केस स्टडीज : परामर्श प्रक्रिया के प्रमुख हितधारकों की पहचान

प्रश्न: एक प्रसिद्ध और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित निर्माता-निर्देशक एक नई फिल्म लेकर आए हैं। यह फिल्म स्वतंत्रता आंदोलन की कहानी को दोहराती है। इस फिल्म का ट्रेलर प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों और उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है। यह एक ऐसी फिल्म है, जिसमें काफी बड़ी धनराशि लगी है और 3 वर्षों का सहयोगी प्रयास लगा है। हालाँकि, कुछ राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के निरूपण को नकारात्मक मान कर आपत्ति की है। इस प्रकार, उन्होंने इस फिल्म के रिलीज़ का विरोध किया है और गंभीर परिणामों की धमकियां दी हैं। यह एक या किसी अन्य फिल्म के विरुद्ध धमकी देने वाले कई समूहों से जुड़े उदाहरणों की संख्या में वृद्धि से संदर्भित है। इस प्रकार के संदर्भ में, आपको सामान्य रूप से इस फिल्म के प्रमाणन प्रक्रिया की समीक्षा करने के व्यापक उत्तरदायित्व के साथ-साथ इस विशेष फिल्म में चित्रित घटनाओं की ऐतिहासिक सटीकता की जांच करने वाली एक विशेष समिति का प्रमुख नामित किया गया है। 

(a) वे प्रमुख हितधारक कौन हैं, जिन्हें आप परामर्श प्रक्रिया में सम्मिलित करेंगे?

(b) सरकार को अपनी अनुशंसाएं देते समय आप किन सिद्धांतों पर विचार करेंगे? साथ ही, एक ऐसे समाधान की रूपरेखा प्रदान कीजिए जिसे आप प्रचलित संदर्भ में उचित मानते हैं।

दृष्टिकोण

  • परामर्श प्रक्रिया के प्रमुख हितधारकों की पहचान कीजिए।
  • अनुशंसाएं देते समय विचारयोग्य सिद्धांतों एवं मूल्यों की चर्चा कीजिए।
  • फिल्म प्रमाणीकरण प्रक्रिया में सुधार करने और घटनाओं की ऐतिहासिक सटीकता की निष्पक्ष जांच करने हेतु तंत्र संबंधी समाधान की चर्चा कीजिए।

उत्तर

(a).  यह एक जटिल विषय है। इसमें फिल्म निर्माताओं के रचनात्मक सृजन संबंधी कानूनी मुद्दे तथा अधिकार शामिल हैं जो संभवतः समाज के व्यापक वर्गों को प्रभावित कर सकते हैं। परामर्श प्रक्रिया को सार्वजानिक मुद्दों की पहचान करनी चाहिए तथा बहु-हितधारक भागीदारी के माध्यम से व्यापक सहमति विकसित करनी चाहिए। परामर्श हेतु सहभागी दृष्टिकोण (जो विभिन्न हितधारकों की विशेषज्ञता एवं ज्ञान का उपयोग करता हो) एक व्यावहारिक, स्वीकार्य और स्थायी समाधान ढूँढने के लिए महत्वपूर्ण होता है।

इस संदर्भ में निम्नलिखित हितधारकों से परामर्श करने की आवश्यकता है:

  • इस मामले की जटिलताओं को समझने के लिए कानूनी विशेषज्ञों की। 
  • फिल्म उद्योग के प्रतिनिधि, जो सामान्यतः प्रत्यक्ष रूप से पीड़ित पक्ष है।
  • केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के सदस्य जिन्हें सिनेमेटोग्राफी एक्ट, 1952 के प्रावधानों के अंतर्गत फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को विनियमित करने का कार्य सौंपा गया है।
  • प्रसारण उद्योग के प्रवक्ता के रूप में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन।
  • दर्शकों के दृष्टिकोण को व्यक्त करने हेतु सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य इत्यादि जो समाज के सर्वाधिक वर्गों के लिए वैधानिक रूप से गठित निगरानी संस्थाओं के रूप में कार्य करती हैं।
  • उस विशिष्ट फिल्म की ऐतिहासिक सटीकता की जांच करने हेतु प्रसिद्ध इतिहासकारों को।

(b). प्रमाणन प्रक्रिया के लिए सरकार को दी जाने वाली अनुशंसाएं निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित होंगी:

