कोरयाई युद्ध और भारत की संलग्नता

प्रश्न:यद्यपि कोरयाई युद्ध भारत के समुद्रतट से दूर लड़ा गया था, किन्तु इसमें भारत की घनिष्ठ संलग्नता देखी गयी थी। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • सर्वप्रथम कोरियाई युद्ध की एक संक्षिप्त पृष्ठभूमि दीजिए।
  • तत्पश्चात कोरियाई युद्ध में भारत की भागीदारी के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • इस पूरे मुद्दे पर भारत की संलग्नता पर चर्चा कीजिए।
  • भारत पर इस युद्ध के परिणामों के प्रभावों पर विमर्श करते हुए उत्तर का समापन कीजिए।

उत्तरः

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ, कोरिया को दो क्षेत्रों में विभाजित करने के लिए सहमत हुए। इस प्रकार 38वीं समानांतर रेखा (380 उत्तरी अक्षांश-रेखा) द्वारा कोरिया को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। सोवियत समर्थित डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया के रूप में उत्तर कोरिया और पश्चिम समर्थक कोरिया गणराज्य को दक्षिण कोरिया के रूप में स्थापित किया गया। स्थापना के बाद से ही उत्तर और दक्षिण कोरिया के मध्य तनाव उत्पन्न हो गया था। इसकी परिणति 25 जून 1950 के कोरियाई युद्ध के रूप में हुई एवं नार्थ कोरियन पीपुल्स आर्मी ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया। यह वैचारिक संघर्ष से प्रेरित शीत युद्ध की पहली सैन्य कार्यवाही थी। इसमें लगभग 5 लाख लोग मारे गए, घायल हुए या लापता हो गए।

1945 के बाद कोरिया में भारत की भागीदारी:

1945 में कोरिया की स्वतंत्रता के बाद कोरिया में भारत की भूमिका का प्रारम्भ हुआ।

  • भारत ने नौ सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र आयोग की अध्यक्षता की। इस आयोग का गठन 1947 में कोरिया में चुनाव कराने के लिए किया गया था। यद्यपि भारत ने कोरियाई युद्ध प्रारम्भ होने पर उत्तर कोरिया की एक आक्रमणकारी के रूप में निंदा की, परन्तु इसने एक गुटनिरपेक्ष देश होने के कारण दक्षिण कोरिया को सैन्य सहायता के लिए संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका प्रायोजित प्रस्ताव को भी समर्थन नहीं दिया।
  • भारत ने मानवतावादी दृष्टिकोण के रूप में कोरिया में एक चिकित्सा इकाई भेजने का निर्णय लिया।

इसके साथ ही भारत ने युद्ध के दौरान मध्यस्थ की भूमिका निभायी और उत्तर एवं दक्षिण कोरिया दोनों ने युद्ध के समापन के भारत प्रायोजित संकल्प को स्वीकार कर लिया। परिणामस्वरूप 27 जुलाई 1953 को युद्धविराम घोषित किया गया। भारत ने तटस्थ ‘राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग’ की अध्यक्षता भी की। इस आयोग ने दोनों पक्षों के युद्ध बंदियों का प्रबंधन किया। युद्ध की समाप्ति के बाद, अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा भारत की आलोचना की गई तथा भारत और अमेरिका के मध्य संबंध बिगड़ गए। हालाँकि, युद्ध ने भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि कर गुटनिरपेक्ष रणनीति को प्रोत्साहित किया। यहाँ तक कि युद्धविराम के बाद, कोरियाई संकट के स्थायी समाधान के लिए आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन भी भारत की अनुपस्थिति में विफल सिद्ध हुआ।

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