हड़प्पा सभ्यता – Part IV

इस इकाई को पढ़ने के बाद आप हड़प्पा वासियों के समाज तथा उनकी विभिन्न धार्मिक रीतियों से अवगत हो सकेंगे, विशेषकर आप :

  • उनकी वेश-भूषा एवं खान-पान के प्रति जानकारी प्राप्त कर सकेंगे,
  • उनकी भाषा एवं लिपि से संबंधित मतभेद पर चर्चा कर सकेंगे,
  • उनके मख्य व्यवसायों के प्रति अवगत हो सकेंगे,
  • ‘शासक वर्गों के स्वरूप को समझ सकेंगे,
  • उनकी धार्मिक रीतियों एवं मुख्य देवी देवताओं के प्रति जानकारी प्राप्त कर सकेंगे,
  • उनके अंतिम संस्कारों के प्रति जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।

इस खंड की पूर्व इकाइयों में आप हड़प्पा-सभ्यता के महत्वपूर्ण पक्षों का अध्ययन कर चुके हैं। इस इकाई में हम हड़प्पा समाज एवं धर्म पर चर्चा करेंगे।

हमारी यह जानने की जिज्ञासा हो सकती है कि हड़प्पा वासी देखने में कैसे लगते थे? क्या वे वैसे ही वस्त्र पहनते थे जैसे कि हम पहनते हैं। वे क्या पढ़ते-लिखते थे? नगरवासी किस प्रकार के व्यवसाय अपनाते थे? वे कौन सी भाषा बोलते थे? क्या खाते थे? क्या वे चाय के साथ आलू चिप्स खाते थे? क्या वे खेलना पसंद करते थे और युद्ध करते थे? उनके शासक कौन होते थे? उनके मंदिर एवं देवी देवता कैसे होते थे? क्या वे हम जैसे थे? यह सारे प्रश्न वस्ततः काफी सरल प्रतीत होते हैं लेकिन विद्वानों के लिए इनके उत्तर देना अत्यंत कठिन होता है। इसका कारण उस युग की जानकारी प्राप्त के लिए उपलब्ध स्रोतों का स्वरूप है। इसका मुख्य स्रोत विभिन्न स्थानों पर हुई खुदाई से प्राप्त केवल पुरातात्विक जानकारी है।

इस सभ्यता के संदर्भ में हमारे वर्तमान ज्ञान को देखते हुए विचारों और भावनाओं से जुड़े विभिन्न प्रश्नों का उत्तर कठिनाईयां खड़ी करता है। कभी-कभी ऐसे प्रश्न जो प्रत्यक्षतः अत्यंत सरल नजर आते हैं उत्तर देते समय अत्यंत कठिन प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए ऐसे प्रश्न का उत्तर कि क्या हड़प्पा के लोग अकीक पत्थर की मालायें बनाने में सख का अनुभव करते थे, काफी मुश्किल हो सकता है। हम केवल हजारों वर्षों से पड़ी मूक, बेजान वस्तुओं के आधार पर विचारों से संबंधित कुछ प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं जिसका प्रयास . इस इकाई में किया जायेगा।

समाज

हड़प्पा से प्राप्त पुरातात्विक उपलब्धियों के आधार पर इस काल के समाज की कल्पना की जा सकती है। हम इस समाज के लोगों की वेश-भूषा और खान-पान, व्यापार, शिल्प कलायें तथा विभिन्न सामाजिक समूहों के प्रति जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आइए सबसे पहले हम हड़प्पा के लोगों की प्रकट आकृतियों एवं वेश-भूषा के संबंध में चर्चा करें।

वेश-भूषा

हड़प्पावासी देखने में कैसे लगते थे? इस प्रश्न का उत्तर इस काल की पकी हुई मिट्टी से बनी मूर्तियों तथा पाषाण शिल्प का अध्ययन से मिल सकता है। जानकारी प्राप्त करने का एक अन्य तरीका हड़प्पा बस्तियां की खुदाई में प्राप्त कंकालों का अध्ययन हो सकता है।

कंकालों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि हड़प्पा के लोग वर्तमान उत्तर भारत के निवासियों जैसे दिखते थे। उनके चेहरे, रंग रूप एवं लम्बाई में इन क्षेत्रों के वर्तमान निवासियों से काफी कुछ समानता दिखती है। आधुनिक नर-नारियों की भांति वे पैन्ट-शर्ट अथवा सलवार-कमीज नहीं पहनते थे। हम उनके पहनावे एवं फैशनों का अनुमान उस काल की शिल्प कला तथा पक्की मिट्टी की बनी मर्तियों के अध्ययन से लगा सकते हैं। परुषों को बहधा एक ऐसे पहनावे में दिखाया गया है जिससे उनके शरीर का निचला भाग लपेटा रहता था तथा वस्त्र का एक सिरा बायें कन्धे से लेकर दायें बाज के नीचे पहुंच जाता था. जिस प्रकार आधनिक साड़ी पहनी जाती है।

