उत्तर प्रदेश के विशेष संदर्भ में 1857 के विप्लव के कारणों पर चर्चा करें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका

  • 1857 के विद्रोह का संक्षिप्त उल्लेख करें और बताएं कि विद्रोह का प्रमुख केन्द्र उत्तर प्रदेश था

मुख्य भाग

निष्कर्ष

  • विद्रोह की गंभीरता/व्यापकता और महत्व को बताएं।

उत्तर

भूमिकाः

सन् 1857 में, भारत के उत्तरी एवं मध्य भाग में एक शक्तिशाली जन-विद्रोह हुआ, जिसने कुछ समय के लिए ब्रिटिश सरकार और उसकी शोषक शासन प्रणाली को उखाड़ फेंका। यद्यपि विद्रोह का प्रारंभ कंपनी की सेना में कार्यरत भारतीय सिपाहियों ने किया लेकिन जल्द ही लाखों-लाख किसान, दस्तकार और स्थानीय शासक व जमींदार इसमें शामिल हो गए। उत्तर प्रदेश इस विद्रोह का प्रमुख केन्द्र था।

मुख्य भागः

1857 का महान विप्लव मात्र सैनिक असंतोष का परिणाम नहीं था। वस्तुतः यह विद्रोह ब्रिटिश विस्तारवादी राजनीतिक प्रणाली, शोषक आर्थिक नीतियाँ, दोषपूर्ण सैन्य नीति और भेदभाव पूर्ण सामाजिक-धार्मिक कारकों का सामूहिक परिणाम था।

राजनीतिक कारण

  • 1848 से 1856 के बीच लॉर्ड डलहौजी ने हड़प नीति विलय नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स) के तहत अनेक राज्यों पर अधिकार कर लिया। इसी नीति के तहत 1856 ई. में “अवध का विलय” ब्रिटिश साम्राज्य में किया गया। अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन का आरोप लगाया गया। इससे पूरे प्रदेश में असंतोष की लहर उत्पन्न हो गयी।
  • इसी समय, डलहौजी द्वारा “गोद निषेध नीति” को अपनाया गया। झांसी में राजा गंगाधर राव की मृत्यु के पश्चात्रा नी लक्ष्मीबाई ने ‘दत्तक पुत्र’ को उत्तराधिकारी घोषित किया। लेकिन इसे नकारते हुए झांसी को भी ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया। लोकप्रिय शासक के साथ हुए इस दुर्व्यवहार ने लोगों को आन्दोलित कर दिया।
  • ब्रिटिश शासकों ने ना केवल मुगल शासकों को लाल किला छोड़ने पर विवश कर दिया अपितु मराठा शासन के प्रतीक रहे “नाना साहब” की पेंशन पर भी रोक लगा दी। यह स्थिति भारतीय शासकों का घोर निरादर थी। इसके अतिरिक्त लार्ड वेलेजली की सहायक संधि तथा अन्य ब्रिटिश नीतियों ने भारतीय शासकों में असुरक्षा और ब्रिटिश विरोध को जन्म दिया।

आर्थिक कारण

  • जन-असंतोष का संभवतः सबसे महत्वपूर्ण कारण अंग्रेजों द्वारा देश का आर्थिक शोषण और देश के परम्परागत आर्थिक ढाँचे का विनाश था। जिसने किसानों, दस्तकारों, हस्तशिल्पियों और साथ ही परम्परागत जमींदारों को निर्धन बना दिया।
  • ब्रिटिश भू-राजस्व की महालवाड़ी व्यवस्था (अवध एवं आगरा क्षेत्र) तथा जमींदारी व्यवस्था (बनारस, इलाहाबाद, झांसी, फैजाबाद, रूहेलखण्ड) में भू-राजस्व की दरें अत्यधिक थीं। इससे प्रदेश के काश्तकार और किसान तबाह हो गये और महाजनों के चंगुल में फंसते चले गए।
  • भू-राजस्व में वृद्धि के कारण पुराने जमींदारों के समक्ष पद और अधिकार को बनाए रखने की चनौती उत्पन्न हो गयी। क्योंकि किसान लगान देने में सक्षम नहीं थे और ब्रिटिश शासन जमींदारों पर भू-राजस्व की वसूली का दबाव लगातार बढ़ा रहे थे।
  • इसी प्रकार, ब्रिटिश आयात-निर्यात नीति भारतीय व्यापार व उद्योग के विरूद्ध थी। इससे उत्तर प्रदेश के हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग, जैसे-बनारस की साड़ियों, फिरोजाबाद की चूड़ियों इत्यादि का पतन हो गया।
  • इसके अतिरिक्त मध्य एवं उच्च वर्ग के लोग जो देशी रियासतों के उच्च प्रशासनिक पदों पर कार्यरत थे. अवध और झांसी के विलय के पश्चात् असंतुष्ट थे। साथ ही विद्वान, पण्डितों, धर्मगरूओं और फकीरों का संरक्षण भी समाप्त हो गया और यह वर्ग भी गरीबी की चंगुल में फंस गया।

