मध्यप्रदेश में मिट्टी
मध्यप्रदेश में मिट्टी
- धरातल की ऊपरी परत जो पेड़-पौधों के उगने व बढ़ने के लिए आवश्यक तत्वों को प्रदान करती है, मिट्टी कहलाती है ।
- मिट्टी चट्टान तथा जीवांश के मिश्रण से बनती है।
- मध्यप्रदेश के मण्डला, बालाघाट, शहडोल, उमरिया में लाल तथा पीली मिट्टी की अधिकता पायी जाती है।
- मध्यप्रदेश में काली मिट्टी दक्कन ट्रेप अथवा बेसाल्ट जैसी आग्नेय चट्टानों के ऋतु अपक्षय के द्वारा निर्मित हुई है।
- काली मिट्टी में जलधारण क्षमता सर्वाधिक होती है।
- मध्यप्रदेश के सर्वाधिक भू-भाग पर काली मिट्टी पायी जाती है।
- काली मिट्टी के तहत् सर्वाधिक क्षेत्र साधारण काली मिट्टी का है |
- काली मिट्टी का काला रंग लोहे की अधिकता के कारण होता है।
- जलोढ़मिट्टी की प्रकृति उदासीन होती है, जो गन्ने के लिए उपयुक्त है।
- सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी जलोढ़ है।
- मध्यप्रदेश में प्रमुख रूप से पाँच प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं।
- जलोढ़मिट्टी परतों के रूप में पायी जाती है।
काली मिट्टी (रेगड़ मिट्टी)
- इसमें मुख्य रूप से लोहा एवं चूना होता है । फास्फेट, जैव पदार्थों एवं नाइट्रोजन की कमी पायी जाती है । इसका निर्माण ज्वालामुखी से निकले लावा के जमने से होता है।
- यह क्षारीय प्रकृति की होती है । इसका pH मान 7.5 से 8.5 होता है ।
- यह कपास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है । गेहूँ एवं सोयाबीन के लिए भी अच्छी है।
- यह मिट्टी सबसे अधिक क्षेत्र (47%) में पायी जाती है, जो मालवा का पठार, नर्मदा, सोन घाटी और सतपुड़ा मैकल श्रेणी है ।
काली मिट्टी तीन प्रकार की होती है
- गहरी काली मिट्टी- नर्मदा सोन घाटी में अधिकांशतः तथा मालवा का कुछ क्षेत्र एवं सतपुड़ा का मुख्य भाग आता है । यह काली मिट्टी के कुल क्षेत्र का लगभग 3.5 प्रतिशत है।
- साधारण काली मिटटी- मालवा का पठार इसका मुख्य केन्द्र है। यह काली मिट्टी के कुल क्षेत्र के लगभग 37% भाग में पायी जाती है, जो प्रदेश के लगभग 400 लाख एकड़ भू-क्षेत्र पर फैली हुई है। इसमें सिंचाई की आवश्यकता अधिक नहीं होती है।
- छिछली काली मिट्टी- इस क्षेत्र में सतपुड़ा मैकल श्रेणी बैतूल, छिंदवाडा.सिवनी वाला भाग आता है । यह मिट्टी प्रदेश के 7.1 प्रतिशत पर पायी जाती है। जिसके अंतर्गत प्रदेश का 57 लाख एकड़ भू-क्षेत्र आता है।
लाल-पीली मिट्टी
- फेरिक ऑक्साइड के जल अपघटन से पीला रंग होता है तथा लाल रंग लोहे के ऑक्सीकरण से बनता है । इसमें चूने की मात्रा अधिक होती है, लेकिन जैव पदार्थों की मात्रा कम होती है । प्रकृति 5.5 से 8.5ph मान होता है, जिससे यह अम्लीय से क्षारीय होती है, जो कि चावल के लिए उपयुक्त है।
- यह मध्यप्रदेश के सम्पूर्ण पूर्वी भाग बघेलखण्ड में पायी जाती है, जिसमें मण्डला, बालाघाट व शहडोल जिले आते हैं।
- यह मिट्टी प्रदेश की सम्पूर्ण मृदा का 37% भाग है ।
- यह गौंडवाना शैल समूह से निर्मित है ।
जलोढ़ मिट्टी
- यह सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी है। इसका निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लायी गई कछारों से होता है।
- क्षेत्र – मध्य भारत का क्षेत्र है, जिसमें भिण्ड, मुरैना, श्योपुर, ग्वालियर व शिवपुरी जिले आते हैं।
- प्रकृति उदासीन होती है।
- गन्ने के लिए उपयुक्त गेहूँ एवं कपास भी अच्छा होता है ।
- यह मिट्टी प्रदेश के लगभग 30 लाख एकड़ भू-भाग पर फैली है, जो कुल मिट्टी की लगभग 3% है।
मिश्रित मिट्टी
- इसमें लाल, पीली, काली मिट्टी का सम्मिश्रण पाया जाता है, जो बुंदेलखण्ड क्षेत्र में पायी जाती है । इसमें मुख्यतः मोटे अनाज उगाये जाते हैं।
- इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फेट एवं कार्बनिक पदार्थों की अल्पता पायी जाती है।
कछारी मिट्टी
- बाढ़ के दौरान नदियों द्वारा अपने अपवाह क्षेत्र में बिछाई गई मिट्टी कछारी मिट्टी कहलाती है।
- इसका विस्तार भिण्ड, मुरैना, श्योपुर, ग्वालियर आदि जिलों में है।
- इसमें गेहूँ, गन्ना, कपास आदि फसलें मुख्यतः होती हैं।
अन्य तथ्य
- मध्यप्रदेश में मृदा अपरदन कृषि भूमि के लिए सबसे बड़ी समस्या है।
- सर्वाधिक मृदा अपरदन चंबल नदी द्वारा होता है ।
- चम्बल नदी द्वारा मृदा अपरदन से ‘गली’ का निर्माण होता है।
- मिट्टी का अपक्षरण “रेंगती हुई मृत्यु” कहा जाता है ।
- तेज जलधारा द्वारा मिट्टी को गहरा काटने को “अंवनालिका अपरदन” कहा जाता है।