निष्क्रिय इच्छा-मृत्यु (Passive Euthanasia)

इच्छामृत्यु (Euthanasia) क्या है?

इच्छामृत्यु को असिस्टेड सुसाइड (दूसरे की सहायता से आत्महत्या) या अनौपचारिक भाषा में दया मृत्यु (mercy kiling) भी कहा जाता है। इसका अर्थ दुसाध्य (सतत, अविरल) कष्ट से मुक्ति दिलाने हेतु किसी के जीवन को समाप्त करने के अभिप्राय से जान-बूझकर किया गया प्रयास है।

न्यायालय के निर्णय से संबंधित अन्य तथ्य

  •  हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने पैसिव यूथेनेशिया या निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर अपना निर्णय दिया है।
  •  खंडपीठ ने इस निर्णय को बरकरार रखा कि जीवन तथा गरिमा संबंधी मौलिक अधिकार में उपचार से मना करने तथा गरिमा के साथ मरने का अधिकार भी सम्मिलित है, क्योंकि “अर्थपूर्ण अस्तित्व” संबंधी मौलिक अधिकार में किसी व्यक्ति के बिना कष्ट के मरने का निर्णय संबंधी अधिकार सम्मिलित है।
  •  इस निर्णय में लिविंग विल की जांच करने के संबंध में विशिष्ट दिशा-निर्देश भी जारी किए गए हैं। इसके आधार पर यह
    अभिप्रमाणित किया जाना चाहिए कि, कब तथा किस प्रकार इसे अमल में लाया जाना है।
  • इस दिशा-निर्देश में एक ऐसी स्थिति को भी सम्मिलित किया गया है जहां कोई लिविंग विल न हो, तो ऐसी दशा में निष्क्रिय इच्छामृत्यु संबंधी अनुनय किस प्रकार किया जाए।
  •  न तो उक्त व्यक्ति को कोई तर्क या कारण देने की आवश्यकता है, न ही उसे इस बात के लिए किसी अधिकारी को उत्तर देने की आवश्यकता है कि क्यों उसे अग्रिम निर्देश ज़ारी करना चाहिए।
  • किन्तु खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा गया कि सक्रिय इच्छामृत्यु गैर-क़ानूनी है।

सक्रिय इच्छामृत्यु (active euthanasia) में एक व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से तथा जान-बूझकर रोगी को मृत्यु प्रदान करता है, जबकि निष्क्रिय इच्छामृत्यु (passive euthanasia) में वे सीधे रोगी की जान नहीं लेते, वे केवल उन्हें मृत्यु की ओर जाने देते हैं। भारत में इस बात पर चर्चा चल रही है कि क्या मृत्यु का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीने के अधिकार का ही एक भाग है या नहीं।

पृष्ठभूमि

  •  2002 में, 196वें भारतीय विधि आयोग की रिपोर्ट में निष्क्रिय इच्छामृत्यु का समर्थन किया गया था। तथापि, इसके अंतर्गत इच्छामृत्यु पर कोई क़ानून न बनाने का निर्णय लिया गया।
  • 2011 में अरुणा शॉनबाग वाद में, जो कि इस दिशा में एक मील का पत्थर था, सर्वोच्च न्यायालय ने परसिस्टेंट वेजिटेटिव स्टेट (PVS) (स्थायी रूप से निष्क्रिय अवस्था) में पड़े रोगियों की जीवन रक्षक प्रणाली को हटा कर निष्क्रिय इच्छामृत्यु को क़ानूनी मान्यता प्रदान करने का निर्णय लिया। न्यायालय के अनुसार, रोगी का निर्णय अवश्य ही सूविज्ञ निर्णय होना चाहिए।
  • बाद में, अपनी 241वीं रिपोर्ट में विधि आयोग ने कुछ वर्ग के लोगों यथा ऐसे अचेत लोगों की जो अपनी चेतन अवस्था से वापस नहीं लौट सकते, परसिस्टेंट वेजिटेटिव स्टेट में हैं या विक्षिप्त या रुग्ण मस्तिष्क के हैं या जो निर्णय ले पाने संबंधी मानसिक क्षमता से वंचित हैं, उनकी जीवन रक्षक प्रणाली को हटाने के निर्णय का समर्थन किया।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए ये दिशा-निर्देश तथा इच्छामृत्यु के संबंध में इस देश के क़ानून के अनुसार सक्रिय इच्छामृत्यु अब भी भारत में वैध नहीं है।
  • हाल ही में, केंद्र सरकार ने लिविंग विल (चिकित्सकों को जीवन रक्षक संबंधी चिकित्सकीय उपकरणों को हटाने के संबंध में अग्रिम रूप से लिखित निर्देश) की अवधारणा को वैधानिक रूप दिए जाने का विरोध किया।