सामाजिक एवं धार्मिक कारण

  • ब्रिटिश शासकों द्वारा किए गए धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों से परम्परागत भारतीय समाज में असंतोष और उत्पन्न हो रही थी। सती प्रथा पर प्रतिबंध, विधवा पुनर्विवाह की स्वीकृति (1856) इत्यादि भारतीय समाज ब्रिटिश हस्तक्षेप माना गया।
  • इसी प्रकार, 1856 ई. में धार्मिक असक्षमता कानून (रिलिजीयस डिसेबिलिटी एक्ट) द्वारा हिन्दु से धर्मातरित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा ने धर्मान्तरण को भी प्रोत्साहित किया।
  • ईसाई मिशनरियों द्वारा ब्रिटिश संरक्षण में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया गया। साथ ही भारतीय धर्म एवं परम्परा का ईसाईयों द्वारा उपहास किया गया। इससे हिन्दु और मुसलमान दोनों वर्ग क्रूद्ध हो रहा था।

सैनिक कारण

  •  ईस्ट इण्डिया कंपनी में कार्यरत् अंग्रेज और भारतीय सैनिकों में अत्यधिक असमानता थी। एक ही पद पर कार्य करने वाले ब्रिटिश सैनिक की तुलना में भारतीय सैनिकों को कई गुना कम वेतन दिया जाता था।
  • 1856 ई. में ‘जनरल सर्विस एनलिस्टमेंट एक्ट’ पारित किया गया जिसके तहत सैनिकों को युद्ध के लिए कहीं भी भेजा जा सकता था। इससे उच्च वर्गीय हिन्दू सैनिकों में घोर असंतोष का जन्म हुआ, क्योंकि इस समय समुद्र पार करना धर्म विरूद्ध था।
  • इसके अतिरिक्त देश से बाहर सेवा करने पर अतिरिक्त भत्ता नहीं दिया जा रहा था। 1854 के डाकघर अधिनियम के द्वारा डाक सेवाओं पर भी शुल्क आरोपित किए गए।
  • इसके साथ ही 1856 ई. में ‘अवध के विलय’ ने सैनिकों को क्रूद्ध कर दिया था। सेना में अधिकांश सिपाही अवध से थे जो वास्तव में वर्दीधारी किसान थे।

तात्कालिक कारण

1856 में कम्पनी सरकार ने पुरानी लोहे वाली ब्राउन बैस बन्दूकों की जगह नए एनफील्ड राइफलों के प्रयोग का निश्चय किया। इसके बाद शीघ्र ही यह अफवाह फैल गई कि नए राइफलों में प्रयोग किये जाने वाले कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी है, जिसे प्रयोग से पूर्व मुँह से काटना पड़ता है। इन अफवाहों के सच साबित होने पर हिन्दू तथा मुसलमान सैनिकों ने समझा कि अंग्रेज उनका धर्म नष्ट करना चाहते हैं। यही इस विद्रोह के सूत्रपात का तात्कालिक कारण बना।

निष्कर्ष

उपरोक्त कारणों से 10 मई 1857 को वर्तमान उत्तर प्रदेश के मेरठ छावनी से सैनिकों ने विद्रोह का उद्घोष किया। दिल्ली उत्तर प्रदेश सहित भारत के सभी प्रमुख केन्द्रों तक विद्रोह शीघ्र फैल गया। इस प्रकार यह ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति के लिए भारतीय जनता द्वारा किया गया ‘प्रथम राष्ट्रीय विद्रोह’ था जिसने आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास का आधार तैयार किया।

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