चुनावी वित्त-पोषण में सुधार (Electoral Funding Reforms)
वित्तीय उत्तरदायित्व चुनावी सुधारों में निरंतर चिंता का प्रमुख विषय बना हुआ है। चुनावी वित्त-पोषण में सुधार हेतु विभिन्न उपायों यथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 (1) (a) के तहत चुनावी अनुदान की अधिकतम सीमा को 20,000 रूपए से कम कर 2000 रूपए तक करना, चुनावी बॉन्ड का प्रस्ताव, RTI के तहत राजनीतिक दलों के IT रिटर्न का जनता के समक्ष प्रकटीकरण आदि को अपनाया जा रहा है।
विभिन्न सुधारों के बावजूद, चुनावी वित्त-पोषण अभी भी विभिन्न समस्याओं से प्रभावित है, यथा:
- चंदे में अपारदर्शिता: राजनीतिक दलों को अधिकांश धन (लगभग 70%) नकद द्वारा अज्ञात चंदे के रूप में प्राप्त होता है। इसके
अतिरिक्त, दलों को आयकर से छूट प्राप्त होती है, जो काले धन के जमाखोरों को एक माध्यम प्रदान करता है। - रिश्वत के विरुद्ध कार्रवाई का अभाव: निर्वाचन आयोग ने RPA, 1951 को सक्षम बनाने के लिए एक नए खंड, 58B को
सम्मिलित करने की मांग की है। इससे यदि किसी दल द्वारा निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को रिश्वत दी जाती है तो उसके विरुद्ध कार्रवाई की जा सकेगी। हालाँकि इसके आधार पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। - कॉर्पोरेट चंदे की सीमा समाप्ति: किसी कंपनी द्वारा राजनीतिक दल को चंदा देने की सीमा (उसे लाभ के अधिकतम 7.5%) को हटा लिया गया है। इस प्रकार अब विशेष रूप से राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए शेल कंपनियों को स्थापित किया जा सकता है।
- विदेशी वित्त पोषण की अनुमति: विदेशी अंशदायी (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के संशोधन ने राजनीतिक दलों के
विदेशी वित्त पोषण का मार्ग खोल दिया है। यह अभिशासन में संभावित हस्तक्षेप का कारण बन सकता है। - पारदर्शिता का अभाव: RPA, 1951 की धारा 29 के तहत प्रावधानों के बावजूद, राजनीतिक दल निर्वाचन आयोग को अपनी
वार्षिक लेखापरीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करते हैं। दलों द्वारा उन्हें RTI अधिनियम के दायरे में लाए जाने की भी निंदा की गई है।
चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds)
सरकार द्वारा बजट 2017-18 में घोषित की गयी चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds Scheme) को अधिसूचित किया गया है। इसका उद्देश्य राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता को बढ़ाना है।
पृष्ठभूमि
- एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफॉर्ल्स (ADR) के एक विश्लेषण के अनुसार, 2004-05 से 2014-15 के मध्य राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय
दलों को प्राप्त कुल आय का 69% भाग अज्ञात स्रोतों से चंदे के रूप में प्राप्त हुआ था। - चुनाव सुधारों पर विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक वित्तपोषण में अपारदर्शिता का परिणाम बड़े दानदाताओं द्वारा सरकार को अपने पक्ष में करने (लॉबिंग) एवं उस पर प्रभाव स्थापित करने” के रूप में सामने आता है।
- चुनावी बॉन्ड की घोषणा 2017-18 के बजट में की गई थी। इसके लिए, वित्त विधेयक, 2017 की धारा 133 से 136 के माध्यम से रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया एक्ट, 1934 {धारा 31(3)} एवं जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में आवश्यक संशोधन किए गए।
चुनावी बॉन्ड के लाभ
