को मिलाकर अनु. 133 को पढ़ना
[U.P.P.C.S. (Pre) 2001, U.P.U.D.A./L.D.A. (Pre) 2002, U.P.P.C.S. (Mains) 2004]
उत्तर-(c) अनुच्छेद 134 A को मिलाकर अनु. 132 को पढ़ना
- अनुच्छेद 132 के अनुसार, किसी उच्च न्यायालय की सिविल, दांडिक या अन्य कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी (यदि वह उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134-A के तहत यह प्रमाणित कर देता है कि उस मामले में संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है), जबकि अनुच्छेद 133 केवल सिविल विषयों के अपील से संबंधित है।
- 134-A उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए उच्च न्यायालय के प्रमाण-पत्र का उल्लेख करता है।
- इस प्रकार संवैधानिक विवाद में अनुच्छेद 134-A को अनुच्छेद 132 के साथ मिलाकर पढ़ने से सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार का सृजन होता है।
|
38. संविधान की व्याख्या से संबंधित सभी विवाद सर्वोच्च न्यायालय के पास लाए जा सकते हैं, इसके-
(a) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत
(b) अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत
(c) परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार के अंतर्गत
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
[U.P. Lower Sub. (Mains) 2013]
उत्तर-(b) अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत
- उच्चतम न्यायालय भारत के राज्य-क्षेत्र में सभी न्यायालयों से अपील का सर्वोच्च न्यायालय है।
- उच्चतम न्यायालय की अपीलीय अधिकारिता को निम्न शीर्षों में विभाजित किया जा सकता है-
- (i) संविधान के निर्वचन के मामले (अनुच्छेद 132)
- (ii) सिविल मामले, जिसमें सांविधानिक प्रश्न चाहे हो या नहीं (अनुच्छेद 133)
- (iii) आपराधिक (दांडिक) मामले, जिसमें सांविधानिक प्रश्न चाहे हो या नहीं (अनुच्छेद 134)
- (iv) विशेष इजाजत से अपील (अनुच्छेद 136)
- अतः संविधान की व्याख्या से संबंधित सभी विवाद सर्वोच्च न्यायालय के पास इसके अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत लाए जा सकते हैं।
|
39. भारत में सुधारात्मक याचिका उच्चतम न्यायालय में निम्न अनुच्छेद के अंतर्गत दाखिल की जा सकती है-
(a) 138
(b) 140
(c) 142
(d) 146
[U.P.P.C.S. (Mains) 2014]
उत्तर-(c) 142
- रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा एवं अन्य, 2002(4) SCC 388 के वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 137 एवं अनुच्छेद 142 के तहत किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय में सुधारात्मक याचिका (Curative Petition) दाखिल की जा सकती है।
- यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय के किसी अंतिम निर्णय के पश्चात उसकी समीक्षा याचिका (Review Petition) के खारिज किए जाने के बाद दाखिल की जा सकती है।
- संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत उच्चतम न्यायालय को (संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के तहत रहते हुए) अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन (Review) करने तथा उसे परिवर्तित करने की शक्ति प्राप्त है।
|
40. संविधान का कौन-सा अनुच्छेद उच्चतम न्यायालय को उसके द्वारा दिए गए निर्णय अथवा आदेश के पुनर्विलोकन हेतु अधिकृत करता है?
(a) अनुच्छेद 137
(b) अनुच्छेद 130
(c) अनुच्छेद 139
(d) अनुच्छेद 138
[U.P.P.C.S. (Mains) 2009]
उत्तर- (a) अनुच्छेद 137
- संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत उच्चतम न्यायालय को (संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के तहत रहते हुए) अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन (Review) करने तथा उसे परिवर्तित करने की शक्ति प्राप्त है।
|
41. भारत के संविधान के संदर्भ में, सामान्य विधियों में अंतर्विष्ट प्रतिषेध अथवा निबंधन अथवा उपबंध, अनुच्छेद 142 के अधीन सांविधानिक शक्तियों पर प्रतिषेध अथवा निबंधन की तरह कार्य नहीं कर सकते। निम्नलिखित में से कौन-सा एक, इसका अर्थ हो सकता है?
(a) भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय लिए गए निर्णयों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं
दी जा सकती।
(b) भारत का उच्चतम न्यायालय अपनी शक्तियों के प्रयोग में संसद द्वारा निर्मित विधियों से बाध्य नहीं होता।
(c) देश में गंभीर वित्तीय संकट की स्थिति में, भारत का राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श के बिना वित्तीय आपात घोषित कर सकता है।
(d) कुछ मामलों में राज्य विधानमंडल, संघ विधानमंडल की सहमति के बिना, विधि निर्मित नहीं कर सकते।
[I.A.S. (Pre) 2019]
उत्तर-(b) भारत का उच्चतम न्यायालय अपनी शक्तियों के प्रयोग में संसद द्वारा निर्मित विधियों से बाध्य नहीं होता।
- संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रावधानित है कि उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा, जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा।
- इसी अनुच्छेद का अवलंब लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने भोपाल गैस त्रासदी से संबंधित यूनियन कार्बाइड मामले में पीड़ितों के लिए 470 मिलियन डॉलर का मुआवजा निर्धारित करने के साथ स्पष्ट किया कि “सामान्य विधियों में अंतर्विष्ट प्रतिषेध अथवा निबंधन या उपबंध, अनुच्छेद 142 के अधीन सांविधानिक शक्तियों पर प्रतिषेध या निर्बंधन की तरह कार्य नहीं कर सकते।”
- इसी संदर्भ में यह अर्थ निकाला जा सकता है कि भारत का उच्चतम न्यायालय अपनी शक्तियों के प्रयोग में संसद (या राज्य विधायिकाओं) द्वारा निर्मित विधियों से बाध्य नहीं होता है।
|
42. भारत में, न्यायिक पुनरीक्षण का अर्थ है-
(a) विधियों और कार्यपालिक आदेशों की सांविधानिकता के विषय में प्राख्यापन करने का न्यायपालिका का अधिकार।
(b) विधानमंडलों द्वारा निर्मित विधियों के प्रज्ञान को प्रश्नगत करने का न्यायपालिका का अधिकार।
(c) न्यायपालिका का, सभी विधायी अधिनियमनों के, राष्ट्रपति द्वारा उन पर सहमति प्रदान किए जाने के पूर्व, पुनरीक्षण का अधिकार।
(d) न्यायपालिका का, समान या भिन्न वादों में पूर्व में दिए गए स्वयं के निर्णयों के पुनरीक्षण का अधिकार।