पुरुष अपने बाल विभिन्न तरीकों से बनाते थे. कभी-कभी जूड़ा बनाकर माथे पर पट्टी बांधते थे। आधुनिक भारतीयों की अपेक्षा वे कहीं अधिक गहनों का प्रयोग करते थे। वे अंगठियां पहनते थे, कंगन पहनते थे तथा गले और हाथों में काफी गहने पहनते थे। महिलायें कमर में गहने पहनती थीं। गले में वे कई प्रकार के हार पहनती थी, चूड़ियों का भी प्रयोग होता था तथा बाल काढ़ने के असंख्य तरीके थे। पुरुष और महिलायें दोनों ही लंबे बाल रखते थे वे सूती कपड़े पहनते थे तथा एक मूर्ति में वस्त्र लाल रंगों में त्रिदल पद्धति में दिखाया गया है। इन तमाम फैशनों के बावजूद यदि हड़प्पा-सभ्यता का कोई पुरुष हमें आज सड़क पर टहलता हुआ दिख जाय तो वह हमें किसी भिक्षु के स्वरूप ही दिखाई देगा।

खान-पान

वे क्या खाते थे? इस सदर्भ में भी हमें बहुत कम जानकारी है। सिन्ध और पंजाब में हड़प्पा निवासी गेहूँ और जौ खाते थे। राजस्थान में रहने वाले लोगों को केवल जौ से ही संतुष्ट होना पड़ता था। गजरात के रंगपुर, सरकोटला आदि स्थानों के हड़प्पा निवासी चावल और बाजरा खाना पसन्द करते थे। आइए ये देखने का प्रयास किया जाय कि वे प्रोटीन और चर्बी युक्त भोजन कहां से प्राप्त करते थे?

वे तेल और चर्बी तिल, सरसों तथा संभवतः घी से प्राप्त करते थे।  हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि वे गन्ने की खेती करते थे या नहीं अतः चीनी के विषय में हमारे पास जानकारी नहीं है। सम्भव है कि वे अपने खाने को मीठा बनाने के लिए शहद का उपयोग करते हों। हड़प्पा स्थलों से मिलने वाले उन्नाव और खजर के बीजों से यहां के लोगों की फल के प्रति प्राथमिकता का पता चलता है। संभवतः वे केले, अनार, खरबूजा, नीब, अंजीर तथा आम भी खाते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि वे विभिन्न प्रकार के जंगली फलों का भी सेवन करते थे लेकिन उन फलों की पहचान करना अत्यंत कठिन है। वे मटर भी खाते थे। इसके अतिरिक्त हड़प्पा निवासी मांसाहारी भोजन भी शौक से खाते थे। हड़प्पा बस्तियों के अवशेषों में हिरन, भाल, भेड़ तथा बकरियों की हड्डियां मिलती रही हैं। वे मछली,  तथा दही का भी सेवन करते रहे होंगे। लेकिन न तो उन्हें चाय का ज्ञान था न ही आलू के चिप्स का। क्या आप स्वयं इसका कारण ढूंढ सकते हो?

भाषा एवं लिपि वे कौन सी भाषा बोलते थे और क्या लिखते पढ़ते थे। इसकी भी हमें स्पष्ट जानकारी नहीं है। हम केवल हड़प्पा निवासियों की लिपि को खोज सके हैं जैसा कि पहले कहा जा चका है हम अभी तक इस लिपि को पढ़ने में असमर्थ रहे हैं। कछ विद्वानों का मत है कि वहां लिखी जाने वाली भाषा द्रविड़ भाषा समूहों (जैसे तमिल) की जननी थी। अन्य विद्वान इसे किसी आर्य भाषा (जैसे संस्कृत) की जननी मानते हैं।

अभी तक किसी भी विद्वान ने सर्वमान्य तर्क प्रस्तुत नहीं किया है। हड़प्पा की लिपि के संदर्भ में एक बात स्पष्ट नजर आती है कि पूरी हड़प्पा सभ्यता के काल में इस लिपि में कोई परिवर्तन हुआ ही नहीं जबकि अन्य सभी प्राचीन लिपियों में समय के साथ-साथ परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। इससे ये सिद्ध होता है कि हड़प्पा की लिपि का उपयोग विस्तृत नहीं था। संभवतः एक वर्ग विशेष लिखित शब्दों पर आधिपत्य जमाये बैठा था। वे क्या सीखते थे और कैसे सीखते थे इसका हमारे पास उत्तर नहीं है। समकालीन मेसोपोटामिया की भांति हड़प्पा में भी स्कूल थे अथवा नहीं इसकी भी जानकारी हमारे पास नहीं है।

