राष्ट्रपति और राज्यपाल की वीटो शक्तियों के मध्य अंतर
प्रश्न: भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्तियों पर प्रकाश डालिए। राज्यपाल की वीटो शक्तियां राष्ट्रपति की शक्तियों से किस प्रकार भिन्न
दृष्टिकोण:
- भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्तियों के संक्षिप्त विवरण के साथ उत्तर आरम्भ कीजिए।
- राज्यपाल और राष्ट्रपति की वीटो शक्तियों के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।
- जहां भी आवश्यक हो उचित तथ्यों का उपयोग कीजिए।
उत्तर:
वीटो शक्ति विधायिका के किसी भी कार्य को अधिरोहण (override) करने की कार्यपालिका की शक्ति को संदर्भित करती है। यह विशिष्ट विशेषाधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 111 के अनुसार संसद द्वारा पारित सभी विधेयक केवल तभी एक अधिनियम बन सकते हैं जब राष्ट्रपति द्वारा उन्हें स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है। इस प्रकार, किसी विधेयक पर अपनी स्वीकृति को सुरक्षित रखने के माध्यम से राष्ट्रपति वीटो शक्ति का प्रयोग करता है।
भारत के राष्ट्रपति को निम्न प्रकार की वीटो शक्तियां प्राप्त हैं:
- अत्यांतिक वीटो: यह विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखने को संदर्भित करता है। राष्ट्रपति द्वारा इसका उपयोग 1954 में PEPSU विनियोग विधेयक और 1991 में संसद के सदस्यों का वेतन, भत्ता और पेंशन (संशोधन) अधिनियम के मामले में किया गया था।
- निलम्बनकारी वीटो: विधायिका द्वारा इस वीटो को एक साधारण बहुमत से निरस्त किया जा सकता है। भारत के राष्ट्रपति द्वारा 2006 में लाभ का पद संबंधी विधेयक के मामले में इसका उपयोग किया गया था।
- पॉकेट वीटो: यह राष्ट्रपति को विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर कोई कार्रवाई नहीं करने का अधिकार प्रदान करता है। भारत के राष्ट्रपति ने 1986 में भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक के सन्दर्भ में इस वीटो का उपयोग किया था।
साधारण विधेयक के संबंध राष्ट्रपति को सभी तीन वीटो शक्तियां प्राप्त हैं, किन्तु धन विधेयक के सन्दर्भ में उसे केवल अत्यांतिक वीटो की शक्ति प्राप्त है। राष्ट्रपति एक धन विधेयक को संसद के पुनर्विचार हेतु नहीं लौटा सकता है।
राज्यपाल को राज्य विधेयकों (साधारण और धन विधेयक) के संबंध में राज्य स्तर पर राष्ट्रपति के समान शक्तियां प्राप्त हैं। हालाँकि, दोनों ही मामलों में राज्यपाल को विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखने की अतिरिक्त वीटो शक्ति प्राप्त होती है।
जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति के पास निम्नलिखित विकल्प होते हैं:
- राज्य के साधारण विधेयक के संबंध में: राष्ट्रपति या तो विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है या अपने अत्यांतिक या निलम्बनकारी या पॉकेट वीटो का उपयोग कर सकता है। यदि निलम्बनकारी वीटो के सन्दर्भ में संबंधित राज्य विधानमंडल द्वारा पुनर्विचार के बाद विधेयक पारित कर दिया जाता है, तब राष्ट्रपति विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है या इस पर अपनी स्वीकृति रोक सकता है। विधेयक को अधिनियमित करने में राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं होती है।
- राज्य के धन विधेयक के संबंध में: राष्ट्रपति या तो विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है या अपने अत्यांतिक वीटो का उपयोग कर सकता है। इस प्रकार राष्ट्रपति धन विधेयक को राज्य विधानमंडल को पुनर्विचार हेतु नहीं भेज सकता है (जैसा कि संसद के मामले में है)।