[I.A.S. (Pre) 2017]
उत्तर- (a) विधियों और कार्यपालिक आदेशों की सांविधानिकता के विषय में प्राख्यापन करने का न्यायपालिका का अधिकार।
- भारत में सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरीक्षण की शक्ति प्राप्त है।
- इसके तहत केंद्र व राज्य दोनों स्तरों पर विधियों और कार्यपालिक आदेशों की सांविधानिकता की जांच की जा सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अधिकारातीत पाए जाने पर इन्हें असंवैधानिक और अवैध तथा उस स्तर तक शून्य घोषित किया जा सकता है, जिस स्तर तक वह संविधान का उल्लंघन करता हो।
- संविधान के विभिन्न अनुच्छेद यथा- अनुच्छेद 13, 32, 131-136, 143, 145, 226, 227, 245, 246 तथा 372 आदि के उपबंध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से न्यायिक पुनरीक्षण की शक्ति प्रदान करते हैं।
|
43. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए –
1. भारत का संविधान अपने ‘मूल ढांचे’ को संघवाद, पंथनिरपेक्षता, मूल अधिकारों तथा लोकतंत्र के रूप में परिभाषित करता है।
2. भारत का संविधान, नागरिकों की स्वतंत्रता तथा उन आदर्शों जिन पर संविधान आधारित है, की सुरक्षा हेतु ‘न्यायिक पुनर्विलोकन’ की व्यवस्था करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
[I.A.S. (Pre) 2020]
उत्तर-(b) केवल 2
- भारत के संविधान में कहीं भी मूल ढांचे को परिभाषित नहीं किया गया है।
- बल्कि ‘मूल ढांचे’ शब्द का उल्लेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद (1973) में निर्णय सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय की पीठ द्वारा किया गया है।
- अतः कथन सही नहीं है।
- भारत का संविधान, नागरिकों की स्वतंत्रता तथा उन आदर्शों जिन पर संविधान आधारित है, की सुरक्षा हेतु ‘न्यायिक पुनर्विलोकन’ की व्यवस्था करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 13 न्यायालयों को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति प्रदान करता है और यह शक्ति अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय तथा अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों को प्राप्त है।
|
44. भारत में न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति का प्रयोग किसके द्वारा किया जाता है?
(a) केवल सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा
(b) सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय द्वारा
(c) समस्त न्यायालयों द्वारा
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
[U.P.P.C.S. (Mains) 2017]
उत्तर-(b) सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय द्वारा
- न्यायालय द्वारा कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के कार्यों की वैधता की जांच करना अथवा व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों एवं प्रशासनिक नीतियों की संवैधानिकता का परीक्षण कर उनके ऐसे उपबंधों को असंवैधानिक घोषित करना, जो संविधान का अतिक्रमण करते हों, न्यायिक पुनर्विलोकन कहलाता है।
- भारतीय संविधान में यह संयुक्त राज्य अमेरिका से उद्भूत है।
- भारत में संविधान के मुख्यतः अनु. 13, 32 तथा 136 के अंतर्गत ये शक्तियां सर्वोच्च न्यायालय में निहित हैं एवं अनु. 226 तथा 227 के अंतर्गत राज्यों के उच्च न्यायालय भी न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति के सम्पोषक हैं।
|
45. भारत के संविधान के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
1. किसी भी केंद्रीय विधि को सांविधानिक रूप से अवैध घोषित करने की किसी भी उच्च न्यायालय की अधिकारिता नहीं होगी।
2. भारत के संविधान के किसी भी संशोधन पर भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
[I.A.S. (Pre) 2019]
उत्तर-(d) न तो 1, न ही 2
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (2) के अनुसार, राज्य (केंद्र या राज्य सरकार) ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा, जो भाग 3 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है तथा मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।
- इस आधार पर ही अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जिसके फलस्वरूप किसी भी उच्च न्यायालय को, किसी भी केंद्रीय विधि को सांविधानिक रूप से अवैध घोषित करने (यदि वह सांविधानिक प्रावधानों के विपरीत है) की अधिकारिता प्राप्त है।
- ज्ञातव्य है कि प्रश्नगत कथन अनुच्छेद 228A के रूप में 42वें संविधान संशोधन (1976) से संविधान में जोड़ा गया था, परंतु 43वें संविधान संशोधन (1977) से इसे निरसित कर दिया गया।
- साथ ही केशवानंद भारती वाद (1973) में उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रस्तुत ‘संविधान के मौलिक ढांचे की अवधारणा के तहत भारत के संविधान के किसी भी संशोधन पर भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रश्न उठाया जा सकता है, यदि वह संशोधन संविधान के मौलिक ढांचे का उल्लंघन करता प्रतीत हो।
- अतः प्रश्नगत दोनों ही कथन सही नहीं हैं।
|
46. न्यायिक पुनरावलोकन प्रचलित है-
(a) केवल भारत में
(b) केवल यू.के. में
(c) केवल यू.एस.ए.में
(d) भारत और यू.एस.ए. दोनों में
[U.P.P.C.S. (Mains) 2013]
उत्तर-(d) भारत और यू.एस.ए. दोनों में
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 द्वारा न्यायिक पुनरावलोकन का प्रावधान किया गया है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से प्रेरित है, जबकि यू.के. (यूनाइटेड किंगडम) में संसद सर्वोच्च है और उसके द्वारा बनाए गए कानूनों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
|
47. नीचे दो कथन दिए गए हैं-
अभिकथन (A): भारत में न्यायिक पुनरीक्षण का क्षेत्र सीमित है।
कारण (R) : भारतीय संविधान में कुछ “उधार की वस्तुएं” हैं।
सही उत्तर का चयन नीचे दिए गए कूट की सहायता से करें।
कूट :
(a) (A) और (R) दोनों सत्य हैं और (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है।
(b) (A) और (R) दोनों सत्य हैं, लेकिन (R), (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(c) (A) सही है तथा (R) गलत है।
(d) (A) गलत है तथा (R) सही है।
