भूकंपीय तरंगें और इनके विभिन्न प्रकार

प्रश्न: व्याख्या कीजिए कि पृथ्वी के आंतरिक भागों की संरचना को समझने के लिए भूकंपीय तरंगों का एक अप्रत्यक्ष स्त्रोत के रूप में किस प्रकार उपयोग किया जाता है

दृष्टिकोण:

  • भूकंपीय तरंगों और इनके विभिन्न प्रकारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • व्याख्या कीजिए कि ये पृथ्वी के आंतरिक भाग की संरचना को समझने में किस प्रकार सहायता करती हैं।

उत्तरः

भूकंप के दौरान उत्पन्न भूकंपीय तरंगें पृथ्वी के आंतरिक भाग के विषय में जानकारी प्रदान करने वाले महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक हैं। भूकंप, भूकंपीय ऊर्जा को भूगर्भिक तरंगों (P तरंग और S तरंग) तथा धरातलीय तरंगों, दोनों के रूप में विकिरित करते हैं। P-तरंग या प्राथमिक तरंग, भूकंपीय तरंगों में सबसे तीव्र गति से चलने वाली तरंग है, और इसलिए यह पृष्ठ/अधिकेन्द्र पर सबसे पहले ‘पहुँचती’ है। ये तरंगें गैसीय, तरल और ठोस माध्यमों से गमन कर सकती हैं। S-तरंग या द्वितीयक तरंग, P-तरंग की तुलना में मंद गति की होती है तथा P तरंगों के विपरीत, यह केवल ठोस माध्यम से गमन कर सकती है।

भूकंप के दौरान, भूकंपीय तरंगें (P और S तरंगें) पृथ्वी के आंतरिक भाग से होते हुए सभी दिशाओं में प्रसारित होती हैं। पृथ्वी के आंतरिक भाग से गुजरने के दौरान उनके वेग माध्यम के गुणधर्मों जैसे कि संघटन, खनिज प्रावस्था एवं संरचना, तापमान, और दाब पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए:

  • ये अपेक्षाकृत सघन पदार्थों से अधिक तेजी से गमन करती हैं और इसलिए गहराई में वृद्धि के साथ इनकी गति में भी वृद्धि होती है।
  • असंगत रूप से, उष्ण क्षेत्र भूकंपीय तरंगों की गति मंद कर देते हैं।
  • ठोस की तुलना में द्रव माध्यम में इनकी गति अधिक मंद होती है।
  • पृथ्वी के भीतर पिघला हुआ (द्रव) क्षेत्र P-तरंगों की गति को मंद कर देता है और S -तरंग इससे गमन नहीं कर सकती हैं, क्योंकि उनकी अपरूपण गति द्रव माध्यम से संचारित नहीं हो सकती है।
  • आंशिक रूप से पिघला हुआ क्षेत्र P-तरंगों को मंद और S-तरंगों को क्षीण या निर्बल कर सकता है।
  • परावर्तन के कारण तरंगें वापस लौट जाती हैं; अपवर्तन के कारण तरंगें विभिन्न दिशाओं में गमन करती हैं जिसके फलस्वरूप भूकंपीय तरंगें पृथ्वी में वक्र पथ में गमन करती हैं।

तरल अवस्था में विद्यमान कोर द्वारा P-तरंगों के अपवर्तित होने के कारण छाया क्षेत्र का निर्माण होता है और यह S -तरंगों को पूर्णतः अवरुद्ध कर देता है। भूकंपलेखी भूकंप अधिकेंद्र से 105 डिग्री के अंतर्गत किसी भी दूरी पर P और S दोनों प्रकार की तरंगों का अभिलेखन करते हैं। भूकंपलेखी, अधिकेंद्र से 145 डिग्री से परे केवल ‘P’ तरंगों को ही अभिलेखित करते हैं। इस प्रकार, केंद्र से 105 डिग्री और 145 डिग्री के मध्य का क्षेत्र दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र होता है। 105 डिग्री से परे सम्पूर्ण क्षेत्र में S -तरंगें नहीं पहुंच पाती। S -तरंगों का छाया क्षेत्र P -तरंगों की तुलना में बहुत विस्तृत होता है।

किसी भूकंप हेतु मापे गए इन छाया क्षेत्रों का ज्यामितीय वितरण और विस्तार, पृथ्वी के आंतरिक भाग में प्रमुख सीमाओं की स्थिति की गणना करने में सक्षम बनाता है। साथ ही विभिन्न परतों के ठोस बनाम द्रव अभिलक्षण और यहां तक कि उनके भौतिक गुणधर्मों में से कुछ के विषय में जानकारी प्रदान करता है।

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