सुस्थितिक और समस्थितिक सागर तल परिवर्तनों के मध्य अंतर
प्रश्न:सुस्थितिक और समस्थितिक सागर तल परिवर्तनों के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए। साथ ही, सागर तल के उतार- चढ़ाव के परिणामस्वरूप निर्मित होने वाली संभावित परिणामी भू-आकृतियों की भी चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- सुस्थितिक और समस्थितिक सागर तल परिवर्तनों को परिभाषित करने के साथ उत्तर आरंभ कीजिए।
- सागर तल परिवर्तनों के परिणामस्वरूप निर्मित होने वाली संभावित परिणामी भू-आकृतियों की भी चर्चा कीजिए।
- उचित निष्कर्ष प्रदान कीजिए।
उत्तर
सागर तल ज्वार के अनुसार दैनिक आधार पर परिवर्तित होता है लेकिन कई कारणों से सागर तल समय के साथ भी परिवर्तित होता है। इन कारणों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है, सुस्थितिक और समस्थितिक परिवर्तन।
सुस्थितिक परिवर्तन (Eustatic Change)
- यह महासागरीय परिवर्तन तब घटित होता है जब महासागरों में जल की मात्रा में परिवर्तन के कारण सागर तल परिवर्तित हो जाता है अथवा, वैकल्पिक रूप से, सागरीय बेसिन के आकार में परिवर्तन होता है और इस कारण से सागर द्वारा धारित किए जा सकने वाली जल की मात्रा में परिवर्तन होता है। सुस्थितिक परिवर्तनों से सदैव एक वैश्विक प्रभाव उत्पन्न होता है।
समस्थितिक परिवर्तन (Isostatic Change)
- समस्थितिक सागर तल परिवर्तन, विशिष्ट क्षेत्रों में समुद्र के सापेक्ष स्थलीय भाग की गतिशीलता का परिणाम है और इसलिए यह सागर तल में स्थानीय परिवर्तन का कारण बनता है। जब स्थलीय भाग की ऊंचाई में वृद्धि होती है, तो सागर तल में कमी आती है और जब स्थलीय भाग की ऊंचाई में कमी आती है तो सागर तल में वृद्धि होती है।
- उदाहरण के लिए- हिमयुग के दौरान हुआ समस्थितिक परिवर्तन स्थलीय भाग पर हिम जमाव के कारण घटित हुआ। जैसे-जैसे स्थलीय भाग पर ग्लेशियरों में जल संचित होता है, तो स्थलीय भाग के भार में वृद्धि होती है तथा स्थलीय भाग में अल्प अवतलन होता है, जिससे सागर तल में अल्प वृद्धि होती है। जब एक हिमयुग के अंत में हिम पिघलती है,तो स्थलीय भाग का पुनरुत्थान होता है और
सागर तल में कमी आती है। सागर तल परिवर्तनों के परिणामस्वरूप निर्मित होने वाली संभावित परिणामी भू-आकृतियां
सागर तल में परिवर्तन के कारण दो प्रकार की तटीय भू-आकृतियां निर्मित होती हैं। ये भू-आकृतियां निम्नलिखित हैं:
- उन्मज्जित भू-आकृतियां (Emergent Landforms) इनका निर्माण सागर तल में सुस्थितिक वृद्धि की तुलना में समस्थितिक पुनरुत्थान के तीव्र होने से होता है। सरल शब्दों में, स्थलीय भाग की ऊंचाई में सागर तल की तुलना में तीव्र वृद्धि होती है। इन्हें तटीय अपरदन और उभरे हुए समुद्र पुलिन तटों (beaches) जैसी विशेषताओं द्वारा चिन्हित किया जाता है।
- निमज्जित भू-आकृतियां (Submergent Landforms) इनका निर्माण हिमयुग के पश्चात सागर तल में समस्थितिक पुनरुत्थान की तुलना में सुस्थितिक वृद्धि के तीव्र होने से होता है। मूलतः, जल स्थलीय भाग पर भरने लगता है और स्थलीय भाग पर निर्मित भू-आकृतियाँ जलप्लावित होने लगती हैं।कुछ भू-आकृतियां निम्नलिखित हैं:
- रिया: यह एक नदी घाटी है, जिसमें सुस्थितिक सागर तल में वृद्धि से बाढ़ग्रस्तता की स्थिति उत्पन्न होती है।
- फियोर्ड: ये अपेक्षाकृत गहरी तटवर्ती घाटियां हैं जिनमें सागरीय जल भर जाता है। इसके पार्श्व तीव्र ढलान युक्त होते हैं और
- ये अपने आकार की तुलना में संकीर्ण होते हैं।
- डॉल्मेशियन समुद्र तट: जब सागर तल में वृद्धि से घाटियां जलप्लावित हो जाती हैं, तो घाटियों के शीर्ष समुद्र की सतह से ऊपर विद्यमान रहते हैं और समुद्र तट रेखा के समानांतर द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में प्रतीत होते हैं।
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