युद्ध

क्या वे खेल खेलते थे और युद्ध करते थे? हम जानते हैं कि वे चौसर खेलते थे लेकिन इसके आगे हमें जानकारी नहीं है। उनके युद्ध करने के काफी प्रमाण हमारे समक्ष हैं। संभवतः ऐसा इसलिए है कि विभिन्न हड़प्पा स्थलों की खुदाई में लगे पुरातत्व शास्त्री युद्ध के प्रमाण ढूंढ रहे थे न कि खेल कूद के। इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण प्रमाण यह भी मिलता है कि हड़प्पा सभ्यता के उद्भव के समय कई “आरंभिक हड़प्पा” स्थल (जैसे कोट दीजी तथा कालीबंगन) जला दिये गये थे। दुर्घटनापूर्ण अग्नि से बड़े नगरों का ध्वस्त हो जाना असंभव तो नहीं है। लेकिन इस बात की प्रबल संभावना है कि ये बस्तियां विजयी मानवीय समूहों द्वारा जलायी गयी होगी। इसके अतिरिक्त मोहनजोदड़ो की गलियों में कंकालों के बिखरे पाये जाने के भी प्रमाण मिलते हैं। प्राचीनतम काल से लेकर अब तक के समाजों में।

नियमित रूप से अपने मृतकों का अंतिम संस्कार परम्परागत रूप से किया जाता रहा है। यह स्वाभाविक ही है कि हड़प्पा के लोग अपने मृतकों को सड़कों पर सड़ने के लिए नहीं छोड़ देते थे। अतः स्पष्ट है कि किसी असाधारण टकराव के कारण ही हड़प्पा के लोग अपने मृतकों का अंतिम संस्कार नहीं कर पाए। हड़प्पा के कई नगरों के चारों ओर किलेबंदी और दर्ग बने होने से इस तथ्य की ओर संकेत मिलता है कि इन लोगों को बाहरी तत्वों से सुरक्षा की आवश्यकता प्रतीत होती थी। कुछ सुरक्षा दीवारों का उपयोग बाढ़ से बचने के लिए बांध के रूप में भी हुआ होगा। हड़प्पा नगरों के आस-पास की ग्रामीण जनता की तुलना में नगरवासियों की संपन्नता को देखते हुए इस बात का अनमान लगाया जा सकता है कि अपनी बस्तियों की किलेबंदी करके अपने जान माल की सरक्षा करना चाहते थे। यहां से तांबे एवं कांसे के काफी हथियार भी प्राप्त हुए हैं।

मुख्य शिल्प व्यवसाय

हड़प्पा निवासी अपने जीवन यापन के लिए क्या करते थे? इस प्रश्न का उत्तर अपेक्षाकृत आसान है। इसका कारण यह है कि पूर्व आधुनिक समाजों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उन समाजों के अधिकतर लोग कृषि से जुड़े हुए थे लेकिन हड़प्पा के काफी सारे लोग विभिन्न प्रकार की अन्य गतिविधियों में भी लगे हुए थे। मालाएं बनाना हड़प्पा के निवासियों का मन पसंद व्यवसाय था। मोहनजोदड़ो चानहदाड़ो तथा लोथल बस्तियों में काफी बड़ी संख्या में हड़प्पावासी इस कार्य से जुड़े हुए थे। चूंकि मालाएं बनाने में अकीक, (Carnllion), सूर्यकांत (Lapistazuli), सुलेमानी पत्थर (Agate) तथा नीलम (Jasper) जैसे बहुमूल्य रत्नों का प्रयोग होता था अतः संभव है प्रत्येक रत्न की मालाएं बनाने के लिए भिन्न दक्ष कारीगर होते हों। कुछ अन्य हड़प्पावासी पत्थर के औजार बनाने : में दक्ष थे।

इनके अतिरिक्त हड़प्पा नगरों में कुम्हारों, कांसे एवं तांबे के कार्य करने वालों, पत्थर के काम करने वालों, घर बनाने वालों, ईंट बनाने वालों तथा मुहरें काटने वालों के होने की पूरी संभावना है। जब हम हड़प्पा-सभ्यता की चर्चा करते हैं तो हम बुनियादी तौर पर इस युग की मुहरों, ईंटों, बर्तनों तथा इसी प्रकार की अन्य वस्तुओं का सहारा लेते हैं इन वस्तुओं के पाए जाने का अर्थ है कि इनके बनाने वाले इस युग में मौजूद थे।

हड़प्पा के शासक

हड़प्पा समाज के शीर्ष पर तीन प्रकार के लोगों की अदृश्य श्रेणियां थी-शासक, व्यापारी तथा पुरोहित। सामाजिक संगठन की समस्याओं की समझ के आधार पर इन श्रेणियों की कल्पना की जा सकती है। सभ्यता के उदय का संबंध सीधे-सीधे केन्द्रीकृत निर्णय प्रणाली के अभ्यदय से है, जिसे राज्य कहा जाता है। हड़प्पा-सभ्यता के अन्तर्गत स्थानीय शासन चलाने के लिए निर्णय लेने के अधिकार रखने वालों के अस्तित्व की प्रबल संभावना है। इसके कई कारण हैं।