- राजनीतिक वित्तपोषण में काले धन पर रोक: चूँकि चुनावी बॉन्ड की खरीद KYC अनुपालन के माध्यम से की जाएगी, अत: इससे ‘क्लीन मनी’ द्वारा वित्तपोषण को प्रोत्साहन मिलेगा।
- पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता को बढ़ावा- आयकर रिटर्न भरना एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि इससे राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में प्राप्त राशि का मूल्यांकन संभव होगा।
- अनामिकता (Anonymity)- अनामिकता, भारत की “प्रतिशोधपूर्ण राजनीतिक संस्कृति (जिससे तहत कोई दल किसी विरोधी दल को चंदा देने पर दानकर्ता को दंडित कर सकता है) के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करेगी।
- चुनावी बॉन्ड को 15 दिनों के भीतर भुनाया जाना आवश्यक है। यह संक्षिप्त अवधि इसे समानांतर मुद्रा बनने से रोकेगी।
- पात्रता हेतु कड़े मानदंड उन राजनीतिक दलों को हतोत्साहित करेंगे, जिनकी स्थापना का उद्देश्य मात्र कर अपवंचन है।
चुनावी बॉन्ड की सीमाएँ
- अपारदर्शिता- किस दल को, किसके द्वारा, कितनी धनराशि दान की गयी है; यह जानकारी केवल निश्चित निकायों को ही रहेगी।
इस प्रकार जनता के लिए अपारदर्शिता का तत्व बना रहेगा। - जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29C के तहत प्रावधान किया गया है कि सभी राजनीतिक दलों को 20,000 रुपए से | अधिक के चंदे की सूचना चुनाव आयोग को देनी होगी। परन्तु वित्त विधेयक में किए गए संशोधन में चुनावी बॉन्ड को इस धारा के दायरे से बाहर रखा गया है। अत: दलों को चुनावी बॉन्ड के रिकार्ड्स, जांच हेतु चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं करने होंगे।
- आयकर अधिनियम 1961 की धारा 13A के अंतर्गत राजनीतिक दलों द्वारा वार्षिक टैक्स-रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य बनाया गया है। किन्तु वित्त विधेयक में चुनावी बॉन्ड को आयकर अधिनियम के दायरे से बाहर रखे जाने संबंधी प्रावधान भी किये गये है। इस प्रकार, 20,000 रुपए से अधिक का चंदा देने वालों के नाम, पतों आदि का ब्यौरा रखने की आवश्यकता भी समाप्त हो जाएगी।
- सत्ताधारी दल के प्रति पक्षपाती होना- एक सरकारी बैंक होने के नाते SBI सभी दानदाताओं की सूचना रखेगा, यह सत्ताधारी दल के लिए लाभकारी हो सकता है। साथ ही, इससे विपक्षी दल को दान देने वाले व्यक्तियों के लिए दंड का भय उत्पन्न होगा।
आगे की राह
राजनीतिक वित्तपोषण में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं
- पूर्णतः डिजिटल लेन-देन पद्धति को अपनाना।’
- कॉर्पोरेट-राजनीतिक दलों के मध्य बनने वाले गठजोड़ को समाप्त करने के लिए एक निर्धारित सीमा से अधिक दी गई चंदे की राशि को सार्वजनिक करना।
- राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (RTI) के दायरे में। लाया जाना चाहिए जैसा कि भूटान व जर्मनी जैसे देशों द्वारा किया गया है।
- एक राष्ट्रीय चुनाव निधि (नेशनल इलेक्टोरल फण्ड) बनायी जानी चाहिए जहाँ दानदाता चंदा दे सकें तथा इस प्रकार एकत्रित कोष को विभिन्न राजनीतिक दलों के मध्य पिछले चुनावों में उनके प्रदर्शन के आधार पर बाँट दिया जाना चाहिए। इससे काले धन पर लगाम लगेगी एवं दान देने वालों की गोपनीयता भी बनी रहेगी।
- चुनावों की उच्च लागत को देखते हुए अतीत में चुनावों के राज्य वित्तपोषण का सुझाव दिया गया था।
राज्य वित्तपोषण के पक्ष में तर्क |
राज्य वित्तपोषण के विपक्ष में तर्क |
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