[U.P.P.C.S. (Pre) 2017]
उत्तर-(b) (A) और (R) दोनों सत्य हैं, लेकिन (R), (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
- भारत में न्यायिक पुनरीक्षण का क्षेत्र अमेरिका की तुलना में सीमित है।
- हालांकि केशवानंद भारती वाद (1973) तथा मेनका गांधी वाद (1978) आदि के बाद से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा क्रमिक रूप से न्यायिक पुनरीक्षण के क्षेत्र को विस्तारित किया जा रहा है, फिर भी यह संवैधानिक दायरे में सीमित है।
- इसका एक प्रमुख कारण है कि जहां अमेरिकी संविधान में विधि की सम्यक प्रक्रिया’ (Due Process of Law) का सिद्धांत अपनाया गया है, वहीं भारतीय संविधान में ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया (Procedure established by Law) न्यायिक पुनरीक्षण का आधार है।
- इस प्रकार कथन (A) सत्य है।
- दूसरी ओर भारतीय संविधान में अन्य देशों के संविधानों से विभिन्न प्रावधानों की अवधारणा ली गई है।
- अतः कारण (R) भी सत्य है, किंतु कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या नहीं है।
- अतः विकल्प (b) अभीष्ट उत्तर होगा।
|
48. भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन का आधार है-
(a) वैधिक प्रक्रिया
(b) विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया
(c) विधि का शासन
(d) दृष्टांत और अभिसमय
(e) उपर्युक्त में से कोई नहीं
[Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2015]
उत्तर-(b) विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13, 32, 131-136, 143, 145, 226, 227, 245, 246 तथा 372 आदि के तहत न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था निहित है।
- भारत में न्यायिक पुनरावलोकन का आधार ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ (Procedure established by Law) है।
- इसके तहत न्यायालय यह परीक्षण करता है कि कोई विधि संविधान द्वारा विधायिका को प्रदत्त शक्तियों के संगत रूप में बनाई गई है या नहीं तथा यह अनुमोदित प्रक्रिया का अनुसरण करती है अथवा नहीं।
- ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ का उल्लंघन करने पर इसे न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया जा सकता है।
|
49. कोई भी संविधान (संशोधन) कानून भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है, यदि वह-
(a) वर्तमान द्विस्तरीय संघीय व्यवस्था के स्थान पर तीन-स्तरीय व्यवस्था स्थापित करता है।
(b) विधि के समक्ष समानता के अधिकार को भाग 3 से हटाकर संविधान में अन्यत्र कहीं रखता है।
(c) कार्यकारिणी की संसदीय व्यवस्था के स्थान पर अध्यक्षात्मक व्यवस्था रखता है।
(d) सर्वोच्च न्यायालय के भार को कम करने हेतु एक संघीय अपीलीय न्यायालय स्थापित करता है।
[I.A.S. (Pre) 2009]
उत्तर-(b) विधि के समक्ष समानता के अधिकार को भाग 3 से हटाकर संविधान में अन्यत्र कहीं रखता है।
- कोई भी संविधान संशोधन कानून भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है, यदि वह विधि के समक्ष समानता के अधिकार को भाग 3 से हटाकर संविधान में अन्यत्र कहीं रखता है, क्योंकि भाग 3 का अनुच्छेद 13 (2) यह उल्लेख करता है कि राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बना सकता, जो इस भाग में दिए गए अधिकार को छीनती हो या न्यून करती हो और यदि ऐसी कोई विधि बनाई जाती है, तो वह शून्य होगी।
|
50. संविधान की व्याख्या करने का अंतिम अधिकार किसे है?
(a) राष्ट्रपति
(b) अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया
(c) लोक सभा अध्यक्ष
(d) सर्वोच्च न्यायालय
[M.P.P.C.S. (Pre) 1994]
उत्तर-(d) सर्वोच्च न्यायालय
- संविधान की व्याख्या करने का अंतिम अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को है।
- सर्वोच्च न्यायालय को ही संविधान का प्रहरी और संरक्षक माना जाता है।
|
51. भारतीय संविधान का संरक्षक कौन है?
(a) राष्ट्रपति
(b) संसद
(c) मंत्रिपरिषद
(d) सर्वोच्च न्यायालय
[M.P.P.C.S. (Pre.) 2010, M.P.P.C.S. (Pre) 2015]
उत्तर-(d) सर्वोच्च न्यायालय
- सर्वोच्च न्यायालय को ही संविधान का प्रहरी और संरक्षक माना जाता है।
|
52. नीचे दो कथन दिए गए हैं, जिनमें एक को कथन (A) तथा दूसरे को कारण (R) कहा गया है।
कथन (A): केंद्रीय कानूनों की सांविधानिक वैधता के संबंध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की अनन्य अधिकारिता है।
कारण (R) : सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक है।
नीचे दिए गए कूटों में से सही उत्तर चुनिए :
कूट :
(a) (A) तथा (R) दोनों सही हैं तथा (R) कथन (A) की सही व्याख्या है।
(b) (A) तथा (R) दोनों सही हैं, परंतु (R) कथन (A) की सही व्याख्या नहीं है।
(c) (A) सही है, किंतु (R) गलत है।
(d) (A) गलत है, किंतु (R) सही है।
[U.P. P.C.S. (Pre) 2019]
उत्तर-(d) (A) गलत है, किंतु (R) सही है।
- भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान का प्रहरी और संरक्षक है।
- तथापि केंद्रीय कानूनों की सांविधानिक वैधता के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ उच्च न्यायालयों को भी अधिकारिता प्राप्त है।
- सर्वोच्च न्यायालय की तरह उच्च न्यायालय भी संसद अथवा राज्य विधानमंडल द्वारा अधिनियमित किसी कानून की वैधता का परीक्षण कर सकते हैं तथा संविधान के उपबंधों के अनुसार न होने पर उसे असंवैधानिक घोषित कर सकते हैं।
- हालांकि उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
- उल्लेखनीय है कि 42वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 131-A के तहत केंद्रीय कानूनों की सांविधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नों के बारे में सर्वोच्च न्यायालय की अनन्य अधिकारिता संबंधी उपबंध तथा अनुच्छेद 226-A के तहत अनुच्छेद 226 के अधीन (उच्च न्यायालय की) कार्यवाहियों में केंद्रीय विधियों की वैधता पर विचार न किए जाने संबंधी उपबंध किए गए थे, तथापि 43वें संविधान संशोधन, 1977 द्वारा इन्हें निरसित कर दिया गया।
- आयोग द्वारा इस प्रश्न का उत्तर विकल्प (a) माना गया था, जो कि उचित नहीं है।
|
53. निम्नलिखित में से कौन-से मामले उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता में आते हैं?
