भारत में व्याप्त आय असमानता पर टिप्पणी : सर्वोदय और न्यासिता की अवधारणा
प्रश्न: भारतीय समाज के लिए आय असमानता एक गंभीर चिंता का विषय है। इस संदर्भ में, गाँधी जी की ‘सर्वोदय’ और ‘न्यासिता’ (ट्रस्टीशिप) की अवधारणाओं की प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत में व्याप्त आय असमानता पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- आय असमानता के परिणामों का उल्लेख कीजिए।
- सर्वोदय और न्यासिता की अवधारणाओं को समझाते हुए, भारतीय समाज से आय असमानता को समाप्त करने में इनकी प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए।
उत्तर
कुछ अनुमानों के अनुसार, निर्धनता को कम करने में हुई ऐतिहासिक प्रगति के बावजूद विगत दो दशकों में भारत में आय असमानता की स्थिति अत्यधिक खराब हो गयी है। ‘विश्व असमानता रिपोर्ट – 2018’ के अनुसार, 2014 में राष्ट्रीय आय का 56% भाग जनसंख्या के शीर्ष 10% लोगों के पास था। इसके अतिरिक्त, 1980 के दशक के बाद से शीर्ष 1% लोगों की समग्र आय में निरपेक्ष वृद्धि निम्न 50% लोगों की समग्र आय से अधिक रही है। इसी प्रकार, ऑक्सफैम के वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के 1% सबसे समृद्ध लोगों का 2017 में सृजित कुल सम्पत्ति के 73% भाग पर अधिकार रहा है।
आय असमानता के परिणामों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:
- आर्थिक असमानता का उच्च स्तर दर्शाता है कि आय अर्जन के अवसर सीमित हैं और अधिकांश लोग निरपेक्ष रूप से निर्धन न होते हुए भी अपेक्षाकृत निर्धन बने हुए हैं। इस स्थिति का संबंध अपराध और सामाजिक हिंसा में वृद्धि से है।
- समृद्ध नागरिक के पास अति निर्धन नागरिकों की तुलना में अधिक राजनीतिक शक्ति होती है, परिणामस्वरूप अप्रभावी कर संरचनाओं को बढ़ावा मिलता है। यह संरचना अंततः समृद्ध लोगों के पक्ष में होती है, जो असमानता को स्थायी बना देती है।
- अवसर की असमानता के उच्च और स्थायी स्तर, किसी व्यक्ति के शैक्षणिक और व्यावसायिक विकल्पों को कमजोर बना सकते हैं।
- उच्च असमानता निम्न आय वाले परिवारों को भौतिक और मानव पूंजी को संचित करने की क्षमता से वंचित कर देती है परिणामस्वरूप संवृद्धि में कमी हो जाती है।
- अत्यधिक असमानता सरकार पर विश्वास को कम कर सकती है तथा संघर्ष और अशांति को बढ़ावा दे सकती है। उदाहरण के लिए, नक्सलबाड़ी आंदोलन।
इस संदर्भ में, गांधीजी की ‘सर्वोदय’ और ‘न्यासिता’ की अवधारणा प्रासंगिक मानी जाती है, क्योंकि ये अवधारणाएं समानता और न्याय का समर्थन करती हैं।
सर्वोदय: इसका अर्थ है “सभी का उदय”। गांधीजी द्वारा कल्पित सर्वोदय समाज में, प्रत्येक सदस्य भौतिक संपदा के असीमित अधिग्रहण के लोभ से मुक्त होगा और उचित कार्य के माध्यम से पर्याप्त धनार्जन के समान अवसर प्राप्त करेगा। चूंकि सर्वोदय समाज सामाजिक-आर्थिक समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर आधारित है, अतः यह किसी भी प्रकार की अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा, आर्थिक शोषण और वर्गगत द्वेष को अस्वीकृत करता है। इसके बजाय, यह बिना किसी बाधा के व्यक्ति के कौशल के विकास के पर्याप्त अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार, यह भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में आय के न्यायसंगत पुनर्वितरण की प्रक्रिया में सहायता करता है।
न्यासिता: यह गाँधीजी का सामाजिक-राजनीतिक दर्शन है। इसके अनुसार समृद्ध लोगों का धन और संपत्ति पर अधिकार होगा, लेकिन यह अधिकार स्वामी के रूप में नहीं, बल्कि एक ट्रस्टी के रूप में होगा अर्थात वे सामान्यतः लोगों के कल्याण के लिए कार्य करेंगे। यह चरणबद्ध रूप से आय असमानता को समाप्त करने में सहायता करेगा, क्योंकि यह दर्शन समृद्ध लोगों के लिए अपनी संपत्ति का निर्धन लोगों की सहायता हेतु उपयोग करना अनिवार्य बनाता है। इस प्रकार, यह निर्धनता और समृद्धता की चरम स्थितियों को समाप्त कर देता है।
यद्यपि, प्रतिस्पर्धा के इस दौर में किसी विशेष देश द्वारा इन्हें क्रियान्वित करना कठिन है तथापि यदि सभी प्रमुख देश सहमत हो तो इन्हें क्रियान्वित किया जा सकता है। यदि इन्हें कियान्वित किया जाता है तो ये अवधारणाएं असमानता की समस्या को समाप्त करने के वैकल्पिक आयाम उपलब्ध करा सकती हैं और सभी वर्गों में समान रूप से धन वितरण करने का एक नया साधन प्रदान कर सकती हैं। इस प्रकार ये अवधारणाएं न केवल आर्थिक असमानता को कम करने में, बल्कि दीर्घावधि के लिए सामाजिक समानता और राजनीतिक स्थिरता को भी बढ़ावा देने में सहायता करेंगी।
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