भारत में श्रम कानूनों की समस्या की सोदाहरण चर्चा

प्रश्न: प्रतिबंधात्मक श्रम विनियमों ने भारत को श्रम-गहन उत्पादों में अपनी प्राकृतिक तुलनात्मक बढ़त का लाभ उठाने से रोका है। टिप्पणी कीजिए। साथ ही, इस सन्दर्भ में श्रम सुधारों की आवश्यकता पर भी चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • पहले भाग में, भारत में श्रम कानूनों की समस्या की सोदाहरण चर्चा कीजिये।
  • समझाइये कि इन कानूनों ने भारत में श्रम गहन विनिर्माण को कैसे बाधित किया है।
  • सरकार द्वारा अपनाये गए हालिया सुधारों में से कुछ का उल्लेख करें।
  • अंततः उत्तर के अंतिम भाग में कुछ और सुधारों का सुझाव दीजिये।

उत्तर

भारत के प्रतिबंधात्मक श्रम विनियमों ने भारत को उत्पादन (आउटपुट), उत्पादकता और रोजगार के कुल संभावित लाभों की प्राप्ति से वंचित किया है। वर्तमान में 200 श्रम कानून विद्यमान हैं जिनमें से एक चौथाई तो केंद्रीय कानून ही हैं। संगठित क्षेत्र में श्रम कानूनों की अधिकता को नियोक्ताओं के विरुद्ध पक्षपातपूर्ण माना जाता है। दंड सम्बन्धी विभिन्न प्रावधान, श्रम-केंद्रित विनिर्माण, उत्पादन की नई तकनीकों और सौहार्दपूर्ण औद्योगिक संबंधों को अपनाने में बाधा डालते हैं। इसे निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है:

  • औद्योगिक विवाद अधिनियम (Industrial Disputes Act: IDA) के अनुसार 100 या अधिक श्रमिकों वाली फर्मों के लिये किसी भी कर्मचारी की छंटनी करने या काम से निकालने से पूर्व सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य है, जो शायद ही कभी दी जाती है।
  • औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम के अनुसार 100 या अधिक श्रमिकों (कुछ राज्यों में 50 या उससे अधिक) वाली फर्मों में नियोक्ता के लिए किसी कर्मचारी को किसी एक कार्य के बजाय कोई दूसरा कार्य सौंपने (टास्क रीअसाइनमेंट) के लिए भी सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है।
  • ट्रेड यूनियन एक्ट किन्हीं भी सात कर्मचारियों को एक यूनियन बनाने की अनुमति देता है। इस प्रकार फर्म के प्रबंधकीय संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा फर्म के भीतर उपस्थित यूनियनों से निपटने में ही संलग्न रहता है।
  • संविदा श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम कुछ कार्यों के लिए संविदा आधारित श्रमिकों के उपयोग पर सीमाएं आरोषित करता है और यहाँ तक कि उसे पूर्णतः प्रतिबंधित भी करता है।

प्रतिबंधात्मक विनियमों के प्रतिकूल प्रभाव को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

  • संगठित क्षेत्र में श्रम कानूनों की बहुलता नियोक्ता को श्रम-गहन पद्धतियों में निवेश के प्रति निरुत्साहित करती है।
  • ये कानून एक निश्चित संख्या से अधिक कर्मचारियों वाली फर्मों पर ही लागू होते हैं। यही कारण है कि इन कानूनों से बचने के लिए फर्मे अक्सर छोटे और अनौपचारिक स्तर पर ही रहना पसंद करती हैं। इसलिए ये क़ानून अपेक्षाकृत अधिक उत्पादक औपचारिक क्षेत्र के आकार को संकुचित और सीमित करते हैं। इसके कारण इन क्षेत्रों से जो उत्पादन और रोजगार प्राप्त हो सकता था, वह कम उत्पादकता वाले अनौपचारिक क्षेत्र की ओर उन्मुख हो जाता है।
  • प्रतिबंधात्मक नियमों के कारण भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
  • अनौपचारिक श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा निम्न आय, सामाजिक सुरक्षा के अभाव और शिक्षा एवं कौशल के निम्न स्तर से ग्रसित है।
  • उदाहरण के लिए, कपड़ा क्षेत्र में पुराने श्रम कानून भारत को श्रम-प्रतिस्पर्धी बनने से रोकते हैं। भारत को कम लागत वाले श्रम-गंतव्य के रूप में नहीं माना जाता है।

इस प्रकार, श्रम सुधार एक तात्कालिक आवश्यकता है। इस संबंध में हाल ही में कुछ कदम उठाए गए हैं। उदाहरण के लिए:

  • सरकार, 38 केंद्रीय श्रम अधिनियमों को 4 श्रम संहिताओं, अर्थात् – पारिश्रमिक; सुरक्षा और कार्य की शर्ते; औद्योगिक संबंध; और सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण पर संहिता, में समामेलित करते हुए उन्हें तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया में है।
  • कुछ राज्यों में IDA सीमा को बढ़ाकर 100 से 300 श्रमिकों तक किया गया है।
  • केंद्रीय स्तर पर, 16 केंद्रीय अधिनियमों के अनुपालन की सेल्फ-रिपोर्टिंग के लिए एक एकीकृत श्रम और औद्योगिक वेब पोर्टल स्थापित किया गया है।
  • श्रम निरीक्षण योजना यह सुनिश्चित करती है कि निरीक्षण केवल तभी हो जब पोर्टल में एक बिल्ट-इन एल्गोरिदम द्वारा इसे ट्रिगर किया जाये। इससे निरीक्षकों द्वारा किया जाने वाला संभावित उत्पीड़न कम हो जाता है।
  • श्रम गतिशीलता और कौशल निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए अप्रैटिस अधिनियम में संशोधन के साथ भविष्य निधियों की पोर्टेबिलिटी बढ़ाने के उद्देश्य से भी कुछ सुधार किये गए हैं।

हालांकि, इस संबंध में और अधिक सुधारों की आवश्यकता है, जैसे:

  • छंटनी से सम्बंधित IDA की परिभाषा से, मांग और प्रौद्योगिकी में परिवर्तन की प्रतिक्रिया में छंटनी तथा परिवीक्षा (प्रोबेशन) के उपरांत किसी कर्मचारी को स्थायी न किये जाने को हटाया जाना चाहिए।
  • औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम के अंतर्गत टास्क रीअसाइनमेंट में अधिक लचीलेपन की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • नए स्थापित सेल्फ-रिपोर्टिंग वेब पोर्टल के अंतर्गत और अधिक श्रम कानूनों को कवर किया जाना चाहिए।

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