(a) केंद्र एवं राज्यों के बीच विवाद
(b) राज्यों के परस्पर विवाद
(c) मूल अधिकारों का प्रवर्तन
(d) संविधान के उल्लंघन से संरक्षण
[U.P. Lower Sub. (Pre) 2004, U.P.P.C.S. (Mains) 2006, I.A.S. (Pre) 1993]
उत्तर-(c) मूल अधिकारों का प्रवर्तन
- संविधान के भाग तीन में वर्णित नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा का अनन्य अधिकार संविधान द्वारा उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों को दिया गया है।
- उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत तथा उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा संबंधी रिट निकाल सकते हैं।
- शेष सभी प्रश्नगत मामले उच्चतम न्यायालय की ही अधिकारिता में आते हैं।
|
54. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत सर्वोच्च न्यायालय भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करता है?
(a) 74
(b) 56
(c) 16
(d) 32
[U.P.P.S.C. (GIC) 2010]
उत्तर-(d) 32
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार) के तहत सर्वोच्च न्यायालय भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करता है।
|
55. विधायी शक्तियों की संघीय सूची में समाविष्ट किसी विषय के संबंध में भारत के उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने का अधिकार दिया गया है-
(a) भारत के राष्ट्रपति को
(b) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति को
(c) संसद को
(d) विधि, न्याय और कंपनी कार्य मंत्रालय को
[I.A.S. (Pre) 2003]
उत्तर-(c) संसद को
- संविधान के अनुच्छेद 138 के तहत संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियों में वृद्धि कर सकती है।
- अनुच्छेद 138 के खंड (1) के अनुसार, विधायी शक्तियों की संघीय सूची में समाविष्ट किसी विषय के संबंध में भारत के उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने का अधिकार संसद को दिया गया है।
|
56. संविधान के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय से विधि के प्रश्न पर राय लेने का किसको अधिकार है?
(a) प्रधानमंत्री को
(b) राष्ट्रपति को
(c) किसी भी उच्च न्यायालय को
(d) उपर्युक्त सभी को
[U.P. P.C.S. (Pre) 2012, U.P. P.S.C. (GIC) 2010]
उत्तर-(b) राष्ट्रपति को
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत भारत के राष्ट्रपति को विधि या तथ्य के व्यापक महत्व के प्रश्न के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेने की शक्ति प्रदान की गई है।
|
57. उच्चतम तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण के लिए परामर्श प्रक्रिया के संबंध में राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय को एक अभिदेशन किया है-
(a) खंड (1), अनुच्छेद 127 के अंतर्गत
(b) खंड (1), अनुच्छेद 143 के अंतर्गत
(c) खंड (11), अनुच्छेद 143 के अंतर्गत
(d) खंड (a), अनुच्छेद 144 के अंतर्गत
[U.P. Lower Sub. (Pre) 1998]
उत्तर-(b) खंड (1), अनुच्छेद 143 के अंतर्गत
- वर्ष 1998 में उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण के लिए परामर्श प्रक्रिया के संबंध में राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय को एक अभिदेशन अनुच्छेद 143 के खंड (1) के तहत किया था।
- ‘श्री जज केसेस’ के नाम से प्रसिद्ध सर्वोच्च न्यायालय के तीन वादों में यह तीसरा था।
- इसी में सर्वोच्च न्यायालय की 9- सदस्यीय संविधान पीठ ने यह निर्धारित किया था कि उपर्युक्त संदर्भ में मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से तात्पर्य वस्तुतः मुख्य न्यायाधीश के साथ सर्वोच्च न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम के परामर्श से है।
|
58. उच्चतम न्यायालय की परामर्शी अधिकारिता के विषय में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं?
