कॉमन गुड (सार्वजनिक शुभ) के दृष्टिकोण का सार्वभौमिक अंगीकरण

प्रश्न: कॉमन गुड (सार्वजनिक शुभ) के दृष्टिकोण का सार्वभौमिक अंगीकरण व्यक्तिगत हितों के ऊपर सामूहिक हितों को रखने की नैतिक दुविधा खड़ी करता है। सोदाहरण चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • कॉमन गुड (सार्वजनिक शुभ) की अवधारणा को सोदाहरण परिभाषित करते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए। 
  • कॉमन गुड की चुनौतियों से निपटने में व्यक्ति के समक्ष उत्पन्न नैतिक दुविधा की चर्चा कीजिए। कुछ उदाहरणों के साथ समझाइए।
  • उचित निष्कर्ष के साथ उत्तर को समाप्त कीजिए।

उत्तर

एक व्यक्तिगत इकाई- एक व्यक्ति, एक समूह, एक समुदाय या एक राष्ट्र- ऐसे तरीके से कृत्य निष्पादन का चयन कर सकते हैं जिससे उन्हें अधिकतम शुभ की प्राप्ति हो। सामान्यतः इस शुभ की प्राप्ति किसी अन्य व्यक्तिगत इकाई के हितों की लागत पर होती है। अन्य इकाइयों की लागत को कम करने की दो विधियाँ हैं। या तो अन्य के हितों पर कोई विचार किए बिना सभी केवल स्वयं के लाभों को अधिकतम बनाने हेतु एक स्वार्थ पूर्ण तरीके से कार्य करें तथा एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करें; या प्रत्येक व्यक्ति एक सामंजस्यपूर्ण तरीके से कार्य करे ताकि किसी एक व्यक्ति या इकाई के बजाय सभी को लाभ की अधिकतम प्राप्ति हो।

इस प्रकार, सभी को होने वाली हितों की हानि को सभी के द्वारा वहन किया जाता है और इसलिए प्रत्येक के द्वारा लाभ को अधिकतम करते हुए इसे (हितों की हानि) कम करने का प्रयास किया जाता है। हालांकि, यहां नैतिक दुविधा यह है कि क्या होगा यदि अन्य इकाइयां सभी के बजाय अपने स्वयं के लाभों को अधिकतम करने के लिए प्रयास करे? इस प्रकार, यह स्पष्ट हो जाता है कि कॉमन गुड के दृष्टिकोण के सार्वभौमिक अंगीकरण से दुविधा उत्पन्न होती है कि- क्या मैं पीछे रह गया हूँ /हम पीछे रह गए हैं? क्या मेरे/हमारे जैसे अन्य लोग कॉमन गुड के लिए प्रतिबद्ध हैं? क्या मेरे स्व-हित के लिए प्रयास करना मेरे लिए अधिक एवं त्वरित प्रसन्नता लाएगा।

जॉन रॉल्स के अनुसार, कॉमन गुड “कुछ निश्चित सामान्य परिस्थितियों को संदर्भित करता है जो प्रत्येक के लाभ के लिए समान होती हैं।” यह इस प्रश्न से संबंधित है कि एक निर्दिष्ट समुदाय के सभी या अधिकांश सदस्यों के लिए क्या साझा और लाभप्रद है। उदाहरण के लिए – यूनिवर्सल पब्लिक हेल्थ केयर सिस्टम, सार्वजनिक सुरक्षा की एक प्रभावी प्रणाली, एक स्वच्छ प्राकृतिक पर्यावरण आदि।

ऐसी प्रणालियों, संस्थाओं और पर्यावरण का किसी समाज के सदस्यों के कल्याण पर गहरा प्रभाव होता है, वस्तुतः प्रत्येक सामाजिक समस्या इस बात पर निर्भर करती है कि इन प्रणालियों एवं संस्थाओं का संचालन कितने बेहतर ढंग से हो रहा है। उदाहरण:

  • पड़ोस को साफ रखने के लिए सभी परिवारों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता होती है और यदि उनमें से किसी एक परिवार द्वारा उत्पन्न घरेलू अपशिष्ट का उचित तरीके से निस्तारण नहीं किया जाता है, तो अन्य भी इसे साफ रखने हेतु हतोत्साहित होंगे।
  • बिना किसी लाभ के खनन परियोजनाओं के लिए स्थानांतरित होने का पूरा भार लोगों के एक समूह- ‘वनवासियों – द्वारा वहन किया जा रहा है।
  • समृद्ध लोगों के द्वारा अपनी जीवन शैली के माध्यम से प्रदूषण में असंगत तरीके से किया जाने वाला योगदान, अन्य लोगों की उत्सर्जन में कटौती करने संबंधी प्रेरणा को कम करता है।
  • WTO में विकसित देशों के द्वारा विकासशील और निर्धन देशों के हितों की कीमत पर अपने हितों की पूर्ति हेतु किये जाने वाले प्रयास उन्हें (विकासशील और निर्धन देशों को) वैश्विक नियमों, संधियों के सम्मान एवं पालन करने के प्रति हतोत्साहित करते हैं।

कॉमन गुड सुनिश्चित करने में विद्यमान चुनौतियां

किसी को भी कॉमन गुड से सरलता से वंचित नहीं किया जा सकता है। इससे निम्नलिखित चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं:

  • चूंकि प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों से योगदान की अपेक्षा होती है जबकि उसका मुख्य बल स्वयं के हितों की पूर्ति पर होता है इसलिए किसी विशेष व्यक्ति पर जवाबदेही को निर्धारित नहीं किया जा सकता।
  • इस प्रकार के बहुलतावाद के समक्ष कॉमन गुड की स्थापना के प्रयास में कुछ लोगों के विचारों को अपनाने या प्रोत्साहन देने को बढ़ावा मिलता है जबकि कुछ के विचार इस प्रयास में सम्मिलित नहीं हो पाते।
  • व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण करने से इंकार करके कॉमन गुड का लाभ उठाते हुए “मुफ्त का लाभ उठाने वाले” बन सकते हैं।
  • व्यक्तिवादी संस्कृति में “कॉमन गुड” के लिए लोगों को उनकी स्वतंत्रता, व्यक्तिगत लक्ष्यों एवं स्वार्थों के त्याग हेतु सहमत करना कठिन होता है।
  • कॉमन गुड के लिए दूसरों की तुलना में कुछ विशेष व्यक्तियों या समूहों को अधिक हितों की हानि वहन करनी पड़ सकती

इन मुद्दों के बावजूद, कॉमन गुड की स्थापना की मांग को समाप्त नहीं किया जाना चाहिए। उनके लिए हमें इस व्यापक प्रश्न पर विचार करने हेतु आग्रह करना चाहिए कि हम किस प्रकार का समाज बनना चाहते हैं तथा उस समाज की प्राप्ति कैसे की जा सकती है। संवाद और चर्चा के माध्यम से अन्य लोगों को ऐसे तरीके से कार्य करने हेतु प्रेरित किया जा सकता है जिससे कॉमन गुड में अधिकतम वृद्धि हो।

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