श्रम कानून : चुनौतियों और केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम

प्रश्न: केंद्र और राज्य स्तरों पर वर्तमान श्रम कानूनों के साथ अनुपालन की उच्च लागत के साथ-साथ जटिलताएं भी जुड़ी हुई हैं। चर्चा कीजिए। इन चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा  क्या कदम उठाए गए हैं?

दृष्टिकोण

  • भारतीय श्रम कानूनों का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए। 
  • श्रम कानूनों के कार्यान्वयन में अनुपालन और कठिनाइयों से जुड़ी समस्याओं को रेखांकित कीजिए।
  • इन जटिलताओं से निपटने हेतु केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर उपयुक्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

श्रम कानून का अस्तित्व भारत में रोजगार की शर्तों अर्थात् कर्मचारियों के वेतन, कार्य की दशाओं, लाभ और अन्य अधिकारों को विनियमित करके श्रमिकों के हितों की रक्षा करना है। हालांकि इन कानूनों का अनुपालन निम्नलिखित कारकों के कारण नियोक्ताओं के लिए उच्च लागत और जटिलताओं सहित क्षति पहुंचाता है:

  •  श्रम कानूनों की बहुलता: चूँकि ‘श्रम’ समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए श्रमिकों के मुद्दों से संबंधित 44 केंद्रीय कानून और 100 से अधिक केंद्रीय कानून राज्य कानून विद्यमान हैं। उदाहरण के लिए, केंद्र सरकार के औद्योगिक विवाद अधिनियम (1947) में गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों द्वारा अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप संशोधन किया गया था। संगठित क्षेत्र में श्रम कानूनों की बहुलता नियोक्ताओं को इस क्षेत्र में निवेश करने हेतु हतोत्साहित करती है।
  • कई अप्रचलित कानूनों की उपस्थिति, जो 1991 के बाद के आर्थिक सुधारों के युग में असंगत बने हुए हैं।
  • नियामकीय ढांचा अत्यधिक कठोर बना हुआ है। उदाहरण के लिए, एक कंपनी को अस्थायी रूप से बंद करने या पूर्ण रूप से बंद करने हेतु अनिवार्य रूप में सरकार की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
  • नौकरशाही की उदासीनता विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों की सहज प्रगति में बाधा उत्पन्न कर रही है।
  • विनियामकीय उद्देश्य के लिए विभिन्न रजिस्टरों और रिकार्डों को बनाए रखना प्रक्रिया को अत्यधिक जटिल बना देता है।
  • इन कानूनों के द्वारा कंपनियों के लिए रोजगार के स्तरों को कुछ निश्चित सीमा तक बनाए रखने का प्रावधान किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप कम्पनियाँ प्रायः छोटी और अनौपचारिक बने रहने हेतु प्रोत्साहित होती हैं।

श्रम विनियमन में सुधार के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • श्रम सुविधा पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन लाइसेंस प्रदान करना और अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • कंपनियों को श्रम कानूनों के एक समुच्चय हेतु एक स्व-प्रमाणित रिटर्न दाखिल करने की अनुमति प्रदान की गई है।
  • कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) नंबर पोर्टेबिलिटी का क्रियान्वयन।
  • 38 केंद्रीय श्रम कानूनों का चार संहिताओं, नामतः मजदूरी संहिता; सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य संबंधी दशाओं पर संहिता; औद्योगिक संबंध संहिता तथा सामाजिक सुरक्षा और कल्याण पर संहिता के रूप में युक्तिकरण करना।
  • औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 के अंतर्गत सभी क्षेत्रकों के लिए ‘फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट वर्कमैन’ की एक नई श्रेणी को शामिल किया गया है।
  • मॉडल दुकान एवं प्रतिष्ठान (रोजगार एवं सेवा शर्तों का नियमन) विधेयक, 2016 को राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में भी लागू किया गया है। यह किसी प्रतिष्ठान को समय पर खोलने/बंद करने संबंधी प्रतिबंध आरोपित किए बिना वर्ष के 365 दिन संचालन की अनुमति प्रदान करता है और साथ ही नाइट शिफ्ट में महिलाओं के रोजगार को भी सक्षम बनाता है।
  • अनुपालन लागत को कम करने हेतु ‘विभिन्न श्रम कानून नियमों, 2017’ के तहत फॉर्स और रिपोर्टों का युक्तिकरण किया गया है।

वास्तविक अर्थों में श्रम सुधार तभी सार्थक होंगे जब श्रम बाजार में अत्यधिक कुशल लोग विद्यमान होंगे, जो नियोक्ता द्वारा शोषण किए जाने के भय के बिना विनिर्माण और सेवा वितरण के क्षेत्र को संवर्धित करेंगे। इसलिए जहाँ श्रम कानूनों में परिवर्तन करने हेतु भारत सरकार द्वारा की गई हाल ही की पहल स्वागत योग्य है, वहीं श्रमबल की क्षमता में वृद्धि करते हुए उन्हें सशक्त बनाने पर भी समान रूप से बल दिया जाना चाहिए।

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