भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय रूप से अपवर्जित : सरकार और RBI द्वारा उठाए गए क़दम

प्रश्न: कई मुद्दों के लगातार अवरोध बने रहने से भारत की ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अभी भी ‘वित्तीय रूप से अपवर्जित है। चर्चा कीजिए। इन मुद्दों से कैसे निपटा जा सकता है और हाल ही में सरकार और RBI द्वारा इस सम्बन्ध में उठाए गए कदमों का विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • उन कारणों की चर्चा कीजिए कि क्यों भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय रूप से अपवर्जित है।
  • व्याख्या कीजिए कि इन मुद्दों से कैसे निपटा जा सकता है।
  • सरकार और RBI द्वारा इस संबंध में उठाए गए क़दमों की चर्चा कीजिए।

उत्तर

ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन की आवश्यकता है ताकि व्यक्तियों तथा व्यवसायों के लिए उपयोगी वित्तीय उत्पादों एवं सेवाओं की पर्याप्त और वहनीय पहुंच सुनिश्चित हो सके, जो उनकी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 54.4% ग्रामीण परिवारों की ग्रामीण बैंकिंग तक पहुंच थी, जबकि शेष औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के दायरे से बाहर थे

ग्रामीण जनसंख्या के वित्तीय अपवर्जन के कारण:

  • मांग पक्ष संबंधी बाधाएं: इसके अंतर्गत वित्तीय साधनों और योजनाओं के संबंध में जागरूकता की कमी, निम्न आय आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  • आपूर्ति पक्ष संबंधी बाधाएं: इसके अंतर्गत बैंक से दूरी, बैंक शाखाओं की समयावधि, नियमित आय की कमी, अनुपयुक्त वित्तीय उत्पाद, अनौपचारिक ग्रामीण ऋण व्यवस्था आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  • ट्रस्ट: स्थानीय धन उधारकर्ता अथवा सूक्ष्म वित्तीय कंपनियां ट्रस्ट का लाभ उठाती हैं और व्यवसाय को आकर्षित करने में सक्षम होती हैं, जबकि औपचारिक वित्तीय संस्थान अनाकर्षक बने रहते हैं।
  • आसान पहुंच: औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पहुंच के लिए दस्तावेजों की अधिकता और विस्तृत प्रक्रियाएं सस्ती दरों के तुलनात्मक लाभ को कम करते हैं।
  • परिचालन संबंधी मुद्दे: राजनीतिक एजेंडे के उद्देश्य से संचालित बार-बार ऋण माफ़ी की योजनाओं के कारण बैंकों के समक्ष कठिनाईयां आती हैं और बोझिल दस्तावेज प्रक्रियाओं आदि में वृद्धि होती है।
  • निम्नस्तरीय ग्रामीण अवसंरचना: खराब परिवहन, विद्युत्, दूरसंचार और इंटरनेट सेवाओं जैसी निराशाजनक ग्रामीण अवसंरचनायें, परिचालन संबंधी बाधायें उत्पन्न करती हैं।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएं: बीमा, डिजिटल भुगतान जैसे वित्तीय उत्पादों का प्रचार ग्रामीण क्षेत्रों में चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

उपर्युक्त मुद्दों का निम्नलिखित तरीकों से समाधान किया जा सकता है:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय संस्थानों सहित भौतिक अवसंरचना में सुधार करना।
  • सांस्कृतिक और संचार संबंधी बाधाओं से निपटने के लिए स्थानीय लोगों के प्रशिक्षण के माध्यम से वित्तीय समावेश।
  • बायोमिट्रिक और POS उपकरणों का उपयोग करके अल्पविकसित क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं की डोरस्टेप डिलीवरी।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में SHGs और अन्य सूक्ष्म-वित्तीय संस्थानों का विस्तार करना।
  • वित्तीय साक्षरता में सुधार।

सरकार और RBI द्वारा किए गए प्रयास:

  • JAM- जन धन योजना, आधार और मोबाइल का उद्देश्य, बैंकिंग/बचत और जमा खाते, विप्रेषण, साख, बीमा, पेंशन जैसी वित्तीय सेवाओं की वहनीय तरीके से पहुंच सुनिश्चित करना है।
  • डाक विभाग की ग्रामीण पहुंच बढ़ाने और वित्तीय विप्रेषण, बचत खाते, ग्रामीण डाक जीवन बीमा और कैश सर्टिफिकेट में वृद्धि के लिए दर्पण (Darpan) योजना;
  • बीमा और पेंशन योजनाएं- प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना तथा अटल पेंशन योजना, वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना इत्यादि।
  • RBI ने वित्तीय समावेशन प्राप्त करने हेतु बैंक-लेड मॉडल को अपनाया है और गैर-बैंकिंग वाले गांवों में शाखाएं खोलने की अनिवार्य आवश्यकता को निर्धारित किया गया है।
  • विशेष रूप से कम मूल्य वाले ग्राहकों और लेनदेन के लिए KYC मानदंडों का सरलीकरण करना
  • लघु वित्त बैंकों और भुगतान बैंकों के उपयोग के माध्यम से निश बैंकिंग (niche banking) को बढ़ावा देना जिनके पास ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच के लिए एक विस्तृत नेटवर्क है। इसके अतिरिक्त, व्हाइट लेबल ATM, रुपे कार्ड और BHIM ऐप की गयी हालिया अन्य पहलें हैं।
  • वित्तीय उत्पादों तक पहुंच प्रदान करने के लिए लोगों को जागरूक करने और शिक्षा प्रदान करने हेतु RBI के अनुरोध पर व्यावसायिक बैंकों द्वारा वित्तीय साक्षरता केंद्र प्रारंभ किए गए थे।
  • ग्रामीण उद्यमिता के लिए संस्थागत सहायता – मुद्रा बैंक भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमियों को सूक्ष्म-वित्त प्रदान करता  है ।

हालांकि SHGS, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, सहकारी समितियों और RRBs के माध्यम से ग्रामीण वित्त में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, परन्तु ग्रामीण जनसंख्या के वित्तीय अपवर्जन से निपटने के लिए अधिक नीतिगत और तकनीकी नवाचारों की आवश्यकता समय की मांग है। 

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