1. उच्चतम न्यायालय के लिए यह बाध्यकारी है कि वह राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित किसी भी मामले में अपना मत व्यक्त करे।
2. परामर्शी अधिकारिता की शक्ति के अधीन प्राप्त किसी निर्देश पर उच्चतम न्यायालय की पूर्ण पीठ सुनवाई करती है।
3. परामर्शी अधिकारिता के अधीन प्राप्त निर्देश पर व्यक्त किया हुआ उच्चतम न्यायालय का मत सरकार पर बाध्यकारी नहीं होता।
4. उच्चतम न्यायालय को उसकी परामर्शी अधिकारिता की शक्ति के अधीन एक बार में केवल एक ही निर्देश भेजा जा सकता है।
नीचे दिए हुए कूटों की सहायता से उत्तर का चयन कीजिए-
(a) 1 और 2
(b) 1 और 3
(c) 2 और 3
(d) 2 और 4
[I.A.S. (Pre) 1994]
उत्तर-(c) 2 और 3
- अनुच्छेद 143 के अंतर्गत, राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय से दो प्रकार के विषयों पर सलाह मांग सकता है (1) लोक महत्व के विषयों में विधि या तथ्य संबंधी, (2) किसी पूर्व संवैधानिक संधि, समझौते या अन्य समकक्षीय विषयों पर।
- प्रथम प्रकार के मामलों में परामर्श देना सर्वोच्च न्यायालय के लिए बाध्यकारी नहीं है, किंतु द्वितीय मामले में वह परामर्श अवश्य देता है।
- परामर्शी अधिकारिता की शक्ति के अधीन प्राप्त निर्देश पर सुनवाई कम-से-कम 5-सदस्यीय पूर्ण पीठ करती है।
- न्यायालय द्वारा दिया गया परामर्श सरकार पर बाध्यकारी नहीं होता है।
- यह आवश्यक नहीं कि एक बार में केवल एक ही परामर्श हेतु निर्देश भेजे जाएं।
- अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।
|
59. भारत का उच्चतम न्यायालय कानून या तथ्य के मामले में राष्ट्रपति को परामर्श देता है-
(a) अपनी पहल पर
(b) तभी जब वह ऐसे परामर्श के लिए कहता है
(c) तभी जब मामला नागरिकों के मूलभूत अधिकारों से संबंधित हो
(d) तभी जब मामला देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करता हो
[I.A.S. (Pre) 2001]
उत्तर-(b) तभी जब वह ऐसे परामर्श के लिए कहता है
- अनुच्छेद 143(1) के तहत भारत का उच्चतम न्यायालय कानून या तथ्य के मामले में राष्ट्रपति को परामर्श देता है, जब राष्ट्रपति उससे ऐसे परामर्श के लिए कहता या मांगता है।
- इस अनुच्छेद के अनुसार, यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत होता है कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है, जो ऐसी प्रकृति का और ऐसे व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तो वह उस प्रश्न को विचार करने के लिए उस न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात जो वह उचित समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपना परामर्श दे सकेगा।
|
60. “मैं भारत के संविधान के प्रति सच्चा विश्वास और सच्ची निष्ठा रखूंगा…. भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखूंगा….. अपने पद के कर्तव्यों का निर्वहन करूंगा…. संविधान और कानून की रक्षा करूंगा।” यह शपथ ली जाती है-
(a) भारत के राष्ट्रपति द्वारा
(b) भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा
(c) संसद के सदस्य द्वारा
(d) राज्यपाल द्वारा
[U.P.P.C.S. (Spl.) (Mains) 2004]
उत्तर-(b) भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा
- प्रश्नगत शपथ का प्रारूप संविधान की अनुसूची 3 के तहत उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा ली गई शपथ का है।
- इस प्रकार सही उत्तर विकल्प (b) होगा।
|
61. देश के किसी भी न्यायालय में चल रहे वाद को अन्यत्र भेजने का अधिकार किसके पास है?
(a) राष्ट्रपति
(b) सर्वोच्च न्यायालय
(c) उच्च न्यायालय
(d) इनमें से कोई नहीं
[M.P. P.C.S. (Pre) 2010]
उत्तर-(b) सर्वोच्च न्यायालय
- देश के किसी भी न्यायालय में चल रहे वाद की सुनवाई किसी अन्यत्र स्थान पर किए जाने का निर्देश देने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास है (संविधान के अनुच्छेद 139 क, सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 25 तथा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 406 के तहत)।
- जबकि उच्च न्यायालय केवल अपनी अधिकारिता वाले राज्यक्षेत्र में अधीनस्थ न्यायालयों के मामलों का अंतरण कर सकता है।
|
62. सूची-1 का सूची-II से मिलान कीजिए और नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर का चयन कीजिए-
सूची-1 (वाद) |
सूची-II (विषय) |
A. ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य |
i. शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु समानता |
B. रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य |
ii. संविधान संशोधन की संसद की शक्ति |
C. शंकरी प्रसाद बनाम भारतीय संघ |
iii. निवारक अवरोध की प्रक्रिया |
D. चम्पकम दोराइराजन बनाम मद्रास राज्य |
iv. स्वतंत्र भाषण पर रोक |
कूट :
A, B, C, D
(a) i, ii, iii, iv
(b) iii, iv, ii, i
(c) ii, iv, i, iii
(d) iv, iii, ii, i
[R.A.S./R.T.S. (Pre) (Re-Exam) 2013]
उत्तर- (b) iii, iv, ii, i
- सही सुमेल इस प्रकार हैं-
-
सूची-1 (वाद) |
सूची-II (विषय) |
A. ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य |
(iii) निवारक अवरोध की प्रक्रिया |
B. रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य |
(iv) स्वतंत्र भाषण पर रोक |
C. शंकरी प्रसाद बनाम भारतीय संघ |
(ii) संविधान संशोधन की संसद की |
D. शक्ति चम्पकम दोराइराजन बनाम मद्रास राज्य |
(i) शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु समानता |
|
63. निम्नलिखित में से कौन सा वाद जमींदारी व्यवस्था से संबंधित है?
1. कामेश्वर सिंह बनाम बिहार राज्य
2. रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य
3. मोतीलाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
4. पश्चिम बंगाल राज्य बनाम सुबोध गोपाल
(a) 1, 2 और 3
(b) 2 और 4
(c) 1, 2, 3 और 4
(d) 1 और 4
[Jharkhand P.C.S. (Pre) 2021]
उत्तर- (d) 1 और 4
- प्रश्नगत वादों में से कामेश्वर सिंह बनाम बिहार राज्य वाद तथा पश्चिम बंगाल राज्य बनाम सुबोध गोपाल वाद जमींदारी व्यवस्था तथा भूमि सुधार कानूनों से संबंधित हैं।
- प्रश्नगत विकल्पों में सही उत्तर प्राप्त न होने के कारण झारखंड लोक सेवा आयोग ने अपनी संशोधित उत्तर कुंजी में इस प्रश्न के सभी विकल्पों को गलत माना है।
|
64. इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय किस विषय से संबंधित है?
(a) सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण
(b) मूल ढांचे का सिद्धांत
(c) अनुसूचित जाति के प्रमोशन में आरक्षण की स्वीकृति
(d) अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को बढ़ाना
(e) उपर्युक्त में से कोई नहीं/ उपर्युक्त में से एक से अधिक
[66th B.P.S.C. (Pre) (Re-Exam) 2020]
उत्तर- (a) सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण
- इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ बाद (1992) में सर्वोच्च न्यायालय की 9- सदस्यीय संविधान पीठ का निर्णय सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) को आरक्षण से संबंधित है।
- इस ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के निर्णय को बरकरार रखा, किंतु साथ ही यह भी निर्णय दिया कि अन्य पिछड़ा वर्ग के क्रीमी लेयर या आर्थिक रूप से सशक्त भाग को इसके दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।
- इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया कि अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत प्रदत्त कुल आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक नहीं होना चाहिए।
|
65. हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने प्रवासी पंचाट निर्धारण अधिनियम 1983 को संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत केंद्र के पावन कर्तव्य के उल्लंघन पर असंवैधानिक घोषित किया है?
