सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को परिभाषित कीजिए। इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने हेतु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित योजनाओं को बताएं।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका:

  • संक्षेप में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के महत्व को बताएं।

मुख्य भाग:

  • विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को अलग-अलग बताइए।
  • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इन उद्योगों के विकास हेतु संचालित विभिन्न कार्यक्रमों एवं योजनाओं को बताएं।
  • संक्षेप में प्रदेश में विद्यमान समस्याओं एवं चुनौतियां को बताएं।

निष्कर्ष:

  • लघ एवं मध्यम उद्योग के विकास के लिए कुछ सुझाव दें।

उत्तर

भूमिकाः

सुक्ष्म एवं मध्यम उद्योग भारत ही नहीं उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान रखते हैं। प्रदेश में लगभग2 करोड़ से अधिक लोगों को इन उद्योगों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त होता है। उत्तर प्रदेश के निर्यात और विनिर्माण में इन उद्योगों का प्रमुख स्थान है।

मुख्य भागः

 भारत  सरकार ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम 2006 अधिनियमित किया है जिसके अनुसार सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों की परिभाषा निम्नवत है:

विनिर्माण क्षेत्र- 

किसी वस्तु के निर्माण अथवा उत्पादन, प्रसंस्करण अथवा परिरक्षण करने वाले उद्यम इस श्रेणी में शामिल किये जाते ॐ अधिनियम के अनुसार उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित है-

  • अति लघ/सक्ष्म (माइक्रो) उद्यम वह होता है जिसमें संयंत्र एवं मशीनरी पर निवेश रू. 25 लाख तक होता है।
  • लघ उद्यम वह है जिसमें संयंत्र एवं मशीनरी पर निवेश रू. 25 लाख से अधिक किंतु रू. 5 करोड़ से अधिक नहीं होता; तथा
  • मध्यम उद्यम वह है जिसमें संयंत्र एवं मशीनरी पर व्यय रू. 5 करोड़ से अधिक किंतु रू. 10 करोड़ से – अधिक नहीं होता।

उक्त उद्यमों के मामले में संयंत्र एवं मशीनरी में निवेश उनकी मूल लागत होती है जिसमें भूमि तथा भवन एवं लघु उद्योग मंत्रालय के अक्टूबर, 2006 की अधिसूचना सं. एस.ओ.1722(ई) में उल्लिखित मदें शामिल नहीं होती।

सेवा क्षेत्र

वे उद्यम जो सेवा प्रदान करने अथवा उपलब्ध कराते हैं, तथा जिनका उपस्करों/उपकरणों में निवेश (मूल लागत भूमि,भवन तथा फिटिंग्स एवं एमएसएमईडी अधिनियम 2006 में अधिसूचित उन मदों को छोड़कर जिनका प्रदान की जा रही है सेवा से सीधा संबंध न हो, का विवरण निम्नवत है-

  • अति लघु/सूक्ष्म (माइक्रो) उद्यम वह होता है जिसमें उपस्करों/उपकरणों पर निवेश रू. 10 लाख से अधिक नहीं होता है।
  • लघु उद्यम वह है जिसमें उपस्करों/उपकरणों पर निवेश रू. 10 लाख से अधिक किंतु रू. 2 करोड़ से अधिक नहीं होता; तथा
  • मध्यम उद्यम वह है जिसमें उपस्करों/उपकरणों पर व्यय रू. 2 करोड़ से अधिक किंतु रू. 5 करोड़ से अधिक नहीं होता।

उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयास-

  • पारम्पारिक शिल्प एवं लघु उद्यमों के संरक्षण के लिए तथा उसमें अधिक से अधिक व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करने  लिए एवं उनकी आय में वद्धि के लिए “एक जनपद-एक उत्पाद” योजना प्रारम्भ की गयी है।
  • उद्ममियो को ऑनलाइन एकल मेज व्यवस्था के अंतर्गत niveshmitra.up.nic.in पोर्टल प्रारंभ किया गया है।
  • सी.एफ.सी. पैकेजिंग एंड स्टोरेज फार फूड एण्ड वेजटेबिल, लखनऊ की परियोजना का लोकार्पण किया गया है।
  • डिजाइन डेवलपमेंट एंड टेनिंग सेंटर फार जरी इण्डस्टीज, लखनऊ का विकास तथा संस्थान द्वारा घोषित विभिन्न परियोजना का संचालन प्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा है।
  • मुरादाबाद मे सीएफसी फार मेटल कम्पोनेंट एंड मेटल प्रोसेसिंग सेंटर का विस्तार तथा संस्थान द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • रुपये 2448.20 लाख की दो परियोजनाओं- मोनो फिलमेंट यार्न क्लस्टर, कानपुर एवं कार्पट एवं दरी क्लस्टर, सोनभद्र की स्थापना की जा रही है।
  • शासकीय विभागों में सामग्री व सेवाओं के क्रय के लिए भारत सरकार द्वारा विकसित गवर्नमेंट ई-मार्केट प्लेक्स (GEM) अंगीकृत किया गया है।
  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के प्रोत्साहन के लिए उत्तर प्रदेश सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम प्रोत्साहन नीति, 2017 जारी की गयी है। जिससे पूँजी निवेश हेतु 695 एमओयू हस्ताक्षरित हुए हैं जिससे रू. 23324.59 करोड़ का निवेश एवं 1,61,000 रोजगार सृजित होने की संभावना है।

समस्या एवं चुनौती-

प्रदेश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग उपरोक्त प्रयासों के बावजूद निम्नलिखित समस्याओं से ग्रसित हैंप्रबंधन की समस्या।

  • वित्त की अनुपलब्धता।
  • कुशल श्रमिकों का अभाव। 
  • बाजार का अल्प ज्ञान।
  • परम्परागत तकनीक।
  • बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा।

निष्कर्षः

इस प्रकार सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों का विकास राज्य के आर्थिक विकास के लिए अनिवार्य है। इन उद्योगों को वित्त एवं साख की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करवायी जानी चाहिए। वाराणसी में स्थापित दीनदयाल हस्तकला संकुल के समान अन्य संकुलों का विकास आवश्यक है। साथ ही ऑनलाइन प्लेटफार्म भी उपलब्ध करवाने की भी आवश्यकता है।

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