संबंधित तथ्य

  • लिविंग विल एक ऐसी अवधारणा है जिसके अंतर्गत कोई रोगी जब परसिस्टेंट वेजिटेटिव स्टेट (स्थायी रूप से निष्क्रिय अवस्था) में हो तथा उसके जीवित बचने की कोई वास्तविक संभावना न हो, तब वह अपनी सहमति से जीवन रक्षक प्रणाली को हटाए जाने की अनुमति प्रदान कर सकता है।
  • एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने पर उसे किस प्रकार का उपचार दिया जाए या, अधिकांशतः, चिकित्सीय उपचार हेतु निर्देश देता है।

जब कोई व्यक्ति चिकित्सा ज़ारी रखने या उसे बंद रखने संबंधी सहमति देने की स्थिति में न हो तो चिकित्सकीय आचार-नीति के दो आधारभूत सिद्धांत महत्वपूर्ण हो जाते हैं:

  •  लिविंग विल के रूप में व्यक्त उसकी इच्छाओं या उसके बदले निर्णय ले रहे उसके प्रतिनिधि की इच्छाओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
  •  उपकारिता (Beneficence) जिसका आशय किसी व्यक्तिगत विश्वास, उद्देश्यों तथा अन्य धारणाओं से प्रभावित हुए बिना रोगी के सर्वाधिक हित में आचरण करना।

‘मरणासन्न रोगियों का चिकित्सकीय उपचार मसौदा विधेयक’ के प्रावधान

  • एक सक्षम रोगी के अधिकार: प्रत्येक सक्षम रोगी (16 वर्ष से ऊपर के नाबालिगों सहित) को असाध्य रोग के मामले में चिकित्सकीय उपचार को रोकने, वापस लेने या जारी रखने सम्बन्धी निर्णय लेने का अधिकार होगा। यदि चिकित्सक संतुष्ट है। कि रोगी एक सुविज्ञ निर्णय लेने में समर्थ है तो चिकित्सक उसके अनुरोध पर कार्य करेगा। 16 वर्ष से ऊपर के नाबालिगों के मामले में माता-पिता और प्रमुख पति/पत्नी की सहमति भी आवश्यक होगी।
  •  निर्णय पर आगे बढ़ने से पहले चिकित्सक के लिए उपचार वापस लेने की आवश्यकता (या अन्यथा) होने पर पति/पत्नी या माता-पिता सहित संबंधित व्यक्तियों को सूचित करना अनिवार्य होगा।
  • चिकित्सक और सक्षम रोगी का संरक्षण: यदि असाध्य रोग से पीड़ित कोई रोगी चिकित्सा उपचार को अस्वीकार कर देता है। तो वह भारतीय दंड संहिता,1860 के अंतर्गत किसी भी अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। जहां चिकित्सक रोगी की इच्छा के आधार पर चिकित्सा उपचार को रोकता है, तो तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी अन्य बात के होते हुए भी उसकी कार्रवाई को विधिसम्मत माना जाएगा।
  • अक्षम रोगी के लिए प्रक्रिया: एक अक्षम रोगी (अस्वस्थ मस्तिष्क का व्यक्ति आदि) के मामले में निकटतम रिश्तेदार, चिकित्सक इत्यादि चिकित्सा उपचार को वापस लेने या रोकने की अनुमति प्राप्त करने हेतु उच्च न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं। न्यायालय विशेषज्ञों के पैनल की रिपोर्ट (जिसमें विशेषज्ञ चिकित्सकीय राय प्रदान की गयी हो) और पति/पत्नी, माता-पिता इत्यादि की इच्छाओं पर विचार करने के पश्चात् अनुमति प्रदान कर सकता है या अनुमति देने से माना कर सकता है (या कुछ शर्तों के साथ अनुमति दे सकता है)।

निष्क्रिय इच्छामृत्यु के पक्ष में तर्क

  •  कुछ लोगों का विश्वास है कि प्रत्येक रोगी को उसी प्रकार मरने का समय चुनने का अधिकार है जिस प्रकार उन्हें संविधान द्वारा जीवन का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • प्रस्तावक ऐसा मानते हैं कि सरकार द्वारा क़ानून बना कर इच्छामृत्यु को सुरक्षित तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। निष्क्रिय इच्छामृत्यु पहले से ही विश्व के बहुत सारे देशों में अमल में लाई जा रही है।
  • विश्व में बड़े पैमाने पर प्रयुक्त हो रहे पैलिएटिव सिडेशन (palliative sedation) के मामले में प्रयुक्त विभिन्न सिडेटिव से किसी व्यक्ति के जीवन काल के कम होने का ख़तरा रहता है। इसलिए, यह भी तर्क दिया जा सकता है कि पैलिएटिव सिडेशन वस्तुतः इच्छामृत्यु का ही एक प्रकार है।