(a) अनुच्छेद 355
(b) अनुच्छेद 356
(c) अनुच्छेद 256
(d) अनुच्छेद 257
[U.P.P.C.S. (Pre) 2002]
उत्तर- (a) अनुच्छेद 355
- उच्चतम न्यायालय ने 13 जुलाई, 2005 को सर्बानंद सोनोवाल बनाम भारत संघ वाद में दिए अपने फैसले के तहत प्रवासी पंचाट निर्धारण अधिनियम, 1983 को संविधान के अनुच्छेद 355 के उल्लंघन के आधार पर असंवैधानिक घोषित कर दिया।
- उच्चतम न्यायालय के अनुसार प्रवासी पंचाट अधिनियम, 1983 अवैध रूप से भारत में घुसपैठ को बढ़ावा दे रहा था।
- इस कानून के रहते केंद्र अनुच्छेद 355 के तहत देश की सुरक्षा एवं संरक्षा के अपने उत्तरदायित्व को नहीं निभा पा रहा था।
- उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला असम में भारी संख्या में बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ के संदर्भ में दिया था।
- अनुच्छेद 355 में उपबंधित है कि संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह बाह्य आक्रमण एवं आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाया जाना सुनिश्चित करे।
|
66. टी.डी.एस.ए.टी. के निर्णयों को चुनौती दी जा सकती है:
(a) ट्राई, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में
(b) ट्राई तथा सुप्रीम कोर्ट में
(c) हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में
(d) केवल सुप्रीम कोर्ट में
[U.P. P.C.S. (Mains) 2003]
उत्तर-(c) हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में
- टेलिकॉम डिस्प्यूट्स सेटलमेंट एंड अपीलेट ट्रिब्यूनल (IDSAT) की स्थापना 1997 के भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) अधिनियम में वर्ष 2000 में किए गए संशोधन के द्वारा की गई थी।
- इसका उद्देश्य दूरसंचार क्षेत्र में किसी भी विवाद का न्यायिक समाधान करना है।
- दूरसंचार, ब्रॉडकास्टिंग और एयरपोर्ट टैरिफ संबंधी मामलों में इसके निर्णयों के विरुद्ध केवल सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है, जबकि साइबर मामलों में इसके निर्णय के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है।
|
67. भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति का सही क्रम है-
(a) बी.पी. सिन्हा, पी.बी. गजेन्द्रगडकर, एस.आर. दास
(b) के.जी. बालकृष्णन, एस.एच. कापड़िया, एच.एल. दत्तु
(c) रंजन गोगोई, एन.वी. रमण, दीपक मिश्रा
(d) एच.एल. दत्तु, टी. एस. ठाकुर, जगदीश सिंह खेहर
[R.A.S./R.T.S. (Pre) 2021]
उत्तर- (d) एच.एल. दत्तु, टी. एस. ठाकुर, जगदीश सिंह खेहर
- भारत के उच्चतम न्यायालय के प्रश्नगत मुख्य न्यायमूर्तियों का कार्यकाल इस प्रकार है :
- जस्टिस बी.पी. सिन्हा (1.10.1959 से 31.1.1964), जस्टिस पी.बी. गजेन्द्रगडकर (1.2.1964 से 15.3.1966), जस्टिस एस.आर. दास (1.2.1956 से 30.9.1959); जस्टिस के.जी. बालकृष्णन (14.1.2007 से 11.5.2010), जस्टिस एस.एच. कापड़िया (12.5.2010 से 28.9.2012), जस्टिस एच.एल. दत्तु (28.9.2014 से 2.12.2015), जस्टिस रंजन गोगोई (3.10.2018 से 17.11.2019), जस्टिस एन.वी. रमण (24.4.2021 से अब तक), जस्टिस दीपक मिश्रा (28.8.2017 से 2.10.2018); जस्टिस टी. एस. ठाकुर (3.12.2015 से 3.1.2017), जस्टिस जगदीश सिंह खेहर (4.1.2017 से 27.8.2017)।
- इस प्रकार स्पष्ट है कि सही निरंतर क्रम विकल्प (d) में प्राप्त हो रहा है।
|
68. निम्नलिखित में से कौन चौथी महिला जज हैं, जिन्हें अप्रैल, 2010 में भारत के उच्चतम न्यायालय में नियुक्त किया गया है?
(a) जस्टिस फातिमा बीबी
(b) जस्टिस सुजाता मनोहर
(c) जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा
(d) जस्टिस रूमा पाल
[U.P. Lower Sub. (Pre) 2008]
उत्तर-(c) जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा
- प्रश्नकाल के दौरान उच्चतम न्यायालय में एकमात्र महिला न्यायाधीश जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा थीं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा अप्रैल, 2010 में नियुक्ति प्रदान की गई थी।
- इससे पूर्व ये पटना उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश थीं।
- इनसे पूर्व जस्टिस फातिमा बीवी, जस्टिस सुजाता मनोहर तथा जस्टिस रूमा पाल भी उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के पद को सुशोभित कर चुकी थीं।
- 13 सितंबर, 2011 को जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त हुई थीं तथा वे सर्वोच्च न्यायालय की पांचवीं महिला न्यायाधीश थीं।
- इसके पश्चात 13 अगस्त, 2014 को जस्टिस आर. बानुमती तथा 27 अप्रैल, 2018 को जस्टिस इंदु मल्होत्रा सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनीं।
- इनके पश्चात 7 अगस्त, 2018 को जस्टिस इंदिरा बनर्जी तथा 31 अगस्त, 2021 को जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस बेला त्रिवेदी एवं जस्टिस बी.वी. नागरत्ना सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनी हैं तथा इस प्रकार अब तक (जनवरी, 2022 की स्थिति अनुसार) कुल 11 महिला जज सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बन चुकी हैं।
|
69. हाल में नियुक्त सुप्रीम कोर्ट के निम्नलिखित न्यायाधीशों में से कौन इससे पहले किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं था?
