‘अंत्योदय के माध्यम से सर्वोदय तक पहुंचना’ : नागरिकों, व्यवसायों एवं सरकार के लिए इसकी समकालीन प्रासंगिकता पर चर्चा

 प्रश्न: नैतिक जीवन में दैनिक दुविधाओं का समाधान करने के एक साधन रूप में गांधीजी के मंत्र की समकालीन प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • मंत्र के प्रमुख संदेशों को रेखांकित कीजिए (संक्षेप में) – ‘अंत्योदय के माध्यम से सर्वोदय तक पहुंचना’।
  • स्पष्ट कीजिए कि इसके माध्यम से नागरिकों में भावनात्मक प्रज्ञा को किस प्रकार बढ़ावा दिया जा सकता है एवं यह कैसे नैतिक दुविधाओं के समाधान में सहायक हो सकता है।
  • नागरिकों, व्यवसायों एवं सरकार के लिए इसकी समकालीन प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

गांधीजी के अनुसार – हमें जब भी संदेह हो, उस समय हम यह विचार करें कि मेरा यह निर्णय समाज के सर्वाधिक गरीब व्यक्ति को सशक्त करेगा अथवा नहीं?” यह हमें दैनिक जीवन के कार्यों का परीक्षण करने की कसौटी प्रदान करता है। यह ‘अंत्योदय के माध्यम से सर्वोदय’ के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक सशक्त मार्ग बताता है। यह समाज के सर्वाधिक कमजोर वर्गों के कल्याण के माध्यम से सम्पूर्ण समाज के कल्याण की ओर संकेत करता है। ध्यातव्य है कि भारतीय संविधान के मूल में भी यही भावना निहित  है।

इसमें नागरिकों से स्वयं में भावनात्मक प्रज्ञा का विकास करने के लिए एक स्पष्ट आह्वान किया गया है, जिससे वे गरीब (कमजोर) नागरिकों की आवश्यकताओं का मूल्यांकन करने हेतु बेहतर स्थिति में हों एवं व्यक्तिगत कार्यों के द्वारा भी ऐसे लोगों के उत्थान की दिशा में कार्य कर सकें।

21 वीं शताब्दी का भारत क्षेत्रीय हिंसा, सामाजिक-आर्थिक असमानता, सहिष्णुता सीमा में कमी एवं उपभोक्तावादी संस्कृति में वृद्धि का साक्षी है। वैश्विक राजनीति विदेशियों के प्रति विद्वेष, सशस्त्र संघर्ष एवं अनेक प्रकार की शरणार्थी सम्बन्धी समस्याओं की साक्षी है। इस प्रकार यह मंत्र सरकारी नीतियों, व्यावसायिक प्राथमिकताओं तथा समाज पर हमारे दैनिक कार्यों की प्रासंगिकता का मूल्यांकन करने के सम्बन्ध में एक प्रभावी उपकरण सिद्ध हो सकता है। सभी निकाय या व्यक्ति इस मंत्र के आधार पर अपने सार्वजनिक जीवन तथा निजी जीवन में किये गए कार्यों का मूल्यांकन कर सकते हैं।

इस सिद्धांत को अपने दैनिक जीवन में लागू करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने आवश्यक हैं:

  • सरकार को अपनी नीतियां निर्धारित करते समय समाज के कमजोर एवं हाशिये पर रहने वाले वर्गों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, भले ही इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ऐसे वर्गों के लिए कुछ विशेष प्रावधान करने पड़ें।
  • व्यक्तिगत स्तर पर हमें कर की चोरी एवं सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा फेंकने जैसे कार्य नहीं करने चाहिए। समाज में प्रचलित अपमानजनक प्रथाओं जैसे- हाथ से मैला उठाना, जाति-आधारित भेदभाव, महिलाओं का शोषण एवं गरीबी, दहेज, भाई-भतीजा वाद आदि की निंदा की जानी चाहिए।
  • यदि सामाजिक स्तर पर घृणा एवं हिंसा के प्रसार जैसे अवगुणों का प्रसार हो रहा हो तो ऐसी स्थिति में यह अपने आसपास के मनुष्यों के प्रति परोपकार, करुणा एवं सांप्रदायिक सद्भाव को बढाने में सहायक होगा।
  • व्यवसायों तथा उद्योगों को अपनी प्रदूषणकारी गतिविधियों को न्यूनतम करने, कार्य करने की अनुकूलतम स्थितियों को प्राप्त करने एवं सामाजिक सुरक्षा कानूनों को ईमानदारी से क्रियान्वित करने के प्रयास करने चाहिए। इसके अतिरिक्त यह कॉर्पोरेट कंपनियों को उनके सामाजिक उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए प्रोत्साहित करता है ताकि समाज में व्यापक स्तर पर समावेशन किया जा सके।
  • लोक सेवकों द्वारा PDS, MGNREGA, वृद्धावस्था पेंशन योजना जैसी कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता तथा ईमानदारी को सुनिश्चित करना चाहिए जिससे वास्तविक अर्थों में स्वराज की प्राप्ति के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। अतः गांधीजी का मंत्र हमें अपने कार्यों का मूल्यांकन करने की शक्ति प्रदान करता है। साथ ही यह आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव एक प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य करेगा।

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