भारत में राष्ट्रीय आंदोलन में प्रथम विश्व युद्ध के महत्त्व का आकलन

प्रश्न: भारत में राष्ट्रीय आंदोलन को विभिन्न आंतरिक एवं बाह्य कारकों ने स्वरूप प्रदान किया। इस सन्दर्भ में प्रथम विश्व युद्ध की अवधि के महत्त्व का आकलन कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में राष्ट्रीय आंदोलन को स्वरूप प्रदान करने वाले आंतरिक और बाह्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
  • इस संदर्भ में प्रथम विश्व युद्ध की अवधि के महत्त्व की चर्चा कीजिए और इस अवधि के दौरान होने वाली प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  • प्रमुख घटनाओं के महत्त्व और परिणामों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने विभिन्न आंतरिक कारकों जैसे प्रेस का विकास, स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन आदि तथा बाह्य कारकों जैसे फ्रांसीसी क्रांति, 1904 में जापान से रूस की पराजय, प्रथम विश्व युद्ध आदि के प्रभाव से अपना स्वरूप ग्रहण किया था।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के संदर्भ में प्रथम विश्व युद्ध का महत्त्व:

  • कट्टर राष्ट्रवाद की भावना: युद्ध के कारण अत्यधिक करारोपण तथा आवश्यक वस्तुओं की बढ़ी हुई कीमतों ने भारतीयों की समस्याओं में और अधिक वृद्धि की। फलस्वरूप लोग इसके विरोध में किसी भी उग्रवादी आंदोलन में सम्मिलित होने के लिए तैयार थे।
  • राजनीतिक शून्यता को भरना: युद्ध के प्रारंभ होने के कारण राष्ट्रवादी आंदोलन को एक नव जीवन मिला। ज्ञातव्य है कि राष्ट्रवादी आंदोलन स्वदेशी आंदोलन के बाद से ही लगभग निष्क्रिय बना हुआ था।
  • पश्चिमी प्रभुत्व को झटका: विश्व युद्ध ने एशियाई लोगों पर पश्चिमी देशों की नस्लीय श्रेष्ठता के मिथक को तोड़ दिया।
  • होम रूल लीग: इसने युद्ध के पश्चात् स्वशासन की मांग करते हुए 1915-16 में सम्पूर्ण देश में राष्ट्रवाद का तीव्र प्रचार किया।
  • क्रांतिकारी आंदोलन का विकास: बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर भारत में अनेक क्रांतिकारी समूह उभरे। अमेरिका और कनाडा में भारतीय क्रांतिकारियों ने 1913 में ग़दर पार्टी की स्थापना की और भारत में एक सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया, हालाँकि वह असफल रहा। यद्यपि युद्ध के दौरान किए गए आंदोलन या तो विफल हो गए या दबा दिए गए, लेकिन उन्होंने भारतीयों में देशभक्ति की भावना का संचार किया।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विदेशी युद्ध क्षेत्रों में भारतीय सैनिकों द्वारा प्राप्त अनुभव और क्रांतिकारियों के बलिदानों ने भारतीयों में अपने अधिकारों के लिए लड़ने की आवश्यकता के भाव को जागृत किया। इसी प्रकार होम रूल आंदोलन ने जन आंदोलन को प्रोत्साहित किया, जो भारत में बाद के आंदोलनों की एक प्रमुख विशेषता बन गया। निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि प्रथम विश्व युद्ध की अवधि भारत में परिपक्व होते राष्ट्रवाद को चिन्हित करती है।

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