निष्क्रिय इच्छामृत्यु के विपक्ष में तर्क

  • वैकल्पिक उपचार, जैसे- रोग के लक्षण कम करने हेतु देखभाल तथा मरणासन्न रोगियों के लिए अस्पताल उपलब्ध हैं। हमें लक्षणों को समाप्त करने के लिए रोगी को समाप्त करने की आवश्यकता नहीं है। लगभग सभी व्यथाओं का शमन संभव है।
  •  मारे जाने का कोई अधिकार नहीं होता। चिकित्सकों को रोगी के जीवन-मरण संबंधी अधिकार दे कर स्वैच्छिक इच्छामृत्यु का द्वार खोलने से अनैच्छिक इच्छामृत्यु के द्वार भी खुल जाएंगे।
  • रोगी को जीवन समाप्त करने का अधिकार है, ऐसी पूर्वधारणा के कारण चिकित्सकों पर रोगियों को मारने का कर्तव्य भी आरोपित हो जाएगा। इससे चिकित्सकों की स्वायत्तता में कमी आएगी। इसके अतिरिक्त, कुछ लोगों के लिए विशेषतः जो सुभेद्य तथा अन्य लोगों पर निर्भर हैं, मरने का अधिकार अन्य लोगों के द्वारा मृत्यु का निर्णय लेने संबंधी कर्तव्य में बदल जाएगा।
  •  केंद्र ने लिविंग विल की अवधारणा का भी विरोध किया है। केंद्र के अनुसार ऐसे प्रावधान का दुरुपयोग किया जा सकता है।

आगे की राह

निष्क्रिय इच्छा मृत्यु के क्रियान्वयन में विचारणीय मापदंड

इच्छा मृत्यु एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि यह मरने के अधिकार और किसी व्यक्ति के गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार से संबंधित है। वर्तमान में इच्छा मृत्यु पर ऐसे कानून और नियमों का अभाव है जो इसे नियंत्रित करने के साथ ही यह सुनिश्चित कर सकें कि इसका दुरुपयोग नहीं होगा। इस सन्दर्भ में ऐसे कई विचार हैं जिन पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है, जैसे

  • इच्छा मृत्यु की मांग करने वाले व्यक्ति की मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का आकलन करना आवश्यक है क्योंकि ऐसे रोगियों के लिए इच्छा मृत्यु के चयन का मुख्य कारण अवसाद, निराशा, दर्द और देखभाल की कमी होता है। यदि रोगी की अच्छी देखभाल की जाती है तो वह इच्छा मृत्यु के अपने निर्णय को बदल सकता है और प्राकृतिक मृत्यु प्राप्त कर सकता है।

डॉ एम. आर. राजगोपाल की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने इस विषय पर सरकार के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसमें उन मानदण्डों तथा न्यूनतम दशाओं को सूचीबद्ध किया है जिनके पूरा होने पर ही निष्क्रिय इच्छा मृत्यु’ और ‘लिविंग विल’ क्रियान्वित की जा सकती है। रिपोर्ट की महत्वपूर्ण सिफारिशें निम्नलिखित हैं

  • इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि ‘निष्क्रिय इच्छा मृत्यु’ शब्द का उपयोग ‘भ्रामक’ है क्योंकि इस शब्द में किसी व्यक्ति की हत्या करने के प्रयोजन का बोध होता है। इसके स्थान पर ‘निरर्थक उपचार रोकने या वापस लेने’ जैसी शब्दावली का प्रयोग करना अधिक तार्किक है।
  •  ‘लिविंग विल’ की प्रक्रिया को संचालित करने के लिए जिला स्तर पर चिकित्सकों का एक पैनल गठित किया जा सकता है। रिपोर्ट में सरकार से यह निवेदन किया गया है कि वह संबंधित जिला चिकित्सा अधिकारियों को अग्रिम रूप से पैनल गठित करने हेतु निर्देश दे ताकि आवश्यकता पड़ने पर प्रक्रिया के लिए चिकित्सक ढूंढने में अनावश्यक समय व्यर्थ न हो।

 

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