  • कलात्मक अभिव्यक्ति का अधिकार संविधान के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का अंग है और इस प्रकार इसका सम्मान करने के साथ-साथ इसे नियंत्रित भी किया जाना चाहिए।
  • एक वाणिज्यिक सिनेमा तथा एक वृत्तचित्र के मध्य अंतर को बनाया रखा जाना चाहिए। एक वाणिज्यिक फिल्म का उद्देश्य वाणिज्यिक रूप से आकर्षक तत्वों के साथ इतिहास को चित्रित कर लाभ अर्जित करना है। इसे एक लंबी प्रक्रिया में रखने से इसकी लाभप्रदाता को कम करने के साथ-साथ दर्शकों द्वारा इसके प्रति नकारात्मक प्रतिक्रिया प्रकट करने का जोखिम भी हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप इसकी राजस्व अर्जित करने की क्षमता भी बाधित हो सकती है।
  • कलात्मक स्वतंत्रता के अंतर्गत इतिहास की डाक्यूमेन्टरी निर्माण के साथ-साथ काल्पनिक कथा (fiction) के चित्रण का अधिकार भी सम्मिलित है। हालांकि, ऐतिहासिक दावों को अभी तक सुलझाया नहीं जा सका है इसलिए जब भी आवश्यक हो, अस्वीकृति प्रदान करते समय सावधानी रखनी चाहिए।
  • फिल्म को सामाजिक मूल्यों तथा मानकों के प्रति उत्तरदायी एवं संवेदनशील होना चाहिए।
  • फिल्मों के वर्गीकरण के माध्यम से दर्शकों को फिल्म देखने के सूचित विकल्प के चयन हेतु सशक्त बनाना चाहिए।
  • प्रमाणित फिल्म में निम्नलिखित नहीं होने चाहिए –
  • जो भारत की संप्रभुता एवं अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को खतरा पहुंचता हो,
  • जिसमें सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने या किसी भी अपराध को प्रेरित करने की संभावना हो,
  • जिसमें शिष्टाचार को प्रभावित करना या निंदा शामिल हो,
  • जिसमें न्यायालय की अवमानना शामिल हो,
  • लैंगिक, हिंसा, धूम्रपान, भेदभाव, ड्रग्स आदि से संबंधित मुद्दों के प्रति मौजूदा दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करना।
  • यदि यह एक ऐतिहासिक फिल्म होने का दावा करती हो, तो इसे सुव्यवस्थित तथ्यों को विकृत नहीं करना चाहिए।

दिशा-निर्देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन हेतु प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को एकसमान, गैरभेदभावपूर्ण तरीके से संपन्न किया जाना चाहिए, जिसे सिनेमेटोग्राफी एक्ट, राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम इत्यादि विभिन्न कानूनों के प्रावधानों के दायरे के अंतर्गत होना चाहिए।

इस विशिष्ट परिस्थिति से निपटने हेतु निम्नलिखित क़दमों को उठाया जाना चाहिए:

  • समय-समय पर फिल्म की ऐतिहासिक सटीकता की जांच करने के लिए इतिहासकारों जैसे विशेषज्ञों सहित केंद्रीय सलाहकार पैनल का गठन किया जाना चाहिए।
  • सभी प्रमुख हितधारकों के लिए फिल्म की प्रतिबंधित स्क्रीनिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • इन सभी से प्राप्त रिपोर्ट को समयबद्ध तरीके से CBFC को प्रस्तुत किया जाना चाहिए, तत्पश्चात यदि फिल्म में एडिटस आवश्यक हो तो इन एडिट्स के बाद इसे रिलीज़ किया जाना चाहिए।
  • विधि के शासन एवं स्वतंत्रता को बनाए रखने हेतु फिल्म के रिलीज पर कानून और व्यवस्था की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।

वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता परिपक्व लोकतंत्र का सार है। संगठनों और दबाव समूहों को नीतियों को निर्धारित करने या कलाकारों की रचनात्मक अभिव्यक्ति को क्षति पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। फिल्म निर्माताओं की रचनात्मक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के साथ-साथ दर्शकों को सूचित विकल्पों के निर्माण हेतु सशक्त बनाने के लिए एक सुदृढ़ प्रमाणन प्रक्रिया की आवश्यकता है।

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