भारत में सार्वजनिक नीति निर्माण

प्रश्न: भारत में सार्वजनिक नीति निर्माण को बाधित करने वाले मुद्दों पर चर्चा कीजिए। साथ ही नीति निर्माण प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने के उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण:

  • सार्वजनिक नीति शब्द को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
  • भारत में सार्वजनिक नीति निर्माण को बाधित करने वाले मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
  • जहां प्रासंगिक हो, उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  • नीति निर्माण प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने के उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तरः

सार्वजनिक नीतियाँ वे दृष्टिकोण होती हैं जिनके माध्यम से सरकार कुछ निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति करती है। यह सरकार द्वारा प्राप्त किए जाने वाले अंतिम लक्ष्य और इसे प्राप्त करने हेतु आवश्यक उपायों को निर्धारित करती हैं। विशेष रूप से सार्वजनिक नीतियाँ विधिक संरचना के अनुरूप कुछ लक्ष्यों और उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सरकारी निर्णय और परिणामी कार्य होती हैं। भारत में सार्वजनिक नीति निर्माण को बाधित करने वाले मुद्दे निम्नलिखित हैं:

  • विचार और कार्रवाई में व्यापक समन्वय का अभाव: उदाहरण के लिए, भारत में परिवहन क्षेत्रक का प्रबंधन पांच विभागों/मंत्रालयों द्वारा किया जाता है जबकि अमेरिका और ब्रिटेन में यह केवल एक विभाग का एक कार्य है।
  • नीति निर्माण और कार्यान्वयन के मध्य अत्यधिक अतिव्यापन: कार्यान्वयन शक्तियों का मंत्रालयों के उच्च स्तर पर अत्यधिक संकेन्द्रण है। अत: जो लोग नीति निर्माण करते हैं उन्हीं के द्वारा इनका कार्यान्वयन भी किया जाता है, इसलिए कई बार नई नीति के रूप में यथास्थिति या बहुत कम परिवर्तनों को ही प्रस्तावित किया जाता है।
  • गैर-सरकारी इनपुट और सूचित विचार-विमर्श का अभाव: कई क्षेत्रकों में सर्वोत्तम विशेषज्ञता सरकारी क्षेत्र के बाहर विद्यमान होती है। तथापि सरकार की नीतिगत प्रक्रियाओं और संरचनाओं के लिए बाहरी इनपुट प्राप्त करने का कोई व्यवस्थित साधन मौजूद नहीं है।
  • साक्ष्य आधारित अनुसंधान का अभाव: अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी नीतिगत लक्ष्यों को निर्धारित करने के लिए विस्तृत क्षेत्र आधारित अनुसंधान करने हेतु सीमित संसाधन उपलब्ध हैं।
  • राजनीतिक रूप से प्रेरित नीतियां: अनेक बार चुनावी आवश्यकताएं या अपेक्षाएं किसी नीति के लक्ष्यों और उद्देश्यों पर हावी होती हैं।
  • व्यवस्थित विश्लेषण का अभाव: नीतिगत निर्णय प्रायः लागत, लाभ, आवश्यक आदान-प्रदानों और परिणामों के पर्याप्त विश्लेषण के बिना ही कर लिए जाते हैं।

नीति निर्माण प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाना

  • समन्वय स्थापित करना (Reduction in fragmentation): मौजूदा क्षेत्रकों में से एक से अधिक क्षेत्रकों का दायित्व प्रदान करने के साथ अपेक्षाकृत कम सचिवों की नियुक्ति करना। इसके परिणामस्वरूप नीति निर्माण के साथ-साथ कार्यान्वयन में अधिक समन्वय और एकीकरण सुनिश्चित हो सकेगा।
  • कार्यान्वयन से पृथक नीति निर्माण ताकि कार्यान्वयनकर्ताओं की प्राथमिकताएं और हित लोक हित को प्रभावित न कर सकें।
  • सरकार के बाहर के क्षेत्रक से एकीकरण और ज्ञान प्राप्ति को प्रोत्साहित करना: इस प्रकार की संरचनाओं के निर्माण की आवश्यकता है जो नीति-निर्माताओं के लिए गैर-सरकारी इनपुट और विषय वस्तु से संबंधित विशेषज्ञता की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकें।
  • अंतर-क्षेत्रकीय प्रभाव का आकलन करना: नीति-निर्माण प्रक्रियाओं और संरचनाओं के अंतर्गत अंतर-क्षेत्रकीय प्रभावों के बारे में सूचना एकत्र करना, आवश्यक आदान-प्रदानों का विश्लेषण तथा विभिन्न क्षेत्रकों पर प्रभावों के संबंध में समुचित विचार के पश्चात् उपलब्ध विकल्पों में से पूर्णतः सूचित विकल्प चयन को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा सिविल सोसाइटी समूहों और जागरुक नागरिकों को नीति निर्माण और फीडबैक प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही समय-समय पर निगरानी और मूल्यांकन करने वाली प्रक्रिया की स्थापना भी की जानी चाहिए।

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