  • व्यापक स्तर पर नीतियों की व्यवस्था तथा सड़कें बनाने एवं व्यवस्थित रखने के लिए शहरों में स्थानीय प्रशासन की आवश्यकता रही होगी।
  • अनाज गोदामों के होने से भी इस तथ्य की ओर संकेत मिलता है। आस-पास से अनाज इकट्ठा करके नागरिकों के बीच बांटने के लिए प्रशासन अवश्य रहा होगा।
  • जैसा कि पहले कहा जा चुका है, हथियारों, औजारों और ईंटों की बनावट में असाधारण समरूपता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ हथियार तथा औजार किसी एक स्थान पर बड़े पैमाने पर बनाए जाते और विभिन्न नगरों एवं बस्तियों में वितरित किए जाते थे। हजारों मील के क्षेत्र में इन वस्तुओं के उत्पादन एवं विक्रेता के प्रबंध से वह वर्ग असाधारण रूप से शक्तिशाली बन गया होगा जो कि निर्णय लेता होगा कि कितना उत्पादन हो और कहां उसका वितरण हो। यदि यह लोग किसी नगर को वस्तुएं देना बंद कर दें तो वहां औजारों और हथियारों का अकाल ही पड़ जाय।
  • बड़े नगरों के निवासियों द्वारा उत्पादनों के प्रकार एवं मात्रा के उपभोग की दर से संकेत मिलता है कि वहां कोई शासक वर्ग रहता होगा। काफी वस्तएं सदर प्रदेशों से लाई गयी दुर्लभ वस्तुएं होती थी बहुमल्य पत्थरों एवं धातओं से संपन्न होने से न केवल उनके मालिकों को बल्कि शेष जनता की भी प्रतिष्ठा बढ़ जाती थी।
  • इसी प्रकार नगरों के वृहत होने से केवल इस ओर ही संकेत नहीं मिलता कि वहां काफी बड़ी जनसंख्या रहती थी बल्कि इस तथ्य का भी पता चलता है कि वहां मन्दिरों तथा महलों जैसे भवन भी मौजूद थे। इन भवनों में रहने वाले लोग राजनैतिक, आर्थिक अथवा धार्मिक क्षेत्र में अधिकार सम्पन्न रहे होंगे। यही कारण है कि वे मोहरें जिन पर व्यापारियों, पुरोहितों अथवा प्रशासकों के अधिकार चिन्ह अंकित हैं, सबसे अधिक संख्या में मोहनजोदड़ो से मिलते हैं। जहां कि सबसे अधिक संख्या में मन्दिरों और महलों के रूप में अवशेष पाये गये हैं।

हमारे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता की राजधानी थी। यह भी संभव है कि हड़प्पा-सभ्यता में दो अथवा पांच स्वतंत्र राजनैतिक इकाईयों रही हों। हमारे कहने का तात्पर्य केवल यह है कि मोहनजोदड़ो नगर राजनैतिक आर्थिक शक्ति का केन्द्र बन गया था। हमें यह ज्ञात नहीं है कि हड़प्पा के शासक कौन थे, संभव है वे राजा रहे हों अथवा पुरोहित अथवा व्यापारी। हम जानते हैं, कि पूर्व आधुनिक समाजों में। आर्थिक, धार्मिक एवं प्रशासनिक इकाईयों में स्पष्ट रूप से भेद नहीं किया जाता था जिसका अर्थ यह है कि एक ही व्यक्ति प्रधान प्रोहित भी हो सकता था, राजा भी हो सकता था और धनी व्यापारी भी, लेकिन उपलब्ध प्रमाणों से संकेत मिलता है कि यहां शासक वर्ग अवश्य मौजद था तथापि इस शासक वर्ग के स्पष्ट रूप से हम अवगत नहीं हैं।

धर्म एवं धार्मिक रीतियाँ

हड़प्पा के लोग किसकी पूजा करते थे? यह प्रश्न विद्वानों के बीच काफी चर्चा का विषय रहा है। हड़प्पा के अतीत के अवशेष इस संदर्भ में कोई सूत्र नहीं देते हैं। अतः उनकी धार्मिक मान्यताओं को समझने के लिए हमें केवल अपनी बुद्धि और तर्क पर निर्भर होना पड़ेगा। मुख्य समस्या यह है कि लिखित स्रोतों के अभाव में उनकी लौकिक और अलौकिक गतिविधियों के बीच अन्तर करना कठिन है, इसलिए हड़प्पा से प्राप्त होने वाली प्रत्येक जानकारी पर अलौकिक गतिविधि होने का शक पैदा होता है। इस पृष्ठभूमि में उचित होगा कि हड़प्पा के लोगों की धार्मिक मान्यताओं को आधुनिक मान्यताओं के परिपेक्ष में रखकर उन्हें समझा जाय।