(a) डी.वाई. चंद्रचूड़
(b) ए.एम. खानविलकर
(c) एल. नागेश्वर राव
(d) अशोक भूषण
[U.P.P.C.S. (Mains) 2016]
उत्तर-(c) एल. नागेश्वर राव
- 13 मई, 2016 को सर्वोच्च न्यायालय में चार न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई।
- ये हैं- न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति अशोक भूषण एवं न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव।
- इनमें से एल. नागेश्वर राव सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने से पहले किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नहीं थे, बल्कि ये सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता थे।
- ये अगस्त, 2003 से मई, 2004 तथा 26 अगस्त, 2013 से 18 दिसंबर, 2014 तक भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल थे।
- इनके पश्चात वर्ष 2018 में न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ऐसी पहली महिला (तथा कुल 8वीं व्यक्ति) बनीं, जो सीधे अधिवक्ता (बार) से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश पद पर नियुक्त हुई।
|
70. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निम्नांकित मुख्य न्यायमूर्तियों में से कौन भारत के उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश नहीं
(a) न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक
(b) न्यायमूर्ति आर.वी. रविन्द्रन
(c) न्यायमूर्ति एस.के. झा
(d) न्यायमूर्ति ए.के. माथुर
[M.P.P.C.S. (Pre) 2020]
उत्तर-(c) न्यायमूर्ति एस.के. झा
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के प्रश्नगत मुख्य न्यायाधीशों में से न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक 2009-14 के मध्य, न्यायमूर्ति आर.वी. रविन्द्रन 2005- 11 के मध्य तथा न्यायमूर्ति ए.के. माथुर 2004-08 के दौरान उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश रहे थे।
- न्यायमूर्ति एस. के. झा 1989-93 के दौरान मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे थे, तथापि वे भारत के उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश नहीं रहे।
|
71. भारतीय न्यायिक व्यवस्था में जब जनहित याचिका को शामिल किया गया, उस समय भारत के मुख्य न्यायाधीश कौन थे?
(a) एम. हिदायतुल्ला
(b) ए.एम. अहमदी
(c) पी.एन. भगवती
(d) वाई.वी. चंद्रचूड़
[U.P.P.C.S. (Pre) 2018]
उत्तर-(d) वाई.वी. चंद्रचूड़
- भारतीय न्यायिक व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय की पहल पर जनहित याचिकाओं (PIL : Public Interest Litigation) की शुरुआत हुई।
- इसके तहत नागरिक समाज का कोई व्यक्ति या समूह जनहित के मामलों में न्यायिक उपचार प्राप्त करने हेतु न्यायालय की शरण ले सकता है।
- सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी. एन. भगवती द्वारा वर्ष 1979 में हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य वाद में जनहित याचिका स्वीकार की गई थी।
- इस याचिका को पुष्पा कपिला हिंगोरानी (Pushpa Kapila Hingorani) ने दाखिल किया था।
- इन्हें ‘जनहित याचिका की मां’ (Mother of PIL) के नाम से भी जाना जाता है।
- उल्लेखनीय है कि जिस समय पी.एन. भगवती ने यह याचिका स्वीकार की थी, उस समय वे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे, न कि मुख्य न्यायाधीश।
- सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में इनकी नियुक्ति 17 जुलाई, 1973 को हुई, जबकि मुख्य न्यायाधीश के रूप में इनका कार्यकाल 12 जुलाई, 1985 से 20 दिसंबर, 1986 तक था।
- जबकि पहली जनहित याचिका स्वीकार होने के समय वाई.वी. चंद्रचूड़ (22 फरवरी, 1978 से 11 जुलाई, 1985 तक) सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे।
|
72. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर भारत के मुख्य न्यायमूर्ति थे।
2. न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर भारतीय न्यायिक सेवा में लोकहित याचिका (PIL) के प्रजनकों में से एक माने जाते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
[I.A.S. (Pre) 2008]
उत्तर-(b) केवल 2
- न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर 1973 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए थे।
- वे कभी भारत के मुख्य न्यायाधीश नहीं रहे।
- न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती एवं न्यायमूर्ति अय्यर लोकहित याचिका (PIL) को प्रारंभ करने एवं प्रोत्साहन देने के लिए जाने जाते हैं।
|
73. पी.आई.एल. है-
(a) पब्लिक इन्टरेस्ट लिटिगेशन
(b) पब्लिक इन्क्वायरी लिटिगेशन
(c) पब्लिक इन्वेस्टमेंट लिटिगेशन
(d) प्राइवेट इन्वेस्टमेंट लिटिगेशन
[M.P.P.C.S. (Mains) 2013]
उत्तर- (a) पब्लिक इन्टरेस्ट लिटिगेशन
- पी.आई.एल. (P.I.L.) का पूर्णरूप है-‘पब्लिक इन्टरेस्ट लिटिगेशन’ (जनहित याचिका)।
- जनहित याचिका उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय दोनों में प्रस्तुत की जा सकती है।
|
74. निम्नलिखित कथनों पर विचार कर सही उत्तर निम्न कूट की सहायता से चुनिए :
कथन (A): जनहित याचिका जन सहयोगी नागरिकों को न्यायालय तक जाने की स्वीकृति देती है।
कारण (R): जन सहयोगी व्यक्ति उस व्यक्ति के लिए न्याय मांग सकें जो किसी कारण से न्यायालय तक पहुंच पाने में असमर्थ है।
कूट :
(a) (A) और (R) दोनों सत्य हैं और (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है।
(b) (A) और (R) दोनों सत्य हैं, परंतु (R), (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(c) (A) सही है, परंतु (R) गलत है।
(d) (A) गलत है, परंतु (R) सही है।
[U.P. P.C.S. (Spl.) (Mains) 2004]
उत्तर- (a) (A) और (R) दोनों सत्य हैं और (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है।
- जनहित याचिका के माध्यम से नागरिक समाज का कोई व्यक्ति या समूह किसी व्यक्ति, समूह या समाज के हित संबंधी मामलों में न्यायिक उपचार की प्राप्ति हेतु न्यायालय जा सकता है।
- इस प्रकार कथन एवं कारण दोनों सही हैं और कारण, कथन की सही व्याख्या है।
|
75. लोकहित वाद (मुकदमे) की संकल्पना का उद्गम देश है –
(a) ऑस्ट्रेलिया
(b) भारत
(c) यू.एस.ए.
