खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से आप क्या समझते हैं? उत्तर प्रदेश के आर्थिक विकास में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की भूमिका का परीक्षण करें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका:

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की जरूरत क्यों है? बतायें।

मुख्य भाग:

  • खाद्य प्रसंस्करण की परिभाषा बतायें।
  • प्राथमिक, माध्यमिक एवं तृतीय प्रसंस्करण बतायें।
  • उत्तर प्रदेश के आर्थिक विकास में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की भूमिका बतायें।
  • इस उद्योग की स्थापना में अवरोधक तत्व बतायें।

निष्कर्ष:

  • चुनौतियों के समाधान के रूप में निष्कर्ष लिखें।

उत्तर

भूमिकाः

उत्तर प्रदेश कृषि और पशु उत्पादों के साथ-साथ जनसंख्या के मामले में भी भारत का शीर्ष राज्य है। झसे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए आवश्यक कच्चा माल, सस्ता श्रम एवं बाजार स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध है। इस व्यापक उत्पादन आधार के साथ उत्तर प्रदेश, भारत समेत दुनिया को खाद्य पदार्थों का बड़ा आपूर्तिकर्ता बन सकता है, जिसके लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास एक आवश्यक शर्त है।

मुख्य भागः

मूल रूप से प्राप्त कृषि उत्पादों और पशु उत्पादों को मानक उपभोग के अनुरूप बनाना ‘खाद्य प्रसंस्करण’ कहलाता है। खाद्य प्रसंस्करण का वर्गीकरण तीन श्रेणियों में किया गया है।

  • प्राथमिक प्रसंस्करण: प्राथमिक प्रसंस्करण में उत्पाद के भौतिक रूप में परिवर्तन नहीं होता है और मूल्य संवर्द्धन भी नहीं के बराबर ही होता है। इसके अंतर्गत सफाई, ग्रेडिंग, छंटाई, पैकिंग आदि कार्य होता है।
  • माध्यमिक प्रसंस्करण: इसके अंतर्गत कच्चे कृषि एवं पशु उत्पादों को इस प्रकार रूपांतरित किया जाता है कि इसकी मूल भौतिक विशेषताओं में बदलाव आ जाएं। इस प्रक्रिया में मानव श्रम के अलावा मशीन, बिजली और पूँजी का इस्तेमाल होता है। यह प्रक्रिया मूल्य संवर्द्धन में सहायक होता है। जैसे- गेहूँ को आटे में रूपान्तरित करना।
  • तृतीयक प्रसंस्करणः इसमें कृषि एवं पशु उत्पादों को तुरंत खाने योग्य स्थिति में लाया जाता है। जैसे-शीतल पेय, दही, बिस्किट आदि। इस चरण में प्रसंस्करण के दौरान सर्वाधिक मूल्य संवर्द्धन होता है।

उत्तर प्रदेश के आर्थिक विकास में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की भूमिका-

  • संभावना व्यक्त की जा रही है कि आने वाले वर्षों में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र उत्तर प्रदेश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण उत्प्रेरक साबित होगा।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना से अवसंरचनात्मक सुविधाओं का विस्तार होगा, जिससे खाद्यान्न उत्पादों की बर्बादी कम होगी और किसानों का उत्पादन लागत कम होगा।
  • यह कृषि एवं विनिर्माण क्षेत्र के बीच सेतु बनकर नागरिकों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करेगा। साथ ही देश भर में स्वस्थ एवं वहनीय भोजन की आपूर्ति करेगा।
  • यह उद्योग कृषि एवं पशु उत्पादों के संदर्भ में मूल्य संवर्द्धन के जरिए किसानों के लिए बेहतर लाभ को सुनिश्चित करेगा।
  • यह बाजार की जरूरत एवं मांग के अनुरूप उत्पादन को सुनिश्चित करता हुआ कृषि क्षेत्र के विविधीकरण में सहायक होगा।
  • उपभोक्ताओं को कम कीमत में अच्छी गुणवत्ता का उत्पाद प्राप्त होगा, जिससे बचत में वृद्धि होकर निवेश को बल मिलेगा।
  • खाद्य मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाते हुए खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा को भी सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग प्रत्यक्ष रोजगार सृजन के अतिरिक्त अप्रत्यक्ष रोजगार अवसरों के सृजन में सहायक होगा।
  • कृषि क्षेत्र पर जनसंख्या के दबाव को कम करते हुए न केवल कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को बढ़ाता है, वरन् कृषि भिन्न रोजगार अवसरों के सृजन के जरिए ग्रामीण आय की वृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का तेजी से विकास उत्तर प्रदेश को ग्रामीण निर्धनता उन्मूलन की चुनौतियों से निपटने में भी सक्षम बनाता है।
  • ग्रामीण क्षेत्र में कृषि एवं कृषि भिन्न आय में वृद्धि कर समावेशी विकास के लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम है

प्रमुख चुनौतियाँ-

  • गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर अपर्याप्त ध्यान है, जिससे विकास की गति को तीव्रता नहीं मिल पा रही है।
  • कृषि उत्पाद की मौसमी प्रकृति है तथा अवसंरचनाओं (प्राथमिक प्रसंस्करण, भंडारण और वितरण सुविधाओं) का अभाव है। इससे कच्चे माल की निरन्तर आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
  • कुशल श्रम की कमी उद्योग स्थापना में चिन्ता का विषय है।
  • मेगा फूड पार्को की स्थापना के लिए जटिल अनुमति प्रक्रिया तथा भूमि अधिग्रहण एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है।
  • नवोन्मेषी तकनीकियों का अभाव है।

निष्कर्षः

उत्तर प्रदेश खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नीति, 2017 सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिए उद्योग स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार ने घोषित की है। साथ ही कुशल एवं क्षमतावान मानव संसाधन निर्माण तथा अवस्थापना सुविधाओं के विकास को भी बल प्रदान करती है।

इस प्रकार प्रत्येक जिले (उत्तर प्रदेश) में कम से कम एक खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना कर न केवल बेरोजगारी की समस्या का निराकरण किया जा सकता है बल्कि राज्य के विकास गति को भी तीव्रता प्रदान किया जा सकता है।

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