पूजा-स्थल

मोहनजोदड़ो’ के किले बंद नगर तथा निचले नगर की कई बड़ी इमारतें मन्दिरों के रूप में देखी गयी हैं। इस दृष्टिकोण से इस तथ्य को और भी बल मिलता है कि अधिकतर पत्थर की मूर्तियां इन्हीं इमारतों में मिली हैं।

मोहनजोदड़ो के निचले नगर में एक वृहत इमारत मिली है। इस इमारत में संस्मारकीय द्वार तथा एक मंच की ओर ले जाने वाली दोहरी सीढ़ियों का रास्ता है। इस मंच पर 16-11 इंच ऊँची एक पाषाण शिल्प कृति प्राप्त हुई है। इस कृति में अपने घुटनों पर हाथ रखे हुए एक पुरुष बैठा है। पुरुष के चेहरे पर दाढ़ी है तथा माथे पर पट्टी बंधी हुई है जिसके दोनों सिरे पीठ की ओर लटके हुए हैं। इसी इमारत में एक और पत्थर की मूर्ति प्राप्त हुई है यही कारण है कि विद्वानों ने इस इमारत को मन्दिर माना है।

मोहनजोदड़ो में किले के खंडहरों पर कई ऐसी इमारतों के अवशेष प्राप्त हुये हैं जिन्हें देखकर प्रतीत होता है कि वे हड़प्पा के पवित्र स्थल रहे होंगे, इनमें विशाल स्नानगृह सबसे अधिक प्रसिद्ध है। भारत के बाद के ऐतिहासिक युगों में इस प्रकार के विस्तृत स्नानगृहों का निर्माण पवित्र संस्कार स्थलों में होता था। अतः संभव है कि विशाल स्नानगृह कोई साधारण तरण ताल न रहा हो अपितु इसका पवित्र संस्कार स्थल के रूप में महत्व हो।

विशाल स्नानगृह के निकट ही एक अन्य विशाल इमारत (230 x 78 फुट) पाई गयी है जिसे किसी मुख्य पुरोहित का निवास स्थल अथवा पाहितों का मठ माना जाता है। इसी प्रकार किले बंद क्षेत्र में एक सभागार पाया गया है। इसके पश्चिम की ओर एक साथ कई कमरे बने हुए मिले हैं जिनमें से एक में एक बैठे हुए पुरुष की मूर्ति भी मिली है। इसे भी एक धार्मिक इमारत के रूप में देखा गया है। इन पवित्र धार्मिक इमारतों से मोहनजोदड़ो की धार्मिक रीतियों की ओर संकेत मिलता है। हम यह मान सकते हैं कि कुछ धार्मिक गतिविधियां इस विशाल मंदिर जैसी इमारत में की जाती रही होंगी।

आराध्य

आराध्य अथवा पूज्य वस्तुओं के विषय में प्रमाण हड़प्पा की मुहरों एवं पकी मिट्टी की. मूर्तियों से प्राप्त होते हैं, मुहरों से मिलने वाले प्रमाणों में सबसे प्रसिद्ध देवता की पहचान आदि-शिव के रूप में की गयी है, कई मुहरों में एक देवता जिसके सिर पर भैंस के सींग का मुकुट है, योगी की मुद्रा में बैठा हुआ है, देवता बकरी, हाथी, शेर तथा मृग से घिरा हुआ है मार्शल ने इस देवता को पशुपति माना है, कई स्थानों पर देवता के सींग के बीच से एक पौधा उगता दिखाया गया है, एक अन्य मुहर पर एक देवता जिसके सिर पर सींग और लम्बे बाल हैं, नंगे बदन पीपल की शाखाओं के बीच खड़ा है। एक उपासक उसके समक्ष झुका हुआ है उपासक के पीछे जिसका सिर आदमियों जैसा है, तथा अन्य सात मानवीय आकृतियां हैं, इन मानवीय आकृतियों के लम्बी चोटियां है एवं सिर पर लम्बे वस्त्र बंधे हैं।

यह मुहर में योगी के साथ एक सर्प की आकृति है। सींग वाली सभी आकृतियों को उत्तर भारतीय इतिहास के शिव के रूप में माना गया है। कुछ हड़प्पा बस्तियों से शिव लिंग भी प्राप्त हुए हैं। इन प्रमाणों के आधार पर विद्वानों ने शिव को हड़प्पा का सबसे महत्वपूर्ण देवता माना है। संभवतः सारे मंदिरों में शिव की पूजा होती थी।

