भारत में निर्धनता : निर्धनता-रोधी कार्यक्रम

प्रश्न: भारत में निर्धनता से मुकाबला करने की रणनीति निर्धनता-रोधी कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन और रोजगार गहन आर्थिक विकास, दोनों पर आधारित होनी चाहिए। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • देश में निर्धनता के वर्तमान आंकड़ों के साथ निर्धनता को संक्षिप्त में परिभाषित कीजिए।
  • निर्धनता-रोधी योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन तथा रोजगार गहन आर्थिक विकास सहित निर्धनता से निपटने हेतु रणनीति की चर्चा कीजिए।
  • इस संदर्भ में कुछ सरकारी योजनाओं का उल्लेख कीजिए और ये किस प्रकार निर्धनता से निपटने में सहायक हैं।
  • आगे की राह के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, निर्धनता एक ऐसी स्थिति है, जो मनुष्य की बुनियादी आवश्यकताओं जैसे – भोजन, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता सुविधाओं, स्वास्थ्य, आश्रय, शिक्षा एवं सूचना इत्यादि के गंभीर अभाव की स्थिति को इंगित करती है। यह न केवल आय पर, बल्कि सेवाओं तक पहुंच पर भी निर्भर करती है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किए गए ‘वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI), 2018‘ के अनुसार, भारत में 2005-06 के पश्चात एक दशक दौरान लगभग 270 मिलियन से अधिक लोग निर्धनता से मुक्त हुए हैं। परंतु अभी भी 28.5% भारतीय जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है।

नीति आयोग के अनुसार, निर्धनता से निपटने संबंधी रणनीति को दो दृष्टिकोणों पर आधारित होना चाहिए, यथा रोजगार गहन सहित निरंतर तीव्र विकास तथा निर्धनता-रोधी कार्यक्रमों को अत्यधिक प्रभावी बनाना। निरंतर तीव्र विकास एवं रोजगार दो मार्गों के माध्यम से कार्य करता है: 

  • प्रथम, निरंतर रूप से वास्तविक वेतन में वृद्धि सहित बेहतर वेतन वाली नौकरियों का सृजन करना, जिसके परिणामस्वरूप अंततः प्रत्यक्ष रूप से निर्धनता में कमी होती है।
  • द्वितीय, अधिक रोजगार के सृजन से सरकारी राजस्व में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक व्यय की अत्यधिक वृद्धि हो सकेगी।

उपर्युक्त दोनों मार्ग निर्धनता में कमी करते हैं क्योंकि इनके माध्यम से शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच की संभावना में वृद्धि हो सकती है, अतः ये गरीबी उन्मूलन का भावी मार्ग प्रशस्त करते हैं। इसके अतिरिक्त, बढ़ी हुई आय भी सरकारी सेवाओं (भले ही वे निःशुल्क उपलब्ध हों) तक बेहतर पहुंच प्रदान करती है। अत:, हाल ही में, मुद्रा योजना, स्टार्ट-अप इंडिया, एस्पायर (ASPIRE) इत्यादि के अंतर्गत लक्षित ऋणों के संदर्भ में हैंड-होल्डिंग दृष्टिकोण की सहयोग से नौकरी की खोज करने वाले व्यक्ति को नौकरी प्रदाता के रूप में परिवर्तित करने तथा उद्यमिता द्वारा रोजगार सृजन पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

हालांकि, केवल तीव्र विकास, सामाजिक व्यय में अत्यधिक विस्तार करने हेतु पर्याप्त स्थिति नहीं है, परंतु फिर भी यह इस एक आवश्यक शर्त है। अतः निर्धनता और भोजन, पोषण, जल, शौचालय, साक्षरता, स्वास्थ्य आदि जैसे विशिष्ट पहलुओं का समाधान करने के संदर्भ में निर्धनों की प्रत्यक्ष सहायता सुनिश्चित करने हेतु प्रभावी निर्धनता-रोधी कार्यक्रमों पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। इस दृष्टिकोण को सरकार द्वारा आरंभ की गई निम्नलिखित विभिन्न पहलों के अंतर्गत देखा जा सकता है।

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम: इसके तहत 75% ग्रामीण जनसंख्या और 50% शहरी जनसंख्या को प्रति माह 5 किलो अनाज प्रदान किया जाता है, जो स्वास्थ्य के साथ-साथ निर्धनता को समाप्त करने की संभावनाओं को भी सुनिश्चित करता
  • मनरेगा: इसका उद्देश्य अकुशल श्रमिकों को एक वर्ष में निर्दिष्ट पारिश्रमिक प्रदान करना है, इस प्रकार उन्हें आय के कुछ स्रोत प्रदान किये जाते हैं, ताकि उनकी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु उनकी क्रय शक्ति में वृद्धि की जा सके।
  • सबके लिए आवास – इसे ग्रामीण एवं शहरी दोनों स्तरों पर क्रियान्वित किया जा रहा है, जिसने निर्धनों के लिए वहनीय संपत्ति के सृजन को सक्षम बनाया है। इसके अंतर्गत निर्धनों के आश्रय स्थल वाले भाग को ही कवर किया गया है।

निर्धन लोगों तक बुनियादी आवश्यकताओं की उपलब्धता और पहुँच को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से निर्धन परिवारों को सहायता प्रदान करने तथा निर्धनता में कमी करने की दिशा में इन प्रत्यक्ष उपायों को अपनाएं जाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही उन्हें सशक्त बनाने के लिए रोजगारों का सृजन करना भी महत्त्वपूर्ण है ताकि वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। इसलिए इस संदर्भ में, सरकार को उपर्युक्त दोनों दृष्टिकोणों के तहत उपायों का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।

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