भारत में सार्वजनिक सेवा वितरण

प्रश्न: भारत में सार्वजनिक सेवा वितरण दीर्घकाल से विभिन्न समस्याओं से ग्रसित रहा है जिसका परिणाम घटिया सेवा वितरण है। इसके कारणों पर चर्चा करते हुए, सार्वजनिक सेवा वितरण को अधिक कुशल बनाने के उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण:

  • भारत में सार्वजनिक सेवा की प्रकृति का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  • घटिया सेवा वितरण परिणामों के लिए उत्तरदायी मुख्य प्रणालीगत मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
  • सार्वजनिक सेवा वितरण को अधिक प्रभावी और कुशल बनाने के लिए उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर:

सार्वजनिक सेवा एक ऐसी सेवा है जो सरकार द्वारा लोगों को सीधे सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से या सेवाओं के वितरण का वित्तपोषण करके प्रदान की जाती है। सार्वजनिक सेवाएं निर्धनों के लिए अत्यावश्यक हैं जो अपनी उत्तरजीविता और निर्धनता के दुष्चक्र से बाहर आने के लिए इन सेवाओं पर आश्रित होते हैं। भारत ने ऐसी सेवाओं तक बुनियादी पहुंच प्रदान करने के मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है, परन्तु गुणवत्ता, विश्वसनीयता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के मामले में इसका प्रदर्शन निम्नस्तरीय रहा है।

घटिया सेवा वितरण परिणामों के लिए उत्तरदायी कुछ प्रणालीगत मुद्दे निम्नलिखित हैं:

  • सार्वजनिक सेवाओं को वितरित करने हेतु उत्तरदायी अधिकारियों के समयपूर्व स्थानांतरण के कारण उनका कार्यकाल अल्पावधिक होता है। अल्पावधिक कार्यकाल सेवाओं के निरंतर वितरण को बाधित करता है।
  • व्यक्तिगत और संगठनात्मक क्षमता निर्माण का अभाव।
  • जवाबदेही तंत्रों की कमजोरी और नौकरशाही जटिलताओं के कारण भ्रष्टाचार के अवसरों में वृद्धि।
  • राजनेताओं में इस मुद्दे को गंभीरता से लेने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन न होने के कारण परिवर्तन के लिए प्रभावी नागरिक दबाव उत्पन्न नहीं हुआ है।
  • चुनावों की अविनियमित लागत और वित्त पोषण हेतु वैध स्रोतों के अभाव ने सेवाओं के वितरण सहित प्रशासनिक कार्यों से लाभ प्राप्त करने हेतु प्रलोभनों को बढ़ावा दिया है।
  • परस्पर अतिव्यापी भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों की बहुलता और धीमी भ्रष्टाचार-विरोधी कानूनी प्रक्रियाएं।
  • सार्वजनिक सेवाओं की प्रकृति बहुविध होती है और उनकी मात्रा और गुणवत्ता सदैव स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट नहीं की जा सकती है। इसलिए मानकों को लागू करना कठिन होता है।

सार्वजनिक सेवा वितरण को प्रभावी और कुशल बनाने के उपाय

  • पार्टी लाइन और राजनीतिक नेतृत्व के दृष्टिकोण से परे सर्वदलीय सहमति।
  • कार्यकाल की स्थिरता और प्रबंधकीय स्वायत्तता के माध्यम से लोक सेवा को सशक्त बनाना।
  • सेवा वितरण परिणामों में सुधार करने के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना। उदाहरणस्वरूप, दूरसंचार क्षेत्र।
  • ई-गवर्नेस के अधिक उपयोग के माध्यम से लेन-देन को सरल बनाना और नागरिकों एवं राज्य के मध्य संपर्क को सुगम बनाने हेतु कार्य संचालन प्रक्रियाओं में परिवर्तन।
  • अंतःसांगठनिक प्रक्रियाओं की री-इंजीनियरिंग – केंद्रीकृत निगरानी प्रणालियों का निर्माण, अंतर-एजेंसी समन्वय में सुधार और सिविल सोसाइटी के साथ अधिक प्रभावी संबंध विकसित करना।
  • स्थानीय स्तर पर बेहतर सेवा वितरण के लिए उचित रक्षोपायों के साथ विकेंद्रीकरण को अपनाना।
  • सूचना तक पहुँच को बढ़ावा देना, दुर्भावना के विरुद्ध सार्वजनिक दबाव उत्पन्न करने के लिए भ्रष्टाचार-विरोधी संस्थानों का उपयोग करना।
  • मीडिया के साथ सिविल सोसाइटी समूह बदलाव हेतु दबाव बना सकते हैं।
  • सार्वजनिक सेवाओं की होम डिलीवरी, सार्वजनिक सेवाओं का अधिकार जैसे प्रगतिशील कानूनों का अधिनियमन।
  • व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) अभियान नागरिकों को उनके अधिकारों और दायित्वों को समझने में सहायता करते हैं।
  • सामग्री और जनशक्ति संसाधनों के संदर्भ में सेवा प्रदान करने वाली एजेंसी का क्षमता निर्माण करना।

लोक प्रशासन की प्रभावशीलता सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता पर निर्भर है। इसलिए सार्वजनिक सेवाओं के वितरण में तत्काल आधार पर सुधार के लिए गंभीर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

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