मातृ देवी

हड़प्पा बस्तियों में भारी संख्या में पक्की मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं, इनमें महिलाओं की भी मूर्तियां हैं जो कि बड़ी सी मेखला सिंह वस्त्र तथा गले में हार पहने हुए दिखाई गयी हैं वे सिरों पर पंखे के रूप के मुकट धारण किए हैं। कभी-कभी उनके साथ शिश भी दिखाये गये हैं। अभिजनन पंथ के आम तौर से गर्भ धारण के विभिन्न रूपों द्वारा चित्रित किया गया है। इन प्रमाणों से हड़प्पा सभ्यता में अभिजनन पंथ के प्रति विश्वास तथा देवियों की आराधना की ओर संकेत मिलते हैं।

वृक्ष आत्माएं

संभवतः हड़प्पा के लोग वृक्ष आत्माओं की पूजा करते थे, कई स्थानों पर वृक्षों की . शाखाओं के बीच से झांकती हुई आकृतियां दिखाई गयी हैं विद्वानों का मत है कि यह आकृतियां वृक्ष आत्माओं को बिंबित करती हैं। कई चित्रों में आराधक पेड़ के सामने खड़े दिखाये गये हैं। कई अन्य स्थानों पर शेर अथवा किसी अन्य जानवर को वक्ष के सामने बिंबित किया गया है। एक स्थान पर वृक्ष के सामने सात मानवीय आकृतियां खड़ी दिखाई गयी हैं और वृक्ष के अन्दर एक आकृति जिसके सिर पर सींग हैं, दिखाई गयी है जैसी कि पीछे चर्चा की गयी है सींग वाली आकृति संभवतः शिव की है। भारत में पीपल के पेड़ की पूजा युगों से होती रही है और कहीं-कहीं पीपल के पेड़ और शिव की पूजा साथ-साथ होती दिखाई गयी है। सात आकृतियाँ बहुधा सात महान् ऋषियों अथवा भारतीय मिथक की सात जननी मानी गयी हैं।

कुछ पौराणिक नायक

कुछ अन्य माननीय आकृतियाँ जिनका धार्मिक महत्व हो सकता है मुहरों और गण्डों पर पायी गयी है मुहरों के सिर पर सींग तथा लम्बी दुम वाली आकृतियां बड़ी मात्रा में पायी गयी है यदा कदा इन आकृतियों के खुर तथा पिछली टांगे जानवरों जैसी दिखाई गयी हैं। कुछ अन्य मुहरें मेसोपोटामिया के मिथकों से मिलती-जुलती हैं। उदाहरण के लिए दो शेरों से लड़ता हुआ एक पुरुष हमारा ध्यान तुरन्त उस प्रसिद्ध योद्धा गिलगणेश की ओर ले जाता है जिसके विषय में दो शेरों को मारने की कथा प्रचलित है।

जानवरों की पूजा

ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा के लोग कई प्रकार के जानवरों की पूजा करते थे, इस सन्दर्भ में भी हमारी जानकारी का स्रोत मुहरें एवं पक्की मिट्टी की मूर्तियां हैं, चन्हुदाड़ो में एक मुहर मिली है जिसमें लिंग बाहर किए हुए सांड एक झुकी हुई मानव आकृति के साथ संभोग कर रहा है। यह निश्चित रूप से अभिजनन के प्रति विश्वास का सूचक है। मुहरों पर बहुधा एक ब्राह्मणी बैल चित्रित मिलता है जिसके गले के नीचे भारी झालरदार खाल लटकती दिखाई देती है। संभवतः वर्तमान सभ्यता के बैलों एवं गायों के प्रति आदर भाव के बीज हड़प्पा-सभ्यता में रहे हों।

मिथकीय जानवर

मुहरों पर विभिन्न समष्टि आकृति वाले जानवर चित्रित किए गए हैं, मुहरों पर ऐसा जानवर रूपी जीव मिलते हैं जिनका अगला हिस्सा मनुष्य जैसा है तथा पिछला शेर जैसा दिखाया गया है। इसी प्रकार भेड़ों, बैलों तथा हाथियों की मिली-जुली आकृतियों वाले समष्टि काफी संख्या में प्राप्त हुई हैं। वे निश्चित रूप से पूज्य आकृतियां रही होंगी। हड़प्पा के बाद के भारतीय परंपरा के मिथकों में समष्टि आकृति वाले जीवों जैसे “नर सिंह” का विशेष स्थान रहा है। हड़प्पा की मुहरों पर एक अन्य महत्वपूर्ण जानवर एक श्रृट्ट (Unicorn) चित्रित मिलता है।

यह एक घोड़े जैसा जानवर है जिसके सिर के बीच एक सींग निकली हई है। इस जानवर के सामने एक विचित्र वस्तु दिखाई देती है जो कि किसी अन्य जानवर से मिलती-जुलती नहीं है। इस चित्र में एक पिंजरे जैसी वस्तु एक दंड से लटक रही है। दंड के बीच में एक कटोरे जैसी वस्तु है। हमें इस वस्तु का प्रयोजन ज्ञात नहीं है। इसकी पहचान पवित्र हौदे अथवा धपदान के रूप में की गयी है। एक अन्य महर में एक श्रङ्क एक मिथकीय पश था क्योंकि इस प्रकार का कोई पशु कहीं नहीं पाया जाता। संभवतः इसकी उपासना की जाती रही होगी।

