उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति को स्पष्ट कीजिए। इस विषय में किए गए सरकारी प्रयासों की एक संक्षिप्त समीक्षा कीजिए।
उत्तर की संरचनाः
भूमिका:
- क्षेत्रवार व लिंगवार उत्तर प्रदेश में शिक्षा की स्थिति बताइए।
मुख्य भाग:
- सरकार की कुछ पहलों को बताइये।
- इन पहलों की प्रभाविता को एक समीक्षा दीजिए।
निष्कर्ष:
- शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए कुछ सुझाव देकर निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
भूमिकाः
मानव पूँजी के निर्माण में शिक्षा सर्वाधिक मूलभूत है जो कि किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक मूल्यवान पूँजी है। उत्तर प्रदेश में यद्यपि शिक्षा में अच्छी प्रगति हुई है परन्तु सुधार की बहुत संभावनाएं बाकी है।
जनगणना 2011 के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल साक्षरता दर 67% है परन्तु इसने क्षेत्रगत व लिंग आधारित असंतुलन है। जहाँ पूर्वी उत्तर प्रदेश में औसतन 50% साक्षरता है वही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 80% साक्षरता है। साथ ही महिला साक्षरता 57% है जबकि पुरूष साक्षरता 77% है।
मुख्य भागः
इन असंतुलनों को कम करने हेतु कई योजनाएं चलाई गई है जिनकी समीक्षा निम्न प्रकार से की जा सकती है
- सर्वशिक्षा अभियान: इसे एजुकेशन फॉर ऑल के नाम से भी जाना जाता है जोकि 6-14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक व उच्च प्राथमिक पर शिक्षा को लक्षित करती है।
- मध्यान्ह भोजन योजनाः यह 1995 ई. में केन्द्र व राज्य सरकार के प्रयासों द्वारा प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की 80% उपस्थिति होने पर बच्चों को अनाज उपलब्ध कराने के लिए लाई गई थी। परन्तु 2004 में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बाद उत्तर प्रदेश के 1,14,460 प्राथमिक व 54372 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पका हुआ भोजन दिया जा रहा है। यह बच्चों को विद्यालयों में आकर्षित करती है ताकि उन्हें शिक्षित किया जा सके।
- शिक्षा मित्र योजना: शिक्षा मित्र उपशिक्षक हैं जिनकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा प्राथमिक शिक्षा को सुदृढ़ करने व प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए संविदा पर की गई है। इसका लक्ष्य परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों पर 02 शिक्षक उपलब्ध कराना है ताकि छात्र-शिक्षक अनुपात को तथा उत्तर प्रदेश में मूलभूत शिक्षा को सुधारा जा सके।
- साक्षर भारत मिशनः यह 2009 में लाई गई राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (1988) के अन्तर्गत एक योजना है जिससे 15 वर्ष की आयु के ऊपर के लोगों में साक्षरता को सुधारा जा सके। यह विशेष रूप से महिला साक्षरता को लक्षित करती है तथा लोगों में यह भी समझ विकसित करने का प्रयास करती है कि वे गरीब क्यों हैं?
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम, (2009): यह 6-14 वर्ष के सभी नागरिकों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा एक मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान करने पर केंद्रित है। उत्तर प्रदेश आरटीई नियमों में यह 1 किमी. के दायरे में एक प्राथमिक स्कूल (प्रति 300 की जनंसख्या पर) तथा 3किमी. के दायरे में एक अन्य प्राथमिक स्कूल (प्रत्येक 800 की जनसंख्या पर) उपलब्ध कराने पर लक्षित है।
यद्यपि इन योजनाओं ने उत्तर प्रदेश में शिक्षा के स्तर का सुधार है फिर भी कुछ चुनौतियाँ निम्नवत देखी जा सकती हैं
- प्राथमिक शिक्षा में नियुक्त शिक्षक अनुपस्थिति, शिक्षक दायित्व की कीमत पर निजी काम, प्राथमिक शिक्षा का प्रात नकारात्मक दृष्टिकोण से ग्रसित है। यह छात्रों के प्रति शिक्षकों की जवाबदेहिता में कमी से भी जुड़ा हुआ है।
- अभिभावकों में गरीबी के कारण बच्चों को बाल श्रम की ओर विस्थापन होता है जिससे स्कूल के समय भी छात्रा की अनुपस्थित होती है।
- शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आवश्यक वित्त तथा सहायक सामग्री जैसे किताबें, वेशभूषा भी दर से मिलती है। इससे शिक्षा के परिणाम कमजोर होते हैं। साथ ही अधिकांश मामलों में आर्थिक रूप से कमजार लागा के लिए 25% आरक्षित सीटों का प्रावधान की अधिकांश विद्यालयों में नहीं पूरा किया जा रहा है।
- शिक्षा मित्र योजना में शिक्षकों की पूर्ण योग्यता की कमी है जिसमें कि बच्चों की मानसिकता की समझ होन अनिवार्य होता है जोकि बारहवीं पास लोगों के पास नहीं होती।
- मध्यान्ह भोजन में भ्रष्टाचार तथा अपर्याप्त व निम्न गुणवत्तायुक्त पका भोजन बच्चों में पोषण स्तर को कम करता है। साथ ही शिक्षकों का मध्यान्ह भोजन में लिप्त होने से शैक्षणिक दृष्टिकोण भी कमजोर होता है।
निष्कर्षः
फिर भी कुछ सकारात्मक परिणाम जैसे प्राथमिक शिक्षा में पंजीकरण का बढ़ना, बेहतर छात्र-शिक्षक अनुपात तथा पिछले 11.41% शिक्षा के प्रसार में बढोत्तरी देखी जा सकती है। फिर भी और सुधार की आवश्यकता है जिसे उपरोक्त सरकारी योजनाओं में अनियमितताओं में सुधार करके किया जा सकता है।