भारत की महत्वपूर्ण महिला वैज्ञानिक
प्रश्न: भले ही, कुछ उल्लेखनीय व्यक्तिगत उपलब्धियाँ हों, लेकिन वैज्ञानिक अनुसंधान में महिलाओं की समग्र भागीदारी अत्यंत निम्नस्तरीय रही है। परीक्षण कीजिए। इस संबंध में सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?
दृष्टिकोण
- भारत की महत्वपूर्ण महिला वैज्ञानिकों के उल्लेख साथ उत्तर की प्रस्तावना दीजिए।
- वैज्ञानिक शोध में महिलाओं की भागीदारी के वर्तमान परिदृश्य को संक्षेप में बताते हुए, उन मुद्दों पर चर्चा कीजिए जिनके परिणामस्वरूप महिलाओं की भागीदारी में कमी आई है।
- इस संबंध में सरकार के प्रयासों पर प्रकाश डालिए।
- उचित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक महिला वैज्ञानिक, गणितज्ञ, अंतरिक्ष यात्री और विशेषज्ञ हुई हैं। स्वर्गीय शकुंतला देवी, कल्पना चावला, मंगला नार्लीकर, अदिति पंत आदि उनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम हैं। अभी हाल ही में मार्स ऑर्बिटर मिशन की रितु करिदल और नंदिनी हरिनाथ सुर्खियों में रही हैं। इसी तरह, चंद्रिमा शाह जनवरी 2020 में प्रारंभ होने वाली भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (INSA) की पहली महिला अध्यक्ष बनी हैं।
हालांकि भारत में वैज्ञानिक शोध में लैंगिक असमानता चिंताजनक है।
- विज्ञान में महिलाओं की राष्ट्रीय टास्क फोर्स रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अनुसंधान और विकास कार्यबल में केवल 15% महिलाएं हैं, जबकि वैश्विक औसत 30% है।
- केवल लगभग 12.6% महिलाएँ विज्ञान की पढ़ाई चुनती हैं और स्नातक स्तर पर मात्र 16.34% इंजीनियरिंग और तकनीक का विकल्प चुनती हैं।
- TIFR, IITS, IISc जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में महिला फैकल्टी का प्रतिशत केवल 10-12% है।
- भारत की विज्ञान अकादमियों और आउटरीच कार्यक्रमों की फेलोशिपों में महिलाओं की हिस्सेदारी 10% से भी कम है। 20
वैज्ञानिक अनुसंधान में महिलाओं की कम भागीदारी और योगदान के विभिन्न कारण:
- पितृसत्तात्मक अभिवृत्ति: अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक कारकों के कारण महिलाओं का अत्यंत निम्न प्रतिशत विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करता है और इसे करियर के रूप में चुनता है:
- भारतीय समाज में बालिका शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है और विशेष रूप से STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित) पाठ्यक्रमों में नामांकन अत्यंत कम है।
- महिलाओं को पिंक कॉलर नौकरियों के क्षेत्र को आगे बढ़ने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे वे नौकरी और घरेलू काम की दोहरी जिम्मेदारी को पूरा कर सकें।
- महिलाएं देखभालकर्ता की भूमिका निभाती आई हैं और इसलिए डॉक्टरेट जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाएं भी विभिन्न बाह्य कारकों, जैसे- मातृत्व अवकाश और बच्चों की देखभाल के कारण प्रतिस्पर्धी पेशेवर की दौड़ से बाहर हो जाती हैं।
संस्थागत समर्थन का अभाव
- अधिकांश महिला कॉलेज विज्ञान के बजाय कला और वाणिज्य पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं।
- एक प्रणालीगत लैंगिक भेदभाव और पक्षपाती करियर समीक्षा की प्रक्रियाएं विद्यमान हैं। संकाय पदों और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी महिलाएं हाशिए पर स्थित हैं।
- कार्य के परिवेश में लैंगिक विविधता हेतु समर्थन की कमी है। किसी समान पद और प्रतिष्ठा के लिए महिलाओं को अपेक्षाकृत अधिक परिश्रम करना पड़ता है।
इस संबंध में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (DBT और DST) जैसे विभिन्न मंत्रालयों ने विविध कदम उठाए हैं:
- विज्ञान ज्योति योजना (DST): नोडल एजेंसियों के रूप में IIT और IISER के साथ प्रारंभिक चरण में इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण बालिकाओं को विज्ञान की ओर आकर्षित करना है।
- अमेरिका के प्रमुख संस्थानों में अंतरराष्ट्रीय सहयोगात्मक अनुसंधान में भाग लेने हेतु विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और चिकित्सा के क्षेत्र में महिलाओं के लिए भारत-अमेरिका फेलोशिप।
- महिला वैज्ञानिक योजना (DST) का उद्देश्य ऐसी महिला वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों को अवसर प्रदान करना है जो करियर में एक विराम के बाद मुख्यधारा के विज्ञान क्षेत्र में लौटने की इच्छा रखती हैं।
- KIRAN (DST): यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में होनहार छात्राओं को आकर्षित करने, उन्हें प्रशिक्षित करने और क्षेत्र में बनाए रखने के लिए महिला विश्वविद्यालयों में अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे को विकसित करने का लक्ष्य रखती है।
- UDAAN (MHRD): इसका उद्देश्य विज्ञान और इंजीनियरिंग कॉलेजों में छात्राओं के निम्न स्तरीय नामांकन अनुपात की समस्या से निपटना है।
- BioCARe (DBT): यह मुख्य रूप से 55 साल तक की उम्र की नियोजित/बेरोजगार महिला वैज्ञानिकों के करियर विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
SDG# 5 की लैंगिक समानता के अंतर्गत परिकल्पित लक्ष्यों को वास्तव में प्राप्त करने हेतु, STEM पाठ्यक्रमों में लैंगिक पक्षपात को खत्म करने के लिए महिलाओं हेतु अधिक अवसर सृजित किए जाने चाहिए।
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