ऐसा प्रतीत होता है कि कालीबंगन एवं लोथल के हड़प्पावासी भिन्न धार्मिक रीतियों के अनुयायी थे कालीबंगन में किले में उभरी इंटों के मंच मिले हैं जिनके ऊपर “अग्नि वेदिया” है जिनमें पशुओं की हड्डियां एवं राख है, इस स्थान पर भी कआं और स्नानगृह हैं। यह स्थान पूजा क्रिया का केन्द्र रहा होगा जहा पशुओं की बलि धार्मिक पवित्रीकरण तथा अग्नि की पूजा की जाती रही होगी निचले नगर के कई मकानों में भी । “अग्नि वेदी” वाल कमरे है। कई अन्य “अग्निवेदियां” होने की भी जानकारी मिली है, लोथल में भी “अग्निवेदियां” पायी गयी हैं यह प्रमाण अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि।

  • इनमें यह संकेत मिलता है कि विभिन्न क्षेत्रों के हड़प्पावासी विभिन्न धार्मिक रीतियों के अनुयायी थे, तथा
  • वैदिक युग के धर्म में अग्नि पूजा का केन्द्रीय महत्व था।

वेद युग के आर्यजन भिन्न प्रकार के लोग थे, कालीबंगन से मिले प्रमाणों से ज्ञात होता है , कि आर्यों ने हड़प्पा क्षेत्र में आकर बसने के बाद हड़प्पा के लोगों की ही धार्मिक रीतियों को अपनाया।

मृतकों का अंतिम संस्कार

मानव जाति अपने सगे सम्बन्धियों के मृत शरीरों के अंतिम संस्कार को महत्वपूर्ण धार्मिक गतिविधि के रूप में मानती रही है। इसका कारण मृतकों के प्रति दृष्टिकोण तथा इस जीवन तथा मृत्योपरांत जीवन के सम्बंध में मानव जाति के विश्वास से परस्पर जुड़ाव है, हड़प्पा सभ्यता से मृतकों का कोई ऐसा स्मारक नहीं प्राप्त हो सका है जो मित्र के पिरामिड अथवा मेसोपोटामियां के उप नगर के राजकीय कब्रिस्तान के वैभव की बराबरी कर सकें। तथापि हमें हड़प्पा के लोगों में प्रचलित अंतिम संस्कार पद्धति के विषय में कुछ प्रमाण मिले हैं हड़प्पा में कई कबें मिली हैं।

शव साधारणतया उत्तर-दक्षिण दिशा में रख कर दफनाए जाते थे। उन्हें सीधा लिटाया जाता था। कब्र में बड़ी संख्या में मिट्टी के बर्तन रख दिए जाते थे कुछ स्थानों पर शवों को गहनों जैसे सीप की चूड़ियों, हार, तथा कान की बालियों के साथ दफनाया जाता था कुछ कब्रों में तांबे के दर्पण, सीप, और सुरमें की सलाइयां भी रखी जाती थी। कई कबें ईंटों की बनी हुई मिली है। हड़प्पा में एक कब्र में ताबूत भी प्राप्त हआ है। कालीबंगन में अंतिम संस्कार की भिन्न रीतियां देखने को मिली हैं। यहा पर छोटे-छोटे वृत्ताकार गड्डे देखे गए हैं। जिनमें बड़ी राखदानियां तथा मिट्टी के बर्तन मिले हैं। लेकिन यहां कंकालों के अवशेष नहीं मिले हैं। कुछ ऐसे भी गड्ढे मिले हैं जिनमें हड्डियां एकत्रित मिली हैं। लोथल में साथ-साथ दफनाए गए महिला एवं पुरुष के मुर्दो के कंकालों के जोड़े मिले हैं।

इन रीतियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि हड़प्पा के लोगों में मुर्दो के अंतिम संस्कार की रीतियां भारत में बाद में आने वाले समय की रीतियों से भिन्न थीं। भारत के ऐतिहासिक चरणों में अंतिम संस्कार की मुख्य पद्धति दाह संस्कार प्रतीत होती है। साथ ही मुर्दो का सावधानीपर्वक रखकर अंतिम संस्कार करना तथा आभूषण एवं श्रृंगार की वस्तुएं उनके साथ रखना इस तथ्य का द्योतक है कि वे लोग मरणोपरांत जीवन में विश्वास रखते थे। इस विश्वास के स्वरूप के विषय में हमें जानकारी नहीं है।

