भारतीय-इस्लामी कला, भारतीय और इस्लामी कला का समेकन

प्रश्न: “भारतीय-इस्लामी (इंडो-इस्लामिक) कला न तो मात्र इस्लामी कला का स्थानीय भेद थी और न ही हिंदू वास्तुकला का संशोधित रूप थी। यह अपनी विशेषता दोनों स्रोतों से प्राप्त करती है, हालाँकि हमेशा एक समान मात्रा में नहीं।” विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय-इस्लामी कला, भारतीय और इस्लामी कला का समेकन कैसे है। चर्चा कीजिए।
  • भारतीय-इस्लामी कला की विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित कीजिए तथा दर्शाइए कि इस शैली ने भिन्न-भिन्न मात्रा में हिन्दू एवं इस्लामिक कला से कौन-कौन से लक्षण ग्रहण किये हैं।
  • उपरोक्त तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना के साथ ही, वास्तुकला के क्षेत्र में, निरंतर स्वीकृति, अस्वीकृति या संशोधनों की सतत प्रक्रिया से होकर वास्तुकला के विभिन्न तत्वों का एक मिश्रण विकसित हुआ, जिसे भारतीय-इस्लामिक (इंडो-इस्लामिक) कला कहा गया।

यह कला मुख्यतः चार प्रमुख शैलियों में वर्गीकृत की गयी है और इन शैलियों में, विभिन्न मात्रा में हिंदू और इस्लामी विशिष्टता के समेकन को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है:

  • इम्पीरियल शैली (दिल्ली सल्तनत): सल्तनत कालीन अनेक इमारतों की एक महत्वपूर्ण विशेषता, अत्यधिक अलंकृत व सुसज्जित मेहराब एवं गुम्बद हैं। इन्हें पवित्र क़ुरान की शिक्षाओं से अलंकृत किया गया है। स्वास्तिक, कमल, घंटी और अन्य विभिन्न हिंदू प्रतीक चिन्हों का उपयोग भी सुल्तानों द्वारा व्यापक रूप से किया जाता था। इल्तुतमिश के काल से इमारतों के निर्माण में इस्लामी तत्वों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, उदाहरणस्वरुप इल्तुतमिश का मकबरा, कुतुब-मीनार, अलाई दरवाजा, कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद आदि में शाफ़्ट (shafts) एवं नुकीले आकार के मेहराब का निर्माण।
  • प्रांतीय शैली (गुजरात, बंगाल और जौनपुर): बंगाल और जौनपुर की वास्तुकला को विशिष्ट माना जाता है। गुजरात के मक़बरों, मस्जिदों और दरगाहों में क्षेत्रीय मंदिर प्रथाओं से लिए गए लक्षण, जैसे तोरण, मेहराबों में चौखट, घंटी और बेलबूटों की नक्काशी तथा वृक्षों की आकृतियों वाले नक्काशीदार पैनल आदि दिखते हैं। इसके महत्वपूर्ण उदाहरण में खंभात में जामा मस्जिद, अहमदाबाद में हिलाल खान क़ाज़ी की मस्जिद शामिल हैं। इन दोनों में स्तंभों और शहतीर का निर्माण किया गया है, जो स्पष्ट रूप से हिन्दू प्रभाव को दर्शाता है।
  • मुगल शैली (दिल्ली, आगरा और लाहौर): मुगल सम्राट कला और वास्तुकला के विशेषज्ञ थे, जिन्होंने हिंदू वास्तुकला से प्रेरित स्मारकों, महलों, किलों, मस्जिदों और मकबरों का निर्माण कराया। उदाहरणस्वरुप, ताजमहल के मुख्य गुम्बद के आकार पर तैमूरी स्थापत्य शैली का स्पष्ट प्रभाव है, जबकि, चौड़ी गुफाओं वाले गुम्बद हिंदू मंदिरों से प्रेरित हैं। दूसरी ओर हुमायूं के मकबरे के निर्माण में भारतीय शैली की तुलना में फ़ारसी विशेषताएँ अधिक दिखती हैं। इसी प्रकार आगरा का किला, जामा मस्जिद, अकबर के मकबरे जैसे अन्य महत्वपूर्ण स्थापत्यों में भिन्न-भिन्न रूपों में हिंदू और इस्लामिक वास्तुकला, दोनों के प्रभाव परिलक्षित होते हैं।
  • दक्कनी शैली (बीजापुर, गोलकुंडा): कुतुबशाही मकबरों और हैदराबाद के चारमीनार में कुरान की आयतों के साथ -साथ हिन्दू वास्तुकला की विशेषताओं जैसे कमल, बेल-बूटों आदि से दीवारों को अलंकृत किया गया है। जामा मस्जिद और बीजापुर के गोल गुम्बद में भारतीय और फारसी दोनों शैलियों की विशेषताएँ विद्यमान हैं। इस प्रकार, हिंदू और मुस्लिम वास्तुकला में स्वयं के कुछ विशिष्ट लक्षण विद्यमान थे तथा इन दोनों के समन्वय से भारतीयइस्लामिक कला का उदय हुआ।

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