मुद्राशास्त्र (न्यूमिस्मेटिक्स) और पुरालेखशास्त्र (एपिग्राफी)

प्रश्न: मुद्राशास्त्र (न्यूमिस्मेटिक्स) और पुरालेखशास्त्र (एपिग्राफी) ने प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण

  • मुद्राशास्त्र (न्यूमिस्मेटिक्स) का वर्णन कीजिए तथा प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में मुद्राशास्त्र की भूमिका को उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
  • इसी प्रकार पुरालेखशास्त्र (एपिग्राफी) के महत्त्व का वर्णन कीजिए तथा प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण हेतु एक स्रोत के रूप में इसकी भूमिका को उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

मुद्राशास्त्र (न्यूमिस्मेटिक्स) सिक्कों, कागज़ी मुद्रा एवं संबंधित वस्तुओं के अध्ययन या संग्रह से सम्बंधित है। यह आर्थिक स्थिति, प्रशासनिक संरचना, घटनाओं के कालानुक्रम, किसी विशेष राज्य के प्रभुत्व विस्तार तथा दूरस्थ क्षेत्रों के साथ उसके संबंधों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

मुद्राशास्त्र ने निम्नलिखित प्रकार से इतिहास के पुनर्निर्माण में सहायता की है:

  • भारत में खोजे गए रोमन सिक्के, रोमन साम्राज्य के साथ भारत के संपर्कों के संबंध में जानकारी प्रदान करते हैं। चित्र एवं आकृतियाँ, हेलेनिस्टिक कला और सौराष्ट्र के पश्चिमी क्षत्रपों (satraps) के सिक्कों पर अंकित तिथियाँ इस कालावधि के पुनर्निर्धारण हेतु उल्लेखनीय स्रोत हैं।
  • सातवाहनों सम्बन्धी पौराणिक उल्लेखों की पुष्टि जोगलथम्बी (नासिक) से प्राप्त सिक्कों के भंडार से ही हुई।
  • शकों एवं पल्लवों के अधीन प्रशासन के विषय में सिक्कों के आधार पर ही वृहत पैमाने पर जानकारी प्राप्त हुई।
  • कुषाण काल के सिक्कों की सहायता से ही खरोष्ठी और ब्राह्मी लिपियों को पढ़ने में सफलता प्राप्त हुई।
  • सोने एवं चांदी के सिक्कों की शुद्धता से गुप्तकाल की आर्थिक स्थिति के विषय में पता चला। नगरीय पतन की परिघटना का संपूर्ण तर्क, उस अवधि के दौरान मुद्रा की शुद्धता एवं सिक्कों में प्रयुक्त बहुमूल्य धातुओं की मात्रा में कमी पर ही आधारित है।

पुरालेखशास्त्र (एपिग्राफी) का तात्पर्य उन शिलालेखों के अध्ययन से है जो प्रस्तर फलकों, धात्विक पत्रों, स्तंभों, गुफाओं की दीवारों आदि पर उत्कीर्ण किए जाते थे। विभिन्न उत्कीर्णनों का अध्ययन वैधानिक, सामाजिक-सांस्कृतिक, साहित्यिक, धार्मिक, पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक प्राचीनता स्थापित करने के लिए प्राथमिक दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में कार्य करता है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं: 

  • अशोक के अभिलेख तथा समुद्रगुप्त एवं रुद्रदामन-प्रथम के स्तंभलेख धार्मिक और प्रशासनिक रूप से महत्त्वपूर्ण अभिलेख हैं, जो उस अवधि के सांस्कृतिक एवं प्रशासनिक कार्यों पर प्रकाश डालते हैं।
  • शिलालेख तत्कालीन सामाजिक रीति-रिवाजों के सम्बन्ध में भी जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्रह्मदेय अभिलेख में राजेंद्र चोल की रानी के सती होने के प्रसंग का उल्लेख किया गया है।
  • मंदसौर के ताम्रपत्र, गोरखपुर जिले का सोहगौरा पत्र, महेंद्रवर्मन का ऐहोल अभिलेख तथा चोलों के उत्तरमेरूर अभिलेख व्यापार, करों एवं मुद्रा के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करते हैं।
  • जोगीमारा गुफा के अभिलेख में उस काल की नृत्य एवं संगीत परंपरा की व्यापकता को दर्शाया गया है।
  • पुरालेखशास्त्र राज्यों एवं साम्राज्यों की सीमाओं, प्राचीन जीवन पद्धतियों, समाज एवं अर्थव्यवस्था की प्रकृति तथा जीवन की सामान्य स्थितियों आदि पर प्रकाश डालता है।

इस प्रकार, पुरालेखशास्त्र और मुद्राशास्त्र संबंधी साक्ष्य प्राचीन इतिहास के पुनर्निर्धारण हेतु सर्वाधिक विश्वसनीय स्रोतों में से एक हैं।

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