(d) यू.के.
[I.A.S. (Pre) 1997, U.P.P.C.S. (Mains) 2011]
उत्तर-(c) यू.एस.ए.
- लोकहित वाद (मुकदमे) की संकल्पना का उद्भव यू.एस.ए. (अमेरिका) से हुआ है।
|
76. भारत में ‘न्यायिक सक्रियता’ संबंधित है-
(a) प्रतिबद्ध न्यायपालिका से
(b) जनहित याचिका से
(c) न्यायिक पुनरावलोकन से
(d) न्यायिक स्वतंत्रता से
[U.P.R.O./A.R.O. (Pre) 2014]
उत्तर-(b) जनहित याचिका से
- भारत में ‘न्यायिक सक्रियता’ (Judicial Activism) यद्यपि न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) और जनहित याचिका (Public Interest Litigation PIL) दोनों से संबंधित है तथापि वस्तुतः जनहित याचिका की प्रक्रिया के माध्यम से ही न्यायिक सक्रियता भारत में सामाजिक परिवर्तन की वाहक के रूप में उभरी है।
- अतः प्रश्नगत विकल्पों में सर्वाधिक उचित उत्तर विकल्प (b) है।
|
77. यह किसने कहा कि ‘न्यायिक सक्रियतावाद’ को ‘न्यायिक जोखिमवाद’ नहीं
(a) न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती
(b) न्यायमूर्ति ए.एस. आनंद
(c) न्यायमूर्ति रंजन गोगोई
(d) न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा
[Jharkhand P.C.S. (Pre) 2021]
उत्तर-(b) न्यायमूर्ति ए.एस. आनंद
- भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.एस. आनंद ने एक सार्वजनिक व्याख्यान में कहा था कि न्यायिक सक्रियतावाद’ (Judicial activism) को ‘न्यायिक जोखिमवाद’ (Judicial adventurism) नहीं होना चाहिए तथा न्यायाधीशों को अपने न्यायिक कर्तव्यों के क्रियान्वयन के संदर्भ में आत्मानुशासित एवं सावधान रहना चाहिए।
|
78. सितंबर, 2003 में न्यायालय के एक निर्णय से भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति प्रतिष्ठित हुई, वह न्यायालय है-
(a) भारत का सर्वोच्च न्यायालय
(b) लोकल कोर्ट
(c) विशेष न्यायालय
(d) यू.पी. का उच्च न्यायालय
[U.P.P.C.S. (Mains) 2009]
उत्तर-(a) भारत का सर्वोच्च न्यायालय
- 23 सितंबर, 2003 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम.बी. शाह एवं न्यायमूर्ति डॉ. ए.आर. लक्ष्मणन की पीठ ने विजयलक्ष्मी बनाम पंजाब विश्वविद्यालय एवं अन्य के वाद में दिए अपने निर्णय में यह अभिनिर्धारित किया कि लड़कियों के लिए सरकारी कॉलेज में प्रधानाचार्य पद पर नियुक्ति हेतु किसी महिला को वरीयता देना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 एवं 16 में वर्णित समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
|
79. विशाखा व अन्य बनाम राजस्थान राज्य व अन्य मुकदमा संबंधित
(a) महिलाओं की तबादला नीति से
(b) कामकाजी महिलाओं के मातृत्व अवकाश से
(c) समाज में व्याप्त दहेज प्रथा के प्रचलन की रोकथाम से
(d) कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम से
[R.A.S./R.T.S. (Pre) 2021]
उत्तर-(d) कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम से
- विशाखा व अन्य बनाम राजस्थान राज्य व अन्य वाद (1997) कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम से संबंधित है।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का स्पष्ट उल्लंघन माना था तथा इसकी रोकथाम के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिन्हें ‘विशाखा दिशा-निर्देश’ के नाम से अभिहित किया जाता है।
|
80. उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित में से किस मामले में पाया कि केंद्रीय अन्वेषण शाखा एक ‘पिंजराबंद तोता’ है?
(a) रेलवे बोर्ड रिश्वत मामले में
(b) विनीत नारायणी बनाम भारत संघ
(c) 2G स्पेक्ट्रम घोटाला वाद
(d) कोयला आवंटन घोटाला वाद
[U.P.P.C.S. (Pre) 2015]
उत्तर-(d) कोयला आवंटन घोटाला वाद
- उच्चतम न्यायालय ने कोयला आवंटन घोटाला वाद की सुनवाई के दौरान सीबीआई को ‘पिजराबंद तोता’ की संज्ञा दी थी।
|
81. समलैंगिकता संबंधी सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय निम्नलिखित में किससे संबंधित है?
(a) भा.द.सं. की धारा 377
(b) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 377
(c) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 277
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
[U.P.P.C.S. (Pre) 2018]
उत्तर- (a) भा.द.सं. की धारा 377
- 6 सितंबर, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 को आंशिक रूप से असंवैधानिक घोषित किया।
- ज्ञातव्य है कि IPC की धारा 377 अप्राकृतिक यौन अपराधों से संबंधित है।
|
82. किस कानून के अंतर्गत यह विहित है कि भारत के उच्चतम न्यायालय की संपूर्ण कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी?
(a) उच्चतम न्यायालय कानून, 1966 द्वारा
(b) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145 द्वारा
(c) संसद द्वारा बनाए गए विधेयक द्वारा
(d) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 द्वारा
[U.P.P.C.S. (Mains) 2013]
उत्तर-(d) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 द्वारा
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के संबंध में उपबंध किया गया है।
- इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होगी।
|