बाल विवाह (Child Marriage)

बाल अधिकारों पर कन्वेंशन के अनुच्छेद 1 के तहत, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के विवाह को बाल विवाह के रूप में संदर्भित किया जाता है। UNICEF के अनुसार, एक दशक में भारत में विवाह करने वाली बालिकाओं का अनुपात पहले का लगभग आधा हो गया है। विगत दशक में पूरे विश्व में 25 मिलियन बाल विवाहों को रोका गया था। इसके अंतर्गत दक्षिण एशिया में सबसे अधिक कमी देखी गयी, जिसमें भारत अग्रणी था। हालाँकि इसके अतिरिक्त जनगणना 2011 से ज्ञात होता है कि भारत में बाल विवाह अनियंत्रित रूप से हो रहे हैं तथा यहाँ हर तीन विवाहित महिलाओं में से एक की विवाह के समय आयु 18 वर्ष से कम थी।

मूलभूत तथ्य

  • शहरी क्षेत्रों (29%) की तुलना में ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह (48%) अधिक प्रचलित हैं।
  • सामान्य तौर पर, बाल विवाह की दर भारत के मध्य और पश्चिमी हिस्सों में सबसे अधिक है; जबकि देश के पूर्वी और दक्षिणी
    हिस्सों में यह दर कम है।
  • बिहार और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में लगभग 60% बाल विवाह होते हैं।
  • बाल विवाह की राष्ट्रीय औसत से अधिक दर वाले अन्य राज्यः झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा हैं।
  • हालांकि, जिन राज्यों में बाल विवाह कम प्रचलित है वहाँ के कुछ निश्चित इलाकों में उच्च बाल विवाह की घटना पाई जाती

भारत में बाल विवाह के प्रचलन के कारण

  • व्यापक सामाजिक स्वीकृति सहित समाज में गहराई तक उपस्थित और व्यापक रूप से प्रचलित सामाजिक प्रथाएँ; आंध्रप्रदेश,
    राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में बाल विवाह के उच्च प्रचलन का प्रमुख कारण हैं।
  • निर्धनता, विवाह की उच्च लागत और अन्य आर्थिक कारण: ये बाल विवाह के कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं। कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में श्रम और उच्च महिला कार्य भागीदारी की मांग द्वारा बाल विवाह की राजनैतिक अर्थव्यवस्था का भी निर्धारण होता है।
  • स्कूली शिक्षा, विशेषकर माध्यमिक स्तर तक पहुंच का अभाव: UNICEF के अनुसार 10 वर्ष तक शिक्षा प्राप्त करने वाली एक बालिका का 18 वर्ष से पहले विवाह करवाने की घटनाओं में छह गुना तक कमी देखी गई है।
  • सामाजिक स्वीकृति के कारण इसे राजनीतिक सरंक्षण भी मिलता है। राजनेता बाल विवाह की प्रथा का विरोध करने में
    कठिनाई अनुभव करते हैं क्योंकि उन्हें अपने वोट और समर्थन गंवाना पड़ सकता है।
  • बाल विवाह का व्यापक रूप से यौन व्यापार या सस्ते श्रम के लिए गरीब आदिवासी परिवारों से बालिकाओं को लाने के लिए
    छद्म उपयोग किया जाता है।

बाल विवाह के दुष्प्रभाव

  • समय पूर्व विवाह बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ भविष्य के बेहतर अवसरों से भी से वंचित करता है।
  • यह बच्चे के निर्णय लेने की स्वतंत्रता को सीमित करता है और गरीबी के दुष्चक्र को बढाता है।
  • बाल विवाह अक्सर विभिन्न स्वास्थ्य जोखिमों से जुड़ा होता है यथा कम उम्र की दुल्हन की गर्भ निरोधकों, प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं और सूचनाओं तक पहुंच और उनके द्वारा इनमे उपयोग सीमित होता है।
  • इनमें से अधिकाँश को मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक रूप से परिपक्व होने से पहले लगातार बनने वाले संबंधों, गर्भधारण का दोहराव एवं समय-पूर्व प्रसव आदि का सामना करना पड़ता है।
  • घरेलू हिंसा ऐसे वातावरण में होती है जहां महिलाए अशक्त होती हैं और महत्वपूर्ण संसाधनों और निर्णय लेने की शक्तियों तक उनकी पहुंच सीमित होती है।
  • बाल विवाह लड़कों और लड़कियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है और सतत विकास प्राप्त करने के प्रयासों को कमज़ोर करता है। बाल-विवाह समाज को समग्रतः नकारात्मक ढंग से प्रभावित करता है।
  • बाल-विवाह निर्धनता-चक्र को और मजबूत बनाता है। यह लैंगिक भेदभाव, निरक्षरता तथा कुपोषण के साथ ही शिशु व मातृ मृत्यु दर में भी वृद्धि करता है।

बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन इस कन्वेंशन को 1990 में लागू किया गया। इस कन्वेंशन में सभी भागीदार राष्ट्रों द्वारा बच्चों का सर्वोत्तम हित सुनिश्चित करने हेतु अनुपालन संबंधी मानकों का समुच्चय निर्धारित किया गया है। कन्वेंशन के भागीदार राष्ट्रों द्वारा निम्नलिखित गतिविधियों को रोकने हेतु यथासंभव उपयुक्त उपाय किया जाना आवश्यक है।

  • किसी भी गैरकानूनी यौन गतिविधि में संलग्न होने के लिए किसी बच्चे को प्रलोभन देना या विवश करना;
  • वेश्यावृत्ति या अन्य गैरकानूनी यौन प्रथाओं में बच्चों के शोषणकारी उपयोग;
  • अश्लील प्रदर्शन और सामग्रियों में बच्चों के शोषणकारी उपयोग।

बाल विवाह में कमी लाने के लिए किये गए प्रयास:

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बालिकाओं की स्थिति में सुधार लाने और बाल विवाह की समस्या को समाप्त करने के
    लिए कई कदम उठाये हैं:
  • प्रत्येक वर्ष, राज्य सरकारों से अनुरोध किया जाता है कि वे अक्षय तृतीया पर होने वाले (बाल) विवाह को रोकने के लिए समन्वित प्रयास की विशेष पहल करें। अक्षय तृतीया (आखा तीज) परम्परागत रूप से इस प्रकार के विवाह का दिन माना जाता है।
  • मंत्रालय ने “बाल विवाह की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय रणनीतिक दस्तावेज” का विकास किया है। वर्तमान में यह इस समस्या को रोकने हेतु रणनीतियों के कार्यान्वयन में सभी राज्यों को मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए बाल विवाह पर कार्यवाही की योजना तैयार कर रहा है।

बाल विवाह को रोकने के लिए सुझाये गये कदम इस प्रकार हैं:

  • कानून प्रवर्तन: बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, 21 वर्ष से कम आयु के किसी लड़के और 18 वर्ष से कम आयु की किसी लड़की का विवाह किए जाने को प्रतिबंधित करता है। इस प्रकार के कानून के प्रवर्तन के लिए बाल विवाह को रोकने वाले अधिकारियों की नियुक्ति सुनिश्चित करना, समुदायों और व्यक्तियों में कानून के बारे में जागरूकता, क्षमता र्माण करना आदि महत्वपूर्ण हैं।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अन्य अवसरों तक पहुंच, क्योंकि शिक्षा बाल विवाह के निवारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा
    सकती है।
  • मानसिकता और सामाजिक मानदंडों में परिवर्तन करना: महिलाओं की परिवार और समाज में भूमिका एवं लैंगिक
    धारणाओं, लड़की के किशोरावस्था में विवाह करने की प्रथाओं की व्यापक स्वीकृति आदि की मानसिकता में परिवर्तन  लाने की आवश्यकता है।
  • लडकियों को जीवन कौशल संबंधी प्रशिक्षण को बढावा देने वाली SABLA जैसी योजनाओं के माध्यम से किशोर लडकियों का सशक्तिकरण।
  • ज्ञान और आंकड़ों (डाटा) पर फोकस करना, जो साक्ष्य आधारित हस्तक्षेप को आकार प्रदान करते हैं।
  • बाल विवाह की रोकथाम हेतु किए जाने वाले हस्तक्षेपों के प्रभाव को समझने के लिए निगरानी योग्य संकेतकों को
    विकसित करना।

बाल विवाह से लड़कियों को सुरक्षा प्रदान करने वाले अन्य कानून हैं – किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012

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