खुदाई से प्राप्त विभिन्न वस्तुओं के अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा-सभ्यता के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की धार्मिक रीतियां प्रचलित थीं। कालीबंगन तथा लोथल में अग्नि पूजा प्रचलित थी किन्त हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में ऐसा प्रचलन नहीं था। मोहनजोदड़ो में प्रचलित पवित्र स्नान की रीति संभवतः हड़प्पा में नहीं थी। अंतिम संस्कार में विस्तृत विभिन्नता देखने को मिलती है। एक साथ कई मुर्दे दफनाने से लेकर जोड़े दफनायें तथा मुर्दे के साथ कुछ वस्तुएं रखने तक की रीतियां पायी गयी हैं। कालीबंगन से प्राप्त जानकारी के आधार पर ऐसे तथ्य भी प्राप्त हए हैं जो यह बताते हैं कि एक ही । स्थान पर भी अंतिम संस्कार की भिन्न रीतियां प्रचलित थी।

धार्मिक विश्वास एवं रीतियों की इस विभिन्नता से मुख्य नगरों के जटिल स्वरूप की ओर संकेत मिलता है जनजाति समाजों के विपरीत से जहां जनजाति का प्रत्येक सदस्य समान धार्मिक रीति का पालन करता है। मुख्य नगरों में यह विशेषता दिखाई देती है कि वहां के निवासी विभिन्न धार्मिक रीतियों का पालन करते थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि मुख्य नगरों का गठन विभिन्न सामाजिक समूहों के राजनैतिक एवं आर्थिक एकीकरण से हुआ होगा। इसके अतिरिक्त मुख्य नगरों में भिन्न धार्मिक रीतियों के अनुयायी विभिन्न क्षेत्रों के व्यापारी निवास करते होंगे। वे लोग अपनी राजनैतिक तथा आर्थिक विशिष्टता तो बनाये न रख पाये होंगे। लेकिन अपनी सामाजिक तथा धार्मिक रीतियों का पालन करते रहे होंगे।

सारांश

इस इकाई में हमने हड़प्पावासियों के दैनिक जीवन से जुड़े सामाजिक एवं धार्मिक पक्षों पर ‘ चर्चा की। हड़प्पावासियों के मुख्य पहनावे आधुनिक साड़ियों जैसे बगैर सिले हुए वस्त्र होते थे जोकि शरीर पर लपेट लिए जाते थे। पुरुष एवं महिलाएं समान रूप से घाघरा एवं कमीज पहनते थे। विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाता था। मुख्य खाद्य पदार्थों में चावल,जौ, बाजरा तथा गेहं का सेवन किया जाता था। विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियां तथा मांसाहारी भोजन भी इस्तेमाल किए जाते थे।  यदि स्पष्ट नहीं हआ तो उसका कारण यह है कि उस समय उस क्षेत्र में न चाय उगाई जाती थी और न ही आलू की खेती होती थी। पुरातत्वशास्त्री तथा भाषाविद् अभी भी हड़प्पा की लिपि से जूझ रहे हैं वे अभी तक उसे पढ़ने में समर्थ नहीं हो पाए हैं।

उनकी बस्तियों की किले बंदी तथा प्राप्त हथियारों से उनके युद्ध करने की ओर भी संकेत मिलता है। मिट्टी के बर्तन बनाना, धातुओं के काम, मालाएं बनाना तथा अन्य शिल्प कलाएं हड़प्पा सभ्यता का अंग थी। यह हड़प्पा में दस्तकार तथा नगर स्थित श्रमिकों के अस्तित्व का द्योतक है। संभवतः समाज वर्गों में विभाजित था ऐसे भी संकेत मिलते हैं कि हड़प्पा में किसी न किसी प्रकार की राजनैतिक संरचना विद्यमान थी। नगरों में प्रमुखं सामाजिक वर्ग प्रशासक, पुजारी, व्यापारियों तथा बड़ी संख्या में श्रमिकों के सामाजिक वर्ग रहे होंगे।

कुछ बड़ी इमारतें सामूहिक पूजा अथवा धार्मिक संस्कारों की ओर संकेत करती हैं। भारी संख्या में देवी-देवताओं तथा अन्य आराध्यों की पूजा किए जाने के प्रमाण प्राप्त हए हैं। प्रमख रूप से मात्र देवी, शिव तथा कई प्रकार के पशु एवं वृक्ष आराध्य थे कुछ समष्टि रूपी मिथकीय पश भी धार्मिक विश्वासों का अंग थे।

मर्दो के अंतिम संस्कार का सबसे प्रचलित तरीका दफनाना था न कि दाह संस्कार। कब्रों में कई प्रकार के आभषण तथा अन्य वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं। इन सभी प्रमाणों से हमें हड़प्पा समाज के प्रति यदि पूरी नहीं तो संतोषजनक जानकारी अवश्य प्राप्त हो जाती है।

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