भारत-अमेरिका संबंध : दोनों देशों के मध्य असहमति वाले क्षेत्रों का उल्लेख
प्रश्न: भारत-अमेरिका संबंधों में प्रगति समान रूप से महत्वपूर्ण मुद्दों पर उल्लेखनीय असहमति के साथ हुई है। हाल के घटनाक्रमों के संदर्भ में परीक्षण कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत-अमेरिका संबंधों में हुई प्रगति को बताइए।
- दोनों देशों के मध्य असहमति वाले क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
- निष्कर्ष में सुझाइए कि आगे चलकर भारत-अमेरिका संबंध किस दिशा में अग्रसर होने चाहिए।
उत्तर
भारत और अमेरिका ने विगत दशक में ‘इतिहास की असमंजसता’ को समाप्त करते हुए सुदृढ़ एवं रणनीतिक द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना की है। हाल के वर्षों में भारत-अमेरिका संबंधों में हुई प्रगति निम्नलिखित रूप में स्पष्टतः देखी जा सकती है:
- रक्षा सहयोग: भारत को ‘प्रमुख रक्षा भागीदार’ के रूप में मान्यता देते हुए, अमेरिका द्वारा अपने निर्यात नियंत्रण कानूनों में परिवर्तन किए गये हैं। यह कदम प्रौद्योगिकियों और शस्त्रों के सुगम हस्तांतरण की सुविधा के माध्यम से भारत को लाभान्वित करेगा। दोनों देशों ने सैन्य सहयोग के लिए समझौते के लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ़ अग्रीमेंट (LEMOA) पर भी हस्ताक्षर किए हैं।
- असैन्य परमाणु समझौता: 2008 में सम्पन्न असैनिक परमाणु समझौते की धीमी प्रगति और उभरते मुद्दों के बावजूद, 2016 में दोनों देश भारत में अमेरिका द्वारा डिजाइन किए गए 6 परमाणु रिएक्टरों का निर्माण करने पर सहमत हुए हैं।
- रणनीतिक मुद्दे: अमेरिका द्वारा भारत की UNSC में स्थायी सदस्यता और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में सदस्यता का समर्थन किया गया है। इसके साथ ही इसने आतंकवाद के मुद्दे पर अपने पारम्परिक सहयोगी पाकिस्तान के प्रति सख्त रवैया अपनाया है तथा पाकिस्तान की सैन्य सहायता में कटौती की है। अमेरिका, चीन को लेकर भारत की चिंताओं को भी साझा करता है। इसे चतुष्टक(QUAD) के गठन में स्पष्टतः देखा जा सकता है।
- आतंकवाद का प्रतिरोध एवं आंतरिक सुरक्षा: आतंकवाद के प्रतिरोध के मुद्दे पर खुफिया जानकारी को साझा करना, सूचनाओं का आदान-प्रदान, परिचालन सहयोग तथा आतंकवाद का प्रतिरोध करने से संबंधित प्रौद्योगिकी तथा उपकरणों के हस्तांतरण के साथ, पारस्परिक सहयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
उपर्युक्त के अतिरिक्त, अंतरिक्ष, ऊर्जा, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी सहयोग समेत अन्य विभिन्न क्षेत्रों में भी भारत एवं अमेरिका के मध्य सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए हैं। हालाँकि, महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रगति होने के बावजूद द्विपक्षीय संबंधों में कुछ मतभेद बने हुए हैं:
- व्यापारिक मुद्दे:
- संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापार संरक्षणवाद के कारण, दोनों के मध्य व्यापार मतभेदों में वृद्धि हुई है। उदाहरणार्थ संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस्पात और एल्यूमीनियम पर आरोपित व्यापार शुल्क भारत द्वारा अमेरिका को किये जाने वाले निर्यात को प्रभावित करते हैं। इसके प्रत्युत्तर में भारत द्वारा भी संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा आयातित कुछ कृषि उत्पादों, इस्पात और लौह के शुल्कों में वृद्धि कर दी गई।
- अमेरिका द्वारा हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों पर उच्च टैरिफ, सौर पैनलों की स्थानीय सामग्री की आवश्यकता, चिकित्सा उपकरणों पर मूल्य में कमी और अमेरिका के डेयरी एवं पोर्क उत्पादों के निर्यात पर भारतीय शुल्क तथा प्रतिरोध के मुद्दों को उठाया गया है।
- H1B प्रोफेशनल वीजा में प्रस्तावित कटौती और अमेरिका में 14 स्पाउस वीजा को रद्द करना।
- कॉउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ श्रू सैंक्शंस एक्ट (CAATSA):
यह अधिनियम ईरान, रूस और उत्तरी कोरिया के साथ व्यापार करने वाले देशों को लक्षित करता है। इस प्रकार इससे भारत; रूस और ईरान के साथ उसके संबंधों के संदर्भ में संपार्श्विक क्षति बन गया है।
- अमरीका ने ईरान समझौते से स्वयं को हटा लिया है। इसके कारण ईरान से पेट्रोलियम के आयात और चाबहार बंदरगाह पर हो रहे कार्यों में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
- भारत की रूसी एस -400 मिसाइल प्रणाली को प्राप्त करने की योजना भारत एवं अमेरिका के मध्य मतभेदों के समाधन के संदर्भ में एक निर्णायक पहलू बन सकता है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) का मुद्दा: यह दोनों देशों के मध्य निरंतर तनाव का विषय रहा है (विशेषतः ट्रिप्स समझौते के तहत भारत द्वारा सुरक्षा प्राप्त करने के सन्दर्भ में)।
- 2+2 वार्ता: दोनों देशों के विदेश तथा रक्षा मंत्रियों के मध्य होने वाली प्रथम 2+2 वार्ता के दौरान कई मुद्दों का समाधान किया जाना था; हालांकि, इसे दो बार आगे बढ़ाया जा चुका है।
- हिन्द-प्रशांत का विचार: यद्यपि इस उभरते हुए विचार के महत्व पर व्यापक रूप से सहमति विद्यमान है, तथापि इसके अभिविन्यास एवं परिभाषा में भिन्नता है। जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसे रणनीतिक संदर्भ में बड़े पैमाने पर परिभाषित किया है; वहीं भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने शांगरी-ला डायलॉग 2018 में अपने भाषण में भूगोल, सभ्यता, बहुपक्षीय हितों और सिद्धांतों के संदर्भ में भारत की परिभाषा को व्यक्त किया है।
जहाँ एक ओर भारत को अपने रणनीतिक लक्ष्यों को सुरक्षित रखने हेतु रूस के साथ रक्षा समझौते पर दृढ़ रहना चाहिए, वहीं ईरान के साथ व्यापारिक मुद्दों के संदर्भ में भारत को समान दृष्टिकोण वाले देशों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए। इसके अतिरिक्त संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने सहयोग को बढ़ावा देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि छोटे किन्तु महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दों को आगे बढ़ाते हुए घनिष्ठ एवं सक्रिय संबंधों को कायम रखा जाये।
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